shabd-logo

उच्चत्व से पतन स्वीकार था !

18 अप्रैल 2022

14 बार देखा गया 14

मनहर, पतन स्वीकार था

मुझको, पतन स्वीकार था!

हे हिमशिखर !

तुमको लगा जो निम्न पथ,

मेरे लिए हर-द्वार था।

मुझको, पतन स्वीकार था!

मेरा उतरना, दौड़ना, पथ-पत्थरों का तोड़ना

कर हरी-हरी वसुंधरा उदंड अंग हिलोरना!

ये राह, खोवे दाह, गीता में प्रलय, तरला चाह,

मैं चल पड़ी, मेरे चरणों पर जगत भर लाचार था !

मुझको, पतन स्वीकार था!

प्रभु की तरल प्राणद झड़ी बरसी तुम्हारे घर वृथा,

तुमने बना पत्थर, बढ़ा दी कोटि तृषितों की व्यथा,

तुम देवताओं के लोक हो मैं कृषक की करुणा कथा ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

प्रभु ने बरसता वर दिया, तुमने उसे पत्थर किया,

माना कि पंकिलता बची माना कि जगमग जग किया,

तुमको चमक की चाह- मुझको, पंक-पथ-शृंगार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

तुम जगमगा कर रह गये अपनी विवशता कह गये,

लाचार दीन अधीन तृषितों के इरादे ढह गये,

मैं उच्चता को शत्रु- सबल जगत की मनुहार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

तुम रोकते हो धार को ? आश्रित जगत-व्यापार को ?

तुम प्रबल गति के शत्रु हो- क्यों रोकते हो ज्वार को ?

मैं चली मूर्छित छोड़; मेरा, प्रलय-घन हुंकार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

तुम विमल ऊँचों की कथा, मैं करुण दलितों की व्यथा,

तुम कर्महीना 'देवता' मैं गतिमयी, बलि की प्रथा;

जड़ उच्चता में, जन्म मम विद्रोह का अवतार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

हाँ ठीक, जग तुम पर चढ़े, यह उचित, नर तुम तक बढ़े;

पर यह तुम्हारी उच्चता क्यों शाप मानव पर मढ़े ?

तरलत्व को तरलत्व दूं मेरा कठिन निर्धार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

रोती रही भू प्यास से, हरिया उठूं, इस आस से,

वह बनी रेगिस्तान 'शीतल-उच्चता' के त्रास से !

मेरा 'भगीरथ' क्रान्तिमय विद्रोह सा उपचार था ।

मुझको, पतन स्वीकार था!

10
रचनाएँ
माता
0.0
संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला! अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है ! उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी । वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा हैं |
1

कोमलतर वन्दीखाना

18 अप्रैल 2022
0
0
0

'शंकर' थी; अब कारागृह है हिमगिरि की दीवार, हाय गले का तौक बना गंगा-यमुना का हार; धन्य ! बंग खंभात अब्धि की लहरों की हथकड़ियां, रामेश्वर पर चढ़ी तरंगें बनी पैर की कड़ियाँ । कोमलतर बन्दीखाने के तीस कोट

2

लौटे

18 अप्रैल 2022
0
0
0

वह आता है किये निहाल, गर्व से उठाये भाल पुष्य भूमि ह्रदय संभाले पथ में खड़ी; अब जाता है हमारा शोक क्यों कर रहेगी रोक दीन दुखी लोगों की अनी सी उमड़ी बड़ी; सभी खीझने खिजाने और रीझने रिझाने वाले प्

3

वह संकट पर झूल रहा है

18 अप्रैल 2022
0
0
0

कांटों ने संकेत दिया था शीघ्र पुष्प आने वाले हैं सागर के वे ज्वार, तुम्हारे घर मोती लाने वाले हैं पंखिनियाँ, प्रभु की ऊंचाई का, प्राणों में गान करेंगी; आँसू की बूंदों से, साधें सिमिट-सिमिट पहिचान क

4

विदा

18 अप्रैल 2022
0
0
0

जाग रही थी, चैन न लेती थी मस्तानी आँखडियां, पहरा देती थीं पागल हो, ये पागलिनी पाँखडियाँ, भौहें सावधान थीं ओठों ने भूला था मुसकाना, आह न करती डरती थी, पथ- पाले कोई दीवाना ! सूरज की सौ-सौ कि

5

सेनानी

18 अप्रैल 2022
0
0
0

तुझको लख युग मुख खोल उठा, बेबस तब स्वर में बोल उठा, तेरा जब प्रलय-गान निकला, ले, कोटि-कोटि शिर डोल उठा । आशा ऊषा यह द्वार खोज विजया, का सोना ले आई ! यह भली जगा दी तरुणाई ! माँ का 'उभार' खोलती सी

6

मीर

18 अप्रैल 2022
0
0
0

दे प्यारे, अपनी आँखों में आमेजान वहाँ पाऊँ, विमल-धर्म-जयगढ़ पर तेरे उसे समुद्र टकरा पाऊँ भाव-पोत पर लाद, प्रेम के पुष्प-पत्र पहुँचा पाऊँ; अपनी क्षीण धार, उस निधि से किसी प्रकार मिला पाऊँ; उद्गम

7

अमरते ! कहाँ से ?

18 अप्रैल 2022
0
0
0

अमरते आई दौड़ कहाँ से । यह यौवन, यह उभरन आली छीनी कैसे माँ से ! अमरते पलकें बिह्वल प्रहर प्रतीक्षक दिन दीवाने कैसे ? मास मनाने लगे, रूठकर बैठी हूँ मैं जैसे ? अमरते माँ के घर- रहना ही हो

8

उच्चत्व से पतन स्वीकार था !

18 अप्रैल 2022
0
0
0

मनहर, पतन स्वीकार था मुझको, पतन स्वीकार था! हे हिमशिखर ! तुमको लगा जो निम्न पथ, मेरे लिए हर-द्वार था। मुझको, पतन स्वीकार था! मेरा उतरना, दौड़ना, पथ-पत्थरों का तोड़ना कर हरी-हरी वसुंधरा उदंड अंग

9

दृढ़व्रत

18 अप्रैल 2022
0
0
0

बज्र बरसाने दे उन्हें तू खड़ा देखा कर, फूल बिखराने दे लुभाते हैं लुभाने दे । गालियाँ सुनाने दे तू आरती उतारने दे, दण्ड आजमाने दे या चन्दन चढ़ाने दे । होवे बनवास कारावास, नर्कवास पद चूमे अमरत्व उस

10

राष्ट्रीय झंडे की भेंट

18 अप्रैल 2022
0
0
0

माँ, रोवो मत, शीघ्र लौट घर आऊँगा, प्रस्थान करूँ बाबा दो आशीष, पताका पर सब कुछ क़ुरबान करूँ। लौटूँगा मैं देवी, हाथ में विजय पताका लाऊंगा। कष्ट-प्रवास, जेल-जीवन की तुमको कथा सुनाऊँगा। दौड़ पड़ो वीरो,

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए