एलेक्जेंडर जब भारत आया तो वह कई इलाकों को जीतने और साम्राज्य को विस्तार देने के बाद भी संतुष्ट नहीं था। उसे एक ज्ञानी व्यक्ति की तलाश थी। वह चाहता था कि वह भारत से किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाए। कुछ लोगों के बताने पर वह एक संत की खोज में अपनी फौज के साथ एक नगर में पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक संत बिना कपड़ों के पेड़ के नीचे ध्यान कर रहा है।
एलेक्जेंडर और उसकी फौज ने संत के ध्यान से बाहर आने तक इंतजार किया जैसे ही संत ध्यान टूटा, पूरी फौज एक स्वर में नारे लगाने लगी-एलेक्टजेंडर द गे्रट एलेक्जेंडर द ग्रेट संत उन्हें देखकर मुस्कराया। एलेक्जेंडर ने संत को बताया कि वह उन्हें अपने साथ अपने देश लेकर जाना चाहता है। संत ने बेहद धीमे स्वर में जवाब दिया, तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, जो तुम मुझे दे सको। जो मेरे पास न हो। मैं जहां-जैसा हूं, खुश हूं। मुझे यहीं रहना है। मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रहा। एलेक्जेंडर की फौज को इस बात से गुस्सा आ गया। उनके राजा की इच्छा को एक मामूली संत ने खारिज जो कर दिया था।
एलेक्जेंडर ने अपनी फौज को शांत किया और संत से बोला मुझे जवाब में नहीं सुनने की आदत नहीं है। उसने जोर देकर कहा- आपको आनाही होगा। इस पर संत ने जवाब दिया, तुम मेरी जिंदगी के फैसले नहीं ले सकते। मैंने फैसला किया है कि मैं यहीं रहूंगा तो यहीं रहूंगा। तुम जा सकते हो। इतना सुनकर एलेक्जेंडर गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने अपनी तलवार निकाली। संत की गर्दन पर रखकर बोला अब मुझे बताओ जिंदगी चाहिए या मौ’त, संत अपनी बात पर अड़े हुए थे। उन्होंने एलेक्जेंडर से कहा मैं नहीं आ रहा। हालांकि यदि तुम मुझे मार दो तो अपने आपको फिर कभी एलेक्जेंडर द ग्रेट मत कहना। क्योंकि तुम्हारे में महान जैसी कोई बात नहीं है।
तुम तो मेरे गुलाम के गुलाम हो। एलेक्जेंडर को यह सुनकर झटका लगा। यहां एक ऐसा व्यक्ति है जिसने पूरी दुनिया को जीता और एक नंगा व्यक्ति उसे अपने दास का दास बता रहा है। एलेक्जेंडर ने पूछा, तुम कहना क्या चाहते हो? संत ने जवाब दिया, मैं जब तक नहीं चाहता, तब तक मुझे गुस्सा नहीं आता। गुस्सा मेरा गुलाम है। जबकि गुस्से को जब लगता है, वह तुम पर हावी हो जाता है। तुम अपने गुस्से के गुलाम हो। भले ही तुमने पूरी दुनिया को जीता हो, लेकिन रहोगे तो मेरे दास। यह सुनकर एलेक्जेंडर दंग रह गया। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वो साधु के पैरों में गिरकर रोने लगा।
हममें से कितने ही लोग गुस्से के गुलाम हैं? गुस्से की वजह से हमने कितने रिश्ते और अवसर गुस्से की वजह से गंवाएं हैं? गुस्से की वजह से हमने अपने आपको कितनी बार परेशानी में डाला है? कितनी बार चिंता में डाला है? हमारे कितने ही करीबियों ने हमारे गुस्से की वजह से शांतिपूर्वक बिताए जा सकने वाले पल गंवाएं हैं? लोगों को इस बात का बहुत गर्व होता है कि उन्हें कितना गुस्सा आता है और उनके गुस्से से लोग कितना डरते हैं। मुण्े नहीं पता कि लोगों को गुस्से से डराने में गर्व महसूस करने जैसा क्या है। आखिरकार लोग तो कुत्ते के गुस्से भी डर जाते हैं।
जो लोग हमारे गुस्से का शिकार होते हैं, वे हमसे डरने लगते हैं। दूर रहने लगते हैं। डर और प्यार कभी एक साथ नहीं रहता। लोग हमसे दूर होते हैं तो हम सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके प्यार को भी खोते हैं। भले ही दूसरों पर गुस्सा करके हमारे ईगो को तात्कालिक जीत मीती हो, लेकिन हकीकत तो यह है कि इस प्रक्रिया में हमारी हार सबसे बड़ी होती है।
Input:Live Bavaal
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