प्रातः बेला मैं तैयार होकर गुवाहाटी से शिवसागर, असम की पुरानी राजधानी, की यात्रा के लिए गाड़ी में बैठा। हमारा ड्राइवर असम का ही था। उसकी कद-काठी अच्छी थी। नाम था खगेश्वर बोरा। वह सहज रूप से हिन्दी बोल
राजा राममोहन राय, इस नाम से देश के सभी साक्षर और शिक्षित अवश्य परिचित होंगे, क्योंकि उनके विषय में इतिहास की विद्यालयी पुस्तकों में थोड़ा-बहुत उल्लेख अनिवार्यत: मिलता है। उन्हें भारतीय नवजागरण का अग्र
इस्लाम के तीन प्रमुख त्यौहार हैं — ईद, बकरीद और मुहर्रम । जहां ईद का संबंध इस्लाम के जन्मदाता मुहम्मद पैगंबर और कुरान से है, वहीं बकरीद का यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों — तीनों के पहले पैगंबर यानी इ
अमरीका के प्रतिष्ठित हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीवन पिंकर, जो हाल ही में भारत की यात्रा पर थे, की स्थापना है कि ‘हमें ऐसा लग सकता है कि विश्व में गिरावट आ रही है। परंतु यह हमारी समझ की समस्
पिछले दो महीनों से हम चीन के साथ लद्दाख की गलवान घाटी में उलझे हुए हैं । पर जब तक बात केवल उलझने तक ही सीमित थी, तब तक तो सह्य थी । लेकिन अभी चार दिन पहले दोनों सेनाओं के बीच जमकर हाथपाई हुई और वह भी
इस्लाम का थोड़ा-बहुत अध्ययन करने के बाद मेरे मन में यह विचार आया कि देखें मुसलमान विद्वान इस्लाम के बारे में क्या सोचते हैं ? शताब्दियों से इस देश में रहते हुए भी मुसलमान अपनी पहचान को लेकर सदा इतने द
डॉ. शैलेन्द्र कुमार तुर्की : एक परिचय इस्लाम की दृष्टि से तुर्की एक महत्वपूर्ण देश है । यह संसार के सभी मुसलमानों के मजहबी और राजनीतिक मुखिया — खलीफा का मुख्यालय भी रह चुका है ।1 तुर्की की सरकार के
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने क
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुर
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये | औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए || अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख प
पिता पुत्र के साथ हो,पुत्र पिता के साथ । इस कलयुग में हो गये, दुर्लभ, ये विचार ।पुत्र मस्त,गर्ल फ्रेंड संग, पिता पाले, ब्यभिचार । इस कलयुग में, दिखते हैं, ऐसे, आ
स्वतंत्र भारत में आजादी के बाद कई बार शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव किए गए । लेकिन एक भी बार उसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया। इन सभी नीतियों में जोअमूल चुल परिवर्तन हुए वो हमारे देश के विद्वानों ने किए,लेकिन
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आज बच्चों को यौन शिक्षा की नहीं, नैतिक शिक्षा की जरूरत है. बच्चों को नैतिक रूप से मजबूत बनाने की आवश्यकता है. यह तो ज्यादा पढे लिखे समझदार और जिम्मेदार लोगों का एक घटिया मजाक है समाज के साथ कि बच्चों को यौन शिक्षा दी जाए. क्या ज