स्वतंत्र भारत में आजादी के बाद कई बार शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव किए गए । लेकिन एक भी बार उसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया। इन सभी नीतियों में जोअमूल चुल परिवर्तन हुए वो हमारे देश के विद्वानों ने किए,लेकिन वास्तविकता की धरातल पे लागू नही हो पाए।आखिर ऐसा क्यों ? क्यों हम इन परिवर्तनों को देश में पूरी तरह से लागू नहीं कर पा रहे? इन सबके लिए आश्यकता है कड़ी इच्छा शक्ति की,और वह हमारे राजनेताओं ,अधिकारियों ,कर्मचारियों,शिक्षकों तथा पालकों में सर्वथा अभाव जन्य है।लॉर्ड मैकाले की दी गई पद्धति आज भी सिर चढ़ के बोल रही।आखिर कब तक हम इसे अपने सीने से चिपका के रखेंगे? समय के साथ परिवर्तन जरूरी है,जो राजनैतिक इच्छा शक्ति से ही संभव है।इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के द्वारा हो चुकी है।प्रारंभिक शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है,जो हमारे बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है।अंग्रेजी की रटटामार प्रणाली से दूर आधारभूत ज्ञान ,नैतिक ज्ञान,शारीरिक शिक्षा ये सारी विधाएं हमारी अपनी मातृभाषा में शीघ्रातिशीघ्र विद्यार्थियों द्वारा आत्मसात होगी।इस तरह वास्तविक रूप से बच्चे जीवन आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर सकेेंगे। उस ज्ञान का अपने जीवन में सदुपयोग कर पाएंगे।माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में मुख्य परिवर्तन यह किया गया कि बालक अपनी रुचि अनुसार अतिरिक्त विषय चुन कर रोजगारोन्मुख ज्ञान पाने की शुरुआत कर देगा।आज विश्व में कम्यूटर कोडिंग का ज्ञान बहुत जरूरी है,उसे नई प्रणाली में शामिल किया जा रहा है।अभी तक की शिक्षा प्रणाली में अंक प्राप्त करने के लिए बहुत सारे व्यर्थ के विषयों या अध्यायों का अध्ययन करवाया जाता था।अब इस प्रणाली में अनावश्यक विषयों या अध्यायों का विलोपन कर दिया जाएगा ,इससे विद्यार्थियों पर जीवन में कोई भी काम ना आने वाला बोझ खत्म हो जाएगा।
एक खास परिवर्तन यह कि आप बीच में ही किसी विषय को छोड़ कर अन्य विषय में उपाधि ले सकते है।और आप बाद में छोड़े गए विषय के आगे का अध्ययन कर उसकी उपाधि भी प्राप्त कर सकते है।इस प्रकार पूर्व में की गई पढ़ाई व्यर्थ नहीं होगी।रिसर्च के लिए एम फिल की डिग्री जरूरी नहीं होगी ,जो व्यर्थ ही समय खर्च करती थी।
लेकिन इन सभी संशोधनों को लागू करने के लिए मूल रूप से शिक्षकों का सहयोग जरूरी है।खास तौर पे सरकारी विद्यालयों के अध्यापकों को इसमें सहभागी बन कर देश को एक नई दिशा की ओर मोड़ना होगा।अभी बहुत सारी डिग्रियां केवल दिखावे के लिए ही है,जो युवकों को रोजगार नहीं दे पाती केवल पढ़ालिखा बेरोजगार बना देती है।जरूरत है ऐसी शिक्षा नीति की जिसके द्वारा नौकरी करने वालों के साथ साथ स्वव्यवसाय खड़ा कर दूसरों को रोजगार देने वाले भी उत्पन्न कर सके।
आज हमारे देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ आ गई है जो केवल इंजीनियर नाम के लिए तैयार करते है,जो छोटी छोटी क्वेश्चन बैंक्स पढ़ कर पास हो जाते है।जबकि इंजीनियर लायक ज्ञान उन्हें नाममात्र का होता है।और खड़ी कर देते है कई बेरोजगार इंजीनियरों की फौज।हमें इन सबसे निजात पानी होगी।शिक्षा का व्यवसायिकरण छोड़कर गुणवत्ता पर फोकस रखना होगा,ताकि ऐसी पीढ़ी तैयार हो जो नैतिक ,शारीरिक,प्रायोगिक,और सामान्य मूल ज्ञान से परिपूर्ण हो।इसमें पालकों को भी सहभागी बनना होगा ,बच्चों को अंकों की होड़ से और किताबी ज्ञान से दूर वास्तविकता की धरातल पे खड़ा करना होगा।साम ,दाम, दण्ड ,भेद के द्वारा अपने बच्चों को केवल किताबी ज्ञान देकर आगे बढ़ाना उनकी ज़िंदगी के साथ धोखा देना है।