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वो महिला

28 मई 2022

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प्रातः बेला मैं तैयार होकर गुवाहाटी से शिवसागर, असम की पुरानी राजधानी, की यात्रा के लिए गाड़ी में बैठा। हमारा ड्राइवर असम का ही था। उसकी कद-काठी अच्छी थी। नाम था खगेश्वर बोरा। वह सहज रूप से हिन्दी बोल लेता था। इसलिए मुझे बहुत आसानी हो रही थी। दिनभर की यात्रा थी। गुवाहाटी से शिवसागर की दूरी तीन सौ साठ किलोमीटर है। हम खाते-पीते चलते रहे। मार्ग के दोनों ओर के मनमोहक दृश्यों का नयनसुख प्राप्त करते हुए हम गंतव्य की ओर बढ़े जा रहे थे। कभी हरे रंग के मोटे गलीचे की तरह चाय बागान तो कभी पके धान की सुनहली चादर ओढ़े खेत। अगहन का महीना आरंभ हो चुका था। इसलिए कहीं-कहीं धान की फसल कट रही थी। असम की मुख्य फसल धान है। देश के धान वाले पूर्वी इलाके में अगहन महीने का महत्व वही जानता है, जो उस इलाके में रहता है। इस इलाके में अगहन का महीना समृद्धि का पर्याय है। बिहार में एक कहावत प्रचलित है कि अगहन में संपन्नता इतनी बढ़ जाती है कि चूहा भी दो शादियां कर लेता है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि सभी महीनों में मैं ‘मार्गशीर्ष’ अर्थात अगहन हूं। संभव है सर्वाधिक उत्पादक महीना होने के कारण भगवान कृष्ण की दृष्टि में अगहन का विशेष महत्व हो। इस महीने में ठंड भी पड़ने लगती है। इसलिए चहुंओर लोग गर्म पहने दिख रहे थे। मैं अपने में मुग्ध यात्रा का आनंद ले रहा था।  पर अब दिन ढलने लगा था और धुंधलका शुरू होने लगा था। तभी हमने जोरहाट शहर पार किया। चौड़ा हाइवे अब सिकुड़ गया था और वाहन की गति थोड़ी धीमी पड़ गई थी। मैं चाहता था कि हम समय से शिवसागर पहुंचें, ताकि मैं आज रात भी वहां कुछ देख सकूं। पर एकाएक थोड़ी सुनसान-सी जगह पर खगेश्वर ने गाड़ी रोक दी और पांच मिनट में वापस आने को कहकर कहीं चला गया। उसने जाने का कोई प्रयोजन नहीं बताया। मैंने सोचा, हो सकता है लघुशंका के लिए गया हो। लेकिन जब ठीक-ठाक देर हो गई तब मेरी चिंता बढ़ने लगी। मैं मन-ही-मन सोचने लगा कितना लापरवाह ड्राइवर है !  अंततः उसको देखने के लिए मैं गाड़ी से बाहर निकला। 

मैंने देखा कि सड़क किनारे एक ही दुकान है और खगेश्वर वहां खड़ा चाय पी रहा है। दुकान इतनी साधारण-सी थी कि संभवतः खगेश्वर ने उसे मेरे योग्य नहीं समझा होगा। फिर भी मैं दुकान तक चला गया। मेरा भी मन हुआ कि चाय पी लूं। मैंने चाय बना रही महिला से कहा कि मुझे भी चाय दो, लेकिन बिना चीनी की। मेरे इतना कहने पर उसने अपना मुंह बिचकाया और ऐसा लगा जैसे मैंने उसे कितना मुश्किल काम करने को कह दिया है। असल में वह एक बड़े से पतीले में चीनी वाली चाय बना रही थी। उसकी समस्या यह थी कि उसे दूसरे पतीले में नए सिरे से चाय बनानी पड़ती। फिर मेरे चेहरे को भांपकर कि मैं निराश हो जाऊंगा उसने अपनी बेटी को चाय बनाने के लिए आवाज दी। 

महिला नाटे कद की और काफी मोटी थी। पचास के आस-पास की उम्र होगी। उसका चेहरा बिल्कुल असमिया था। मोटे-मोटे होंठ, थोड़ी चौड़ी नाक और छोटी-छोटी आंखें। उसने साड़ी पहन रखी थी। साड़ी के ऊपर ठंड से बचाव के लिए एक ऊनी कार्डिगन जिसका सबसे ऊपर वाला बटन ही लगा था, क्योंकि उसके मोटापे के कारण शेष बटन लगने की हालत में नहीं थे। कुल-मिलाकर महिला शरीर से बेढ़ब थी और अपने काम करने के तरीके में बिल्कुल फूहड़। वह एक साथ चाय और पान बेच रही थी। पर सारा का सारा कारोबार बेतरतीब तरीके और लापरवाही से चला रही थी। लगता था जैसा उसका व्यक्तित्व है वैसा ही उसका काम। उसकी दुकान बांस के टाट से बनी थी। टाट की लीपाई की गई थी। मुझे ऐसा लगा कि वहां भवन निर्माण, ईंटों की चिमनी जैसे काम चल रहे थे, क्योंकि निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूर ही उस दुकान पर आते थे। ये मजदूर ही असल में उसके मुख्य ग्राहक थे। वह मोटी महिला इन्हीं मजदूरों के लिए चाय बनाती और पान लगाती। दुकान के छप्पर से लटके अनेक छोटे-छोटे मठरी, नमकीन आदि के पैकेट थे। यदि ग्राहक चाय पीने आता तो जब तक उसे चाय मिलती तब तक कोई न कोई पैकेट ऊपर से उतार लेता और खाने लगता। मेरे सामने ही कुछ ऐसा हुआ कि जब मोटी महिला चाय बनाने में लगी थी तभी एक ग्राहक ने ऊपर से एक पैकेट उतारा। लेकिन झट से मोटी महिला ने उसके हाथ से वह पैकेट ले लिया और दूसरा पैकेट खुद उतार कर उसके हाथ में थमा दिया। पूरी प्रक्रिया यंत्रवत और क्षणमात्र में संपन्न हो गई। मैं देखता ही रह गया। मुझे लगा कि उस ग्राहक को कहीं बुरा न लगा हो। लेकिन नहीं। उसे बिल्कुल बुरा नहीं लगा था। वह इस भाव से मठरी खाने लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो। असल में मोटी महिला अपने रोज के ग्राहकों की पसंद और नापसंद से पूरी तरह परिचित थी। इसलिए जो पैकेट उसने ग्राहक के हाथ से ले लिया वह उस ग्राहक की पसंद का नहीं था। चाय तैयार करके उसने सभी ग्राहकों को दे दी। तब उसे पलभर के लिए फुर्सत मिली, जिसमें उसने त्वरित गति से एक पान बनाया और गप्प से अपने मुंह में ठूंस लिया। मुझे लगा कि वह दिनभर पान खाती होगी, क्योंकि उसके सारे के सारे दांत केवल काले ही नहीं थे, बल्कि घिस कर ठूंठ जैसे बन गए थे। जब वह मुंह खोलती तो सालों से पान के आघात सहते रहे उसके काले और घिसे दांत दिख जाते। 

अब मेरा ध्यान उसकी बेटी की ओर गया, जो मेरे लिए चाय बनाने चूल्हे के पास आ चुकी थी। बेटी ने पतीले में पानी डाला और एक छोटा-सा पैकेट खोल कर कुछ डाला। मैंने उससे पैकेट दिखाने को कहा। मैंने देखा कि यह पाउडर वाले दूध का पैकेट है। इसलिए मैंने पूछा कि क्या यहां खुला दूध नहीं मिलता ? इसका उत्तर मां और बेटी में से किसी ने नहीं दिया। बगल में खड़ा एक मजदूर जो चाय पी रहा था उसने बताया, ‘असल में अभी-अभी दूध खतम हुआ है और दूध लेने कोई गया हुआ है। मगर अभी उसके आने में थोड़ा समय लगेगा। इसलिए आपके लिए पाउडर वाले दूध की चाय बन रही है।’ साथ ही उसने यह भी जोड़ा, ‘क्या बताएं यह औरत कैसे दुकान चलाती है ! दस रुपए में दूध का एक पैकेट आता है जिसे यह एक ही कप चाय में खतम कर देती है, जबकि एक कप चाय दस रुपए में बेचती है। बताइए इसे ऐसी चाय बेचने से क्या फायदा होगा। कैसी दुकानदार है, नफा-नुकसान भी नहीं जानती !’ पर मोटी महिला इस सब से बेखबर रही। पता नहीं उसे हमारी बातचीत समझ में आई भी या नहीं। पर मुझे इतना तो पता चल ही गया कि वह अपनी ही धुन में काम करती है और हानि-लाभ की बहुत चिंता नहीं करती। 

मेरे बात करने के तरीके से उस महिला को संभवतः इस बात का अहसास हुआ कि मैं उसके काम में रुचि ले रहा हूं। इसलिए अब वह बेरोक-टोक, धाराप्रवाह अपनी ठेठ असमिया में मेरी ओर अपना मुंह करके बोलने लगी। हिन्दी और असमिया में अनेक शब्द समान रूप से प्रयुक्त होते हैं। इसलिए थोड़ी भाषायी समानता के कारण और थोड़ा उसके मुखर भावों को पढ़कर मुझे जो कुछ भी समझ में आया उसका सार इस प्रकार है: — ‘आज सुबह ही मैंने अपने जमाई से कहा कि “मेरी बेटी को मेरे यहां छोड़ जाओ। आज रात वह मेरे साथ खाना खाएगी और जब खाना खा लेगी तब आकर ले जाना।” मेरा जमाई बहुत पढ़ा-लिखा है और कॉलेज में लेक्चरर है। मेरी दो बेटियां हैं। दोनों को मैंने पढ़ाया-लिखाया और अच्छी शादी कराई। मेरा दूसरा जमाई एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता है। दोनों बेटियों की ससुराल आस-पास ही है। जब भी मेरा मन होता है, उन्हें बुला लेती हूं।’

दोबारा मेरा ध्यान उसकी बेटी की ओर गया। अनुमान से मुझे लगा कि उसकी उम्र पच्चीस से कम ही होगी। बेटी का रंग गोरा था और माथे पर बड़ी-सी लाल बिंदी थी, जो खूब फब रही थी और उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी। उसकी मांग में सिंदूर था। कुल-मिलाकर उसके नाक-नक्श सुंदर और आकर्षक थे। उसने सलवार और कुर्ता पहना हुआ था। उसको देखकर मुझे लगा कि अब सलवार-कुर्ता सार्वदेशिक हो चुका है। सलवार सादे रंग का था तो कुर्ता गहरे रंग का। मां की तरह ही ठंड से बचने के लिए उसके ऊपर भी कार्डिगन था, नीचे पांव में मोजे और अच्छी सैंडिल। मां के विपरीत बेटी के दांत कसे हुए और धवल थे। उसके मुस्कुराने पर मोतियों के दाने के समान उसके दांत दिखाई देते थे। उसके गोरे-गोरे हाथ भी सुंदर और कोमल लग रहे थे। उसके होंठ मोटे थे, जो असमिया महिलाओं की विशेषता है। होठों पर करीने से लिप्स्टिक लगी हुई थी। मुझे अचानक याद आया कि मेघदूत की नायिका के अधर को कालिदास ने ‘पक्वबिम्बाधरोष्ठी’ कहा है।  लेकिन इस लड़की का निचला होंठ सिर्फ मोटा ही नहीं, बल्कि थोड़ा आगे की ओर निकला हुआ भी था। वैसे इस तरह का होंठ सुंदरता में बट्टा ही लगाता, पर लड़की अभी यौवन के उठान पर थी। इसलिए अखर नहीं रहा था। उसकी चाल में यौवन के भार को देखा जा सकता था। मैं देर तक उसके भाग्यशाली पति के बारे में सोचता रहा। कैसी रूपवती पत्नी मिली है उसे ! ऊपर से पढ़ी-लिखी भी है। गुणी भी है। मैंने देखा कि बीच-बीच में लड़की पीछे बैठे अपने पांच साल के बेटे को अंग्रेजी की चित्रात्मक वर्णमाला वाली पुस्तक पढ़ा आती थी। 

लड़की का बेटा सुंदर था और थोड़ा नटखट भी। किसी काम से बच्चे की नानी अपना काउंटर-नुमा चूल्हा छोड़कर दुकान से बाहर निकली तो बच्चा भी नानी के साथ बाहर जाने को उद्धत हुआ। नानी ने तेजी से एक रस्सी लेकर बच्चे को अंदर रखकर टाट को एक खम्भे से बांध दिया। अब बच्चा जोर-जोर से रोने लगा। नानी ने संभवतः यह सोचकर बच्चे को बाहर नहीं आने दिया कि दुकान से बाहर कदम रखते ही अत्यंत चलता हुआ हाइवे था, जिस पर वाहन सरपट दौड़ रहे थे। लेकिन लाख मनाने पर भी बच्चा नहीं मान रहा था। मां ने सारी कोशिश कर ली, पर बच्चा पैर पटकता ही रहा। बच्चे की नानी ने एक तगड़ा कुत्ता भी पाला हुआ था। इस पालतू कुत्ते ने भी बच्चे को बहुत मनाने की कोशिश की। बार-बार कुत्ता बच्चे से सट जाता और तरह-तरह के करतब करता। पर बच्चा अपनी पूरी ताकत से उसे परे धकेल देता। कुत्ता बेबस होकर बच्चे को देखता रह जाता। अब मां ने उसे कुछ खिलाने की कोशिश की। बच्चे ने थोड़ा खाया भी। लेकिन उसका रोना बंद नहीं हुआ। तभी नानी का प्रवेश हुआ। नानी के हाथ में एक बर्तन था, जिसे लेने वह बाहर गई थी। नानी ने उसे पुचकारा। प्यार से उसे अपनी छाती से चिपकाया। अब बच्चा चुप हो गया। नानी ने भी उसे कुछ खाने को दिया। मुझे समझते देर नहीं लगी कि बच्चा अपनी नानी से बहुत लगा हुआ है। 

इस बीच मेरी चाय तैयार हो गई और मैं चाय की चुस्की लेने लगा। एक बार फिर मोटी महिला मेरे सामने आकर बोलने लगी। अब तक मेरा ड्राइवर खगेश्वर उसकी बातें सुनते-सुनते ऊब चुका था। साथ ही वह यह भी मानता था कि मैं असमिया नहीं समझ पा रहा हूंगा। इसलिए उसने अपने मन में बहुत देर से बैठी बात को उजागर कर ही दिया। उसने मोटी महिला से कहा कि ‘क्यों इतनी देर से साहब से बात कर रही हो ? तुम्हें पता है, साहब दिल्ली से आ रहे हैं और उन्हें असमिया नहीं आती ?’ इसके प्रत्युत्तर में मोटी महिला ने खगेश्वर को ऐसी नजर से देखा जिसका अर्थ था कि ‘तुम मूर्ख हो। तुम्हें नहीं पता। पर मुझे पता है। इन्हें मेरी बात समझ में आ रही  है।’ खगेश्वर उसकी वक्र दृष्टि देखकर चुप रह गया। उसे सबके सामने अपमान सहना पड़ा। 

एक बार फिर मोटी महिला अपनी रौ में आ चुकी थी। उसके कहा, ‘अभी हमारा खाना बनाना शुरू होगा। फिर हम खाएंगे और तब जमाई आकर मेरी बेटी को ले जाएगा।’ तभी मैंने देखा कि उसकी बेटी चाकू से सब्जियां काटने बैठ चुकी है। एक ओर सब्जियों का ढेर था तो दूसरी ओर किताब निकाले उसका नन्हा-सा बेटा। 

अब मैं चाय पी चुका था और खगेश्वर चाय के बाद पान भी ले चुका था। इसलिए मोटी महिला को पैसे देकर मैं गाड़ी की ओर आगे बढ़ने लगा। पर न जाने क्यों पलटकर उस दुकान की ओर देखने का मन हुआ। मैंने मुड़कर देखा कि अब मोटी महिला अपनी बेटी और नाती के पास पहुंच गई है और खाना बनाने में जुट गई है। मैं सोचने लगा कैसी जीवट वाली महिला है !  उसने बातचीत में अपने पति का उल्लेख नहीं किया। इसलिए मैं जान नहीं पाया कि इसका पति है भी या नहीं। लेकिन इतना निष्कर्ष तो मैं निकाल ही सकता था कि यदि पति होगा भी तब भी इतना तो सच है कि महिला स्वयं कमाती है और बेटियों के जीवन को सवांरने में उसने अवश्य ही आनुपातिक दृष्टि से अधिक योगदान किया होगा । तभी वह इतना ताल ठोंककर बात कर रही थी। और तभी उसे अपने जमाइयों पर इतना अधिकार भी है कि वे उसकी बात मानते होंगे। अन्यथा हमारे समाज में इस बात की संभावना कम ही होती है कि जमाई इतनी आसानी से अपनी सास की बात मानें।  

मैं सोचता रहा किस तरह लगभग अनपढ़-सी इस महिला ने अपनी बेटियों को इस ऊंचाई तक पहुंचाया होगा। जैसा कि विदित है, यह महिला बहुत हिसाब-किताब वाली नहीं थी। पर अगर बहुत हिसाब-किताब वाली होती तो इतने मित्र नहीं कमा पाती। इसलिए उसने बहुत पैसे तो नहीं कमाए पर ढेरों मित्र अवश्य कमाए।  उसके रोज के ग्राहक मुझे मित्रवत ही दिखे। इस प्रकार महिला ने धनोपार्जन की जगह मित्रोपार्जन किया। और जो मित्रोपार्जन करता है, वही वास्तव में धनवान होता है। इसी कारण से वह बोझरहित जीवन भी जीती रही। तभी खुलकर जीने की उसकी आदत बन गई। वैसे भी पूर्वोत्तर भारत में महिलाओं को नैसर्गिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक अधिकार प्राप्त हैं। ऊपर से इस महिला के व्यक्तित्व में दूर-दूर तक छल-कपट नहीं है। इसकी निर्मल, निष्कपट और नि:स्वार्थ आत्मा के कारण अपने-आप अनेक शुभचिंतक, हितैषी सदा इसकी सहायता के लिए आगे आते रहे होंगे। तभी तो बेटियों की इतनी अच्छी शादी हुई होगी। उसका जीवन भी एक खुली किताब की तरह ही है। सड़क किनारे एक झोपड़ी-नुमा दुकान में ही भोजन करना और सो जाना। सब कुछ सारे संसार के सामने। अपनी बेटियों को बुलाकर उनके साथ खाना खा लेना उसके लिए जीवन का सर्वस्व पा लेने के बराबर है। इसीलिए आज उसके पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे। उसकी बेटी भी अंदर ही अंदर मगन थी। छोटा बच्चा भी नानी को पाकर सब कुछ पा गया था।  

अब मैं गाड़ी में बैठ चुका था और गाड़ी बढ़ने लगी थी। पर मेरा मन वहीं ठहरा हुआ था। मैं कल्पना कर रहा था कि थोड़ी ही देर में भोजन तैयार होगा और एक साथ तीन पीढ़ियां — मां, बेटी और नाती — सहभोज करेंगी और इस सहभोज का साक्षी बनेगा एक पशु। कितना दिव्य होगा यह सहभोज ! अचानक मुझे उस महिला के बाहरी आवरण में छुपी उसकी अतीव सुंदर आत्मा के दर्शन हुए। धीरे-धीरे उसका बाहरी आवरण तिरोहित हो गया और उसका पूरा का पूरा तपा-तपाया रूप कुंदन-सा चमक उठा। 

अभी मेरी गाड़ी आगे बढ़ी ही थी कि मेरे ड्राइवर खगेश्वर का क्रोध फूट पड़ा। उसने मोटी महिला के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करते हुए कहा, ‘साहब, मैंने उसे इतना समझाने की कोशिश की कि साहब को असमिया नहीं आती। लेकिन उस मूर्ख महिला ने तो मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया।’ मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैं सोचने लगा कि जिस बात से खगेश्वर इतना आहत है ठीक उसी बात से वह महिला इतनी खुश है। वह गर्वोन्मत्त होकर बहुत दूर से आए किसी व्यक्ति के समक्ष अपने मन के भाव प्रकट कर रही थी। भाषा की समस्या के प्रति तो वह बिल्कुल उदासीन थी। असल में उसे परवाह ही नहीं थी कि सामने वाला कितना समझ रहा है, बल्कि उसकी खुशी तो उसके बताने मात्र में निहित थी। और यही बात खगेश्वर नहीं समझ सका। 

लेखक निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग , वित्त मंत्रालय ,भारत सरकार में संयुक्त सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं ।

10 जनवरी 2020

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गो रक्षण, जिन्ना और अम्बेडकर

28 मई 2022
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शेख मुजिबुर रहमान, जो जामिया मिलिया इस्लामिया में पढ़ाते हैं, का पिछले 25 जून को ‘द हिंदू’ दैनिक में गो रक्षण के नाम पर घटित हिंसक घटनाओं को लेकर एक अतार्किक और अत्यंत आपत्तिजनक लेख प्रकाशित हुआ। इस स

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मस्जिद की अनिवार्यता

28 मई 2022
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फैजुर रहमान का 7 अगस्त के ‘द हिंदू’ दैनिक में ‘मस्जिद की अनिवार्यता’ विषय पर एक लेख प्रकाशित हुआ। रहमान एक इस्लामी मंच के महासचिव हैं जिसका उद्देश्य है संयत विचार को बढ़ाना या बढ़ावा देना। इस लेख का म

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अनन्य हिंदी प्रेमी अटल बिहारी वाजपेयी

28 मई 2022
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अटल बिहारी वाजपेयी भारत के राजनैतिक क्षितिज में पिछले कई दशकों से सर्वाधिक चमकता हुआ सितारा थे। अपनी मिलनसार प्रवृत्ति, विलक्षण वाकपटुता, मनमोहक वक्तृत्वकला और असाधारण प्रतिउत्पन्नमति के कारण सारे देश

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स्वच्छ भारत की ओर निर्णायक कदम

28 मई 2022
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हमारे देश में गाँव कविता के विषय के रूप में कवियों को आकर्षित करता रहा है। मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ तो जगप्रसिद्ध रही हैं – “अहा ! ग्राम जीवन भी क्या है। क्यों न इसे सबका जी चाहे।“ इसी तरह सुमि

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शैक्षणिक संस्थानों का देश के विकास में योगदान

28 मई 2022
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आधी सदी पहले ही अर्थशास्त्रियों ने किसी भी देश के आर्थिक विकास में शिक्षा के महत्व को समझ लिया था। बाद में यह विचार फैलने लगा कि शिक्षा किसी भी व्यक्ति को स्थायी रूप से परिवर्तित कर देती है और उसे मान

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पाकिस्तान में जनसंख्या विस्फोट के निहितार्थ

28 मई 2022
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पिछले दिनों करीब दो दशक बाद पाकिस्तान की छठवीं जनगणना सम्पन्न हुई। इसके अनुसार आज पाकिस्तान की जनसंख्या 20 करोड़ 78 लाख है। 1998 में की गई पिछली जनगणना में पाकिस्तान की जनसंख्या लगभग 13 करोड़ थी और उस

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हवाई यात्रा के लिए बिहार देश का छाया प्रदेश

28 मई 2022
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किसी भी देश के विकास में यातायात और उसमें भी वायु यातायात का योगदान अन्यतम है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने एक अध्ययन के हवाले से बताया है कि किस तरह वायु सेवा से तेजी से आर्थिक विकास सम्भव होता है।

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हिंदी साहित्याकाश में सूर्य की तरह चमकने वाले ‘दिनकर’

28 मई 2022
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हिंदी साहित्याकाश में सूर्य की तरह चमकने वाले सचमुच में दिनकर ही थे। रामधारी सिंह दिनकर में साहित्य सर्जन के गुण नैसर्गिक रूप से विद्यमान थे। इसलिए आश्चर्य नहीं कि केवल पंद्रह वर्ष की आयु में ही उनका

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क्यों बार बार संकट आता है मालदीव पर?

28 मई 2022
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पिछले कुछ दिनों से मालदीव के संकट में आ जाने के कारण वहाँ का राजनीतिक घटना क्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। हुआ यह कि वहाँ के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश

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क्यों नहीं मिल रहा रोजगार युवाओं को?

28 मई 2022
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उन्नीस सौ नब्बे के दशक में आरंभ हुए आर्थिक उदारीकरण के परिणामस्वरूप माना जाता है कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर में अभूतपूर्व तेजी आई। जबकि आजादी के बाद से 1980 तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर औसतन सिर्फ 3.5

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नेताजी का अमूल्य योगदान इतिहासकारों का मोहताज नहीं

28 मई 2022
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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू की तरह हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के पहली पंक्ति के नेता थे। पर अपने आप को भारत माता पर उत्सर्ग करने की आतुरता में उनकी तुलना शहीद भगत सिंह जैसे वीरों

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क्यों बार बार संकट आता है मालदीव पर ?

28 मई 2022
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पिछले कुछ दिनों से मालदीव में राजनीतिक घटना क्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। हुआ यह कि वहाँ के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश तथा एक न्यायाधीश को गिरफ़्तार

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भारत-अफ्रीका के गहराते संबंध और इनके निहितार्थ

28 मई 2022
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भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मलेन के तीसरे संस्करण का आयोजन 26 से 29 अक्टूबर 2015 तक नई दिल्ली में होने जा रहा है। सभी 54 अफ़्रीकी देशों को निमंत्रण देकर भारत सरकार ने अफ्रीका से अपने संबंधों को आगे ले जा

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1857 की क्रांति की 160वीं जयंती

28 मई 2022
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आज ही के दिन ठीक एक सौ साठ साल पहले यानी 10 मई 1857 को जिस ऐतिहासिक क्रांति का सूत्रपात मेरठ से हुआ वह कई अर्थों में विलक्षण थी । क्रांति का क्षेत्र व्यापक था और इसका प्रभाव लम्बे समय तक महसूस किया गय

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