कविताओं के विभिन्न स्वरूपों का संग्रह
मां - बाप तो हमसे बराबर ही प्यार करते है .. बस फर्क इतना सा है . . . . माँ का प्यार हमें दिख जाता है . . पिता के डांट से बचाते वक्त ...
ये पुस्तक मेरी कहानियों का प्रथम संग्रह है, जीवन;...मृत्यु; के बिच जो एक बहती हुई अनंत रेषा होती है इसके बारे मे भी ये कहानियां कुछ बोलती है। ये कोई मत, उपदेश, या किसी भी तरह का तत्वज्ञान नहीं ये सिर्फ बोलना है। कुछ पात्र आती हुई मुश्क़िलों का सामना
ये किताब उन कविताओं का संग्रह है...जो मैंने जीवन के संघर्षों में महसूस किया है...इनमे कुछ छोटी कुछ बड़ी कविताएँ है जो निःसंकोच आपको प्रभावित करेंगी..
यह एक कविता संग्रह है जिसमे कवि ने खुदा से प्राथना की है ।उसके मन में जो प्रश्न चिन्ह है वह उनका उत्तर खुदा से चाहता है। इस कविता में कवि ने अपने व्यक्तिगत प्रेम को शामिल किया है जो की तार्किक व हकीकत का प्रेम है जो एक गहरा अर्थ रखता है व अन्य प्रश्न
# जहां चाह , वहां राह । #नायिका #बदला #प्रेम #फंतासी ये कहानी है एक प्रेमिका , जिसने मौत से लड़कर अपना प्यार पाया और ईश्वर ने भी उसकी मदद की ,
मेरे बचपन के दोस्त पराशर जो उक्त घटना के शिकार हुए ।जो खेल डॉक्टरों ने नामी-गिरामी अस्पताल मैं उनके साथ खेला। उनके परिवार के साथ दरपेश आए ।वह मेरा दोस्त ही नहीं था। बड़ा भाई था ।जिगर का टुकड़ा था। और उस इंसान के साथ अस्पताल के डॉक्टरों ने, डॉक्टरों
यह कहानी एक बेटी की है।जो कम पढ़ी-लिखी है। दुनिया के ताने लगातार उसे कमजोर करते हैं।पर उसने हिम्मत नहीं हारी। और किस तरह से वे अनपढ़, गंवार एक अन्नपूर्णा बनती है यह दिखाया गया है
इस पुस्तक के अंतर्गत आने वाली रचनाएँ आपको अपने परिवेश में घटित हो रही मानवीय घटनाओ का सूक्ष्म अवलोकन करवाएंगी.💐💐
ये कहानी एक लड़की आएशा की है, जिसका पूर्णजनम हुआ है, उसे पिछड़े जन्म की कुछ धुंधली तस्वीरें दिखती है कैसे आएशा पिछड़े जन्म का राज जान पाएगी, इस जन्म में जो उसे मिले है, कैसे उनका रिश्ता आएशा के पिछड़े जन्म से होता है जानने के लिए पढ़ते रहिए दो चेहरे
मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस
अपनी तलाश की है कभी, कभी खुद को ढूंढने निकले हैं, फुर्सत के लम्हों में कभी खुद से बात की है, कभी जाना क्या चाहता है दिल, हालातों में गुम होने पर तन्हाई की रात में खुद से टकराएं हैं कभी, कभी चलते चलते यूं ही रुक कर पीछे मुड़कर देखा है, सोचा कहां छोड़
मेरी डायरी का नाम है दिलरुबा,,, मेरे व्यक्तित्व का आईना है मेरी डायरी,, आप इसमें प्रतिदिन मेरे आस-पास घटित होने वाली छोटी बड़ी बातों से रूबरू होंगे साथ ही अपने सुख-दुख के पल को मैं आपके साथ साझा करती रहूंगी,, और रोजाना एक कुकिंग टिप्स भी आपके साथ शे
आपकी दुवाओ से अब आगे आपकी खिदमत में कुछ गजलें पेश है।ध्यान दीजिएगा जर्रा नवाज़ी होगी।
शब्द.इन द्वारा दिये गये विषयों पर मेरे विचारों का संगम इस पुस्तक के माध्यम से रचित किया जायेगा जो समाज में घटित वर्तमान, भविष्य और अतीत की घटनाओं को संदर्भित करके किया जायेगा। आप मेरे विचारों को पढ़कर समीक्षा करें और मुझे भविष्य में प्रेरित करें।
यह किताब कोई बाजार में बेचनें के लिए नहीं लिखी गई है | किताब के जरिये मैं बस आप लोगों से जुड़ना चाहता हूँ | मेरा मानना ( यें सिर्फ मेरे विचार है, इनसे किसी को कष्ट हो तो छोटा समझ के माफ कर देंना ) है कि अल्फाजों की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है, ये भ
सुधीर जी अपनी बेटी राधिका की शादी को लेकर हमेशा चिंतित रहा करते थे । वो पेशे से एक सरकारी टिचर थे । वो अपने परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहा करते थे । सुधीर जी के परिवार में उनकों लेकर कुल पाँच सदस्य रहा करते थे । वो उनकी पत
संजीव और हंसा कैसी विरोधाभास स्थिति में मिलते है...जहाँ प्रेम होकर भी नहीं मिलता...क्या होगा आखिर उनके जीवन में !! क्या संजीव का अवसाद उनका रिश्ता निगल जाएगा !! क्या विपरीत परिस्थिति संजीव को तोड़ देंगी !! जानने के लिए पढ़े पुरुष विमर्श को बयाँ करती अ