कविता --धरती माता----
हे धरती माता हम सदा तेरे कर्जदार रहेंगे।
तेरी ही गोद में पले बढ़े और खेलते रहेंगे।।
तेरा आंचल चीर नाना भांति की फसलें उगाते।
वृक्षों से हरियाली ईंधन बीज,फल शुद्ध हवा पाते।।
अनेक प्रकार की औषधियां जंगलों से प्राप्त करते।
पेड़ों की कीमती लकड़ी से इमारत का निर्माण करते।।
धन्य है धरती मां तेरी सहनशीलता का कोई मोल नहीं।
बच्चों पर दया उमगाए इस धरा पर मां जैसा कोई और नहीं।।
स्वरचित---कविता --धरती माता--रामसेवक गुप्ता ✍️✍️
आगरा यूपी