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प्रतापगढ़ और हुकुम सा -3

7 मई 2023

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अर्जुन हैरान होकर धीरे से बोला " कैसा प्रोमिस .....? " उसके ये कहते ही रीत उसे हैरानी से देखने लगी । उसने धीरे से कहा " मतलब आपको कुछ याद नहीं । आपने हमसे प्रोमिस किया था न एग्जाम खत्म होने के बाद आप हमें घुमाने ले जाएंगे । "

" मैंने प्रोमिस किया था कोई सबूत है तेरे पास । " अर्जुन के ये कहने पर रीत जबरदस्ती की मुस्कुराहट चेहरे पर बिखेरते हुए बोली " सबूत चाहिए आपको ........ बडी मां को बोलूं अभी । चुपचाप से ये नाटक बंद कीजिए और बड़े पापा से बात कीजिए । वरना आप तो जानते है रीत क्या कर सकती है ? "

" चुप कर मेरी मां ....... क्यों धमकी दे रही है ? मैं बात कर रहा हूं न पापा से । " अर्जुन ने चिढ़ते हुए कहा । वो अपने मन में बोला " बहन कम ब्लैक मेलर ज्यादा है । अब तो शेर के मूंह में हाथ डालना ही पडेगा । वरना ये जबरदस्ती तेरा सर शेर के मूंह में डलवाकर आ जाएगी । " अर्जुन ये सब सोच ही रहा था कि तभी रीत ने उसकी बांह पर चीटी काट ली , हालांकि अर्जुन ज्यादा तेज चिल्लाया नही । रीत आंखों ही आंखों से उसे धमकी दिए जा रही थी । अर्जुन ने देवेंद्र जी की ओर देखकर कहा " पापा मुझे आपसे कुछ कहना था । वो मैं कह रहा था कि रीत के एग्जेमस भी खत्म हो गए है और काफी दिनों से हम लोग घूमने के लिए भी नही गए तो क्या हम कल जा सकतें हैं ? "

देवेन्द्र जी के हाथ खाते हुए रूक गए । उन्होंने चेहरा उठाकर रीत की ओर देखा तो उसने डर से नजरें नीची कर ली , वही अर्जुन ने भी अपनी बात पूरी कर अपना सिर नीचे कर लिया । अश्वत्थ उनका साथ देते हुए बोला " पापा कल हमें किसी क्लाइंट से मिलने के लिए MVR Mall मौल जाना है । मैं इन लोगों को अपने साथ ही ले जाऊगा । ये लोग घूम भी लेंगे और मेरा काम भी हो जाएगा । "

देवेन्द्र जी ने अपना ध्यान वापस से खाने पर लगाते हुए कहा " ठीक है चले जाना । " अभय जी ने कुछ नही कहा । वो तो अभी भी चुपचाप बैठे अपना खाना खा रहे थे । देवेन्द्र जी के हां करने पर रीत के होंठों पर बडी सी मुस्कुराहट तैर गई । अर्जुन उसकी ओर झुककर थोड़ा धीरे से बोला "' थैंक्स टू मी की कल तुम घूमने के लिए जा रही हो । "

" आपकी वजह से नहीं बड़े भैया की वजह से इसलिए थैंक्स भी उन्हीं को कहूगी । " रीत ने कहा तो अर्जुन मूंह बनाते हुए बोला ' एहसास फरामोश ' । उसके ये कहने पर रीत ने उसे जीभ दिखा दिया ।

वही शारदा जी , अंवतिका और अश्वत्थ रीत की हरकतें देखकर मुस्कुरा रहे थे ।

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सुबह का वक्त , राजस्थान , प्रतापगढ़

राजस्थान को सात डिविजन मे बाटा गया है । प्रतापगढ़ जिला उदयपुर डिविजन के अंतर्गत आता है । इसी जिले में एक मशहूर हवेली है ' विजय सिंह शेखावत की जो कि यहां के हुकुम सा है ।

इनकी हवेली के एक हिस्से में प्रत्येक शनिवार को दरबार लगती जिसमें ये गांव वालो की समस्यायों को सुनते और निवारण करते । साथ ही साथ अपराधी को इसी दरबार द्वारा सज़ा भी सुनाई जाती । हुकुम सा ही इस बात का फैसला लेते की अपराधी को पुलिस के हवाले करना है या नहीं ।

विजय जी सिंहासन पर विराजमान थे , हालांकि पोशाक में आज के जमाने से बदलाव आ चुका था , लेकिन आज भी नियम कायदे कानून पारंपरिक रूप धारण किए हुए थे ।

विजय जी के पास खडा एक व्यक्ति ने कहा " गांव के कुछ लोग अपनी फरियाद लेकर आए है । आप कहे तो ........ वो आदमी कह ही रहा था कि तभी विजय जी ने कहा " राणा जी ये दरवार उन्हीं के लिए लगाई गई है । उन्हें फौरन आने के लिए कहा जाए । "

' जी हुकुम ' राणा जी ने इतना कहकर वहा खड़े आदमियों को इशारा किया । कुछ देर में चार से पांच लोग दरवार में दाखिल हुए । जिनमें तीन पुरूष और एक महिला शामिल थे ।

" कहिए आप लोगों की क्या फरियाद है ? " राणा जी ने पूछा तो उनमें से एक आदमी बोला " खंबा खड़ी हुकुम सा ........ हम सब किसान है जो जमींदार के खेतो में काम कर अपना गुजर बसर करते है । म्हारे घर में मैं , म्हारे दोनों छोटे भाई और म्हारी बींदनी खेतों में काम करते है । म्हारे छोटे भाई को दो दिन से बुखार था जे लाने वो खेतों में न जा पाया । जमींदार ने इसकी ऐवज में हम सबकी मजदूरी छीन ली । दो दिन से म्हारे घर में चूल्हा तक न जला । " ये कहते कहते उस आदमी की आंखें भर आईं ।

विजय जी ने राणा जी की ओर देखकर कहा " राणा जी अपने गोदाम से साल भर का अनाज इनके घर भिजवा दिया जाए और उस जमींदार को पकड़कर आज शाम तक हमारे सामने लेकर आइए । गरीबो पर अत्याचार करने की सजा तो उसे मिलेगी ही । " हुकुम सा की बातें सुनकर उन सब लोगों ने उनका धन्यवाद किया । उनके जाने के बाद बाकी के लोग भी वहां आते गए । सबकी फरियाद सुनने के बाद विजय जी दरबार से बाहर निकल गए । वो अपने कमरे में आए तो वहां एक औरत मौजूद थी जिसकी उम्र करीब चालीस से पेंतालिस वर्ष के बीच होगी । ये है ' शालीनी सिंह शेखावत ' हुकुम सा की पत्नी । उन्होंने राजस्थानी परिधान पहना हुआ था और राजस्थानी मांग टीका उनके मांग की शोभा बढ़ा रहा था । हुकुम सा को आते देखकर वो उनके पास चली आई । उन्होंने अपने हाथों से उनकी पगडी उतारी तो हुकुम सा बोला " कितने वर्ष बीत गए लेकिन आज भी इस पगडी को आप ही उतारती है । "

" जी हां क्योंकी ये हमारा फर्ज भी है और अधिकार भी । जल्दी से कपड़े बदल लीजिए फिर सब साथ मिलकर नाश्ता करेंगे । मैं देखकर आती हूं भाभी सा की पूजा खत्म हुई की नही । " इतना कहकर शालीनी जी वहां से चली गई ।

नीचे महल के दूसरे भाग में देवी मां का मंदिर बना हुआ था । उनकी विशाल मूर्ति के सामने एक औरत हल्के गुलाबी रंग की साडी पहने हाथों में पूजा की थाल लिए खडी थी । ये हैं रूहान की मां देविका सिंह शेखावत । देविका जी ने पूजा की थाल नीचे रखी और हाथ जोड़कर देवी मां के सामने बिनती करते हुए बोली " बरसों बीत गए मां लेकिन हर रोज मैने आपसे एक ही बिनती की हैं । मेरा रूहान को न जाने आप कौन से गुनाह की सज़ा दे रही है । उसकी मासूमियत को तो खत्म कर ही दिया आपने । उसे और कठोर मत बनाइए । उसके चेहरे की मुस्कुराहट वापस लौटा दीजिए मां । ' देविका जी बिनती कर ही रही थी कि तभी वहां एक नौकर ने आकर कहा " बडी मालकिन छोटी मालकिन नाश्ते के लिए आपको बुला रही है ।

देविका ने बिना उसकी ओर देखे कहा " उनसे कहिए की हम अभी आ रहे है । "

" जी बडी मालकिन " इतना कहकर नौकर वहां से चला गया । देविका जी भी कुछ समय बाद वहां से चली आई । इधर शालीनी जी नौकरो से कहकर डायनिंग टेबल पर खाना लगवा रही थी । उनकी नज़र देविका पर पडी तो वो मुस्कुराते हुए बोली " हो गई आपकी पूजा भाभी सा । "

" जी हां हो गई , देवरजी और बाकी सब ने नाश्ता किया । " देविका ने पूछा तो शालीनी नौकर के हाथों से प्लेट लेकर टेबल पर रखते हुए बोली " इस घर में अकेले कोई नाश्ता करता है । बस वो कपड़े बदलकर अभी आ रहे है । " शालिनी जी कह ही रही थी कि तभी किसी ने पीछे से आकर देविका जी की आंखो पर अपने हाथ रख दिया । देविका जी के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उन्होंने कहा " हमारी लाड़ो नक्षत्रा " ( ये है विजय जी और शालीनी की बेटी नक्षत्रा । )

" क्या बडी मां आप तो हमेशा हमें पहचान लेती है ? " नक्षत्रा ने मूंह बनाते हुए कहा तो देविका जी उसका हाथ पकड़ अपने आगे करते हुए बोली " इन्हीं हाथों से तुम्हें अपनी गोद में खिलाया है , तो फिर कैसे नही पहचानूंगी अपनी लाड़ो को । " उनके ये कहते ही नक्षत्रा मुस्कुरा दी और उसे देखकर देविका और शालीनी भी ।

विजय जी भी खाने की टेबल के पास चले आए । उन्होंने चेयर पर बैठते हुए कहा " सब आ गए लेकिन बुआ सा कही नजर नहीं आ रही । "

" तभी तो घर में शांती है बाबा सा । " ये कहते हुए नक्षत्रा वहां रखी चेयर पर बैठ गई । शालिनी जी उसे आंखें दिखाते हुए बोली " ऐसा नहीं कहते नक्षत्रा । "

नक्षत्रा बच्चों सा मूंह बनाते हुए बोली " बडी मां आप ही बताईए मैं कुछ गलत कह रही हूं । अगर बुआ सा यहां होती तो पूरा महल सिर पर उठाकर रखती । किसी को पूछने की जरूरत नहीं पडती वो यहां है या नही । सबको अपने आप पता चल जाता । "

" ऐसा नही कहते लाड़ो । वो बडी है हम सबसे । ........वैसे वो मंदिर गई है देवरजी बस आने ही वाली होगी । हम सब नाश्ता शुरू करते है क्योंकि बुआ सा आज नही खाएगी । उन्होंने उपवास रखा है । " देविका जी ने कहा और वो भी सबके साथ बैठ गई । वाली अपने हाथों से सबको खाना परोस रही थी इसी बीच नक्षत्रा ने पूछा " बाबा सा अब और कितना वक्त लगेगा रूहान भाई सा को आने में ? "

" रूद्र उन्हें लेने एयरपोर्ट गया हुआ है । वैसे तो इस वक्त तक उसे आ जाना चाहिए लेकिन पता नहीं वो लोग क्यो नही आए ? मैं उसी को फ़ोन कर रहा हूं । " ये कहते हुए विजय जी अपने फोन से नंबर डायल करने लगे । एक दो रिंग में ही रूद्र ने फ़ोन उठा लिया ।

" रूद्र क्या अब तक रूहान की फ्लाइट लैंड नहीं हुई । '

फोन के दूसरी तरफ से रूद्र ने कहा " बाबा सा हम अभी जयपुर एयरपोर्ट पर है । भाई सा का फोन आया था दरअसल टैकनीकल प्रोब्लम की वजह से फ्लाइट अबु धाबी एयरपोर्ट पर लैंड कर दी गई है , इसलिए उनकी फ्लाइट तीन घंटे लेट है । हमे लगता है देर शाम तक उनकी फ्लाइट जयपुर लैंड होगी । आप फ़िक्र न करे हम यही पर रूकेंगे । " इतना कहकर रूद्र ने फ़ोन रख दिया ।

इधर विजय जी ने फ़ोन रखा तो शालिनी जी ने पूछा ' क्या कहा रूद्र ने ? '

" टैक्निकल प्रोब्लम की वजह से फ्लाइट को अबु धाबी एयरपोर्ट पर लैंड करना पड़ा । रूहान की फ्लाइट तीन घंटे लेट है । "

" अब तो भाई सा चेहरा गुस्से से लाल हो गया होगा । वैसे भी उन्हें इंतजार करना बिल्कुल पसन्द नहीं और समय की बर्बादी करना तो बिल्कुल भी नहीं । " नक्षत्रा ने कहा तो शालिनी जी उसे टोकते हुए बोली " तुम चुपचाप अपना नाश्ता करो । "

इधर देविका जी परेशान होते हुए अपने मन में बोली " नक्षत्रा बिल्कुल सही कह रही है । इस वक्त सचमुच वो बहुत गुस्से में होंगे । " वो ये सोच ही रही थी कि तभी शालीनी ने उनके कंधे पर हाथ रखकर पूछा " क्या सोच रही है भाभी सा आप । चिंता मत कीजिए रूहान शाम तक हवेली पहुंच जाएंगे । "

देविका जी हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोली " हमें चिंता उनकी नही उनके साथ आ रहे उनके सेक्रेटरी की हो रही है , क्योंकि इस वक्त उनके गुस्से का सामना सिर्फ उन्हीं को करना पड रहा होगा । "

" कोई बात नहीं बडी मां वैसे भी श्रवण भाई सा को आदत है उनके डांट की वो सेकेट्री बाद में और उनके दोस्त पहले है । " नक्षत्रा ने खाते हुए कहा तो सब उसकी बात पर मुस्कुरा दिए ।

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चलिए रीत को घूमने का मौका मिला तो सही वरना अभी कोई न कर देता तो बस उसकी तो हालत ही खराब हो जाती । दील टूट जाता हमारी मासूम सी रीत का ।

हां तो आज के लिए बस इतना ही कल मुलाकात करवाती हूं आपके हीरे से । फिर परख लीजिएगा हीरा खरा है या खोटा । उनके आने से कहानी क्या रूख लेगी ये हम आगे जानेंगे । तब तक के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल

सागर से गहरा इश्क पियाजी

( अंजलि झा )

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रचनाएँ
Sagar se gehra Ishq piyaji
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रीत प्रताप सिंह जिसे शैतानी गुड़िया कहना गलत नहीं होगा । इन्हें अपनी मुस्कुराहट के पीछे छुपे गम की कोई परवाह नहीं लेकिन दूसरो को खुश रखना बखूबी जानती है । बरसात से इन्हें इतना प्यार है जिसकी कोई हद नहीं । ये आप खुद ब खुद पढ़ने के बाद जान जाएंगे । वही दूसरी ओर है रूहान सिंह शेखावत जिन्हें सिवाय बदले के और किसी का अर्थ मालूम नही । दो अलग जगह और एक दूसरे से जुदा ये लोग क्या इनकी किस्मत इन्हें पास लाएगी और लाती भी है तो क्या अंजाम दिखाएगी ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल " सागर से गहरा इश्क पियाजी " ! .....
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