ईंट को इस तरह रखें, के
आशियाँ बन जाये।
जुबां को इस तरह खोले, के
बोल मीठे बन जाये।
लकड़ी को इस तरह कांटे, के
फर्नीचर बन जाये।
सपनों को इस तरह संजोये, के
हकीकत बन जाये।
बीज़ को इस तरह बोयें, के
पेड़ बन जाये।
कली को इस तरह खिलने दे, के
फूल बन जाये।
हाथों को इस तरह समेटे, के
दुआ बन जाये।
कदमों को इस तरह उठाये, के
मार्गदर्शन बन जाये।
जिंदगी को इस तरह जीए, के
दर्पण बन जाये।।