बादलों के पार ना जाने कौन रहता हैं
परमात्मा कहते हैं लोग
जिसे
क्या वो सच में होता हैं
यकी़न नहीं होता
पर ना की कोई वज़ह भी नहीं
फिर वो नहीं तो
भरता हैं रंग फूलों में कौन
कौन देता है मिठास झीलों में
कौन सिखाता हैं हंसी
देता हैं एहसास और जज्बात्
आखिर वो नहीं तो फिर कौन
फिर वो खफ़ा क्यूं हो जाता हैं
वो दु:ख नहीं देता
हर रंग (जिंदगी के) को महसूस कराता हैं
खोकर - पाना और पाकर - खोना सिखाता हैं
बादलों के पार ना जाने कौन रहता हैं
परमात्मा कहते हैं लोग
जिसे
क्या वो सच में होता हैं।
बादलों के पार ना जाने कौन रहता हैं।।