जिंदगी इम्तिहान लेती हैं।
रोज़ नये सांचे में ढ़लती हैं।।
निकलती है, फुहार रोशनी की
पूर्व से रोज़ यहीं।
ढ़लती हैं, शीतल चांदनी
पश्चिम से रोज़ यहीं।
टिमटिमाते हैं तारे, ढ़ेर सारे
गगन में रोज़ यहीं।
होता हैं रोज़ यहीं तो सब कुछ
फिर भी, रोज़ दिन एक नया हैं।
कल जो बीता
ना लौट फिर आयेगा।
कल जो आयेगा
जाने क्या लायेगा।
ना कल हाथ आयेगा
ना कल साथ जायेगा।
जो हैं, वो आज हैं
पल यहीं, फिर कल बन जायेगा।
छोड़ के सारे कल (बीता हुआ) और कल (आने वाला) के बंधन
आज में मुस्काओं।
जिंदगी हैं एक
खुलकर जीओ।
जाने उम्र कितनी हो
लम्बी इसे नहीं,
बड़ी बनाओ।
जिंदगी इम्तिहान लेती हैं।
रोज़ नये सांचे में ढ़लती हैं।।