शरीर हैं घर, एक किराये का
और लिया भी हैं, तो उधार
पड़ेगा जाना, इक दिन छोड़कर
तभी तो मिलेगा, दूजे को
इसका ब्याज तो चुक जाता हैं
पर कभी मूल रह जाता हैं बाक़ी, तभी तो
वेष-बदलकर फिर
घर में नये आता हैं
चुकाता हैं बकाया
फिर खाली कर जाता हैं
शरीर हैं घर, एक किराये का
और लिया भी हैं, तो उधार।।