दे सकती जिंदगी को उड़ान हैं।
मंजिल की तरफ़ बढ़ते कदमों की पहचान हैं।
कामयाबी के शिखर की पहली चट्टान हैं।
समंदर की गहराई नापती वो हल्की सी तरंग हैं।
हर उलझन को अपने में समेटा हुआ समाधान हैं।
मुमकिन-नामुमकिन हर वक़्त की शुरूआत हैं।।
22 दिसम्बर 2015
दे सकती जिंदगी को उड़ान हैं।
मंजिल की तरफ़ बढ़ते कदमों की पहचान हैं।
कामयाबी के शिखर की पहली चट्टान हैं।
समंदर की गहराई नापती वो हल्की सी तरंग हैं।
हर उलझन को अपने में समेटा हुआ समाधान हैं।
मुमकिन-नामुमकिन हर वक़्त की शुरूआत हैं।।
उम्दा पंक्तियाँ ! बधाई नेहा जी !
22 दिसम्बर 2015
ऐसी पॉजिटिव लाइन्स बहुत अच्छी लगती है
22 दिसम्बर 2015