कहीं गांव में एक औरत (काकी) रहा करती थी। काकी एकदम अकेली थी। कोई आने -जाने वाला नहीं था। काकी अपने एकाकीपन से बहुत उदास थी। अत: समय गुजारने हेतु वह एक तोता (मिट्ठू) ले आई, कहीं वह उसे छोड़कर ना चला जाए यहीं सोचकर वो मिट्ठू को पिंजरे में रखती। हंसी - खुशी समय गुजरने लगा। काकी मिट्ठू को बहुत प्यार से रखती, उसकी हर पसंद का ध्यान रखती। मिट्ठू भी उनसे बहुत स्नेह करता था। काकी के लाड़-दुलार और स्नेह के बावजूद भी मिट्ठू कुछ उदास सा ही रहा करता था। वह दिन भर कभी आकाश फिर कभी अपने पंखों की ओर देखता। वह कभी उसके दु:ख का कारण ना जान सकी। एक दिन मिट्ठू बीमार हो गया, खाना - पीना सब छोड़ दिया। काकी ने पास के ही वैध को बुलाया। उन्होंने जल्द ही भाप लिया कि मिट्ठू को कोई बीमारी नहीं। वह उड़ना चाहता हैं, स्वच्छंद विचरण करना चाहता हैं। उन्होंने काकी से पूछा- क्या तुम सचमुच मिट्ठू से स्नेह करती हो... गर हां तो इसे स्वतन्त्र कर दो, जीने दो अपनी दुनिया में, फिर ये आयेगा और तब तुम इसकी खुशी महसूस कर पाओगी। पहले तो काकी नहीं मानी फिर मिट्ठू का सोचकर उन्होंने उसे जाने दिया। काकी उदास, गुमसुम रहने लगी। उन्हें मिट्ठू की याद सताने लगी। एक दिन काकी यूहीं उदास बैठी थी, बिना कुछ खाये- पीये...तभी घर के आंगन से चहचहाने की आवाजें आने लगी। काकी ने जाकर देखा कि वहां बहुत सारे तोते थे। काकी उन सभी में अपने मिट्ठू को तलाशने लगी। तभी वहाँ वैध जी का आना हुआ, क्या ढूंढ रही हो काकी - वैध जी ने पूछा! अपना मिट्ठू- काकी ने उत्तर दिया। तब वैध जी ने कहा- ये सभी तुम्हारे मिट्ठू ही तो हैं, तुमसे मिलने आये हैं क्योंकि तुमने मिट्ठू को जाने दिया, उसने इन सभी को बताया और आपके स्नेह के बारे में जानकार ये सभी आपके पास आये हैं, काकी तुमने एक को स्वतंत्र किया और अब ये सभी तुम्हारे प्रेम के बंधन में बंधने आये हैं। आज मैं वास्तविक प्रेम का अर्थ समझ सकी हूँ, जो इन बेजुबानों ने मुझे समझाया हैं - कहकर काकी की आंखें भर आयीं।