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वास्तविक प्रेम...

2 जनवरी 2016

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कहीं गांव में एक औरत (काकी) रहा करती थी। काकी एकदम अकेली थी। कोई आने -जाने वाला नहीं था। काकी अपने एकाकीपन से बहुत उदास थी। अत: समय गुजारने हेतु वह एक तोता (मिट्ठू) ले आई, कहीं वह उसे छोड़कर ना चला जाए यहीं सोचकर वो मिट्ठू को पिंजरे में रखती। हंसी - खुशी समय गुजरने लगा। काकी मिट्ठू को बहुत प्यार से रखती, उसकी हर पसंद का ध्यान रखती। मिट्ठू भी उनसे बहुत स्नेह करता था। काकी के लाड़-दुलार और स्नेह के बावजूद भी मिट्ठू  कुछ उदास सा ही रहा करता था। वह दिन भर कभी आकाश फिर कभी अपने पंखों की ओर देखता। वह कभी उसके दु:ख का कारण ना जान सकी। एक दिन मिट्ठू बीमार हो गया, खाना - पीना सब छोड़ दिया। काकी ने पास के ही वैध को बुलाया। उन्होंने जल्द ही भाप लिया कि मिट्ठू को कोई बीमारी नहीं। वह उड़ना चाहता हैं, स्वच्छंद विचरण करना चाहता हैं। उन्होंने काकी से पूछा- क्या तुम सचमुच मिट्ठू से स्नेह करती हो... गर हां तो इसे स्वतन्त्र कर दो, जीने दो अपनी दुनिया में, फिर ये आयेगा और तब तुम इसकी खुशी महसूस कर पाओगी। पहले तो काकी नहीं मानी फिर मिट्ठू का सोचकर उन्होंने उसे जाने दिया। काकी उदास, गुमसुम रहने लगी। उन्हें मिट्ठू की याद सताने लगी। एक दिन काकी यूहीं उदास बैठी थी, बिना कुछ खाये- पीये...तभी घर के आंगन से चहचहाने की आवाजें आने लगी। काकी ने जाकर देखा कि वहां बहुत सारे तोते थे। काकी उन सभी में अपने मिट्ठू को तलाशने लगी। तभी वहाँ वैध जी का आना हुआ, क्या ढूंढ रही हो काकी - वैध जी ने पूछा! अपना मिट्ठू- काकी ने उत्तर दिया। तब वैध जी ने कहा- ये सभी तुम्हारे मिट्ठू ही तो हैं, तुमसे मिलने आये हैं क्योंकि तुमने मिट्ठू को जाने दिया, उसने इन सभी को बताया और आपके स्नेह के बारे में जानकार ये सभी आपके पास आये हैं, काकी तुमने एक को स्वतंत्र किया और अब ये सभी तुम्हारे प्रेम के बंधन में बंधने आये हैं। आज मैं वास्तविक प्रेम का अर्थ समझ सकी हूँ, जो इन बेजुबानों ने  मुझे समझाया हैं - कहकर काकी की आंखें भर आयीं।

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

सुंदर और प्रेरक

4 जनवरी 2016

नेहा

नेहा

ओम प्रकाश जी, चंद्रेश जी धन्यवाद

2 जनवरी 2016

नेहा

नेहा

मदन पाण्ड़ेय जी... धन्यवाद

2 जनवरी 2016

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

अति भावपूर्ण कहानी !

2 जनवरी 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अत्यंत प्रेरक लघु कथा !

2 जनवरी 2016

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मदन पाण्डेय 'शिखर'

इतनी सी नमी बस , मेरी आँखों में बचाये रखना, कारवाँ जो निकले यादों का,मेरी पलकें भींग ज्ा्य्े् भावुक और सुन्दर प्रस्तुति .... धन्यवाद्.

2 जनवरी 2016

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मदन पाण्डेय 'शिखर'

इतनी सी नमी बस , मेरी आँखों में बचाये रखना, कारवाँ जो निकले यादों का,मेरी पलकें भींग जाये,,, भावुक और सुन्दर प्रस्तुति .... धन्यवाद्.

2 जनवरी 2016

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मदन पाण्डेय 'शिखर'

इतनी सी नमी बस मेरी आँखों में बचाये रखना, कारवाँ जो निकले यादों का,मेरी पलकें भींग जाये,,, भावुक और सुन्दर प्रस्तुति .... धन्यवाद्.

2 जनवरी 2016

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मां

9 दिसम्बर 2015
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सर पर रखती जो तू हाथहर मुश्किल हो जाती आसान।देख मेरे चेहरे की लालीखिल उठती तेरी आखे प्यारी प्यारी।तेरा आंचलधूप को भी कर दे मत्थम।तेरा सायाहर पल थामे मेरा हाथ।मेरी हंसी, तेरी जिंदगीमेरे आंसू, बने तेरी उदासी।ओ मांमेरी प्यारी मां।।चोट मुझे लगती हैंआंख तेरी भर आती हैं।जो तू देखे प्या

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Always Smile

9 दिसम्बर 2015
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वो ईश्वर कहां

11 दिसम्बर 2015
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पूजा करते हैं रोज़मंदिर भी जाते हैं रोज़ढूढते हैं, हर जगहपर वो रब कहीं ना मिलागिरिजा घर- गुरुद्वारा भी खोजापर वो यहां भी ना था छिपाखोजते-खोजते उम्र बीत गयीचेहरे पर झुरिॅयां भी तो पड़ गयींपर तलाश फिर भी जारी रहींसभी जगह ढूढ़ लियाअब कोई रास्ता ना बचाथक गया हूंहार गया हूंपर तेरा अस्

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बचपन

17 दिसम्बर 2015
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मासूमियत से भराकितना प्यारासबका प्यारावो बचपन हमारा।वाणी ऐसी जिसमें कोई छल नहींमिठास ऐसी जिसमें चासनी की गुंजाइश नहींनिखार ऐसा जिसमें कोई मिलावट नहींदुलार ऐसा जिसमें छिपा कपट नहींभोला- भालाआखों का तारासबका प्यारावो बचपन हमारा।यादों का झरनासंगीत ऐसा जिसमें चाहे सुर नहींहंसी ऐसी जि

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एक पल में सब बदल जाता हैं

17 दिसम्बर 2015
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बदल जाता हैंएक पल में सब बदल जाता हैं।भोर से सांझ तककिरणों का रास्ता बदल जाता हैं।लू से सर्द हवाओं तकफलों का स्वाद बदल जाता हैं।धरती से आकाश तकपवन का रूख बदल जाता हैं।नदी से सागर तकपानी का वेग बदल जाता हैं।एक दिन से  एक रात तकवक्त का पहिया बदल जाता हैं।कली से फूलों तकखूश्बू का एह

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यादें

17 दिसम्बर 2015
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पल जब साथ होता हैंतब उसकी कद्र नहीं होतीजब तक एहसास होता हैं याद बन चुकी होती हैंजो लौट वापस कभी आती नहींरूलाती तो हैं, पर फिरसे करीब आती नहींधुंधलाने लगती हैं, तस्वीरें भीपल वापिस फिर आते नहींजरूरी है, तो बसपल-पल की कद्र, हर पल की कद्रक्योंकिवक्त बीतने के बादपल  वापस आते नहींबिख

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मुस्कान

18 दिसम्बर 2015
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मुस्कान देती हैं, जिंदगी।किसी की मुस्कान देखकर।।चुरा लो जिंदगी।चंद लम्हों  को छीनकर।।शायद मिल ही जाये मंजिल।उठा लो कदम।।मुस्कान देती हैं, जिंदगी।किसी की मुस्कान देखकर।।

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संगीत

21 दिसम्बर 2015
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संगीत  हैं वो मरहमजो आत्मा तक पहुंचाये ठंड़क।संगीत हैं वो खिलौनाजिसे हर मन खेलना चाहता।संगीत हैं वो वंदनाजिसकी उपासना करें हर एक जीवात्मा।संगीत हैं वो यारजिससे जुड़े हर दिल के तार।संगीत हैं वो राहीजिसके साथ चले कायनात सारी।संगीत हैं वो आभूषणजिसकी ढ़ाल बनता धरती आौर अम्बर।संगीत हैं व

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कोशिश

22 दिसम्बर 2015
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दे सकती जिंदगी को उड़ान हैं।मंजिल की तरफ़ बढ़ते कदमों की पहचान हैं।कामयाबी के शिखर की पहली चट्टान हैं।समंदर की गहराई नापती वो हल्की सी तरंग हैं।हर उलझन को अपने में समेटा हुआ समाधान हैं।मुमकिन-नामुमकिन हर वक़्त की शुरूआत हैं।।

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चेहरा क्या हैं

22 दिसम्बर 2015
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चेहरा क्या हैं दिल का आइना हैं ।बयां करतासारी ही दास्ताँ हैं ।।एक-एक पन्ना,जो खुलता जाये,पल-पल उसमें हैं कहानी,दिल हो खुशी में,तो ये हंसें हैं।जो हो गम में,तो छलके है। घेरे जब अंधेरा,ड़र जाता चेहरा।बयां करतासारी ही दास्ताँ हैं।।चेहरा क्या हैं दिल का आइना हैं ।बयां करतासारी ही दास्

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शरीर हैं घर, एक किराये का...

23 दिसम्बर 2015
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शरीर हैं घर, एक किराये काऔर लिया भी हैं, तो उधारपड़ेगा जाना, इक दिन छोड़करतभी तो मिलेगा, दूजे कोइसका ब्याज तो चुक जाता हैंपर कभी मूल रह जाता हैं बाक़ी, तभी तोवेष-बदलकर फिरघर में नये आता हैंचुकाता हैं बकायाफिर खाली कर जाता हैंशरीर हैं घर, एक किराये काऔर लिया भी हैं, तो उधार।।

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सच्चे रिश्ते...

23 दिसम्बर 2015
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रिश्तों के नाम तो कईपर सच्चा रिश्ता वहींजहांहिम्मत हारे कोईतोहौसला बने कोईरूके कोई जो लडखडाकर कहींफिर चलना सिखाये कोईखता चाहे हो जिसकीफर्क पड़े नहींउदासी हो चेहरे पर जो किसी एक केतोआंसू आंखों से अपनी छलकाये कोईबैठा हो पास या चाहे हो मीलों दूरपर तार जुड़े हो अटूटजबआहट भी ना होऔरहल

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इबादतें..होती हैं क्या इबादतें

24 दिसम्बर 2015
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इबादतें...होती हैं क्या इबादतें।।खैरियत रहे,सलामत रहे,अपनों की आरज़ू--ऐ... ही होती हैं इबादतेंबरसती हैं जब आसमां से बूंदें...पूरी होती हैं ना जाने कितनी ही ख्वाहिशें...इबादतें...होती हैं क्या इबादतें।।मन का तार हैं,धागा ये ऐतबार हैं,बादलों के पार ही कहीं..लगता इसका अम्बार हैं।इबा

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राही का क्या हैं काम,क्या हैं उसका मुकाम...

24 दिसम्बर 2015
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राही का क्या हैं काम,क्या हैं उसका मुकामबस चलते जाना।।एक कदम जो गिरे,उठना फिर संभलकर चलनाआये.. पत्थर गर राह मेंहौसलों से उन्हें हटाते चलनाजो धूप लगीथोड़ी छांव तलाशना...फिर चलते जानामहसूस होने लगे जो थकनविश्राम कर पल भर फिर मंजिल की ओर कूच करनाकभी ना रूकनाना हालातों से हारनाबस चलत

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यादें फिर वहीं लौट आती हैं...

25 दिसम्बर 2015
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यादें फिर वहीं लौट आती हैंहोता हैं जब भी सामना बचपन सेमासूम हंसी वहीं लौट आती हैंलम्हे ठहर जाते हैंसमा पलकों में कहीं, सिमट जाने को तरसता हैंवो मासूम हंसी...भोलापनवो झगड़ती खुशीकभी रूठनाफिर खुद ही मन जाना हार में भी जीत का एहसासवो बातों- बातों में छूना आकाशउफ!!!यादें फिर वहीं लौट

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छोटी - छोटी कोशिशें ,कहलाती हैं, शुरूआत...

28 दिसम्बर 2015
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उम्मीदों की नांव परहोती हैं सवार।छोटी - छोटी कोशिशें कहलाती हैं, शुरूआत।।निरन्तर प्रयत्न सेविश्वास की कश्ती होती पार।छोटी - छोटी कोशिशेंकहलाती हैं, शुरूआत।।हौसलों की उड़ान सेकरती, हर सागर पार।छोटी - छोटी कोशिशेंकहलाती हैं, शुरूआत।।परस्पर सहयोग सेचलती रहती, तोड़ हर व्यवधान ।छोटी -

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अंधेरा और रोशनी...

30 दिसम्बर 2015
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रोशनी का एहसास कराता हैं अंधेरा ,रोशनी का एहसास कराता हैं अंधेरा।जो ना ढ़लता सूरज,तो बोलो भला!नमन करता कौन?पहली किरण पर।।****-----********-----****रोशनी को करके काबू ,पल भर के लिए ही सही।रोशनी को करके काबू ,पल भर के लिए ही सही।मगरूर तो होता हैं, अंधेरापर जाने हैं, वो भीरोशन तो होक

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नयी सुबह होने को हैं।

31 दिसम्बर 2015
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नयी सुबह होने को हैं।ख्वाहिशें जगातीवो कोयल प्यारीधुन मधुर छेड़ने को हैंनयी सुबह होने को हैं।रूठे को मनाओजो हुआभुलाकर उसेरंग नये जीवन में लाओ नयी सुबह होने को हैं।अपनों संग वक्त बिताओयारों संग मौज मनाओखूब हंसो औरों को भी खुशियाँ लुटाओजिंदगी को खुलकर जीयों नयी सुबह होने को हैं।मेरी ओर से  आप सभी को नव

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इतनी सी इनायत हो। चेहरे पर मुस्कान तेरे हो।।

1 जनवरी 2016
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इतनी सी इनायत हो।चेहरे पर मुस्कान तेरे हो।।ग़म ना कभी शिकायतें हो।पलकों पर ना आसूं कभी हो ।।इतनी सी इनायत हो।चेहरे पर मुस्कान तेरे हो।।पूरी हर ख्वाहिश हो।अधूरी ना कोई फरमाईश हो।।इतनी सी इनायत हो।चेहरे पर मुस्कान तेरे हो।।धड़कन में मोहब्बत हो।खुशियाँ कदमों तले हो।।इतनी सी इनायत हो।च

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वास्तविक प्रेम...

2 जनवरी 2016
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कहीं गांव में एक औरत (काकी) रहा करती थी। काकी एकदम अकेली थी। कोई आने -जाने वाला नहीं था। काकी अपने एकाकीपन से बहुत उदास थी। अत: समय गुजारने हेतु वह एक तोता (मिट्ठू) ले आई, कहीं वह उसे छोड़कर ना चला जाए यहीं सोचकर वो मिट्ठू को पिंजरे में रखती। हंसी - खुशी समय गुजरने लगा। काकी मिट्

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जिंदगी इम्तिहान लेती हैं।

4 जनवरी 2016
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जिंदगी इम्तिहान लेती हैं।रोज़ नये सांचे में ढ़लती हैं।।निकलती है, फुहार रोशनी कीपूर्व से रोज़ यहीं।ढ़लती हैं, शीतल चांदनीपश्चिम से रोज़ यहीं।टिमटिमाते हैं तारे, ढ़ेर सारेगगन में रोज़ यहीं।होता हैं रोज़ यहीं तो सब कुछफिर भी, रोज़ दिन एक नया हैं।कल जो बीताना लौट फिर आयेगा।कल जो आयेगाज

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वक्त की कद्र...

5 जनवरी 2016
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वक्त की कद्रवहीं जानता हैंजो हाथों से कहींउसे खो देता हैं,करता रहता हैं इंतजारपर वक्त ना किसी का मोहताज होता हैं,ये बड़ा कीमती होता हैं दोस्तों !छूटने ना दो बस यू ही,सतायेगा फिर,ये सदा ही।।

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देखी साइकिल..मन मचल गया

11 जनवरी 2016
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देखी साइकिलमन मचल गया  मन में घंटी किटकिटाने लगीयादों की लड़ियां ज़हन में लटकने लगीवो उबड़- खाबड़ रास्तासनन- सनन चलती हवामाथे का वो पसीनाजोर- जोर से हाफ़नामन को गुदगुदाने लगाथक जाते थे जबवो थोड़ा सुस्तानापंचर हुई जब - जब घसीटकर वो धूप में ले जानाजोर से दबाया नहीं किब्रेक का हाथ में आ

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मुस्काना हैं तुझको...

12 जनवरी 2016
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मुस्काना हैं तुझकोचाहे हो जो भी हालातइक दिन जिंदगी ढ़ूंढ़ ही लेगीतेरा पता....करती हैं जिंदगी जिससे भी ज्यादा प्यारलेती हैं फिर उसी का इम्तिहान् बार- बारना थकना...ना मानना, तू कभी हारमुस्काना हैं तुझकोचाहे हो जो भी हालातइक दिन जिंदगी ढ़ूंढ़ ही लेगीतेरा पता....लगे जो कभी, देर हो गयीरख

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देखोगे जब लहरों को टकराते...

13 जनवरी 2016
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देखोगे जब लहरों को टकराते, टकराते, पत्थरों सेतो जानोगेटकराती हैं जो इक दफ़ाना बैठ जाती हार मानफिर आती हैं, टकराती हैंबार- बार यहीं तो दोहराती हैंपर फिर बना ही लेती हैंजगह पत्थरों को भी चीर करऔरनिकल जाती हैं आगेआगे पत्थरों को भी पीछे छोड़करयहीं तो जिंदगी हैंटकरानाफिर उठना टकराना पर

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नारी में है, संसार समाया...

14 जनवरी 2016
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नारी में है, संसार समायाये जोड़े जीवन से जीवन का सायास्वयं ईश्वर भी करते इसे प्रणामक्योंकि मिला इसे जननी का नामये जो कष्ट पायेगीऐ मूर्ख !धरती पे प्रलय आयेगीये जो जन्म दे सकती हैं जन कोतो नष्ट भी कर सकती हैंप्राणों को!!

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बादलों के पार ना जाने कौन रहता हैं...

15 जनवरी 2016
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बादलों के पार ना जाने कौन रहता हैंपरमात्मा कहते हैं लोगजिसेक्या वो सच में होता हैंयकी़न नहीं होतापर ना की कोई वज़ह भी नहींफिर वो नहीं तोभरता हैं रंग फूलों में कौन कौन देता है मिठास झीलों मेंकौन सिखाता हैं हंसीदेता हैं एहसास और जज्बात्आखिर वो नहीं तो फिर कौनफिर वो खफ़ा क्यूं हो जाता

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रखें कैसे ...

18 जनवरी 2016
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ईंट को इस तरह रखें, केआशियाँ बन जाये।जुबां को इस तरह खोले, केबोल मीठे बन जाये।लकड़ी को इस तरह कांटे, केफर्नीचर बन जाये।सपनों को इस तरह संजोये, केहकीकत बन जाये।बीज़ को इस तरह बोयें, केपेड़ बन जाये।कली को इस तरह खिलने दे, केफूल बन जाये।हाथों को इस तरह समेटे, केदुआ बन जाये।कदमों को इस

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देखूँ दर्द में जिंदगी को...

19 जनवरी 2016
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देखूँ दर्द में जिंदगी कोतो दर्द बांट सकूँ।देखूँ चोट में जिंदगी कोतो मरहम लगा सकूँ।देखूँ मायूसी में जिंदगी कोतो हिम्मत बंधा सकूँ।देखूँ हार में जिंदगी कोतो जीत की राह दिखा सकूँ।देखूँ खामोशी में जिंदगी कोतो मुस्कान दे सकूँ।देखूँ तन्हाई में जिंदगी कोतो साथ दे सकूँ।देखूँ बेबसी में जिं

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जिंदगी ...

20 जनवरी 2016
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जिंदगीआसमां में छाये हो बादल जैसे काले-काले।वैसे ही जिंदगी में कभी मायूसी भी,फिर बरखा आये औरनजारा साफ़ हो जाये।जिंदगीशतरंज की बिसात सी कभी,क्षय और मात साथ - साथ दोनों ही।जिंदगीखूश्बू और कांटो सी, बंधे दोनों साथ - साथ ही।जिंदगीसूरज और चांद में बंटी,आधा हिस्सा कहीं औरबाकी यहीं -कही

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