देखी साइकिल
मन मचल गया
मन में घंटी किटकिटाने लगी
यादों की लड़ियां
ज़हन में लटकने लगी
वो उबड़- खाबड़ रास्ता
सनन- सनन चलती हवा
माथे का वो पसीना
जोर- जोर से हाफ़ना
मन को गुदगुदाने लगा
थक जाते थे जब
वो थोड़ा सुस्ताना
पंचर हुई जब - जब
घसीटकर वो धूप में ले जाना
जोर से दबाया नहीं कि
ब्रेक का हाथ में आ जाना
मैं जोर- जोर से कभी हंसता
कभी चुप- चुप रोता हूं
दिन वो सुहाने
जब भी याद करता हूँ
देखी साइकिल
मन मचल गया
मन में घंटी किटकिटाने लगी
दोस्त निकल जब जाते थे दौड़ में आगे
वो मायूसी का छाना
आज मुझे भाता हैं
गोलगप्पे का वो ठेला तो वहीं हैं
पर वो यार और साइकिल का दौर नहीं हैं
आज गाड़ी से जाता हूँ
समय पर तो पहुँच जाता हूँ
पर वो रोमांच
सैर का अब नहीं हैं
देखी साइकिल
मन मचल गया
मन में घंटी किटकिटाने लगी