देखोगे जब लहरों को टकराते,
टकराते, पत्थरों से
तो जानोगे
टकराती हैं जो इक दफ़ा
ना बैठ जाती हार मान
फिर आती हैं, टकराती हैं
बार- बार यहीं तो दोहराती हैं
पर फिर बना ही लेती हैं
जगह पत्थरों को भी चीर कर
और
निकल जाती हैं आगे
आगे पत्थरों को भी पीछे छोड़कर
यहीं तो जिंदगी हैं
टकराना
फिर उठना
टकराना पर ना थमना
आगे बढ़ना
बढ़ते जाना
जो रूक गये
कहीं अटक गये
फसकर रह जाओगे भंवर में
तड़पोगे
पर जो किया प्रयास
निकलोगें आगे
आगे... आसमां से भी आगे।।