प्रस्तुत है बुद्धिशस्त्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण उपनिषदों के छन्द प्रेरणा देते हैं l दो प्रकार के सदाचार संप्रेषण होते हैं| एक भावात्मक दूसरा विचारात्मक यदि विचारात्मक में भावात्मकता का आधार हो तो वह सरस हो जाता है | भावना अन्तःकरण का प्रतिनिधित्व करती है और विचार बुद्धितत्त्व का ब्रह्म शब्द की उत्पत्ति बृह धातु से हुई है,जिसका= अर्थ है,प्रस्फ़ुटित होना,प्रसरण बढ़ना, आदि इसका सम्बन्ध बृहस्पति और वाचस्पति से भी है,वास्तव में उच्चारित शब्द की अन्तर्निहित शक्ति के विस्फ़ोट और उपवृंहण अर्थात वृद्धि से ही इन तीन शब्दों का तारतम्य है,इन अर्थों में बृहत होने की भावना की प्रधानता है,जिसका आशय है ब्रह्म सबसे बड़ा है,उससे कोई बड़ा नही है तैत्तरीय उपनिषद् में एक संवाद के अन्तर्गत भृगु ने पिता वरुण से प्रश्न किया कि ब्रह्म क्या है,तो वरुण ने उत्तर दिया- यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते । येन जातानि जीवन्ति । यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व । तद् ब्रह्मेति ॥ - तैत्तिरीयोपनिषद् ३-१-३ जिससे यह समस्त भूत ब्रहमाण्ड के जड़ चेतन पदार्थ जन्म लेते है,उत्पन्न होकर आश्रय से जीते है,और पुन: उसी में लौट कर विलीन हो जाते है,उसी का नाम ब्रह्म है. ब्रह्म का इसी प्रकार से दूसरे शब्दों में अर्थ छान्दोग्य उपनिषद में पाया जाता है,इसमे ब्रह्म को "तज्जलान" (तत+ज+ल+अन) कहा गया है,इसका अर्थ है कि ब्रह्म तज्ज तल्ल और तदन है,वह तज्ज है क्योकि सभी भूत उसी मे पैदा होते है,वह तल्ल है क्योकि सभी भूत उसी में तल्लीन रहते है,वह तद्न क्योकि सभी भूत उसी में वापस चले जाते है,ब्रह्म में इन तीनो का समावेश है,इसलिये ही ब्रह्म का स्वरूप तज्जलान सूत्र से किया जाता हैl इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मोहन कृष्ण जी और शरद कश्यप जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें दीनवत्सल आचार्य श्री ओम शंकर जी से हमें विचार, ज्ञान, आत्मीयता, प्रेम और आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है l