प्रस्तुत है ब्रह्मवत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी युगभारती लखनऊ के आमन्त्रण पर 14 नवम्बर को लखनऊ जाएंगे, दीपमिलन पर कानपुर आ सकते हैं,आचार्य जी से कल श्री योगेन्द्र भार्गव जी ने कल वाली परशुराम कथा से संबन्धितकुछ प्रश्न पूछे और उन उत्तरों से वे संतुष्ट हुए| शैक्षिक पाठ्यक्रम में संशोधन की अत्यन्त आवश्यकता है |
मूल विषय : अवतार क्या है उद्धार क्या है संसार की निर्मिति कैसी होती है प्रजापतिश्चरति गर्भे अंतरजायमानो बहुधा विजायते। तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरास्तस्मिन् ह तस्थुर्भवनानि विश्वा ।। (यजुर्वेद ३१ / १९) का आचार्य जी ने अर्थ बताया परमात्मा की षोडश कला शक्ति जड़ चेतनात्मक समस्त संसार में व्याप्त है| प्राणियों की उत्पत्ति के आधार पर ८४ लाख योनियों को चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया। जरायुज - माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं। अण्डज - अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये। स्वेदज - मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं। उद्भिज - पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उद्भिज वर्ग में शामिल किया गया। (एक कला का विकास ) पशु में चार कलाएं साधारण मनुष्य में पांच कलाएं होती हैं जिन मनुष्यों में पांच से ऊपर आठ तक कलाएं होती हैं वे विभूति कोटि में आते हैं और आठ से ऊपर वाले अवतार कोटि के अन्तर्गत आते हैं सब कुछ जानते हुए हमें अपने कर्म का निर्धारण
करना चाहिए और उस कर्म में हमारी प्रमाणिकता रहनी चाहिए और उस प्रमाणिकता की हमें पूजा करनी चाहिए l इसके अतिरिक्त नकली जहर किसे दिया गया आचार्य जी जब सातवीं कक्षा में थे तो उन्होंने क्या सीखा आदि जानने के लिए सुनें |