आज के उद्बोधन में आचार्यबी जी ने बताया कि अपनापन व्यक्ति को भाव से जोड़ता है कर्मक्षेत्र के साथ़ भाव को अवश्य जोड़ें l आपने कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः । एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥ ईशोपनिषद् बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।2.50।। गीता कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।। गीता यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्। स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।। गीता समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं महत्पदं पुण्ययशो मुरारे:। वाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं पदं पदं यद् विपदां न तेषाम् 10.14.58 भागवत् वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः। बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः।।4.10।। गीता की व्याख्या करते हुए कहा कि संसार में संकटों के होते हुए भी अपने कार्यों को उत्साह से करें तो आनन्द आयेगा l और अपना कौन आत्मीय आचार्य जी से मिलने कल अपने गांव सरौंहां गया था जानने के लिए सुनें |