प्रस्तुत है भगव् आचार्य श्री ओम शङ्कर जी द्वारा प्रोक्त सदाचार संप्रेषण लेखन एक योग है और वह हमारा मित्र भी है | धर्म और दर्शन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं धर्म जीवन का व्यवहार है जीने की शैली है और दर्शन आन्तरिक अनुभवों का तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने का उपाय है दो प्रकार के दर्शन हैं - आस्तिक और नास्तिक छ्ह नास्तिक दर्शन चार्वाक माध्यमिक योगाचार्य सौत्रांतिक वैभासिक और आरहद और छ्ह आस्तिक दर्शन सांख्य योग न्याय वैशेषिक मीमांसा वेदान्त हैं आचार्य जी ने गीता के निम्नलिखित श्लोक बताये देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्। ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप च्यते।।17.14।। देवता, ब्राह्मण, गुरुजन और जीवात्मा का पूजन, शुद्धि , आर्जवम्( सरलता), ब्रह्मचर्य का पालन और अहिंसा -- शरीरसम्बन्धी तप कहलाता है अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्। स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप च्यते।।17.15।। उद्वेग न करने वाला, सत्य, प्रिय, हित करने वाला भाषण स्वाध्याय व अभ्यास -- यह वाणी सम्बन्धी तप कहलाता है मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः। भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।।17.16।। मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव, मननशीलता, मन का निग्रह भावों की शुद्धि -- यह मन सम्बन्धी तप कहलाता है l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कुछ काव्य पंक्तियां सुनाईं आचार्य जी से जीवनी लिखने के लिए किसने कहा आदि जानने के लिए सुनें |