प्रस्तुत है पारिकाङ्क्षिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त समिर-मार्ग से प्राप्त आज सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने सबसे पहले कृषकों के लिए अहितकर असमय पर्जन्य का उल्लेख किया l इसके पश्चात् आचार्य जी ने लोक संग्रह, लोक संस्कार,लोक व्यवस्था और लोक संस्कार के लोक चिन्तन का अर्थ बताया भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को संस्कार ही दे रहे हैं और जब वे नहीं सुन रहे तो द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि, व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः। दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं, लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्।। (गीता 11/20) हे महात्मन ! अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी के मध्य का पूरा आकाश तथा सब दिशाएं मात्र आप से ही परिपूर्ण हैं । आपके इस अलौकिक, भयंकर रूप को देख कर तीनों लोक अत्यन्त व्यथित हो रहे हैं| नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णम्, व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्। दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा, धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।। (गीता
11/24) विश्व में सर्वत्र अणु रूप से व्याप्त आकाश को छूते हुए , प्रकाशमान, अनेक रूपों से युक्त, फैलाये हुए मुंह और विशाल आंखों से युक्त आपको देख कर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धैर्य और शान्ति को नही पा रहा हूं l दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि, दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि । दिशो न जाने न लभे च शर्म, प्रसीद देवेश जगन्निवास।। (गीता 11/25) आपके विकराल दाढ़ वाले और कालाग्नि के समान प्रज्वलित मुखों को देख कर मैं दिशाओं को नहीं जान पा रहा हूं । चारों ओर प्रकाश देख कर दिशा -भ्रम हो रहा है। आपका यह रूप देखते हुए मुझे सुख भी नहीं मिल रहा है। हे देवेश ! आप खुश हों । इस तरह से संस्कार देने का प्रयास किया भगवान्श्री कृष्ण ने ll इसी तरह तैत्तिरीय उपनिषद् में उदाहरण है | यथाssपः प्रवताssयन्ति। यथा मासा अहर्जरम्। एवं मां ब्रह्मचारिणः। धातरायन्तु सर्वतः स्वाहा । प्रतिवेशोऽसि। प्रमाभाहि।मापद्यस्व। जिस प्रकार सरिता का जल नीचे की ओर बहता है, जैसे वर्ष के माह दिवस के अवसान की ओर तीव्रगति से जाते हैं, हे पालनकर्ता प्रभो, उसी प्रकार सभी दिशाओं से ब्रह्मचारीगण मेरी ओर आयें। स्वाहा! हे प्रभो, आप मेरे प्रतिवेशी हैं, आप मेरे बहुत समीप निवास करते हैं। मेरे अन्दर पधारिये, मेरी ज्योति, मेरा सूर्य बनकर मुझे प्रकाशित करिये! अर्थात् वैचारिक संस्कार की आवश्यकता है l हम लोग कभी गुलाम नहीं रहे l अन्य देश गुलाम हो गये l स्वदेश का प्यार होना चाहिए l संपूर्ण सृष्टि को ब्रह्म की ओर उन्मुख किया गया है l हमें अनुभव हो जाए कि हम सब परमात्मा के अंश हैं l