प्रस्तुत है तपोधन आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आचार्य जी ने अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया l संसार का निर्माण कैसे हुआ इसका निर्माता कौन है इस तरह के प्रश्न उठने पर उत्तर देने वाले शिक्षक यदि गम्भीर हैं तो इससे शिक्षार्थी और शिक्षक दोनों का कल्याण होता है l विद्या अकेले प्राप्त नहीं होती है कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता; आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता। मैथिलीशरण गुप्त कभी कभी अकेले होने पर हमारे भीतर प्रश्नोत्तर होते हैं आशा के निराशा के उत्साह के यह हमारे भीतर बैठा ब्रह्म तत्त्व है जो हमें सक्रिय सचेत करता है और इसी चिन्तन में व्यक्ति का ध्यान विकसित होता है और वह ध्यान जब इस शरीर के अंगों उपांगों का सदुपयोग कर लेता हैतो हमें अन्तर्दृष्टि मिलती है इस अन्तर्दृष्टि में इन्द्रियां शान्त हो जाती हैं l तैत्तरीय उपनिषद् में यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः। छन्दोभ्योऽध्यमृतात्संबभूव। स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु। अमृतस्य देव धारणो भूयासम्।शरीरं मे विचर्षणम्। जिह्वा मे मधुमत्तमा।कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम्।ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः। श्रुतं मे गोपाय। की आचार्य जी ने व्याख्या की 17/10/2021 को अपने गांव सरौंहां में होने वाले स्वास्थ्य शिविर में हम लोग सेवा के साथ विचार चिन्तन भी करें l बुद्धि प्रतिभा प्रमा मेधा विवेक के सत्व तत्त्व को समझने के लिए परस्पर बैठना आवश्यक है l शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म अत्यन्त आवशयक है | निर्भय परमात्मा का सबसे प्रिय होता है इसके अतिरिक्त प्रो ज्ञान मोहन (IIT) से संबन्धित क्या बात थी जानने के लिए |