प्रस्तुत है धर्मचारिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण हमारे यहां ज्यादतर साहित्य रूपकों में विशेष रूप से अलङ्कारिक भाषाओं में लिखे गये हैं वेद ज्ञान है लेकिन उसे पुरुष कह दिया गया | शिक्षा कल्प निरुक्त छन्द व्याकरण ज्योतिष उसके अंग हैं ज्योतिष आंखें हैं शिक्षा नासिका है व्याकरण (या शब्दानुशासन ) मुख है छन्द पैर हैं संहिता में वैदिक स्तुतियां संग्रहीत हैं ब्राह्मणों में उन मन्त्रों की व्याख्याएं हैं और उनके समर्थन में प्रवचन हैं आरण्यक वानप्रस्थी लोगों के लिए हैं उपनिषदों में दार्शनिक व्याख्याएं प्रस्तुत की गई हैं l सदाचार में सत् के साथ आचार जुड़ा है प्रकृति के साथ जुड़कर चलेंगे तो आचार व्यवहार मेंआनंद आएगा और उसके विरुद्ध चलेंगे तो परिस्थिति बड़ी गंभीर हो जाएगी l धर्म एक है मत अलग अलग हैं उसी धर्म के अनुसार जो मानव धर्म विकसित हुआ उसने ही संपूर्ण सृष्टि की पूजा भी की और उसका सदुपयोग भी किया इस प्रकार का चिन्तन,विचार, परस्पर वार्ता हमारे ज्ञान की वृद्धि करता है आपके मानवत्व की वृद्धि करता है आपके संस्कार को पल्लवित करता है तब हम उसमें जब संसार का व्यवहार करेंगे तो हम एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले होंगे अध्ययन स्वाध्याय ध्यान धारणा नियमित दिनचर्या से अपने ज्ञान विचार भावना चिन्तन मनन जीवन शैली को परिमार्जित करने की आवश्यकता है l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन आचार्यों ( आचार्य पं सिद्धनाथ मिश्र जी और प्रो निशा नाथ जी) की चर्चा की जिन्होंने आचार्य जी को BA, MA में पढ़ाया था l पढ़ते कम घोखते ज्यादा हैं किसने कहा था जानने के लिए सुनें |