प्रस्तुत है नाय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण जैसे आचार्य जी पहले विद्यालय -रत्न के लिए आवश्यक दस गुण बताते थे उसी तरह प्रयासपूर्वक निम्नांकित दस सद्गुण यदि हम अपने अन्दर ले आयें तो स्वयं तो आनन्दित रहेंगे ही अपने परिवार को अपने प्रतिवेश्य (पड़ोसी) को भी आनन्दमय कर सकते हैं और लोग आपके प्रति आकर्षित होंगे प्रमुख है लोगों का आपके प्रति विश्वास बढ़ेगा |
1-प्रातः जागरण 2-इष्ट स्मरण 3-शारीरिक व्यायाम 4-प्रकृति उपासना 5-परिवार प्रेम 6-प्रतिवेश्य से परिचय 7-स्वव्यवसाय के प्रति आस्था 8-स्वावलंबी स्वभाव 9-स्वदेशी भाव 10-स्वधर्मानुभूति स्वाध्याय की तरह किसी की वाणी का अनुभव कर लेना आपके विचार और कौशल पर आधारित है |
गीता से श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।
की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि शम्बूक का धर्म तो स्वास्थ्य विभाग की चिन्ता करना था लेकिन वो हठ योग में जुट गया l इसके अतिरिक्त नाना जी द्वारा नागपुर में बाल -जगत नामक संस्थान को स्थापित करने के पीछे क्या उद्देश्य था अपनी युग भारती के किस सदस्य को आचार्य जी ने कहा था कि उन्हें शिक्षक होना चाहिए था लेकिन वो इस समय डाक्टर हैं आदि जानने के लिए सुनें |