हम रामांशों के सम्मुख प्रस्तुत है वागृषभ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण परिस्थिति गम्भीर (जैसे कोरोना संकट) होने पर चिन्तक विचारक सबसे पहले भय का त्याग करते हैं| कोरोना संकट में अन्य देशों की तुलना में भारत का सबसे कम नुकसान हुआ क्योंकि भारतवर्ष की प्रकृति प्राणदायिनी है पर्यावरण भी अच्छा है शिक्षा की विकृति के लिए हम सब उत्तरदायी हैं तैत्तरीय उपनिषद् में प्रथम अध्याय शिक्षावल्ली है जिसकी प्रार्थना इस प्रकार है | ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् । ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः । आचार्य जी ने इसकी व्याख्या करते हुए बताया कि यहां वायु की प्रशंसा की गई है और इसका गहन आशय है | हमारी शिक्षा में शुद्ध प्राणवायु का भी ध्यान रखा गया था विद्यालय इसी प्रकार के होते थे ताकि हमें शुद्ध प्राणवायु मिले हम अपनी शिक्षा को जीविकोपार्जन की शिक्षा का आधार बना दें नित्य प्रार्थना, पूजा,ध्यान, हवन,व्यायाम, प्राणायाम शिक्षा का आधार हैं हम शिक्षक हैं यह अनुभव करें कार्य व्यवहार में भी शिक्षकत्व लाएं इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अरिन्दम जी की चर्चा क्यों की बिलदलिया कहां था सन् 64 में आचार्य जी कहां रुके थे आपने बूजी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें |