प्रस्तुत है कृष्टि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण भाव कभी बूढ़ा नहीं होता भाव पर आरोहित होकर विचार चलते हैं और विचारों का संस्पर्श पाकर क्रियाएं सक्रिय होती हैं जिनके भाव विचार और क्रिया एक रूप हो जाते हैं वो मृत्यु पर्यन्त क्रियाशील रहने के उपाय करते रहते हैं स्वयं के माध्यम से नहीं तो अपनी कृति के माध्यम से l आचार्य जी चाहते हैं जिन विचारों को हम लोगों में उन्होंने आरोपित करने का प्रयास किया है उनका पल्लवन हो और उन विचारों के आधार पर हम लोग भारत मां की सेवा करने के लिए प्रवृत्त हों l आचार्य जी ने सुदर्शन जी द्वारा लिखी पुस्तक के बारे में एक विशेष बात बताई l नई राष्ट्रीय शिक्षानीति में मौलिक सुधार नहीं है कलेवर तो बदला है अपरा विद्या अर्थात् अविद्या का विषय विज्ञान है और विज्ञान पर हम बहुत ज्यादा आश्रित हैं जब कि ज्ञान (परा विद्या )पर नहीं l ज्ञान पर आधारित हमारे ग्रंथों का प्रणयन काव्य रूप में हुआ जब कि गद्य कवियों की कसौटी है यानि जो गद्य लिख लेता है वो कवि से ज्यादा श्रेष्ठ है लेकिन हमारे यहां अतिशयता बहुत हो गई l संगठन के अभाव में हम पराजित हुए हम खंड खंड हो गए बौद्ध काल में भी खण्डन मण्डन बहुत हुआ तब शंकराचार्य जी ने बहुत अच्छा काम किया आचार्य जी ने जामदग्न्य (परशुराम ) की अद्भुत कथा बताई l पहले गाय पूजी जाती थी और अब मारी मारी घूमती है हमें इन पतनों की ओर भी ध्यान देना चाहिए l गीता का अध्ययन हम लोग इसलिए करें कि वो हमारे जीवन में उतरे जिस तरह से बैरिस्टर साहब के जीवन में उतरी थी |