टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥ प्रस्तुत है कुलतन्तु लब्धश्रुत आचार्य श्री स्थान :उन्नाव प्रेम और आत्मीयता अपने युगभारती परिवार (मुक्ताहार) का एक सद्गुण है जिसे हर परिस्थिति में बनाए रखना चाहिए l भावात्मक संबन्धों की गर्माहट से संगठन को सुकून मिलेगा l चिन्तन में परिवर्तन से विचार परिष्कृत होंगे और उससे व्यवहार आनन्दमय होगा l पुरुष के लिए पुरुषार्थ अति आवश्यक है भावनाओं से संगठन को शक्ति प्रदान करें l राष्ट्र- हित में तत्पर रहेंl आचार्य जी ने भैया डा प्रवीण सारस्वत जी के नये बने अत्यन्त आकर्षक और सुन्दर चिकित्सा भवन RASWAT PATHOLOGY की भी चर्चा की परामर्श :गीता के 18 वें अध्याय में 18 वें से 28 वें छन्द तक का अध्ययन करें| इसके अतिरिक्त पण्डित जी को कुत्ते का पात्र मिला था या कोई दूसरा पात्र, रुद्राक्ष माला किसकी टूट गई थी आदि जानने के लिए सुनें |