प्रस्तुत है विद्वज्जन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज का सदाचार संप्रेषण वर्तमान में सत्पुरुषों का संगठन अत्यन्त आवश्यक है प्रायः सत्पुरुष संगठित नहीं होते, होते हैं तो एक आदेश पर चलने के लिए तैयार नहीं होते और चलते हैं तो लम्बे समय तक नहीं l मनीष कृष्ण जी संगठन के विस्तार के लिए तरह तरह के प्रयास करते रहते हैं उसी तरह के प्रयास के रूप में उन्होंने आज दिनांक 24/10/2021 को विद्यालय में एक कार्यक्रम आयोजित किया है l आचार्य जी चाहते हैं कि
हम लोगों में शास्त्रीय विषयों के प्रति अभ्यस्त होने का चाव हो जाए l विद्यालय में आचार्य जी चाहते थे कि शिक्षा के जो दोष हैं उनका परिमार्जन करते हुए अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करना ताकि एक ऐसा समाज खड़ा करना जो शिक्षित, संस्कारित, संयमी, सदाचारी, स्वाध्यायी हो और सामर्थ्यसंपन्न भी हो आपने तैत्तिरीय उपनिषद् में शिक्षावल्ली के 12 वें अनुवाक से ---
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो ।
त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।
ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः । का सांकेतिक रूप से अर्थ बताया ( आचार्य जी की हम लोगों से आशा है कि इसके विस्तार को हम लोग पूछें )
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।। गीता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि इतना सब मिला फिर भी हम लोगों ने जब प्रकृति को बहुत प्रदूषित किया तो परमपिता परमेश्वर ने दंड दिया ll
जीवन जीने की शैली औपनिषदिक ज्ञान है उपनिषदों को सरल करके नई पीढ़ी को पढ़ाने की आवश्यकता है | इसके अतिरिक्त गुजरात के किस युग भारती सदस्य के बारे में आचार्य जी ने बताया कि वो बहुत अच्छी तरह से PROOF READING करते थे सन् 1956 में BNSD INTER COLLEGE में आचार्य जी ने अध्ययन करते समय की किस घटना की चर्चा की आदि जानने के लिए सुनें |