प्रस्तुत है सान्न्यासिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण कल सम्पन्न हुए स्वास्थ्य शिविर में कानपुर लखनऊ दिल्ली से युगभारती के 36 सदस्य थे और 325/350 मरीजों को देखा गया | तैत्तिरीय उपनिषद् में प्रथम शिक्षावल्ली चतुर्थ अनुवाक में यशो जनेऽसानि स्वाहा। श्रेयान् वस्यसोऽसानि स्वाहा। तं त्वा भग प्रविशानि स्वाहा। स मा भग प्रविश स्वाहा। तस्मिन् सहस्रशाखे निभगाsहं त्वयि मृजे स्वाहा। की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि प्रतिस्पर्धा का भाव विकास की कुञ्जी है l गीता के 18 वें अध्याय में श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || ४७ || आदि छन्दों का अध्ययन करें | हम कभी गुलाम नहीं रहे हमारी उदारता ने हमें पराजित किया हमारे इतिहास में हमारे शूरवीरों को नहीं पढ़ाया गया हमने सदैव संघर्ष किया गीता, वेद, ब्रह्मसूत्र,उपनिषद्,आरण्यक, ब्राह्मणग्रन्थ आदि पढ़ाये जाने चाहिए l हमें यथार्थ की ओर ध्यान देने की वश्यकता है l ब्रह्मवेला के महत्त्व को पहचानने की आवश्यकता है l इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया भरत सिंह जी,भैया डा दिनेश, भैया डा सुरेन्द्र( बैच 1988), मानद सदस्य भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें |