प्रस्तुत है सदाचार संप्रेषण निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह। सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥ आचार्य श्री ओम शंकर जी,जिनके आचरण में हमें ज्ञान वैराग्य ध्यान उपासना सत्कर्म परिलक्षित होते हैं, का कहना है कि हमारे मन में विचार में संकल्प में विश्वास में जागरण में निद्रा में अखंड भारत का चित्र होना चाहिए और हमें सदैव अखंड भारत की उपासना करनी चाहिए l आचार्य जी ने मानस का एक प्रसंग लिया जहां भ्रमित गरुड़ जी महाराज कागभुसुण्डी के पास भेजे गए हैं | नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥ सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥ सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता। सोइ महि मंडित पंडित दाता॥ धर्म परायन सोइ कुल त्राता। राम चरन जा कर मन राता l l सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥ धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥ धन की तीन गतियों दान भोग और नाश में सर्वोत्तम है दान |