प्रस्तुत है यमवत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज सदाचार संप्रेषण सदाचार संप्रेषण का उद्देश्य रहता है कि हम लोगों को उससे ऐसा फल प्राप्त हो जो हमारे मन को संतुष्टि दे फल स्थूल और सूक्ष्म दोनों होता है | सूक्ष्म फल अपने कार्यों और अपने व्यवहारों के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है संसार अत्यधिक अद्भुत है जहां सुख दुःख दोनों हैं | समस्याएं भी हैं तो समाधान भी हैं| इस संसार को संचालित करने वाला किसी न किसी रूप में हम सब लोगों के अंदर विद्यमान है विशेषकर मनुष्य के भीतर किसी का काम लेखन है किसी का काम प्रवचन है | जब हम लेखन करते हैं तो उसके दर्शन भी करते हैं और हाथ की त्रुटियां मस्तिष्क सुधार देता है| शिक्षा देना शिक्षा प्राप्त करना मनुष्योचित कर्म है और धर्म भी है आचार्य जी ने जो आज एक स्वप्न देखा उसके बारे में बताया हमारे आदर्शों की डोर कभी टूटनी नहीं चाहिए भले ही कितने उतार चढ़ाव देखें मन कमजोर न करें आचार्य जी ने सन् 2011 में लिखी अपनी एक कविता सुनाई चिन्ता है भारत में क्यों भ्रष्टाचार बढ़ा..... इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सुरेश गुप्त जी और भैया डा उमेश्वर पांडेय जी का नाम क्यों लिया आचार्य जी के स्वप्न में राव नामक छात्र ने क्या किया आदि जानने के लिए सुनें |