प्रस्तुत है गुणसागर आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण समय पर जिसका वीरत्व जाग जाए वो वीर है l ज्ञान बांटते बांटते बीते पांचक वर्ष अब तो कर्म प्रवृत्त हों सब मिल सहित अमर्ष । सब मिल सहित अमर्ष ज्ञान हो शक्ति प्रदाता और देशहित जिए मरे तज रिश्ता नाता । कर्मशक्ति के बिना यदि करते रहे विमर्श कभी नहीं मिल पाएगा हमको वांछित हर्ष ।।
(ओम शंकर ) -- कर्मशक्ति के साथ हो संघबद्ध व्यवहार , और आचरण में रहें संयम सहित उदार ।
संयम सहित उदार रहें कमजोर न पलभर , दुष्ट देखकर लगें खोजने कोई तलघर ।
संयम शक्ति समुद्र वत् गगन सदृश विस्तार , "हम भारत के पूत हैं" यह ही ब्रह्म विचार ।।
(ओम शंकर) -- यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: ।
हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा मनोरथेनासति धावतो बहि: ॥ भागवत् 5/18/12
का उदाहरण देते हुए आचार्य जी ने सहज मानव मनोवृत्ति किसी का किसी के प्रति आकर्षण ' के बारे में बताया l पाञ्चजन्यं
ऋषिकेशाे देवदत्तं धनञ्जयः। पाैण्ड्रं दध्माै महाशङ्खं भीमकर्मा वृकाेदरः।। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्राे युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च सुघाेषमणिपुष्पकाै।। दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण, युयुत्सुं समुपस्थितम्।। (गीता 1/28-।।) सीदन्ति मम गात्राणि, मुखं
च परिशुष्यति। वेपथुश्च शरीरे मे, रोमहर्षश्च जायते।। (गीता 1/29) के द्वारा आपने सात्विक लोगों के लक्षण बताये l भगवान् कृष्ण में शक्ति बुद्धि स्थैर्य न होता तो पासा पलट जाता l लेकिन सात्विकता भी अतिशयता को प्राप्त होती है तो हमारा पराभव होता है जिसे वीर सावरकर ने सद्गुण विकृति कहा है (उदाहरण :पृथ्वीराज चौहान ) अत्यन्त सरल बुद्धिमान् सहज प्रधानाचार्य ठाकुर साहब के पौत्र ने लटकते लड्डू कहां देखे थे? लगाई डुढाई कौन बोलता था? आदि जानने के लिए सुनें |