प्रस्तुत है सङ्ख्यावत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण सत्संग का अर्थ केवल गाना बजाना नहीं , अध्यात्म की चर्चा ही नहीं अपितु भिन्न भिन्न रुचियों वाले भिन्न भिन्न प्रकृति वाले सतोगुण की प्रधानता वाले लोग जहां संगठित होकर रहते हैं उसे सत्संग कहते हैं | आज कल हम लोग औपनिषदिक ज्ञान की चर्चा कर रहे हैं | तैत्तरीय उपनिषद् में वर्ण स्वर बल मात्रा साम संतान की संधि से भाषा, इस संधि का आधार लेकर भाव भाषा में परिवर्तित होता है भाषा व्यवहार में आती है स्वर तो स्वाभाविक रूप से निकलते हैं स्वर तो आदिसृष्टि का आधार है परमात्मा जब विकारी होता है तो उसके मुख से भी स्वर निकलता है ऋषियों ने व्यञ्जन बनाए कवर्ग चवर्ग आदि का विस्तृत विज्ञान है ॐ नाम है नामी अर्थात् परमात्मा का अथाधिविद्यम्। आचार्यः पूर्वरूपम्। अन्तेवास्युत्तररूपम्। विद्या सन्धिः। प्रवचनं सन्धानम्।इत्यधिविद्यम्। अथाधिप्रजम्। माता पूर्वरूपम्। पितोत्तररूपम्। प्रजा सन्धिः। प्रजननं सन्धानम्। इत्यधिप्रजम्। थाध्यात्मम्। अधरा हनुः पूर्वरूपम्। उत्तरा हनुरुत्तररूपम्। वाक् सन्धिः। जिह्वा सन्धानम्। से हम लोग देख सकते हैं कि शिक्षा के स्वरूप का कैसा अच्छा वर्णन किया गया है| आचार्य जी ने कामधेनु तन्त्र नामक ग्रन्थ की चर्चा की जिसमें प्रत्येक अक्षर के स्वरूप का वर्णन है इसी में एक छन्द है | वामरेखाभवेद्ब्रह्मा विष्णुर्दक्षिणरेखिका । अधोरेखा भवेद्रुद्रो मात्रा साक्षात् सरस्वती साक्षात् ॥ आपने शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म की आवश्यकता पर बल दिया विद्यालय में छोटे मन्त्र से कौन खुश हो जाता था, दुर्वासा ऋषि क्या खाते थे आदि जानने के लिए सुनें |