प्रस्तुत है विज्ञात आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण आज अपने गांव सरौंहां में स्वास्थ्य शिविर है और यह अत्यन्त आनन्द का अवसर है l इस सेवा के कार्य को करने के लिए बहुत लोगों में अत्यन्त उत्साह है और श्री मुकेश गुप्त जी इस शिविर के प्रतिनिधि हैं| आचार्य विचारमाला के अन्तर्गत श्री राजेश आचार्य जी के साक्षात्कार के बारे में आचार्य जी ने बताया l इसके पश्चात् आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद्में प्रवेश करते हुए बताया आत्मवत् सर्वभूतेषु यो पश्यति स पण्डितः । जो सब प्राणियों को स्वयं की भाँति देखता है वही पंडित है । कहां पर कौन सा व्यवहार करना चाहिए इसके लिए गीता अत्यन्त सरल ग्रन्थ है गीता में तत्त्व है दर्शन है सिद्धान्त है विचार है अपने ग्रन्थों का हमें विचारशील होकर नुशीलन करना चाहिए l यश्छन्दसामृषभो विश्वरूपः। छन्दोभ्योऽध्यमृतात्सं बभूव। स मेन्द्रो मेधया स्पृणोतु। अमृतस्य देव धारणो भूयासम्।शरीरं मे विचर्षणम्। जिह्वा मे मधुमत्तमा।कर्णाभ्यां भूरि विश्रुवम्।ब्रह्मणः कोशोऽसि मेधया पिहितः। श्रुतं मे गोपाय का उदाहरण देते हुए आपने बताया परमात्मा के बगैर मनुष्य कुछ नहीं है वेदान्त कहता है यह प्रकृति और पुरुष का ही सारा पैसारा है हमें दम्भरहित रहने का प्रयास करना चाहिए प्रश्नोत्तर से हमारी जिज्ञासा का शमन होता है इसलिए प्रश्नोत्तर अवश्य करें |