प्रस्तुत है सहोर आचार्य श्री ओम शंकर जी का सङ्गाद तैत्तरीय उपनिषद् मेंआचार्य जी ने आमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ।विमाऽऽयन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा । प्रमाऽऽयन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा । दमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा । शमायन्तु ब्रह्मचारिणः स्वाहा ॥ की व्याख्या की झीनी झीनी बीनी चदरिया ।। काहे का ताना काहे की भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया । इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ।। आठ कमल दल चरखा डोले, पांच तत्व गुण तीनी चदरिया।। साईं को बिनत मास दस लागे , ठोक-ठोक के बीनी चदरिया ।। सो चादर सुर नर मुनि ने ओढ़ी, ओढ़ी के मैली कीन्ही चदरिया।। ध्रुव ओढ़ी प्रहृाद ने ओढ़ी, सुख देव निर्मल कीन्ही चदरिया ।। दास कबीर, जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया।। योगमार्ग का ज्ञाता कबीर अक्षर से शून्य है इसी तरह मीराबाई भी उदाहरण है परमात्मा कीकृपा से योगमार्ग का ज्ञान इनमें प्रविष्ट हुआ l एकात्मता का भाव कर्मशून्य नहीं बनाता कर्मचैतन्य जाग्रत करता है शरीर कर्म करने के लिए बना है जैसे आचार्य जी ने अन्य लोगों के साथ स्वयं भी कल मन्दिर आदि में साफ सफाई की l गुरु गोविन्द सिंह शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म का अप्रतिम उदाहरण हैं l आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लोग कल के कार्यक्रम में सही प्रकार से व्यवस्था करने की योजना बना लें l इसके अतिरिक्त तवे पर कौन बैठ गया सुरबग्घी क्या है डा मधुकर वशिष्ठ का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें |