स्थिरारम्भ आचार्य श्री ओम शंकर जी का कहना है हम कुसंगति से बचें चाहे वह आदतों की हो या व्यक्तियों की हो और यज्ञ हवन पूजन में रत हों संगठन को महत्त्व दें सेवारत हों शक्ति की उपासना करें l प्रस्तुत है इन्हीं सब बातों को लिए सदाचार संप्रेषण जिनके जीवन में अस्तव्यस्तता समाप्त हो जाती है वे प्राज्ञ कहलाते हैं l आज पितृविसर्जनी अमावस्या है और कल से नवरात्र प्रारम्भ हो रहे हैं, जहां शक्ति की उपासना शौर्य की आराधना भक्ति के साथ परिलक्षित होती है l आचार्य जी ने जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमस्मात्परम्। आत्मानात्मविवेचनं
स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थितिः मुक्तिर्नो शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैर्विनालभ्यते॥ २॥ विवेक चूडामणि की व्याख्या की इसी माह अपने सरौहां गांव में होने वाले चिकित्सा शिविर को अत्यन्त उत्साह के साथ करने के लिए आपने आह्वान किया आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा..... (पूर्व अर्थात् भारत )