प्रस्तुत है क्रान्तदर्शिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण उपनिषदों में व्यावहारिक ज्ञान बहुत व्यवस्थित रूप से कहा गया है यदि हम शिक्षा व्यवस्था को औपनिषदिक आधार पर ले चलें तो बहुत अच्छा होगा एक औपनिषदिक ज्ञान है एक औपनिषदिक कर्म है कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार औपनिषदिक कर्म का अर्थ है 'जो शत्रु का नाश करे' और जो अपने चैतन्य को प्रेरित करे वह है औपनिषदिक ज्ञान ज्ञान कर्म उपासना ये तीन तत्त्व मनुष्य के जीवन के साथ संयुक्त हो जाते हैं तो मनुष्य मनुष्य हो जाता है आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥ धर्म का अर्थ है कर्तव्य अर्थात् जो करने योग्य है जब कि धर्म शब्द का अर्थ -संकोच हो गया है | आचार्य जी ने चर्चा और कीर्ति में अन्तर बताया और संक्षेप में यह भी बताया कि ईशावास्योपनिषद् केनोपनिषद् और कठोपनिषद् में क्या है | मनुष्य त्याग, दान, तपस्या, पराक्रम, परिश्रम आदि सब कुछ कर सकता है | मनुष्यत्व जाग्रत करना हमारी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए मातृभाषा देवभाषा के महत्त्व को भी हम लोगों को समझना चाहिए | आचार्य जी ने कल गद्दार दशक लिखा https://t.me/prav353 इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भानुप्रताप जी का नाम क्यों लिया, मां मदालसा ने क्या कहा, दोष -दर्शन का क्या अर्थ है आदि जानने के लिए सुनें |