कभी कभी हम बिना कुछ सोचें समझे मस्ती मजाक में सामने वाले के शरीर को लेकर टिप्पणी कर देते हैं.... उसका क्या असर पड़ सकता हैं... बस ये ही हैं इस छोटे से लेख में...।
इन्हे बचपन से ही बुन्देलखंड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। जब ये 19 साल के किशोर थे तो इन्होंने अपनी पहली रचना ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’(1908) लिख डाली थी। उनके लिखे नाटक ‘सेनापति दल’(1909) में अभिव्यक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुये तत्कालीन अ
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। मानसरोवर (कथा संग्रह) प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहा
उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है जबसे मिले है नयना मयखाने हो गए है उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है दिल की हर एक जगह पर बस नाम है तुम्हारा धड़कन मे तुम बसे हो हर सांस है तुम्हारा तेरे लबों पे मेरे अफसाने हो ग
हम परदेसी हो गए चले थे रोटी की तलाश में कहाँ के थे कहाँ के हो गए हम परदेसी हो गए उलझे इस कदर इस तानेबाने में बेवफा बेमुरव्वत इस जमाने मे मिला किसी हसीन का दामन दामन थाम के सो गए हम परदेसी हो गए चलते चलते इस जिंदगी की शाम हो गई वो बचपन की यादें किसी क
मेरी यह कहानी एक ऐसे पात्र की है जो अपने जीवन में ऐसे आगे बढ़ता है कि वह सोच ही नहीं पाता कि जीवन भी ऐसा होता है। जीवन के हर रास्ते पर हर व्यक्ति को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है , मुश्किलों को पार - पार करते करते वह इतनी दूर चला जाता है कि वह सो
जब इंसान अंदर से टूटता है तो वो अपनी बात समझाने के तरीके ढूँढने लगता है । और जब अंदर भावनाओं का ज्वार उठ रहा हो और सुनने वाला कोई न हो, तो वो खुद के लिए फैसलें लेता है । बेशक वो समाज की मान्यताओं में सही न हो लेकिन वो फिर भी अपने हक़ में फैसलें लेता ह
कम से कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करना प्राचीन भारतीय साहित्य की विशेषता रही है। संस्कृत वाङ्मय में कहा गया है- "अर्द्धमात्रा लाघवेन पुत्रोत्सवं मन्यन्ते वैयाकरणा:।" हाइकु में भी कम से कम शब्दों में अधिकाधिक अभिव्यक्ति की अपेक्षा की जाती है। विविध
कुदरत और हम आज हम सभी जानते हैं की कुदरत के साथ ही हम जुड़े हैं सभी जानते हैं कि पृथ्वी जल वायु आकाश और अग्नि हम सभी इसी पांच तत्वों के मिश्रण से इंसान बना हैं। सच और हकीकत के साथ हम सभी कुदरत और हम का जीवन जीते हैं परंतु हम सभी लोग मंदिर मस्जिद गुरु
आज हम सभी जीवन के साथ अपने मन भाव में संतान सुख की लालसा रखते हैं जो भी हो परंतु पुत्र या बेटे की कामना हमारे मन में एक जागृति रहती है क्योंकि हम बेटी को तो पराया धन मानते हैं। क्योंकि ऐसा पुराणों में और हमारी भी मान्यता है। जीवन के सच में हम सभी भेद
सानिध्या ग्रामीण परिवेश की एक लड़की की कहानी हैं जो विभिन्न चुनोतियों को पार करके अपने सपनो को पाने के लिए एक बड़े शहर में जाती हैं | कहानी में कुछ स्तरों पर स्त्री मनोविज्ञान ( ग्रामीण परिवेश के सन्दर्भ में ) को भी छूने का प्रयास किया गया हैं |
परोपकारी, उद्यमी, कंप्यूटर वैज्ञानिक, इंजीनियर, टीचर—सिर पर ऐसे कई ताज सजाए सुधा मूर्ति इन सबसे कहीं अधिक एक असाधारण कहानीकार हैं। साहित्य के लिए ‘आर.के. नारायण अवार्ड’, ‘पद्मश्री’, कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्टता के लिए कर्नाटक सरकार का ‘अत्तिमब्बे पु
मैं जो कल था मैं आज भी हूं मैं आसमान में टिमटिमाते सितारे जमीन में खिलता गुलाब भी हूं जिन्दगी को तलाशता एक कारवां भी हूं पहचान नहीं है मेरा फिर भी एक अरमान हूं मैं झरने में बहता पानी हूं समन्दर से मिलने का एक सपना हूं जो कभी नहीं बदलता एक हकीकत भ
इस संग्रह की प्रत्येक सत्य कथा में मानव-प्रकृति के सुंदर एवं वीभत्स, दोनों रूपों को अनावृत्त किया गया है। ये कथाएँ सम्मानपूर्वक जिए गए जीवन को प्रतिबिंबित करती हैं। कई बार ये दिल को छू लेनेवाले किसी साधारण साहसिक कार्य का वर्णन करती हैं। अनेक कहानियो