प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। मानसरोवर (कथा संग्रह) प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहा
उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है जबसे मिले है नयना मयखाने हो गए है उलफत मे हम तुम्हारे दीवाने हो गए है दिल की हर एक जगह पर बस नाम है तुम्हारा धड़कन मे तुम बसे हो हर सांस है तुम्हारा तेरे लबों पे मेरे अफसाने हो ग
एक सोच एक पहल है मेरी समाज की नया दिशा देना है चाहे हमे अलग रहना पडे गलत संग या समाच की सोच बदलना है कभी कभी हम राह बताया जाता है वो सही या गलत है ,ये तो जाना नही जब लेकिन समय समतुल होगा पर्दे में रहे सारी सचाई या बुराई दर्पण की तरह दिखा जाता ह
सामाजिक जीवन में तमाम अनुभूतियों को व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं। कुछ अनुभूतियां कविता के रूप में स्फुटित होकर हमारे आपके बीच बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही कुछ अनुभूतियों को आप सब के बीच रखने का एक छोटा सा प्रयास है।
मिलती नजरों का मुस्कुराना झुकती नजरों का शरमाना😊 संग संग हर लम्हा खिलखिलाना वक्त बेवक्त एक दूजे में डूब जाना
किसी व्यक्ति की की हुई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती है उसकी मेहनत का फलों सेउसको अवश्य मिलता है
हम परदेसी हो गए चले थे रोटी की तलाश में कहाँ के थे कहाँ के हो गए हम परदेसी हो गए उलझे इस कदर इस तानेबाने में बेवफा बेमुरव्वत इस जमाने मे मिला किसी हसीन का दामन दामन थाम के सो गए हम परदेसी हो गए चलते चलते इस जिंदगी की शाम हो गई वो बचपन की यादें किसी क
"धड़कन"यह मेरी बारहवीं आनलाइन प्रकाशित पुस्तक है।इसके पहले योर कोट्स पर शब्द कलश,तथा 'शब्दइन' पर नौ आनलाइन कविता संग्रह प्रकाशित है।'शब्दइन' पर ही एक लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित हो रहा है। आज 21फरवरी2024के दिन इस संग्रह की शुरुआत हो रही है।यह दिन भी म
इस किताब में सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं को दर्शाया गया है।मानव विकास तो कर रहा है,मगर रिश्तों की अहमियत को भूल रहा है।
मेरे किताब का "नाम ख़ुद की तराश" है। खुद की तराश किताब में मैंने कुछ कविताएं लिखी हुई है। मैं यह नहीं कहती कि मैं बहुत अच्छी कावित्री हु। मैंने अभी कविताएं लिखना शुरू किया है। और मैं कविता लिखना सीख रही हुं। और यह कविताए मेरी छोटी सी पहल है। मैंने अप
परोपकारी, उद्यमी, कंप्यूटर वैज्ञानिक, इंजीनियर, टीचर—सिर पर ऐसे कई ताज सजाए सुधा मूर्ति इन सबसे कहीं अधिक एक असाधारण कहानीकार हैं। साहित्य के लिए ‘आर.के. नारायण अवार्ड’, ‘पद्मश्री’, कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्टता के लिए कर्नाटक सरकार का ‘अत्तिमब्बे पु
मैं जो कल था मैं आज भी हूं मैं आसमान में टिमटिमाते सितारे जमीन में खिलता गुलाब भी हूं जिन्दगी को तलाशता एक कारवां भी हूं पहचान नहीं है मेरा फिर भी एक अरमान हूं मैं झरने में बहता पानी हूं समन्दर से मिलने का एक सपना हूं जो कभी नहीं बदलता एक हकीकत भ
इस संग्रह की प्रत्येक सत्य कथा में मानव-प्रकृति के सुंदर एवं वीभत्स, दोनों रूपों को अनावृत्त किया गया है। ये कथाएँ सम्मानपूर्वक जिए गए जीवन को प्रतिबिंबित करती हैं। कई बार ये दिल को छू लेनेवाले किसी साधारण साहसिक कार्य का वर्णन करती हैं। अनेक कहानियो
Mahilayen Bulandi Ki Aur Read more