कुदरत क्यों रुठी।
अनेकानेक जिन्दगियां छूटी।।
इंसान बन बैठा है मसीहा।
कुदरत के सब्र का बांध है टूटा।।
यह कोई नहीं समझ पाया कि
कुदरत से आज तक कौन है जीता।।
धरती पुत्रों को गुरुर है कि अहम ब्रह्मासि।
इसलिए तुम्हारा रुठना वाजिब है।।
चलो अब बहुत हो गया रुठना आपका
आपके कहर से बहुतों ने दम तोड़ा।।
कुदरत अब आप मान जाओ।
महामारी से हमें छुटकारा दिलाओ।
हम सब है तो तुम्हारी संतान मां।
तुम्हारे अंक में रह हम जीवन के
महत्व को समझते हुए अब भूल
नहीं करेंगे मां।।