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सीख

2 दिसम्बर 2021

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कुदरत क्यों रुठी।
अनेकानेक जिन्दगियां छूटी।।
इंसान बन बैठा है मसीहा।
कुदरत के सब्र का बांध है टूटा।।
यह कोई नहीं समझ पाया कि
कुदरत से आज तक कौन है जीता।।
धरती पुत्रों को गुरुर है कि अहम ब्रह्मासि।
इसलिए तुम्हारा रुठना वाजिब है।।
चलो अब बहुत हो गया रुठना आपका
आपके कहर से बहुतों ने दम तोड़ा।।
कुदरत अब आप मान जाओ।
महामारी से हमें छुटकारा दिलाओ।
हम सब है तो तुम्हारी संतान मां।
तुम्हारे अंक में रह हम जीवन के
महत्व को समझते हुए अब भूल
नहीं करेंगे मां।।



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रचनाएँ
समाज
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समाज में जागरूकता दिखावे में है जबकि बहुत सी चीजें जनता जानती ही नहीं है इसलिए समाज को आईना दिखाने की आवश्यकता है।।
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शबनम

30 नवम्बर 2021
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मेरे बाबाजी

1 दिसम्बर 2021
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स्त्री

2 दिसम्बर 2021
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2 दिसम्बर 2021
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2 दिसम्बर 2021
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सुबह भी होगी

2 दिसम्बर 2021
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<div>जिन्दगी की सुबह हुई है आज तो</div><div>कल शाम भी होगी ही।।</div><div>अंधेरा गम का गर है आज</div

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आवरण

2 दिसम्बर 2021
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<div>कब तक झूठा आवरण</div><div>तुम्हारी देखभाल करेगा मेरे दोस्त।</div><div>एक दिन ऐसा आएगा</div><div

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