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सोसाइटी

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मनुष्य के जीवन में मनुष्य के अलावा जानवर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दुनिया में मनुष्य की नीयत चाहे बदल जाये लेकिन जानवर अपनी नीयत कभी भी नहीं बदलते हैं । वे अपने मालिक प्रति पूरी इमानदारी और

बचपन से बहुत चंचल और हंस मुख चेहरा लिए हुए घर के आंगन में खेलता हुआ सुनील बहुत ही प्यारा लगता था। उसके मुख की हंसी खिलते हुए चांद की तरह दिल को तार-तार कर देता था। उसके बचपन की यादें हर किसी के मन को

रमेश के केस करने के बाद उच्च जाति के सभी लोगों में भय व्याप्त हो गया। इस केस में जिन लोगों के नाम लिखाये गये थे। उनके मन में डर बैठ गया था। इसलिए उन लोगों ने गांव छोड़ दिया था। उच्च जाति के लोगों का

मैं भी एक लड़की हूँ  दिखने में कमज़ोर लगती हूँ।आजादी है मुझे भी भरपूर पर संस्कारों को साथ लेकर चलती हूँ।।                    हाँ मैं भी एक लड़की हूँ

वो अल्फाज ही होते हैं ना! जो कभी जख्म देते हैं और कभी मरहम का काम करते हैं। कभी खंजर से भी पैने होते हैं और कभी मखमल से भी मुलायम। अल्फाज तो वही हैं। कुछ बदलता है तो बस बोलने का तरीका और बोलने वा

नफ़रत की आड़ में कितने रिश्तों को आग लगाए बैठे हैं।हकीकत है आज की इंसान इंसान को जलाये बैठे हैं।।🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸कैसी ये भूख है लालसा की अपने अस्तित्व को मिटाये बैठे हैं।माँ बाप को घर

भारतीय संस्कृति में वेदों के आधार पर मनुष्य को चार वर्णों में बांटा गया है। प्रथम ब्राह्मण,वैश्य, क्षत्रिय और शुद्र इस वर्ण व्यवस्था का वर्गीकरण मनुष्य ने उनके काम के आधार पर किया है। ब्राह्मण:- वेदो

चारों तरफ एक ही हवा चल रही थी। लोगों में जोश और उत्साह नजर आ रहा था। सभी लोगों के मुंह से एक ही बात न निकल रही थी इस बार भी राजनीति में कुर्सी पर कब्जा किये हुए लोगों का दबदबा रहेगा। कुछ नहीं होने वाल

पैरों पर फटी धोती के टुकड़े से पट्टी बंधी हुई उसके ऊपर भिनभिनाती हुई मक्खियां तन्नननन-------- की आवाज से परेशान कर रही थी। शरीर पर मैले कपड़े जिनमें से आती हुई पसीने की दुर्गंध। चेहरे पर झुर्रियों के

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अनिल अनूप [ हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली साहित्य के शिखर-पुरुष हैं, उन्हें हास्य-व्यंग्य सम्राट कहा जाता है़ मैथिली के आरंभिक कहानीकारों में वे शीर्षस्थ रहे हैं. वैसे तो उनकी ज़्यादातर कहानियों में व

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