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सोसाइटी

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रिश्ते नाते दोस्ती यारी जग जनता दरबार जिससे जब जब जो मिला उन सबका आभार माफ करे वो मुझे जिनका कुछ बचा हो शेष सात दिन का मेहमान हूँ और कह दो यदि कुछ बात विशेष हूँ राख का ढेर सही पर जिन्दा हैं ज

पल भर में मिट जाये हस्ती फिर कैसा अभिमान जान बूझकर करता गलती और बने अनजान कर्म फल की न चिंता करता कैसे कैसे करे जतन तिल तिल कर जोड़े धन को साथ न जाये कफन शान ए शौकत रिश्ते नाते भला किसको दिखाए जि

राम राम दशरत भजे रही न राम की आस पुत्र मोह में पिता तरसे कौन बुझाये प्यास मृत्यु ऐसी बाबरी जिसकी ना ढीली पाश तपोवन की अग्नि है वह पेड़ बसे न घास  घायल हृदय को कौन समझाए मौन खड़ी यह भीड़ ब

बच्चों के सपने टूटे, पिता की छुटी आस, ममता प्रकृति को देती दुहाई, लौटा दे बेटे को काश, झुठलाती मौत का हरपल, कैसे माने किसी का कहना कौन पूछेगा माँ का हाल, कौन मनाये तेरी बहना, अक्सर पुकार कानों में

जीते जी जिन्हें अबतक सुहाया , उसकी मृत्यु पर सुनाये , देखो शोक संदेश निस्वार्थ सेवा और क्या क्या कहे , कैसे झूठे दे उपदेश स्वार्य में घिरा ये संसार यहाँ किसी का न कोई ठौर  सबकी अपनी - अपनी

शहीद बना उसे लोग लगा रहे थे नारे कोई गिनाये शाहदते उसकी तो किसी के नजर आये गर्दीश में सितारे शहीद कैसा ,कौन क्या अर्थ है, मैं ए सोचूँ विवश हूँ जानकर भी क्यो भला मैं खुद को रोकूँ  माफ करना ए द

मनुष्य के द्वारा अपना पहला कदम रखने से पहले संसार का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है और मनुष्य संसार की चीजों से पूरी तरह अनभिज्ञ रहता है। वह अच्छा-बुरा,सही-गलत या संसार के किसी भी रिश्ते के विषय में अ

तेरी हसरतें और जोश ए जुनून कहानी किस्से ना बन जाए कहीं तुझे आदर्श बना किताबों में न पढ़ाया जाए डर है मुझे अपनी गलतियां छुपाने को वो भी यही तरीका अपनाएंगे और तुझे वफादार की श्रेणी में ला उन कागजों क

रोज की तरह आज भी दोपहर  एक बजे ऑफिस में लंच टाइम हो चुका था पर श्रवण अपने केबिन मे हाथ में कोरा कागज और पेन पकड़े न जाने किस उधेड़बुन में था तभी उसके दिल से आवाज आई, “ ये कैसी जिंदगी है, सब

स्वार्थ सिद्धि में बने यह रिश्ते क्या पत्नी बेटा और बाप लालच कुंडली मारकर बैठा  जैसे पिंडरी में साँप  जन्म लेते ही दे  विदाई मृत्यु पर महंगाई का रोना भला मरे से क्या मिले जो उसके

मैं सुनता हूं ऐसा कि तेरी मुक्ति के लिए ईश्वर स्वयं तुझे सुनाएं गरुड़ पुराण...... देख जाग जमीन पर हो रहे हैं रिश्ते तार-तार निकाल रहे हैं मेरी जान......... तू आजाद होकर बेफिक्र उड़ता होगा आसमानों

किस्सा है सुरीली दादी का, दिव्या की प्यारी दादी का, दिव्या सालों से दादी से दूर है, दादी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है, दिव्या ने माता पिता को टोका था, दादी को वृद्धाश्रम जाने से रोका था, पापा ने आ

           हिन्दू आस्था पर बार बार चोट क्यों पड़ती है। अभी काली जी की तस्वीर को लीना ने मीडिया में वाइरल किया और सिर्फ अपनी डॉक्यूमेंटरी की पब्लिसिटी के लिए। सिगरेट पीते

अस्थि विसर्जन को चुनने चले थे साथी चार शमशान तक भला जाए कैसे किसको दे दायित्व सभी करें विचार बटवारा हमारा हक था कि काम करेगा अब जवाई उसे भी तो मिला मकान क्या हमने ही ली सारी कमाई वाह रे दुनिया

Name Abhishek jain Insta @ajain_words रेतीला अरमान अरमानों की तर्ज पर  एक घर हमनें भी बनाया है  पसीनों की बूंद को, रेत में मिला एक रेतीला ख्वाब सजाया है  विशाल समंदर किनारे ढलती शाम

👉यह कहानी काल्पनिक है,, , इससे किसी का कोई लेना देना नहीं है।👈 अंकल..........पापा की सर्विस सीट में किस किस का नाम होगा, यह सुन कर मैं हैरान सा रह गया..... क्योंकि ये सवाल बड़ा अजीब सा था, उस जगह....

जी करे कभी ख़त बन जाऊँ मन के गर्भ की बात बताँऊ, औरों को तो बहुत बताया, आज खुद को खुद की बात सुनाऊँ, मोह की सुई बाधुंँ प्रेम की डोर से, शब्द शब्द के मोती पीरोंऊँ, गुथूं सपनो की एक माला, और उ

एक छोटा-सा उपहार बहुत बड़े वचन से बढ़कर होता है। बैल सींग तो आदमी को उसकी जबान से पकड़ा जाता है।। मेढ़कों के टर्र-टर्राने से गाय पानी पीना नहीं छोड़ती है। कुत्ते भौंकते रहते हैं पर हवा जो चाहे उड

कीचड़ फंसा आदमी दूसरे को भी उसी में खींचता है। समझदार शांति को बाहर नहीं अपने अंदर ढूंढता है।। कान के रास्ते किसी के दिल तक पहुँच सकते हैं। जिन्‍हें लाज नहीं आती वही आधा राज करते हैं।। बारह वर्

दंड भोगना नहीं अपराध करना शर्म की बात होती है। जीभ में हड्डी नहीं फिर भी वह हड्डियाँ तुड़वा देती है।। लाभ की चाहत में बुद्धिमान भी मूर्ख बन जाते हैं। उधार के कपड़े तन पर कभी सही नहीं आते हैं।। द

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