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श्रृंगार

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कहा तुम चले गए कहा तुम चले गए,जाने कहा तुम चले गएजिंदगी का ये बोझ देकर हमें,अपने सरे गम देकर हमेंजाने कहा तुम चले गए,हम तो खुद ही मर चुके थेतुमने न जाने ये कैसा बोझ दिया,न जाने मै उठा पाउँगान जान

कोशिश    कोशिशे इंसान को बढ़ना सिखाती हैस्वप्ना के परदे निगाहों से हटाती हैहौसला मत हर गिर ओ मुसाफिरठोकरें इंसान को चलना सिखाती हैसाधना में दिन तपे है रात दिनकोशिशे ही लक्ष्य को नजदीक ला

बन्दे मातरमकरना था जिन्हे बन्दे मातरमवही अब पिए जा रहे हैनेताओं के घर बात रही है मिठाइयांजनता जनार्दन पिस्ते जा रहे है ॥करना था जिन्हे बन्दे मातरमयुवा भी अब तो पिए जा रहे हैबड़े ऊपर जा रहे हैछोटे पिस्त

इस खत के जरिये तुम्हें एक फरमान कहते है हाँ हम प्यार इश्क़ को बेईमान कहते है यु तो कोई हमारी जान न ले सका और जो जान ले गया उसी को हम जान कहते है जिंदगी अपनी खुली किताब कर दी थी खता ये हुई कि मुहब्बत

 हर किसी को पीछे से देखा तो लगा कि वह तुम ही होजब वो मेरे सामने आए तो देखा को वह तुम ही नही हो।।तुम कही से आवाज दोगे हमकोतुम कही से दिखाई दोगे हमकोहम हर किसी मे ढूंढते रहे तुमकोलेकिन तु

 हर किसी को पीछे से देखा तो लगा कि वह तुम ही होजब वो मेरे सामने आए तो देखा को वह तुम ही नही हो।।तुम कही से आवाज दोगे हमकोतुम कही से दिखाई दोगे हमकोहम हर किसी मे ढूंढते रहे तुमकोलेकिन तु

 हर किसी को पीछे से देखा तो लगा कि वह तुम ही होजब वो मेरे सामने आए तो देखा को वह तुम ही नही हो।।तुम कही से आवाज दोगे हमकोतुम कही से दिखाई दोगे हमकोहम हर किसी मे ढूंढते रहे तुमकोलेकिन तु

ऐ ! धड़कनें , खामोश हो जा,        वो नहीं, अब आने वाले ।वो विचरने हैं, लगे अब, चांद और तारों में जाके ।       क्यूं ,मुझे गाफिल कर,अब, इस जहां में, भटका गय

जैसे ही डॉक्टर तरू ने डॉक्टर आनंद को कहा कि उसके दिमाग में कोई और औरत थी तो आनंद को एक शॉक सा  लगता है , लेकिन वह तुरंत कहता है । "गजब । तुमने सही कहा , तरू । तुम औरतों में इतना सेन्स , इतना दिमा

खोल पंख अपने उड़ती आकाश में होचली उड़ती चली कह सी चली होकुछ चुलबुली सी कुछ मनचली सी ऐसी तितली चली हो ।रंग बिरंगे पंख पसारे ले चली वो हवा के सहारेऐसी लहराती बलखातीकभी गिरी कभी संभलती चली

जीवन में रंग भी भरे कुछ अजनबी से कुछ अनदेखे सेहोती कहा पहचान छू जाने सेजब रूह ही रूह को जानती हो सफर आसान न था हर कदमनया तूफान से भरा थाना कोई कस्ती न कोई साहिल ही खड़ा था फिर किसन

खुशियों की बौछार,आनंद की फुहार लाती है ये बारिश;इंसान हो या पशु पक्षी, सभी में उत्साह का संचार करती ;पेड़ पौधों की मुस्कराहट,पर्वतों के झरने आबाद करती;पर्वतों पर फैली हरितिमा ,सब कुछ लाती है ये बारिश।चातक की लंबे समय से सूखे ,कंठ की प्यास बुझाती;मोर के नृत्य और कोयल क

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