एक स्त्री की कहानी... जो बेटी, बहन, पत्नी, मां होने के साथ समाज के हर नियमों में बंध कर चलने को तैयार है फिर भी उसके पथ में अनेकों काटे हैं। ऐसा क्यों...?
कविता.... व्यंग्य आदमी तो कुता होता है यह कभी सुधर नहीं सकता धोखा तो फितरत में है, मासूम लड़कियों की भावनाओ से खेलता है उनका फायदा उठाता है, दहेज के लिए पत्नी से मारपीट करता है औरत को अपने पैर की जूती समझता है दुष्ट, नीच, हरामी पापी.... बस बस बस... ह
नारी शक्ति स्वरूपा नमन कीजिए। अपने भावों को थोड़ा मनन कीजिए।। नारी अबला बेचारी अब नहीं रह गई। इनको उड़ने के खातिर चमन दीजिए।। सम्मान होता रहा जिनका वैदिक काल से। बाद आई विसंगतियों का शमन कीजिए।।
प्रेम, जुदाई, बदला , परोपकार, एवं शिक्षाप्रद कहानियां हैं इस पुस्तक में, एक बार अवश्य अवलोकन करें 🙏
आजकल की जिंदगी से जुड़ी हर एक टीनएजर की कहानी जो अनजाने ही अपने और अपनों के बीच एक दीवार बना लेती है। लड़कियों से जुड़ी भावनाएँ, कच्ची उम्र की शैतानियाँ जिनसे उनके परिवार आज तक अछूते हैं। यह कहानी है उनके बीच की बढ़ती दूरियों की जो समाज बढ़ाकर इतनी बड़ी कर
‘राजधानी’ जिसके नाम में ही ‘राज़’ चिपका है, उसका रहस्यमयी होना लाज़िमी है। ऊपर से देश की राजधानी दिल्ली जिसके सीने में धौंकते हैं असंख्य दिल धकधक-धकधक। इन्हीं में एक दिल है ‘मेघना’। रोज़ी-रोटी की जुगत में उसके पिता को ठौर दिया दिल्ली ने। घुटने तक झालरद
आपका बंटी मन्नू भंडारी के उन बेजोड़ उपन्यासों में है जिनके बिना न बीसवीं शताब्दी के हिन्दी उपन्यास की बात की जा सकती है न स्त्री-विमर्श को सही धरातल पर समझा जा सकता है। तीस वर्ष पहले (1970 में) लिखा गया यह उपन्यास हिन्दी की लोकप्रिय पुस्तकों की पहली प
एक गरीब लड़की का राजा से विवाह होना और उसकी जिंदगी में बदलाव आना
मैं विचलित , मेरा मन विचलित, कैसे संभालू खुद को, मेरी जिंदगी एक सुनसान सड़क जहां किसी का आना ,जाना वर्जित!
नमस्ते दोस्तों 🙏🙏 ऊपर वाले ने सबकी किस्मत में हम सफर का साथ नहीं लिखा कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिसमें हाथों में हाथ नहीं होते हर कदम पर हम सफर का साथ नहीं होते बिछड़ जाते हैं अधूरे सफर पर साथ छूट जाता है राही बिछड़ कर भी जीना नहीं छोड़ता क्य
हिन्दी के कहानी लेखकों में मन्नू भंडारी का अग्रणी स्थान है। उनकी कहानियों में नारी-जीवन के उन अन्तरंग अनुभवों को विशेष रूप से अभिव्यक्ति दी गई है जो उनके नितांत अपने हैं और पुरुष कहानीकारों की रचनाओं में प्रायः नहीं मिलते। वैसे मन्नू भंडारी ने अपने अ
कथा-साहित्य में अक्सर ही नारी का चित्रण पुरुष की आकांक्षाओं (दमित आकांक्षाओं) से प्रेरित होकर किया गया है। लेखकों ने या तो नारी की मूर्ति को अपनी कुंठाओं के अनुसार तोड़-मरोड़ दिया है, या अपनी कल्पना में अंकित एक स्वप्नमयी नारी को चित्रित किया है। लेकि
खुद की खुद से पहचान करवाने के लिए एक छोटी सी पहल..।
बिना दीवारों के घर का जो घर है उसकी दीवारें हैं, लेकिन लगभग ‘न-हुईं’ सी ही। एक स्त्री के ‘अपने’ व्यक्तित्व की आँच वे नहीं सँभाल पातीं, और पुरुष, जिसको परम्परा ने घर का रक्षक, घर का स्थपति नियुक्त किया है, वह उन पिघलती दीवारों के सामने पूरी तरह असहाय
क्या आप जानते थे कि असुरों को पराजित करने के लिए त्रिदेव सदैव देवियों की सहायता लेते थे? क्या आप जानते थे कि इस संसार का पहला क्लोन एक स्त्री ने बनाया था? भारतीय पौराणिक कथाओं में स्त्रियों की संख्या भले ही बहुत कम होगी, लेकिन प्राचीन ग्रंथों औ
दो बहनों के बीच भेदभाव की एक कहानी...।
नमस्ते दोस्तों 🙏🙏 अंदाज -ए - जिंदगी बदल गई रंगों की अहमियत बदल गई ! हुआ करती थी रंग बिरंगी दरवाजे जो रिश्तो में हजारो रंग भर जाती थी ! अब शीशे के दिलों की तरह दरवाजे भी शीशे के हो गए ! एक ठोकर क्या लगी रिश्ते - दरवाजे दोनों टूट गए ! शीशे के
हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित उपन्यास ‘गोली’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। इस उपन्यास में शास्त्री जी ने राजस्थान के राजा-महाराजाओं और उनके महलों के अंदरूनी जीवन को बड़े ही रोचक, मार्मिक तथा मनोरंजन के साथ