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उस आदमी की कहानी जिसके चारों अँगूठे कटे थे

29 जनवरी 2022

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उस ने कहा कि दोस्तो, मेरा पिता बगदाद का रहनेवाला था और खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में था। मैं भी उसी समय पैदा हुआ। मेरा पिता यद्यपि धनवान तथा बड़े व्यापारियों में गिना जाता था तथापि वह बहुत ही विलासी और व्यसनी था। इसीलिए व्यापार की ठीक तरह देख-भाल नहीं कर पाता था और उसमें काफी गड़बड़ होती थी। जब वह मरा तो मुझे मालूम हुआ कि न जाने कितने लोगों से उस ने ॠण ले रखा था। मुझे कठिनाई तो बहुत हुई किंतु मैं ने परिश्रम से व्यापार बढ़ाया और धीरे-धीरे सारे ॠणदाताओं का रुपया वापस कर दिया।

अब मैं इत्मीनान से अपनी कपड़े की दुकान पर बैठ कर व्यापार किया करता था। एक दिन मैं दुकान पर बैठा था कि एक सुंदरी, जो खच्चर पर सवार थी और जिसके आगे एक नौकर और पीछे दो नौकरानियाँ चल रही थीं, मेरी दुकान के पास आई। उस के नौकर ने उसे हाथ पकड़ कर खच्चर से उतारा और कहा, 'मालकिन, आप बेकार ही इतने सवेरे बाजार में आ गईं। अभी तो कोई दुकान ही नहीं खुली है, आप कहाँ तक प्रतीक्षा करेंगी।' उस ने कहा, 'तुम ठीक कहते हो, केवल एक ही दुकान खुली है। चलो उसी में चलें।'

अतएव वह मेरी दुकान पर आ कर बैठ गई। उस ने देखा कि मेरे और नौकर के अलावा कोई नहीं है तो साफ हवा लेने के लिए नकाब थोड़ा-सा उठाया। मैं ने ऐसा रूप कभी नहीं देखा था। मैं ठगा-सा टकटकी लगा कर उसे बराबर देखता रहा। उस ने मेरी उत्कंठा देख कर पूरा नकाब उलट दिया और मैं जी भर कर उस के सौंदर्य का रसास्वादन करने लगा। कुछ ही देर में अन्य व्यापारी और ग्राहक आ गए और बाजार में भीड़ बढ़ गई तो उस ने नकाब फिर चेहरे पर डाल दिया।

उस ने मुझ से कहा, 'मैं जरी के कपड़े खरीदना चाहती हूँ। आपके पास ऐसे थान हों तो दिखाइए।' मैं ने कहा, 'मैं तो सादा थान बेचता हूँ लेकिन आप कहें तो अन्य दुकानदारों के यहाँ से खुद आपके लिए अच्छे-अच्छे थान ला दूँ, इस से आपका दुकान- दुकान जा कर कपड़े देखने और खरीदने का कष्ट बच जाएगा।' वह इस बात से बहुत प्रसन्न हुई और देर तक मुझ से इधर-उधर की बातें करती रही।

कुछ देर बाद मैं कई दुकानों में गया और बहुत-से जरी के थान मैं ने उस स्त्री के आगे ला कर रख दिए। उस ने उसमें कुछ थान पसंद किए। उनका मूल्य 24,750 मुद्राएँ था। उस ने यह दाम मंजूर कर लिया और मैं ने थान उस के सेवक को दे दिए। उस स्त्री ने विदा ली। मैं उस के सौंदर्य के मोह में इतना किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था कि उस से थानों का मूल्य माँगा ही नहीं और उस ने भी नहीं दिया। मैं ने उस से यह भी नहीं पूछा कि तुम रहती कहाँ हो।

मुझे फिक्र हुई कि उस से रुपया न मिला तो मैं यह पौने पच्चीस हजार कहाँ से भरूँगा। दुकानदारों को दिलासा दे दिया कि मैं उस स्त्री को जानता हूँ और दाम मिल जाएँगे। लेकिन रात भर चिंता में मुझे नींद न आई। दूसरे दिन मैं ने व्यापारियों से एक हफ्ते में अदायगी करने का वादा किया और उन्होंने इसे मंजूर कर लिया। एक हफ्ते तक भी उस स्त्री का पता नहीं लगा।

आठवें दिन वह सुंदरी उसी खच्चर पर उन्हीं सेवकों के साथ मेरी दुकान पर आई और बोली, 'तुम रुपए लेने क्यों नहीं आए। अब मुझे खुद इन्हें ले कर आना पड़ा। अब मैं सारा पैसा ले आई हूँ। सर्राफ से परखवा लो कि सिक्के ठीक हैं या नहीं।' मैं ने सर्राफ को दिखाया तो सब सिक्के खरे निकले। वह सुंदरी देर तक मुझ से बातें करती रही और बातचीत से मालूम हुआ कि वह बहुत बुद्धिमती है। मैं ने वस्त्र व्यापारियों को बुला कर उनका रुपया दे दिया। वे सब बड़े प्रसन्न हुए और मेरे व्यवहार से बाजार में मेरी साख बढ़ गई।

उस सुंदरी ने कई और थान माँगे और मैं ने व्यापारियों से ला कर उसे दे दिए लेकिन फिर भी न उस का नाम पूछा न निवास स्थान। उस के जाने के बाद फिर सोचने लगा कि एक बार तो वह रुपए दे गई, अब अगर न दिए तो मैं बरबाद हो जाऊँगा। फिर सोचता कि यह असंभव है कि वह धोखा करे, वह तो मेरे शील की परीक्षा ले रही है। उसे मेरे हानि-लाभ और प्रतिष्ठा का खयाल जरूर होगा। वह तो जानती ही है कि मेरी साख पर ही व्यापारियों ने कपड़े के थान दिए हैं। कभी मुझे अपनी संभावित हानि का ध्यान आता और कभी उस के सौंदर्य का ध्यान करके सारा दुख भूल जाता।

इस बार उस ने बहुत दिनों तक रुपए न पहुँचाए और बजाज लोग बेसब्र हो कर मुझ से रुपयों का तकाजा करने लगे। मैं अपनी आमदनी में से थोड़ा-थोड़ा उन्हें भिजवा कर उनकी तसल्ली कर देता था। एक महीने बाद वह फिर अपने सेवकों के साथ आई और उस ने पिछली बार के खरीदे कपड़ों का मूल्य दे दिया। फिर उस ने मुझ से पूछा कि तुम्हारा विवाह हो चुका है या नहीं। मैं ने कहा, अभी तक नहीं हुआ। उस ने अपने नौकर को इशारा किया और वह मुस्कुराता हुआ उठा और मुझे एक तरफ ले जा कर बोला, 'तुम क्या समझते हो कि मालकिन तुम से कपड़े खरीदने के लिए आती हैं। मैं जानता हूँ कि तुम उन पर आसक्त हो लेकिन तुम ने सभी से यह बात छुपाई है। अब यह जान लो कि वह भी तुम से प्रेम करती है इसीलिए तुम्हारे विवाह के बारे में पूछा। तुम इतने बुद्धू निकले कि उस का इशारा भी नहीं समझे।' मैं ने कहा, 'भाई, मैं ने तो जब पहली ही बार तुम्हारी मालकिन को देखा तो उस पर मर मिटा। किंतु मुझे यह आशा नहीं थी कि वह भी मुझ से प्रेम करेंगी। अब तुम इस मामले में अगर मेरी सहायता करोगे तो मैं आजीवन तुम्हारा अहसान नहीं भूलूँगा।'

वह मेरे पास से उठ कर अपनी मालकिन के पास पहुँचा और उसे मेरी बात बताई। वह सुंदरी अपनी सेविकाओं को कुछ इशारा कर के उठ खड़ी हुई और फिर मुझ से बोली, 'मैं अपने नौकर को तुम्हारे पास भेजूँगी, वह जैसा कहे वैसा करना।' यह कह कर वह चली गई। मैं कई दिन तक नौकर की बाट देखता रहा। जब वह आया तो मैं ने उस से उस सुंदरी की कुशलक्षेम पूछी। उस ने कहा कि तुम बड़े भाग्यवान आदमी हो, वह तुम पर अत्यधिक मोहित हैं, उनका बस चलता तो अभी तुम्हारे पास पहुँच जातीं।

मैं ने कहा, वह बहुत शीलवती जान पड़ती हैं कि इतने संयम से काम लेती हैं। उस ने कहा, 'तुम्हें इसलिए उनके शील पर आश्चर्य हो रहा है कि उन्हें जानते नहीं हो। वह खलीफा हारूँ रशीद की पत्नी जुबैदा की सहेली हैं। बीबी उन्हें बहुत प्यार करती हैं, उन्होंने उनके बचपन ही से उन्हें पाला-पोसा है। वह जनानखाने की सारी व्यवस्था करती हैं। जुबैदा कई बार उन से विवाह करने को कह चुकी हैं। अब उस ने कहा कि एक व्यापारी है, आप अनुमति दें तो उस से विवाह कर लूँ। बीबी ने कहा, अच्छी बात है लेकिन उस व्यापारी को एक बार देखने के बाद ही मैं शादी के लिए अनुमति दूँगी। इसीलिए मैं तुम्हें लेने आया हूँ।'

मैं ने कहा, मैं तैयार हूँ, जब भी चाहो मुझे ले चलो। उस ने कहा, 'ठीक है। लेकिन तुम जानते हो कि खलीफा के महल में कोई बाहरी आदमी नहीं जा सकता। मैं तुम्हें और किसी तरकीब से ही ले जाऊँगा। तुम आज शाम को नदी के किनारे बनी फलाँ मस्जिद में मेरी राह देखना।' मैं ने बड़ी प्रसन्नता से उस की बात स्वीकार की।

शाम को मैं उस मस्जिद में जा कर बैठ गया। थोड़ी ही देर में एक डोंगी आ कर किनारे से लगी। उसमें कई संदूक रखे थे। मल्लाहों ने डोंगी किनारे से बाँधी और एक काफी लंबा संदूक ला कर मस्जिद में रख दिया और नाव पर चले गए। नाव पर आया हुआ एक नौकर वहीं रह गया। कुछ देर में वह सुंदरी वहाँ आई। मैं ने कहा, 'मेरे लिए क्या हुक्म है।' वह बोली, ' बाद में बातें होंगी, इस समय बात करने की फुरसत नहीं है। तुम सिर्फ इस लंबे संदूक में जा कर लेटे रहो।' मैं संदूक में लेट रहा तो उस ने संदूक में ताला लगा दिया और सेवक से कहा कि इसे नाव पर पहुँचा दो। नौकर ने मल्लाहों को पुकारा और वह संदूक, जिसमें मैं था, नाव पर पहुँचा दिया। वह सुंदरी भी नाव पर बैठ गई।

मैं संदूक के अंदर पड़ा-पड़ा अपने भाग्य को कोसने लगा कि अच्छी-खासी जिंदगी छोड़ कर किस मुसीबत में फँस गया। नाव खलीफा के महल के मुख्य द्वार के समीप जा लगी। सारे संदूक द्वार पर पहुँचा दिए गए। द्वारपालों के पास सारी चाबियाँ थीं और देखे-भाले बगैर कोई चीज अंदर नहीं जा सकती थी। प्रधान द्वारपाल उस समय सो रहा था। उसे जगाया गया तो वह बहुत झुँझलाया और कहने लगा कि मैं संदूकों की एक-एक चीज देखूँगा। सुंदरी ने चुपचाप अपने नौकरों से कहा कि सारे संदूक द्वारपाल को दिखाए बगैर अंदर ले जाओ, ऐसा न हो कि वह संदूकों को खोल कर देखे और भेद खुल जाए। किंतु द्वारपालों ने ऐसा नहीं होने दिया। वे सारे संदूक प्रधान द्वारपाल के पास ले गए। सबसे पहले वही संदूक रखा जिसमें मैं था। सुंदरी की प्रधान द्वारपाल से बहस होने लगी। मैं इस बहस को सुन कर अंदर ही अंदर सूखा जाता था। यह तो स्पष्ट ही था कि अगर मुझे संदूक में पाया गया तो खलीफा मुझे अवश्य मृत्युदंड देंगे।

लेकिन मेरी प्रेमिका ने प्रधान द्वारपाल को संदूक नहीं खोलने दिया। वह बोली, 'तुम अच्छी तरह जानते हो कि जुबैदा की आज्ञा के बगैर कोई चीज अंदर नहीं ले जाती। इस संदूक में बड़े व्यापारियों से खरीदा हुआ बहुत-सा कीमती और नाजुक सामान रखा है तुम उसे निकालोगे तो वे चीजें टूट-फूट जाएँगी। इस के अतिरिक्त एक पतले काँच के घड़े में मक्के से लाया हुआ जमजम का पवित्र जल है। वह काँच का घड़ा अगर टूट गया या अन्य वस्तुएँ नष्ट हो गईं तो तुम्हें इसकी जवाबदेही करनी पड़ेगी और जुबैदा के हाथों तुम्हें कठोर दंड मिलेगा।'

प्रधान द्वारपाल इस बात से डर गया। वह चुप हो गया। सुंदरी ने गुलामों से सारे संदूक अंदर पहुँचाने के लिए कहा और उन्होंने ऐसा ही किया। किंतु अंदर जा कर भी मेरी मुसीबत खत्म नहीं हुई। संदूकों के खुलने के पहले ही अचानक वहाँ खलीफा आ गया। उस ने बहुत-से संदूक देख कर पूछा कि इन में क्या है, और न जाने उसे क्या सूझी कि हुक्म दिया कि सारे संदूकों का सामान मुझे दिखाया जाए। सुंदरी ने बड़े बहाने बनाए लेकिन खलीफा टस से मस न हुआ। विवशतः उस ने एक एक संदूक खोल कर दिखाना शुरू किया मेरा संदूक इस आशा में आखिर तक डटा रहा और उस ने अंतिम संदूक, जिसमें मैं बंद था, खोल कर दिखाने का आदेश दिया।

मित्रो, आप लोग सोच सकते हैं कि उस समय भय से मेरी क्या दशा हुई होगी। अगर कोई मुझे काटता तो बदन से खून न निकलता। किंतु उस सुंदरी ने बड़ी समझदारी से काम लिया। उस ने हाथ जोड़ कर कहा, 'सरकार, इस संदूक के खुलवाने का आग्रह न करें। इसमें जुबैदा के काम की खास चीजें हैं। जुबैदा की अनुमति के बगैर मैं इसे नहीं खोल सकती।' खलीफा ने हँस कर कहा, अच्छा फिर न खोल इसे।' और यह कह कर वह चला गया। मेरी जान में जान आई।

सुंदरी ने सेवकों से सारे संदूक अपने निवास कक्ष में पहुँचवाए। जब सारे नौकर चले गए तो उस ने मेरा संदूक खोला और मुझे एक जीना दिखा कर कहा कि ऊपर के कमरे में बैठो, मैं थोड़ी ही देर में आऊँगी। मैं ऊपर गया तो उस ने जीने का ताला लगा दिया। ताला लगाए दो क्षण भी नहीं हुए थे कि खलीफा फिर वहाँ आ गया और उसी संदूक पर बैठ कर उस स्त्री से बहुत देर तक नगर के बारे में पूछताछ करने लगा। वह सुंदरी काफी देर तक खलीफा से वार्तालाप करती रही। जब खलीफा अपने शयन कक्ष में चला गया तो वह ऊपर आई और बोली, 'तुम पर मेरे कारण बड़े कष्ट पड़े, किंतु अब तुम आराम से रहो। सुबह तुम्हें जुबैदा के पास ले चलूँगी।' फिर हम दोनों ने भोजन किया और वह चली गई।

मैं बड़े आनंद से उस भव्य प्रासाद में सोया। मुझे बड़ी प्रसन्नता थी कि यद्यपि यहाँ तक पहुँचने में बड़ी कठिनाइयाँ और खतरे उठाए किंतु अब तो किसी बात का खटका ही नहीं है। मुझे यह भी खुशी थी कि इतनी सुंदर और बुद्धिमती स्त्री स्वयं मेरे प्रेम में ग्रस्त है। सुबह वह मेरे पास आई और मुझ से बोली कि चलो मैं तुम्हें जुबैदा के पास ले चलती हूँ। इस के साथ उस ने मुझे खलीफा की पत्नी से बातचीत और व्यवहार करने के तौर-तरीके भी बताए। उस ने वे सभी संभव प्रश्न जो जुबैदा मुझ से पूछ सकती थी बताए और यह भी बताया कि उनका क्या उत्तर दूँ। उस ने मुझे एक स्थान पर ले जा कर खड़ा कर दिया और कहा कि जुबैदा अपने शयनागार से निकल कर यहीं बैठती है। यह कह कर वह चली गई। वह कमरा इतना शानदार था कि मैं चकराया-सा खड़ा रह गया और आँखें फाड़-फाड़ कर चारों ओर देखने लगा।

सबसे पहले बीस दासियाँ आईं। वे उस तख्त के सामने जो जुबैदा के बैठने के लिए बिछा था दो पंक्तियों में खड़ी हो गईं। फिर बीस अन्य दासियों के मध्य हंस जैसी चाल से चलती हुई जुबैदा आई और तख्त पर बैठ गई। वह गहने और भारी पोशाक से इतनी लदी हुई थी कि मंद गति ही से चल सकती थी। वह उसी रत्नजटित सिंहासन पर बैठ गई। सब दासियाँ अपने-अपने उचित स्थान पर खड़ी हो गईं और मेरी प्रेमिका, जो जुबैदा की खास मुसाहिब थी, बड़ी आन-बान से जुबैदा के दाहिनी ओर खड़ी हो गई।

अब एक दासी ने मुझे इशारा किया कि झुक कर सलाम करो। मैं ने तख्त के आगे जा कर अपने सिर को इतना झुकाया कि वह जुबैदा के पाँव से लग गया। मैं बराबर इसी दशा में रहा और सिर तभी उठाया जब जुबैदा ने मुझ से उठाने के लिए कहा। उस ने मेरा नाम, पेशा, कुटुंब आदि-आदि के बारे में प्रश्न किए जिनका मैं ने यथोचित उत्तर दिया। जुबैदा मेरी शक्ल-सूरत देख कर और मेरी बातें सुन कर प्रसन्न हुई। उस ने कहा, 'मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा विवाह अपनी मुँहबोली बेटी से करूँ। मैं विवाह की तैयारियों के लिए आदेश देती हूँ। दस दिन बाद तुम्हारा विवाह हो जाएगा। दस दिन तक तुम इसी तरह होशियारी से रहो। इसी अवधि में मैं खलीफा से तुम्हारे विवाह के लिए अनुमति भी ले लूँगी।' '

मैं जुबैदा से विदा ले कर अपने कमरे में चला गया। मेरी प्रेमिका कई बार मौका निकाल कर मेरे पास आती और बातचीत करके चली जाती। मैं बड़ी सुख-सुविधा से वहाँ रहने लगा। जुबैदा ने इस अवधि में खलीफा से विवाह की अनुमति भी ले ली और शादी के समारोह के लिए बहुत-सा धन दिया। रोज ही वहाँ गाना-बजाना और तरह-तरह के खेल-तमाशे होने लगे। दसवें दिन हम दूल्हा-दुल्हन ने नहा-धो कर मूल्यवान वस्त्र पहने। शाम को दासियों ने हम लोगों के सामने नाना प्रकार के व्यंजन खाने के लिए परोसे। एक रकाबी में वही लहसुन का व्यंजन था जो आप लोगों ने मुझे खिलाया है। मुझे वह बहुत अच्छा लगा और मैं ने अन्य चीजों के बजाय उसे अधिक खाया। दुर्भाग्य से खाने के बाद मैं ने अच्छी तरह से हाथ नहीं धोए, यूँ ही रूमाल से हाथ पोंछ लिए।

रात और बीती तो दासियों ने वहाँ बहुत-से दीए और मोमबत्तियाँ जलाईं और देर तक नाच और गाना बजाना होता रहा। जब रात काफी ढल गई तो दासियों ने हम दोनों को शयनागार में पहुँचा दिया। मैं ने अपनी पत्नी को जब अपनी गोद में खींचना चाहा तो वह बड़े क्रुद्ध स्वर में चीखने-चिल्लाने लगी। सारी दासियाँ यह देखने के लिए दौड़ी आईं कि क्या हो गया। मैं तो इतना घबरा गया था कि उस से पूछ ही न सका कि क्या बात हो गई। दासियों ने पूछा कि मालकिन, ऐसी क्या बात हो गई कि आप इतनी नाराज हैं, हम से कुछ भूल हो गई हो तो बताइए। मेरी पत्नी चीख कर बोली, 'इस अभागे को मेरे पास से तुरंत हटाओ।' मैं ने डरते-डरते पूछा, 'सुंदरी, ऐसा क्या अपराध मुझ से हुआ कि आप मुझे अपने पास ही से हटा रही हैं?' उस ने कहा, 'तुम दुष्ट भी हो और असभ्य भी। तुम ने लहसुन का पुलाव खाया और हाथ भी अच्छी तरह नहीं धोए। ऐसे गंदे आदमी से मुझे हार्दिक घृणा है। तुम्हारे हाथों की बदबू से अभी तक मेरा दिमाग फटा जा रहा है।'

यह कह कर उस ने दासियों को आज्ञा दी कि मुझे जमीन पर गिरा कर दबाए रहें। दासियों ने ऐसा ही किया। उस सुंदरी ने हाथ में चमड़े का चाबुक ले कर मुझे मारना शुरू किया और तब तक मारती रही जब तक खुद पसीने-पसीने न हो गई। फिर उस ने दासियों से कहा कि इसे दारोगा के पास ले जाओ ताकि वह इसका दाहना हाथ जिससे इसने पुलाव खाया था काट डाले। मैं अपने मन में पश्चात्ताप करने लगा कि इतने छोटे- से अपराध पर मेरा हाथ काट डाला जाएगा, इतनी मार मेरे लिए यथेष्ट नहीं समझी गई, वह बावर्ची जिसने उसे पकाया था और वह दासी जिसने मेरे सामने वह रकाबी रखी थी ऐसा करने के पहले ही क्यों न मर गए।

मेरी पत्नी की निष्ठुरता तो जैसी की तैसी रही किंतु हर एक बाँदी मेरी दशा से दुखी होने लगी। उन सभी ने मेरी पत्नी से कहा, 'मालकिन, अब गुस्सा थूक दो। इस के अपराध और मूर्खता में संदेह नहीं किंतु यह बेचारा तुम्हारी प्रतिष्ठा और तुम्हारी सुरुचि को क्या जाने। इसे काफी सजा मिल चुकी है। अब इस के अपराध क्षमा हों।' वह बोली, 'हरगिज नहीं। इसे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि यह हमेशा याद रखे कि लहसुन खाने के बाद हाथ-धोना जरूरी होता है। इस के पास कुछ ऐसी निशानी होनी चाहिए जिससे यह अपने अपराध को हमेशा याद रखे और फिर यह अपराध न करे।' दासियों ने फिर एक स्वर से अनुनय की विनय की तो वह चुप हो रही और उस कमरे से उठ कर चली गई।

सारी दासियाँ भी उस के पीछे चली गईं। मुझे उसी कमरे में बंद कर दिया। दस दिन तक मैं वहीं बंद रहा। कोई दासी या नौकर-चाकर मेरी पत्नी के क्रोध से डर से मेरे पास फटकता भी नहीं था, सिर्फ एक बुढ़िया दिन में दो बार आ कर खाने-पीने के लिए मुझे कुछ दे जाती थी। एक दिन उस से मैं ने अपनी पत्नी का हाल पूछा। उस ने कहा, 'वह तो बीमार पड़ी है। तुम्हारे हाथ की लहसुन की बदबू उस से बर्दाश्त नहीं हुई। तुम ने लहसुन का पुलाव खा कर हाथ क्यों नहीं धोए?' मैं ने कहा, 'अब तो जो हो गया वह हो ही गया।' मैं सोचने लगा कि इन स्त्रियों की नजाकत की भी हद नहीं है और क्रोध की भी। फिर भी आश्चर्य यह था कि मेरे मन से उस का प्रेम न गया और मैं उस कीएक झलक पाने के लिए तड़पने लगा।

दस दिन बाद बुढ़िया ने बताया, तुम्हारी पत्नी स्वस्थ हो गई और नहाने के लिए हम्माम को गई है। उस ने कहा कि स्नान के बाद वह यहाँ आएगी। शायद आज न आ सके लेकिन कल जरूर आएगी।

दूसरे दिन वह मेरे पास आई किंतु उस का क्रोध शांत न हुआ था। वह बोली कि मैं तुझे प्यार करने को नहीं, दंड देने को आई हूँ। यह कह कर उस ने फिर दासियों को आज्ञा दी कि मुझे जमीन पर गिरा दें। उन्होंने मुझे जमीन पर गिरा कर मुझे अच्छी तरह दबा रखा और मेरी निर्दयी पत्नी ने छुरी ले कर मेरे दोनों हाथों और दोनों पावों के अँगूठे काट डाले। एक दासी ने तुरंत ही किसी विशेष वृक्ष की पिसी हुई जड़ मेरे घावों पर लगा दी जिससे खून बहना बंद होगा किंतु पीड़ा के कारण मैं अचेत हो गया। जब मुझे होश आया तो उन्होंने मुझे थोड़ी मदिरा पिलाई जिससे मेरे शरीर में शक्ति आ गई।

मुझे फिर भी अपनी पत्नी की खुशामद करनी ही थी क्योंकि उस की कृपा के बगैर मेरी जान न बचती। मैं ने उस से कहा कि अब मैं कभी ऐसा दुर्गंधयुक्त भोजन नहीं करूँगा और करूँगा भी तो एक सौ चालीस बार हाथ धोऊँगा। उस ने कहा, 'फिर मैं भी उस कष्ट को जो तुम्हारे कारण मुझे हुआ है, भूल जाऊँगी। अतः हम लोग आनंदपूर्वक पति-पत्नी की तरह रहने लगे। किंतु मुझे यह बड़ा कष्ट था कि शाही महल में मुझे छुप कर रहना पड़ता था। मेरी पत्नी मेरे कहे बगैर ही मेरे दुख को समझ गई और उस ने एक दिन जुबैदा से यह बात कही तो उस ने मेरे अलग घर में रहने के लिए पचास हजार अशर्फियाँ दीं। मेरी पत्नी ने मुझे दस हजार अशर्फी दे कर कहा कि नगर में कोई अच्छा मकान खरीद लो ताकि हम वहाँ रहें।

मैं ने शहर में एक अच्छा मकान खरीद कर उसे बहुमूल्य वस्तुओं से सजाया और कुछ दास-दासियाँ भी मोल लीं। हम दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। किंतु कुछ समय के बाद ही मेरी पत्नी बीमार हो कर मर गई। मैं ने दूसरा विवाह किया, कुछ दिनों के बाद वह स्त्री भी मर गई। फिर मैं ने तीसरा विवाह किया किंतु मेरी तीसरी पत्नी भी काल कवलित हो गई। मैं ने विचार किया कि यह घर ही मनहूस है, इसमें रहना नहीं चाहिए। इस के अलावा लगातार तीन पत्नियों की मृत्यु से मैं खिन्न भी था। इसलिए मैं मकान को बेच-बाच कर देश-विदेश के व्यापार को निकला। पहले फारस गया, वहाँ से समरकंद पहुँचा और वहाँ से यहाँ आया हूँ।

अनाज के व्यापारी ने यह कह कर बादशाह से पूछा कि कहानी कैसी है। उस ने कहा, ईसाई की कहानी से तो अच्छी है किंतु कुबड़े की कहानी को नहीं पहुँचती। अब यहूदी हकीम ने कहानी शुरू की। 

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रचनाएँ
अलिफ लैला
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अलिफ लैला की कहानी अरब देश की एक प्रचलित लोक कथा है जो पूरी दुनिया में सदियों से सुनी व पढ़ी जाती रही है। ... इस कथा के अनुसार, बादशाह शहरयार अपनी मलिका की बेवपफाई से दुःखी होकर उसका और उसकी सभी दासियों का कत्ल कर देता है और प्रतिज्ञा करता है कि रोजाना एक स्त्री के साथ विवाह करूंगा और अगली सुबह उसे कत्ल कर दूंगा।
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भूमिका

29 जनवरी 2022
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भूमिका (1)-अलिफ़ लैला सहस्र-रजनी चरित्र, जो अब भी भारत में अपने अरबी नाम 'अल्फ लैला' के प्रचलित बिगड़े हुए रूप 'अलिफ लैला' के नाम से अधिक जाना जाता है, वास्तव में लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोक

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शहरयार और शाहजमाँ

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फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का

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किस्सा गधे, बैल और उनके मालिक

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एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल

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किस्सा व्यापारी और दैत्य का-

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शहरजाद ने कहा : प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए द

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किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का

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वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश क

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किस्सा तीसरे बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था

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तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक बार मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुल

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मछुवारे की कहानी

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शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी मे

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गरीक बादशाह और हकीम दूबाँ की कथा

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फारस देश में एक रूमा नामक नगर था। उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था। उस बादशाह को कुष्ठ रोग हो गया। इससे वह बड़े कष्ट में रहता था। राज्य के वैद्य-हकीमों ने भाँति-भाँति से उसका रोग दूर करने के उपाय किए क

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भद्र पुरुष और उसके तोते की कथा

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पूर्वकाल में किसी गाँव में एक बड़ा भला मानस रहता था। उसकी पत्नी अतीव सुंदरी थी और भला मानस उससे बहुत प्रेम करता था। अगर कभी घड़ी भर के लिए भी वह उसकी आँखों से ओझल होती थी तो वह बेचैन हो जाता था। एक बा

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प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, राजकुमार की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य

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काले द्वीपों के बादशाह की कहानी

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उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले द्वीपों का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों

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किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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पहले फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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पहले फकीर ने अदब से घुटनों के बल खड़े होकर कहा 'सुंदरी, अब ध्यान लगाकर सुनो कि मेरी आँख किस प्रकार गई और मैं क्यों फकीर बना। मैं एक बड़े बादशाह का बेटा था। बादशाह का भाई यानी मेरा चचा भी एक समीपवर्ती

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दूसरे फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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अभी पहले फकीर की अद्भुत आप बीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से लोग उबरे नहीं थे कि जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा कि तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने कहा कि आपकी आज्ञानुसार मैं आप को बताऊँग

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भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष

29 जनवरी 2022
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किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता ह

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किस्सा तीसरे फकीर का

29 जनवरी 2022
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हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी आँख मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा

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किस्सा जुबैदा का

29 जनवरी 2022
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जुबैदा ने खलीफा के सामने सर झुका कर निवेदन किया है राजाधिराज, मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी। मैं और वे दोनों काली कुतियाँ तीनों सगी बहिनें हैं और यह दो स्त्

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किस्सा अमीना का

29 जनवरी 2022
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अमीना ने कहा, 'जुबैदा की कहानी आप उसके मुँह से सुन चुके, अब मैं अपनी कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत करती हूँ। मेरी माँ मुझे लेकर अपने घर में आई कि रँड़ापे का अकेलापन उसे न खले। फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर

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सिंदबाज जहाजी की कहानी

29 जनवरी 2022
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जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी

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सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर उसे भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्र

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सिंदबाद जहाजी की दूसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेच

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सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के कष्ट और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्या

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सिंदबाद जहाजी की चौथी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ। मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे व

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सिंदबाद जहाजी की पाँचवी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार

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सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कहा कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्

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सिंदबाद जहाजी की सातवीं यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक

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एक स्त्री और तीन नौकरों का वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को कहा। शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर प्रजा का

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जवान और मृत स्त्री

29 जनवरी 2022
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उस जवान ने कहा कि 'मृत स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे चचा हैं। ग्यारह वर्ष पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता

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नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन

29 जनवरी 2022
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मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि

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काशगर के दरजी और बादशाह के कुबड़े सेवक

29 जनवरी 2022
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दूसरी रात को मलिका शहरजाद ने पिछले पहर अपनी बहन दुनियाजाद के कहने से यह कहानी सुनाना आरंभ किया। पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशगर में एक दरजी था जो अपनी दुकान में बैठ कर कपड़े सीता था।

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ईसाई द्वारा सुनाई गई

29 जनवरी 2022
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ईसाई ने कहा, मैं मिस्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ। मेरा बाप दलाल था। उस के पास काफी पैसा हो गया। उस ने मरने के बाद मैं ने भी वही व्यापार आरंभ किया। एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार

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अनाज के व्यापारी

29 जनवरी 2022
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अनाज का व्यापारी बोला कि कल मैं एक धनी व्यक्ति की पुत्री के विवाह में गया था। नगर के बहुत-से प्रतिष्ठित व्यक्ति उसमें शामिल थे। शादी की रस्में पूरी होने पर दावत हुई और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए।

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उस आदमी की कहानी जिसके चारों अँगूठे कटे थे

29 जनवरी 2022
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उस ने कहा कि दोस्तो, मेरा पिता बगदाद का रहनेवाला था और खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में था। मैं भी उसी समय पैदा हुआ। मेरा पिता यद्यपि धनवान तथा बड़े व्यापारियों में गिना जाता था तथापि वह बहुत ही विलासी औ

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यहूदी हकीम द्वारा वर्णित

29 जनवरी 2022
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यहूदी हकीम ने बादशाह के सामने झुक कर जमीन चूमी और कहा कि पहले मैं दमिश्क नगर में हकीमी किया करता था। अपनी चिकित्सा विधि के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हो गई थी। एक दिन वहाँ के हाकिम ने मुझ से कहा कि

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काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा

29 जनवरी 2022
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दरजी ने कहा कि इस नगर के व्यापारी ने एक बार अपने मित्रों को भोज दिया और उनके लिए भाँति-भाँति के व्यंजन बनवाए। मुझे भी बुलाया गया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि बहुत-से निमंत्रित लोग मौजूद हैं किंतु मक

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लँगड़े आदमी की कहानी

29 जनवरी 2022
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मेरा पिता बगदाद के सम्मानित व्यक्तियों में से था और हम लोग आनंदपूर्वक वहाँ रह रहे थे। मैं अपने पिता का अकेला बेटा था। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय तक मैं न केवल विद्याध्ययन पूरा कर चुका था ब

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दरजी की जबानी नाई की कहानी

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के काल में बगदाद के आसपास दस कुख्यात डाकू थे जो राहगीरों को लूटते ओर मार डालते थे। खलीफा ने प्रजा के कष्ट का विचार कर के कोतवाल से कहा कि उन डाकुओं को पकड़ कर लाओ वरना मैं तुम्हें प्र

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नाई के कुबड़े भाई

29 जनवरी 2022
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सरकार, मेरा सबसे बड़ा भाई जिसका नाम बकबक था, कुबड़ा था। उसने दरजीगीरी सीखी और जब यह काम सीख लिया तो उसने अपना कारबार चलाने के लिए एक दुकान किराए पर ली। उस की दुकान के सामने ही एक आटा चक्कीवाले की दुका

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नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी

29 जनवरी 2022
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दूसरे रोज खलीफा के सामने पहुँच कर मैं ने कहा कि मेरा दूसरा भाई बकबारह पोपला है। एक दिन उससे एक बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हारे लाभ की एक बात कहती हूँ। एक बड़े घर की स्वामिनी तुम से आकृष्ट है। मैं तुम्हें

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नाई के तीसरे भाई अंधे बूबक की कहानी

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा, सरकार, मेरा तीसरा भाई बूबक था जो बिल्कुल अंधा था। वह बड़ा अभागा था। वह भिक्षा से जीवन निर्वाह करता था। उसका नियम था कि अकेला ही लाठी टेकता हुआ भीख माँगने जाता और किसी दानी का द्वार खटखटा क

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नाई के चौथे भाई काने अलकूज

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि मेरा चौथा भाई काना था और उसका नाम अलकूज था। अब यह भी सुन लीजिए कि उसकी एक आँख किस प्रकार गई। मेरा भाई कसाई का काम करता था। उसे भेड़-बकरियों की अच्छी पहचान थी। वह मेढ़ों को लड़ाने के लिए

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नाई के पाँचवें भाई अलनसचर

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि मेरे पाँचवें भाई का नाम अलनसचर था। वह बड़ा आलसी और निकम्मा था। वह रोज किसी न किसी मित्र के पास जा कर बेशर्मी से कुछ भीख माँग लेता और खा-पी कर पड़ा रहता। मेरा बाप कुछ समय बाद बूढ़ा हो कर

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नाई के छठे भाई कबक जिसके होंठ खरगोश की तरह के थे

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि अब मेरे आखिरी भाई शाह कबक का वृत्तांत रह गया है। इसे भी सुन लीजिए, फिर मैं आप से विदा लूँ। इस भाई का नाम शाह कबक था और उसके होंठ खरगोश की तरह ऊपर को चढ़े हुए थे और वह चलता भी खरगोश की तर

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शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक

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कमरुज्जमाँ और बदौरा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में बीस दिन की राह पर एक देश खलदान है। उस देश में कई टापू भी शामिल हैं। बहुत दिन पहले वहाँ का बादशाह शाहजमाँ था। उसके चार पत्नियाँ थीं और सात विशेष दासियाँ। वह बड़ा प्रतापी राजा था, उसके दे

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नूरुद्दीन और पारस देश की दासी

29 जनवरी 2022
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अगली सुबह से पहले शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि पहले जमाने में बसरा बगदाद के अधीन था। बगदाद में खलीफा हारूँ रशीद का राज था और उसने अपने चचेरे भाई जुबैनी को बसरा का हाकिम बनाया था। जुबैनी के

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ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशा

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गनीम और फितना

29 जनवरी 2022
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दुनियाजाद ने मलिका शहरजाद से नई कहानी सुनाने को कहा और बादशाह शहरजाद ने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी तो शहरजाद ने नई कहानी शुरू कर दी। उसने कहा कि पुराने जमाने में दमिश्क नगर में एक व्यापारी रहता था जिस

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शहजादा जैनुस्सनम और जिन्नों के बादशाह

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में बसरा में एक बड़ा ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय बादशाह राज करता था। उसे सबकुछ प्राप्त था किंतु उसे बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई जिससे वह बहुत दुखी रहता था। नगर निवासी भी बादशाह के साथ म

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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी-

29 जनवरी 2022
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उपर्युक्त कहानी के मध्य में एक यात्रा में जैनुस्सनम के दरियाबार देश मे जाने का भी उल्लेख है। वहाँ की एक चित्ताकर्षक कथा उस ने सुनी थी। वह कथा भी इस जगह कही जाती है। हैरन नगर में एक बड़ा प्रतापी बादशा

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दरियाबार की शहजादी

29 जनवरी 2022
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उस सुंदरी ने कहा कि काहिरा के निकट दरियाबार नाम एक द्वीप है। उस का बादशाह सब प्रकार से सुखी था किंतु उसे संतान न होने का बड़ा दुख था। वर्षों की प्रार्थनाओं और सिद्धों के आशीर्वादों से उस के यहाँ एक पु

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सोते-जागते आदमी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में बगदाद में एक धनी व्यापारी था। उस का एक ही पुत्र था जिसका नाम अबुल हसन था। व्यापारी बड़ा कंजूस था। वह धन एकत्र ही करता था, खर्च बहुत कम करता था। इसलिए जब

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अलादीन और जादुई चिराग

29 जनवरी 2022
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चीन की राजधानी में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं करता था सिर्फ खेल-कूद में समय ब

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खलीफा हारूँ रशीद और बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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दुनियाजाद के प्रस्ताव और शहरयार की अनुमति से नई कहानी प्रारंभ करते हुए शहरजाद ने कहा कि कभी-कभी आदमी का चित्त प्रसन्न होता है और उसकी कोई साफ वजह भी नहीं होती। ऐसी स्थिति भी होती है जब आदमी खुश तो होत

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अंधे बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सार

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सीदी नोमान

29 जनवरी 2022
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भिखारी की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने बराबर घोड़ी दौड़ानेवाले पर ध्यान दिया और उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है। उसने अपना नाम सीदी नोमान बताया। खलीफा ने कहा, मैंने बहुत-से घुड़सवारों और साईसों को दे

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ख्वाजा हसन हव्वाल

29 जनवरी 2022
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ख्वाजा हसन ने कहा कि मैं अपनी बात बताने के पहले अपने दो मित्रों के बारे में बताना चाहता हूँ। वे अभी जीवित हैं और यहीं बगदाद में रहते हैं। वे मेरे प्रत्येक कथन की पुष्टि करेंगे। उनमें से एक का नाम सादी

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अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी

29 जनवरी 2022
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अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री

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बगदाद के व्यापारी अली ख्वाजा

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के राज्य काल में बगदाद में अलीख्वाजा नामक एक छोटा व्यापारी रहता था। वह अपने पुश्तैनी मकान में, जो छोटा-सा ही था, अकेला रहता था। उसने विवाह नहीं किया था और उसके माता पिता की भी मृत्यु

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यंत्र के घोड़े

29 जनवरी 2022
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बादशाह सलामत, आपको यह मालूम ही है कि हजारों वर्ष से फारस में नौरोज यानी वर्ष का प्रथम दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उसमें सभी लोग विशेषतः अग्निपूजक, भाँति-भाँति के नृत्यों और खेल-तमाशों का आय

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शहजादा अहमद और परीबानू

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा, बादशाह सलामत, पुराने जमाने में हिंदोस्तान का एक बादशाह बड़ा प्रतापी और ऐश्वर्यवान था। उसके तीन बेटे थे। बड़े का नाम हुसैन, मँझले का अली और छोटे का अहमद था। बादशाह का एक भाई जब मरा तो उस

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ईर्ष्यालु बहनों की कहानी

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नामी शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। ज

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बैल और गधा

29 जनवरी 2022
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एक बार एक सौदागर था जो बहुत अमीर था। उसके पास बहुत सारे नौकर चाकर और जानवर थे। उसकी एक पत्नी थी और परिवार था और वह अपने खाने पीने के लिये खेती करता था। उसके पास जंगली जानवरों और हर तरह की चिड़िया की बो

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भेड़िये और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक लोमड़ा और एक भेड़िया एक ही घर में रहते थे। भेड़िया बहुत ही बेरहम था जबकि लोमड़ा बहुत नरम दिल था। इसी तरह से रहते हुए उन्हें कुछ दिन हो गये कि एक दिन वह लोमड़ा भेड़िये से बोला — “अगर तुम इसी तरीके

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लोमड़े और कौए की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक लोमड़ा एक पहाड़ की एक गुफा में रहता था। जब भी उसको एक बच्चा पैदा होता और वह बड़ा हो जाता तो वह उसको खा जाता क्योंकि उसको भूख बहुत लगती थी। अगर वह अपने बच्चों को न खाता तो उसके वे बच्चे बड़े हो जाते और

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साही और कबूतर

29 जनवरी 2022
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एक बार एक साही एक खजूर के पेड़ के नीचे रहने के लिये आया। उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपनी पत्नी के साथ रहता था। साही ने सोचा कि यह कबूतर का जोड़ा तो इस पेड़ के फल खाता है पर मुझे इस पेड़ के फल खाने का कोई मौ

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बतख और कछुए की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक बतख बहुत ऊपर उड़ा और बहते हुए पानी में खड़ी एक चट्टान पर जा कर बैठ गया। जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो पानी की एक लहर एक आदमी का ढाँचा उसके पास ला कर छोड़ गयी। बतख ने उसको ठीक से देखा तो उसको पता लग

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चुहिया और एक ततैये की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक चुहिया और एक मादा ततैया एक गरीब किसान के घर में एक साथ ही रहते थे। एक बार उस किसान का एक दोस्त बीमार पड़ गया तो डाक्टर ने उसको धुले तिल21 खाने की सलाह दी। सो उस किसान ने एक आदमी से अपने दोस्

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कौआ और बिल्ला

29 जनवरी 2022
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एक समय की बात है कि एक कौआ और एक बिल्ला दोनों आपस में बड़े गहरे दोस्त थे और साथ साथ रहते थे। एक दिन वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे कि उन्होंने एक चीते23 को अपनी तरफ आते हुए देखा। उनको उसके अपनी त

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चिड़ा और मोर

29 जनवरी 2022
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एक बार की बात है एक चिड़ा रोज सुबह सुबह चिड़ियों के राजा से मिलने जाता था और सारा दिन उसकी सेवा में खड़ा रहता था। वह सबसे पहले वहाँ पहुँचता था और सबसे बाद में वहाँ से वापस आता था। एक बार कुछ चिड़ियों ने

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मुर्गे और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक गाँव में एक शेख रहता था। उसकी अपने गाँव में बहुत अच्छी साख थी और वह एक बहुत ही समझदार आदमी था। उसके अपने पास बहुत सारे मुर्गे मुर्गियाँ थे। वह उनको बढ़ाने के लिये उनकी बहुत अच्छी देखभाल करता

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चिड़ियें, जानवर और बढ़ई

29 जनवरी 2022
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जानवरों की यह कहानी बहुत ही मजेदार है। हो सकता है कि तुम इसको बार बार पढ़ना पसन्द करो और हर किसी को खास करके अपने छोटे भाई बहिनों को बार बार सुनाना पसन्द करो। बहुत पुरानी बात है कि एक मोर अपनी पत्नी क

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