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अमात्य की कहानी

29 जनवरी 2022

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प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, राजकुमार की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य को बुलाकर कहा कि राजकुमार के साथ चले जाओ; तुम्हें सब रास्ते मालूम हैं, राजकुमार को नहीं मालूम, इसलिए एक क्षण के लिए भी राजकुमार का साथ न छोड़ना।

राजकुमार अमात्य और कई अन्य लोगों को लेकर आखेट के लिए वन में गया। कुछ देर में एक बारहसिंघा सामने से निकला। राजकुमार ने घोड़ा उसके पीछे डाल दिया। अमात्य ने सोचा कि राजकुमार का घोड़ा तेज है और शीघ्र ही बारहसिंघे को मार लिया जाएगा। इसलिए उसने कुछ ढील डाल दी। लेकिन बारहसिंघा दौड़ता ही रहा। राजकुमार कई कोस तक उसके पीछे गया लेकिन उसे पा न सका। वह रास्ता भी भूल गया। उसने चाहा कि वापस अपने अमात्य और अन्य शिकारी साथियों से जा मिले लेकिन वह बिल्कुल भटक गया।

भटकते-भटकते उसने एक स्थान पर देखा कि एक अति सुंदर स्त्री विलाप कर रही है। राजकुमार ने अपने घोड़े को रोका और स्त्री से पूछा कि तू क्यों रो रही है। स्त्री ने बताया कि मैं एक देश की राजकुमारी हूँ, मैं विशेष परिस्थिति वश अकेली अपने घोड़े पर सवार होकर इधर से जा रही थी कि मुझे नींद आ गई और मैं घोड़े से गिर पड़ी और मेरा घोड़ा भी जंगल में भाग गया, मुझे यह भी नहीं मालूम वह किधर को गया है। राजकुमार को उस पर दया आई। उसने अपने आगे अपने घोड़े पर बिठा लिया और जिस ओर स्त्री ने अपनी राजधानी बताई थी उधर चल दिया।

कुछ समय पश्चात स्त्री ने कहा मैं घोड़े पर थक गई हूँ, पैदल चलना चाहती हूँ। राजकुमार ने उसे उतार दिया और उसके साथ पैदल चलने लगा। लेकिन उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक परकोटे के पास पहुँच कर उसने पुकार कर कहा, 'बच्चों प्रसन्न हो जाओ। मैं तुम्हारे लिए बड़ा मोटा ताजा आदमी शिकार के लिए लाई हूँ।' जवाब में आवाज आई, अम्मा कहाँ है वह आदमी। हमें जल्दी से दे। हम बहुत भूखे हैं। राजकुमार यह सुन कर बड़ा भयभीत हुआ। वह समझ गया कि यह स्त्री नरभक्षी वनवासियों की जाति की है और मुझे मार कर खा जाने के लिए यहाँ धोखे से लाई है। वह घोड़े पर बैठ कर मुड़ने लगा। स्त्री ने देखा कि शिकार हाथ से निकला जाता है तो पलट कर कहने लगी, 'तुम परेशान क्यों हो, यह तो तुम्हारे साथ मजाक हो रहा था। राजकुमार ने कहा, 'खैर, तुम अपने घर आ गई हो और अब मैं जा रहा हूँ।' स्त्री बोली तुम कौन हो, कहाँ जाओगे। राजकुमार ने अपना हाल बताया कि शिकार खेलने में राह भूल गया हूँ। स्त्री ने कहा, 'फिर मेरे साथ क्यों नहीं आते? थोड़ी देर आराम करो।'

राजकुमार की समझ में नहीं आया कि स्त्री पर विश्वास करे या न करे। उसने अंततः दोनों हाथ उठाकर कहा, 'हे भगवान, यदि तू सर्वशक्तिमान है तो मुझे इस विपत्ति से बचा और मुझे मेरा मार्ग दिखा।' उसके यह कहते ही नरभक्षिणी स्त्री एक घने जंगल में गायब हो गई और कुछ देर में राजकुमार को अपना मार्ग भी मिल गया। अपने महल में पहुँच कर उसने अपने पिता से अपना संपूर्ण वृत्तांत कहा कि किस प्रकार वह अमात्य से बिछुड़ गया और नरभक्षिणी के पंजे में फँसते-फँसते बचा। राजा इस बात से इतना क्रुद्ध हुआ कि उसे अमात्य का वध करवा डाला।

शहरजाद इतनी कहानी कह कर फिर आगे बोली कि बादशाह सलामत, मंत्री गरीक बादशाह को यह किस्सा सुनाकर कहने लगा, 'मैंने विश्वस्त सूत्रों से मालूम किया है कि हकीम दूबाँ आपके किसी वैरी का जासूस है और उसने इसे यहाँ पर इसलिए भेजा है कि आपको धीरे-धीरे मार दे। यह ठीक ही है कि आप का रोग अभी दूर हो गया है किंतु औषधियों का बाद में ऐसा प्रभाव होगा कि आप को अत्यंत कष्ट होगा और संभव है कि जान पर भी बन आए।

मंत्री ने बादशाह को इतना बहकाया कि वह हकीम पर संदेह करने लगा। वह बोला, 'शायद तुम ठीक ही कहते हो। हो सकता है कि यह मेरी हत्या के उद्देश्य से आया हो और किसी समय मुझे कोई ऐसी औषधि सुँघाए जिससे मेरी जान जाती रहे। मुझे वास्तव में अपने लिए खतरा मालूम होता है।' मंत्री ने सोचा कि अपने षड्यंत्र को शीघ्र ही पूरा करना चाहिए, ऐसा न हो कि बादशाह का विचार बाद में पलट जाय। वह बोला, 'महाराज, फिर देर किस बात की है। उसे अभी बुलवा कर क्यों नहीं मरवा देते?' बादशाह ने कहा, 'अच्छा, मैं ऐसा ही करता हूँ।'

बादशाह ने एक सरदार को भेजा कि इसी समय दूबाँ को यहाँ ले आओ। दूत उसे थोड़ी ही देर में ले आया। दूबाँ के आने पर बादशाह ने पूछा, 'तुम्हें मालूम है मैंने तुम्हें इस समय क्यों बुलाया है' उसने निवेदन किया कि मुझे नहीं मालूम। बादशाह ने कहा, 'मैंने तुम्हें प्राणदंड देने के लिए बुलाया है ताकि तुम्हारे षड्यंत्र से बचाव कर सकूँ।' हकीम को इससे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने पूछा कि मेरा अपराध क्या है कि आप मुझे मरवाए डाल रहे है। बादशाह ने कहा, 'तुम मेरे किसी शत्रु के जासूस हो और यहाँ मुझे मारने के लिए आए हो। मेरे लिए यही उचित है कि तुम्हें प्राणदंड देने में एक क्षण का भी विलंब न करूँ। यह कह कर बादशाह ने उसी सरदार से कहा कि हकीम का वध कर दे।

हकीम समझ गया कि मेरे शत्रुओं ने ईर्ष्या के कारण बादशाह का मन मुझ से फेर दिया है। वह इस बात पर पछताने लगा कि मैंने क्यों यहाँ आकर बादशाह को रोगमुक्त किया और अपनी जान जाने का सामान किया। वह बहुत देर तक बादशाह के सामने निर्दोषिता सिद्ध करता रहा लेकिन बादशाह ने उसे मारने की जिद पकड़ ली। उसने दूसरी बार सरदार को आज्ञा दी कि हकीम को मार दो। हकीम कहने लगा आप मुझे निरपराध ही मरवाए डाल रहे हैं, भगवान मेरी हत्या का बदला आप से लेगा।

इतना कह कर मछुवारे ने गागर के दैत्य से कहा कि जो बात दूबाँ और बादशाह गरीक के बीच थी वही मेरे तुम्हारे बीच है, खैर आगे की कहानी सुनो, जब जल्लाद दूबाँ को मारने के लिए उसकी आँखों की पट्टी बाँधने लगा तो बादशाह के दरबारियों ने हकीम को निरपराध समझ कर एक बार फिर बादशाह से उसकी जान न लेने की प्रार्थना की किंतु बादशाह ने उन सब को ऐसी डाँट बताई कि उन्हें कुछ कहने की हिम्मत न रही। हकीम को निश्चय हो गया कि किसी तरह मेरी जान नहीं बच सकती। उसने बादशाह से कहा, 'स्वामी, मुझे इतनी मुहलत तो दें कि मैं घर जाकर वसीयत लिख आऊँ। मैं अपनी पुस्तकें किसी सुपात्र को देना चाहता हूँ। लेकिन उनमें से एक पुस्तक आपके अपने पुस्तकालय में रखने योग्य है।'

बादशाह ने कहा, 'ऐसी कौन सी पुस्तक तेरे पास है जो मेरे लायक हो? क्या है उस पुस्तक में? दूबाँ ने कहा, 'उसमें बड़ी अद्भुत और काम की बातें हैं। उनमें से एक बात यह है कि मेरे सिर के काटे जाने के बाद आप पुस्तक के छठे पन्ने के बाएँ पृष्ठ की तीसरी पंक्ति को पढ़कर आप जो भी प्रश्न करेंगे उसका उत्तर मेरा कटा हुआ सिर देगा।' बादशाह को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सोच विचार कर आज्ञा दी कि हकीम को पहरे में उसके घर ले जाओ। बादशाह की आज्ञा के अनुसार सिपाही हकीम को उसके घर ले गए। हकीम ने एक दिन में अपना काम काज समेट लिया। दूसरे दिन जब उसे बादशाह के सामने ले जाया गया तो उसके हाथों में एक मोटी सी पुस्तक थी जो एक कपड़े मे लिपटी थी।

हकीम ने बादशाह से कहा, 'मेरे कटे हुए सर को एक सोने के थाल में उस पुस्तक में ऊपर लिपटे कपड़े पर रखना तो खून बहना बंद हो जाएगा। इस के बाद मेरी बताई हुई पंक्ति पढ़कर जो भी आप पूछेंगे वह मेरा कटा हुआ सिर बता देगा। लेकिन मैं फिर आपसे निवेदन करता हूँ कि मैं निरपराध हूँ। आप मुझ पर दया करें और मेरे वध का आदेश वापस ले लें। बादशाह ने कहा, नहीं, अब मैं जो कुछ सुनना होगा तेरे कटे हुए सिर ही से सुनूँगा। तेरे रोने पीटने का कोई लाभ नहीं है।'

यह कहकर बादशाह ने पुस्तक अपने हाथ में ले ली और जल्लाद को हकीम के मारने की आज्ञा दी। फिर उसने सोने के थाल पर पुस्तक का आवरण वस्त्र रखवाया और जब सिर से खून बहना बंद हो गया तो उसे और दरबारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। अब उस कटे सिर ने आँखें खोलकर बादशाह से कहा, 'पुस्तक का छठा पन्ना खोल।' बादशाह ने ऐसा करना चाहा लेकिन पुस्तक के पृष्ठ एक दूसरे से चिपके हुए थे। इसलिए उसने उँगली में थूक लगा कर पन्नों को अलग करना शुरू किया। जब छठा पन्ना खुला तो बादशाह ने बाएँ पृष्ठ की तीसरी पंक्ति पढ़नी चाही किंतु उसने देखा कि उस पृष्ठ पर कुछ नहीं लिखा है। उसने यह बात बताई तो कटे सिर ने कहा, 'आगे के पृष्ठ देख, शायद उनमें लिखा हो।' बादशाह उँगली में थूक लगा-लगाकर पृष्ठों को अलग करने लगा।

वास्तव में हकीम ने पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर विष लगा रखा था। थूक लगी उँगली के बार बार पृष्ठों पर रगड़े जाने और फिर मुँह में जाने पर उन पृष्ठों में लगा विष बादशाह के शरीर में प्रवेश कर गया। बादशाह की हालत खराब होने लगी किंतु उसने कटे सिर से प्रश्नों के उत्तर पाने के शौक में इस पर कुछ ध्यान न दिया। अंततः उसकी दृष्टि भी मंद पड़ गई और वह राजसिंहासन से नीचे गिर गया। हकीम के सिर ने जब देखा कि विष पूरी तरह चढ़ गया और बादशाह क्षण दो क्षण का मेहमान है तो हँस कर बोला, हे क्रूर अन्यायी तूने देखा कि निर्दोष की हत्या का क्या परिणाम होता है।' यह सुनते ही बादशाह के प्राण निकल गए। इस प्रकार उसे अपने किए का फल मिल गया।

रानी शहरजाद ने शहरयार से कहा कि मछुवारे ने दैत्य को हकीम दूबाँ और बादशाह गरीक की जो कहानी सुनाई थी वह तो खत्म हो गई, अब मैं मछुवारे और दैत्य की कहानी आगे बढ़ाती हूँ।

मछुवारा यह कहानी सुनाकर दैत्य से कहने लगा, 'यदि गरीक बादशाह हकीम दूबाँ की हत्या न करता तो भगवान उसे ऐसा दंड न देता। दैत्य तेरा हाल भी उस बादशाह की तरह है। तू अगर बंधन से छूटकर मेरे मारने की इच्छा न करता तो दुबारा बंधन में न पड़ता। अब मैं तुझ पर दया करके तुझे फिर से स्वतंत्र क्यों करूँ? मैं तो गागर समेत तुझे फिर नदी में डाल रहा हूँ जहाँ तू अनंतकाल तक पड़ा रहेगा।

दैत्य बोला, 'मेरे मित्र, तू ऐसा न कर मैं अब तुझे मारने का इरादा कभी न करूँगा। बुराई के बदले में भी भलाई करनी चाहिए। तू भी मेरे साथ ऐसी ही भलाई कर जैसी इम्मा ने अतीका के साथ की थी।' मछुवारे ने कहा, 'मुझे वह कहानी नहीं मालूम है, तू बता तो मैं सुनूँ।' दैत्य बोला, 'यदि तू यह कहानी सुनना चाहे तो मुझे बंधन मुक्त कर क्योंकि मैं गागर में अच्छी तरह नहीं बोल पाऊँगा। मुझे मुक्त कर दो तो यही नहीं, और भी बहुत सी अच्छी कथाएँ सुनाऊँगा।' मछुवारा बोला, 'मुझे नहीं सुननी तेरी कहानी' दैत्य ने कहा, 'तू मुझे छोड़ दे तो मैं तुझे अति धनी होने का उपाय बताऊँगा।' मछुवारे को कुछ लालच आ गया। वह बोला, 'मुझे तेरी बात का विश्वास तो नहीं है, किंतु अगर तू इस्मे-आजम (महामंत्र) की सौगंध खाकर कहे कि तू मेरे साथ धोखा नहीं करेगा और अपने वचन पर दृढ़ रहेगा तो मैं तुझे छोड़ दूँ।' दैत्य ने ऐसा ही किया।

ज्यों ही मछुवारे ने गागर का ढकना खोला उसमें से धुँआ निकला और फैल गया। कुछ देर में उसने दैत्य का रूप धारण कर लिया। दैत्य ने ठोकर मार कर गागर को नदी में डुबो दिया। मछुवारा यह देखकर बहुत डरा और बोला, 'हे दैत्य तूने यह क्या किया। क्या तू अपने वचन पर स्थिर नहीं रहना चाहता? मैंने तो तेरे साथ वही किया है जो हकीम दूबाँ ने बादशाह गरीक के साथ किया था।' मछुवारे के भयभीत होने पर दैत्य हँस कर बोला, 'तू डर मत मैं अपने वचन पर दृढ़ हूँ। अब तू अपना जाल उठा और मेरे पीछे-पीछे चला आ।

नितांत वे दोनों चले और एक नगर के अंदर से निकल कर एक पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। फिर वहाँ से उतर कर एक लंबे चौड़े महल में गए। उस महल में एक तालाब दिखाई दिया जिसके चारों ओर चार टीले थे। तालाब के पास पहुँच कर मछुवारे से दैत्य ने कहा, 'तू इस तालाब में जाल डाल और मछलियाँ पकड़।' मछुवारा खुश हो गया क्योंकि तालाब में बहुत सी मछलियाँ थीं। उसने तालाब में जाल डाल कर खींचा तो उसमें चार मछलियाँ आई जो चार रंग की थीं - सफेद, लाल, पीली और काली।

दैत्य ने कहा, 'तू इन मछलियों को लेकर यहाँ के बादशाह के पास जा। वह तुझे इतना धन देगा जो तूने कभी देखा भी नहीं होगा। किंतु एक बात का ध्यान रखना। तालाब में एक दिन में एक ही बार जाल डालना।' यह कहकर दैत्य ने जमीन में जोर से ठोकर मारी। जमीन फट गई और दैत्य उसमें समा गया। दैत्य के उस गढ़े में समाने के बाद धरती फिर बराबर हो गई जैसे उसमें कभी गढ़ा हुआ ही न हो। मछुवारा उन चारों मछलियों को बादशाह के महल में ले गया।

शहरजाद ने शहरयार से कहा कि उस बादशाह को उन मछलियों को देखकर जितनी प्रसन्नता हुई उसे वर्णन करना मेरी शक्ति के बाहर है। उसने अपने मंत्री से कहा कि ये मछलियाँ उस बावर्चिन के पास ले जाओ जो यूनान के राजा ने मुझे भेंट स्वरूप दी है। सिर्फ वही ऐसी होशियार है जो इन सुंदर मछलियों को भली भाँति पका सकती है। मंत्री मछलियाँ बावर्चिन के पास ले गया। बादशाह ने मछुवारे को चार सौ मोहर इनाम में दे डालीं।

शहरजाद शहरयार से बोली कि अब उस बावर्चिन का हाल सुनिए कि उस पर क्या बीती। बावर्चिन ने मछलियों के टुकड़े करके उन्हें धो-धाकर गर्म तेल में भुनने के लिए डाला। जब टुकड़े एक ओर भुनकर लाल हो गए तो उसने दूसरी ओर भुनने के लिए उन्हें पलटा। उस समय उसने जो कुछ देखा उससे उसकी आँखें फट गईं। उसने देखा कि रसोई घर की दीवार फट गई। उसमें से एक अति सुंदर स्त्री बड़े ठाट-बाट से भड़कीले कपड़े पहने बाहर निकली। उसके शरीर पर भाँति-भाँति के रत्न आभूषण सज रहे थे जैसे मिश्र देश की रानियों के होते हैं। उसके कानों में मूल्यवान बाले, गले में बड़े-बड़े मोतियों की माला और बाँहों में सोने के बाजूबंद थे जिनमें लाल जड़े हुए थे। इनके अलावा भी वह बहुत से मूल्यवान गहने पहने हुए थी।

स्त्री बाहर आकर अपने हाथ में पकड़ी हुई एक मूल्यवान छड़ी उठाकर उस कड़ाही के पास आ खड़ी हुई जिसमें मछलियाँ भुन रही थीं। उसने एक मछली पर छड़ी मारी और बोली, 'ओ मछली, ओ मछली, क्या तू अपनी प्रतिज्ञा पर कायम है।' मछली में कोई हरकत न हुई स्त्री ने फिर छड़ी और अपना प्रश्न दोहराया। इस पर चारों मछलियाँ उठ खड़ी हो गईं और बोलीं, 'यह सच्ची बात है कि तुम हमें मानोगी तो हम तुम्हें मानेंगे और अगर तुम हमारा ॠण वापस करोगी तो हम तुम्हारा ॠण वापस कर देंगे।' यह सुनते ही उस स्त्री ने कड़ाही को जिसमें मछलियाँ भुन नही थीं। जमीन पर उलट दिया और स्वयं दीवार में समा गई और दीवार जुड़ कर पहले की तरह हो गई।

बावर्चिन इस कांड को देखकर सुधबुध खो बैठी। कुछ देर बाद होश में आई तो देखा मछलियाँ चूल्हे के अंदर गिर कर कोयला हो चुकी हैं। वह अत्यंत दुखी होकर रोने लगी। वह सोच रही थी कि मैंने तो यह सारा व्यापार अपनी आँखों से देखा है लेकिन इस पर बादशाह को कैसे विश्वास आएगा। वह इसी चिंता में बैठी थी कि मंत्री ने आकर पूछा कि मछलियाँ पक चुकीं या नहीं। बावर्चिन ने मंत्री को सारा हाल बताया मंत्री को इस कहानी पर विश्वास तो न हुआ लेकिन उसने बावर्चिन की शिकायत करना ठीक न समझा। उसने मछलियों के खराब होने का कोई बहाना बादशाह से बना दिया और मछुवारे को बुला कर कहा कि वैसी ही चार मछलियाँ और ले आओ। मछुवारे ने दैत्य से किया हुआ वादा तो उसे न बताया लेकिन कोई और मजबूरी बता दी कि आज मछलियाँ क्यों नहीं ला सकता।

दूसरे दिन मछुवारा फिर उस तालाब पर गया और उसी प्रकार की चार रंगों वाली मछलियाँ उसके जाल में फँसीं। मछलियाँ लेकर वह मंत्री के पास पहुँचा। मंत्री ने उसे कुछ इनाम दिया और बावर्चिन के पास मछलियाँ लाकर कहा कि इन्हें मेरे सामने पकाओ। बावर्चिन ने पहले दिन की तरह मछलियाँ काट और धो कर गर्म तेल में डालीं और जब उसने उन्हें कड़ाही में पलटा तो दीवार फट गई और वही स्त्री हाथ में छड़ी लेकर दीवार के अंदर से निकली और छड़ी से एक मछली को छूकर पहले दिन वाली बात पूछी। उन चारों मछलियों ने जुड़कर सिर उठाकर और पूँछ पर खड़े होकर वही उत्तर दिया। स्त्री ने फिर कड़ाही उलट दी और स्वयं दीवार में समा गई और दीवार फिर जुड़कर पहले जैसी हो गई।

मंत्री यह सब बातें देख कर स्तंभित हो गया। अब उसने यह बात बादशाह को बता देना ही ठीक समझा। जब उसने बादशाह को यह कांड बताया तो उसे भी घोर आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि मैं स्वयं अपनी आँखों यह सब देखना चाहता हूँ। उसने फिर मछुवारे से कहा कि ऐसी ही चार मछलियाँ और ले आओ। मछुवारा बोला अब मैं तीन दिन से पहले मछलियाँ लाने में असमर्थ हूँ। चूँकि सारा व्यापार अद्भुत था इसलिए बादशाह ने मछुवारे पर कुछ जोर नहीं डाला। तीन दिन बाद उसने फिर वैसी ही चार मछलियाँ लाकर बादशाह को दीं। बादशाह ने खुश हो कर उसे चार सौ अशर्फियाँ और दीं।

अब बादशाह ने मंत्री से कहा कि बावर्चिन को हटा दो और तुम खुद मेरे सामने इन मछलियों को पकाओ। मंत्री ने बावर्ची खाना अंदर से बंद करके मछलियाँ पकाना शुरू किया। जब एक ओर लाल होने पर मछलियों को पलटा गया तो एक बार फिर दीवार फट गई। किंतु इस बार उसमें से सुंदरी नहीं निकली बल्कि गुलामों जैसा कपड़ा पहने हाथ में एक हरी-भरी छड़ी लिए एक हब्शी निकला। हब्शी ने बड़े कठोर और भयावह स्वर में पूछा, 'मछलियों, मछलियों क्या तुम अपने वचन पर अब भी स्थिर हो? मछलियाँ अपने सरों को उठा कर बोली, 'हम उसी बात पर स्थिर हैं।' हब्शी ने कड़ाही उलट दी और स्वयं दीवार के छेद में घुस गया और दीवार पहले की तरह जुड़ गई।

बादशाह ने मंत्री से कहा, 'यह अद्भुत घटना मैंने स्वयं देखी है वरना मैं इस पर विश्वास न करता। यह मछलियाँ भी साधारण नहीं है। मैं इस रहस्य को जानने के लिए बड़ा उत्सुक हूँ।' यह कहकर उसने मछुवारे को फिर बुलवाया और उससे पूछा कि तू यह रंगीन मछलियाँ कहाँ से लाया था। मछुवारे ने बताया कि मैंने उसे उस तालाब से पकड़ा है जिसके चारों ओर चार टीले हैं। बादशाह ने मंत्री से पूछा तुम्हें मालूम है कि वह तालाब कहाँ है? मंत्री ने कहा मैं साठ वर्ष से उस ओर शिकार खेलने जाता रहा हूँ लेकिन मैंने ऐसा तालाब न देखा न सुना। अब बादशाह ने मछुवारे से पूछा कि वह तालाब कितनी दूर है और क्या तू मुझे वहाँ ले जा सकता है? मछुवारे ने कहा वह तालाब यहाँ से तीन घड़ी के रास्ते पर है और मैं आपको जरूर वहाँ ले जाऊँगा।

उस समय दिन कम ही रह गया था किंतु बादशाह को ऐसी उत्सुकता थी कि उसने अपने दरबारियों और रक्षकों को शीघ्र तैयार होने की आज्ञा दी। फिर वह मछुवारे के पीछे-पीछे हो लिया और उसके बताए हुए पहाड़ पर चढ़ गया। जब पहाड़ के दूसरी ओर उतरा तो वहाँ बड़ा विशाल वन दिखाई दिया। यह वन पहले किसी ने नहीं देखा था। फिर बादशाह और उसके साथियों ने वह वन भी पार किया और सब लोग उस तालाब के किनारे पहुँच गए जिसके चारों ओर चार टीले थे। उस तालाब का पानी अत्यंत निर्मल था और जिन चार रंगों की मछलियाँ उसे मछुवारे से मिलती थीं वैसी अनगिनत मछलियाँ उस तालाब में तैर रही थीं। बादशाह का आश्चर्य और बढ़ा। उसने अपने दरबारियों और सरदारों से पूछा कि तुम लोगों ने पहले भी इस तालाब को देखा है या नहीं। उन सब ने निवेदन किया कि हम लोगों ने इस तालाब को देखना कैसा, इसके बारे में सुना तक नहीं।

बादशाह ने कहा कि जब तक मैं इस तालाब और इस की रंगीन मछलियों का रहस्य अच्छी तरह समझ नहीं लूँगा यहाँ से नहीं जाऊँगा, तुम सब लोग भी यहाँ डेरा डालो। उसकी आज्ञानुसार दरबारियों और रक्षकों के डेरे तालाब के चारों ओर पड़ गए।

रात होने पर उसने मंत्री को अपने डेरे में बुलाया और कहा, 'मैं इस भेद को जानने के लिए अति उत्सुक हूँ कि उस बावर्चीखाने में हब्शी कैसे आया और उसने मछलियों से कैसे बात की, और यह भी जानना चाहता हूँ कि यह तालाब जिसे किसी ने नहीं देखा था अचानक कहाँ से आ गया। मैं अपने कौतूहल को दबा नहीं पा रहा हूँ, अतएव मैंने सोचा कि मैं अकेले ही इस रहस्य का उद्घाटन करूँ। मैं अकेला जा रहा हूँ। तुम यहीं रहो। प्रातःकाल जब दरबारी यहाँ पर दरबार के लिए आएँ तो उनसे कह दो कि बादशाह कुछ बीमार हो गए हैं और कुछ दिन यहीं पर शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं। यह कह कर सारे दरबारियों और रक्षकों को राजधानी वापस भेज देना और तुम इस डेरे में अकेले ही उस समय तक प्रतीक्षा करना जब तक मैं लौट न आऊँ।'

मंत्री ने बादशाह को बहुत समझाया 'महाराज आप यह न करें। इस काम में बड़ा खतरा है। यह भी संभव है कि इतना सब करने के बाद भी आपको कोई रहस्य ज्ञान न हो पाए। फिर बेकार में क्यों इतना कष्ट उठा रहे हैं और इतना खतरा मोल ले रहे हैं।' बादशाह पर उसके समझाने-बुझाने का कोई असर नहीं हुआ। उसने बादशाही पोशाक उतारी और एक साधारण सैनिक के वस्त्र पहन लिए। जब सब लोग गहरी नींद सोए हुए थे तब वह तलवार लेकर अपने खेमे से निकला और एक ओर चलता हुआ एक पहाड़ पर चढ़ गया। कुछ ही देर में वह उसकी चोटी पर पहुँच कर दूसरी ओर उतर गया। आगे उसे एक गहन वन दिखाई दिया। वह उसी के अंदर चलने लगा। कुछ दूर जाने पर पूरा सवेरा हो गया और उसे दूर जाने पर एक सुंदर प्रासाद दिखाई दिया। वह यह भवन देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे आशा बँधी कि उसे इस जगह तालाब के रहस्य का पता चलेगा।

भवन के निकट पहुँच कर उसने देखा कि वह बड़ा विशाल है और काले पत्थरों का बना है। उसकी दीवारों पर साफ किए हुए इस्पाती पत्तर जड़े थे जो दर्पण की भाँति चमकते थे। बादशाह को विश्वास हो गया कि यहाँ उसे मनोवांछित सूचना मिलेगी। वह बहुत देर तक खड़ा हुआ भवन की शोभा निहारता रहा फिर उसके पास चला गया। वह देख रहा था कि भवन का द्वार खुला है, फिर भी शिष्टता के नाते उसने ताली बजाई कि उसकी आवाज सुनकर कोई अंदर से आ जाए। जब कोई न आया तो उसने साँकल को खड़खड़ाया, यह सोच कर कि शायद उसकी ताली की आवाज अंदर तक नहीं पहुँची होगी।

साँकल खड़खड़ाने पर भी जब कोई नहीं निकला तो बादशाह को क्रोध आया कि अजीब घर है जहाँ बुलाने पर भी कोई आकर नहीं पूछता। वह अंदर चला गया और डयोढ़ी में पहुँच कर जोर से पुकारा कि क्या इस भवन के अंदर कोई मनुष्य है जो एक अतिथि के रहने के लिए थोड़ा स्थान दे। फिर भी उसे कोई उत्तर न मिला तो उसका आश्चर्य और बढ़ा। ड्योढ़ी से आगे बढ़ कर वह घर में घुसा तो देखा कि अंदर से और भी लंबा चौड़ा मकान है किंतु उसके अंदर कोई नहीं है। अब वह एक लंबे चौड़े आँगन को पार करके एक दालान में पहुँचा। उसमें रेशमी कालीन बिछा हुआ था। अंदर का मकान और भी सजा हुआ था। दरवाजों पर जड़ाऊ मखमल के परदे पड़े थे जिनमें सुनहरे और रुपहले फूल बूटे कढ़े थे। अंदर एक बारहदरी थी जिसमें एक हौज था जिसके चारों ओर सोने से चार शेर बने हुए थे। शेरों के मुँह से पानी के फव्वारे छूटते थे और जब उनका पानी नीचे संगमरमर के फर्श पर गिरता था तो मालूम होता था लाखों हीरे-जवाहरात उछल रहे हैं। हौज के बीच में एक फव्वारा था जिस पर अरबी अक्षरों में कुछ खुदा हुआ था और उसका पानी उछल कर बारहदरी की छत को छूता था।

इसके अलावा उस विशाल भवन में तीन बाग थे जिनमें बड़े सुघड़पन के साथ भाँति-भाँति के सुगंधित फूलों और उत्तम फलों के पेड़ लगे थे। बागों में हर चीज ऐसी तरतीब से लगी थी कि उन्हें देख कर दुखी मनुष्य भी आनंद में डूब जाए। वृक्षों पर नाना प्रकार के सुंदर पक्षी कलरव कर रहे थे।

वे पक्षी उन्हीं वृक्षों पर रहते थे, उड़कर नहीं जा सकते थे क्योंकि वृक्षों के ऊपर जाल पड़े हुए थे। बादशाह एक कमरे से दूसरे कमरे और एक बाग से दूसरे बाग में घूम-घूमकर हर वस्तु से आनंदित होता रहा। घूमते-घूमते वह थक गया और एक मकान में बैठ कर आराम करने लगा और सामने वाले बाग की शोभा देखने लगा।

इतने में उसे एक कातर वाणी सुनाई दी जैसे कोई बड़े दुख में कराह रहा हो। उसने कान धर कर सुना तो मालूम हुआ कि कोई मनुष्य रो-रो कर अपनी करुण कथा कह रहा है और अपने दुर्भाग्य को कोस रहा है। बादशाह ने उस कमरे का परदा उठाया जिसमें से यह आवाज आ रही थी। उसने देखा कि एक नवयुवक सिंहासन जैसी किसी ऊँची चीज पर राजसी वस्त्र पहने बैठा है और करुण स्वर में विलाप कर रहा है। बादशाह ने उसके निकट जाकर सलाम किया तो युवक बोला, 'मुझे क्षमा कीजिए मैं उठकर आपका स्वागत करने में असमर्थ हूँ इसीलिए मैं आपके पास न आ सका। बादशाह ने कहा, 'मैं आपके शीलवान व्यवहार से बड़ा प्रभावित हुआ हूँ। वास्तव में कोई ऐसा अपरिहार्य कारण होगा कि आप उठ न सके। किंतु आपके दुख को देख कर मुझे अति क्लेश हुआ है।

आप मुझे बताएँ कि मैं आपका कष्ट किस प्रकार दूर कर सकता हूँ। कृपया मुझे अपनी कठिनाई बताने में तनिक भी न हिचकें। कृपया यह बताएँ कि आप यहाँ इस मजबूरी की हालत में कैसे पड़े हैं। यह भी बताएँ कि यह भव्य प्रासाद किसका है और ऐसा निर्जन क्यों है। साथ ही यह भी बताएँ - क्योंकि मैं यही जानने के लिए निकला हूँ - कि पास के तालाब का रहस्य क्या है और उसकी मछलियाँ कौन हैं।'

जवान आदमी यह सुनकर फिर रोने लगा और बोला, 'मेरा हाल सुनने के पहले देख लीजिए। यह कह कर उसने अपना कपड़ा उठाया तो बादशाह ने देखा कि वह नाभि के ऊपर तो जीवित मनुष्य है और नीचे काले पत्थर का बना हुआ है। उसकी आँखें फटी रह गई और वह बोला, 'मुझे तो वैसे यहाँ की प्रत्येक वस्तु देख कर आश्चर्य हो रहा था किंतु आपका यह हाल देख कर मेरा आश्चर्य और उत्सुकता बहुत बढ़ गई है। भगवान के लिए अपना ब्योरेवार हाल कहिए। मुझे विश्वास हो रहा है कि तालाब की रंग-बिरंगी मछलियों के रहस्य का भी आपसे संबंध है। आप मुझे अपनी व्यथा-कथा शीघ्र कहिए क्योंकि दूसरे को सुनाने से आदमी का कुछ दुख तो दूर होता ही है।' जवान आदमी ने कहा कि मुझे अपनी दशा के वर्णन से भी कष्ट होता है किंतु आपका आदेश है इसलिए कहता हूँ। 

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अलिफ लैला
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अलिफ लैला की कहानी अरब देश की एक प्रचलित लोक कथा है जो पूरी दुनिया में सदियों से सुनी व पढ़ी जाती रही है। ... इस कथा के अनुसार, बादशाह शहरयार अपनी मलिका की बेवपफाई से दुःखी होकर उसका और उसकी सभी दासियों का कत्ल कर देता है और प्रतिज्ञा करता है कि रोजाना एक स्त्री के साथ विवाह करूंगा और अगली सुबह उसे कत्ल कर दूंगा।
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भूमिका

29 जनवरी 2022
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भूमिका (1)-अलिफ़ लैला सहस्र-रजनी चरित्र, जो अब भी भारत में अपने अरबी नाम 'अल्फ लैला' के प्रचलित बिगड़े हुए रूप 'अलिफ लैला' के नाम से अधिक जाना जाता है, वास्तव में लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोक

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शहरयार और शाहजमाँ

29 जनवरी 2022
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फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का

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किस्सा गधे, बैल और उनके मालिक

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एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल

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किस्सा व्यापारी और दैत्य का-

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शहरजाद ने कहा : प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए द

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किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का

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वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश क

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किस्सा तीसरे बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था

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तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक बार मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुल

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मछुवारे की कहानी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी मे

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गरीक बादशाह और हकीम दूबाँ की कथा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में एक रूमा नामक नगर था। उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था। उस बादशाह को कुष्ठ रोग हो गया। इससे वह बड़े कष्ट में रहता था। राज्य के वैद्य-हकीमों ने भाँति-भाँति से उसका रोग दूर करने के उपाय किए क

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भद्र पुरुष और उसके तोते की कथा

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पूर्वकाल में किसी गाँव में एक बड़ा भला मानस रहता था। उसकी पत्नी अतीव सुंदरी थी और भला मानस उससे बहुत प्रेम करता था। अगर कभी घड़ी भर के लिए भी वह उसकी आँखों से ओझल होती थी तो वह बेचैन हो जाता था। एक बा

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अमात्य की कहानी

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प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, राजकुमार की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य

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काले द्वीपों के बादशाह की कहानी

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उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले द्वीपों का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों

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किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का

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शहरजाद की कहानी रात रहे समाप्त हो गई तो दुनियाजाद ने कहा - बहन, यह कहानी तो बहुत अच्छी थी, कोई और भी कहानी तुम्हें आती है? शहरजाद ने कहा कि आती तो है किंतु बादशाह की अनुमति हो तो कहूँ। बादशाह ने अनुमत

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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पहले फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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पहले फकीर ने अदब से घुटनों के बल खड़े होकर कहा 'सुंदरी, अब ध्यान लगाकर सुनो कि मेरी आँख किस प्रकार गई और मैं क्यों फकीर बना। मैं एक बड़े बादशाह का बेटा था। बादशाह का भाई यानी मेरा चचा भी एक समीपवर्ती

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दूसरे फकीर की कहानी

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अभी पहले फकीर की अद्भुत आप बीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से लोग उबरे नहीं थे कि जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा कि तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने कहा कि आपकी आज्ञानुसार मैं आप को बताऊँग

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भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष

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किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता ह

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किस्सा तीसरे फकीर का

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हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी आँख मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा

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किस्सा जुबैदा का

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जुबैदा ने खलीफा के सामने सर झुका कर निवेदन किया है राजाधिराज, मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी। मैं और वे दोनों काली कुतियाँ तीनों सगी बहिनें हैं और यह दो स्त्

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किस्सा अमीना का

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अमीना ने कहा, 'जुबैदा की कहानी आप उसके मुँह से सुन चुके, अब मैं अपनी कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत करती हूँ। मेरी माँ मुझे लेकर अपने घर में आई कि रँड़ापे का अकेलापन उसे न खले। फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर

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सिंदबाज जहाजी की कहानी

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जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी

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सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा

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सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर उसे भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्र

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सिंदबाद जहाजी की दूसरी यात्रा

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मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेच

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सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

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सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के कष्ट और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्या

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सिंदबाद जहाजी की चौथी यात्रा

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सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ। मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे व

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सिंदबाद जहाजी की पाँचवी यात्रा

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सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार

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सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा

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सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कहा कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्

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सिंदबाद जहाजी की सातवीं यात्रा

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सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक

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एक स्त्री और तीन नौकरों का वृत्तांत

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शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को कहा। शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर प्रजा का

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जवान और मृत स्त्री

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उस जवान ने कहा कि 'मृत स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे चचा हैं। ग्यारह वर्ष पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता

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नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन

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मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि

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काशगर के दरजी और बादशाह के कुबड़े सेवक

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दूसरी रात को मलिका शहरजाद ने पिछले पहर अपनी बहन दुनियाजाद के कहने से यह कहानी सुनाना आरंभ किया। पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशगर में एक दरजी था जो अपनी दुकान में बैठ कर कपड़े सीता था।

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ईसाई द्वारा सुनाई गई

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ईसाई ने कहा, मैं मिस्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ। मेरा बाप दलाल था। उस के पास काफी पैसा हो गया। उस ने मरने के बाद मैं ने भी वही व्यापार आरंभ किया। एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार

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अनाज के व्यापारी

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अनाज का व्यापारी बोला कि कल मैं एक धनी व्यक्ति की पुत्री के विवाह में गया था। नगर के बहुत-से प्रतिष्ठित व्यक्ति उसमें शामिल थे। शादी की रस्में पूरी होने पर दावत हुई और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए।

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उस आदमी की कहानी जिसके चारों अँगूठे कटे थे

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उस ने कहा कि दोस्तो, मेरा पिता बगदाद का रहनेवाला था और खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में था। मैं भी उसी समय पैदा हुआ। मेरा पिता यद्यपि धनवान तथा बड़े व्यापारियों में गिना जाता था तथापि वह बहुत ही विलासी औ

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यहूदी हकीम द्वारा वर्णित

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यहूदी हकीम ने बादशाह के सामने झुक कर जमीन चूमी और कहा कि पहले मैं दमिश्क नगर में हकीमी किया करता था। अपनी चिकित्सा विधि के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हो गई थी। एक दिन वहाँ के हाकिम ने मुझ से कहा कि

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काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा

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दरजी ने कहा कि इस नगर के व्यापारी ने एक बार अपने मित्रों को भोज दिया और उनके लिए भाँति-भाँति के व्यंजन बनवाए। मुझे भी बुलाया गया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि बहुत-से निमंत्रित लोग मौजूद हैं किंतु मक

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लँगड़े आदमी की कहानी

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मेरा पिता बगदाद के सम्मानित व्यक्तियों में से था और हम लोग आनंदपूर्वक वहाँ रह रहे थे। मैं अपने पिता का अकेला बेटा था। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय तक मैं न केवल विद्याध्ययन पूरा कर चुका था ब

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दरजी की जबानी नाई की कहानी

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खलीफा हारूँ रशीद के काल में बगदाद के आसपास दस कुख्यात डाकू थे जो राहगीरों को लूटते ओर मार डालते थे। खलीफा ने प्रजा के कष्ट का विचार कर के कोतवाल से कहा कि उन डाकुओं को पकड़ कर लाओ वरना मैं तुम्हें प्र

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नाई के कुबड़े भाई

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सरकार, मेरा सबसे बड़ा भाई जिसका नाम बकबक था, कुबड़ा था। उसने दरजीगीरी सीखी और जब यह काम सीख लिया तो उसने अपना कारबार चलाने के लिए एक दुकान किराए पर ली। उस की दुकान के सामने ही एक आटा चक्कीवाले की दुका

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नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी

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दूसरे रोज खलीफा के सामने पहुँच कर मैं ने कहा कि मेरा दूसरा भाई बकबारह पोपला है। एक दिन उससे एक बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हारे लाभ की एक बात कहती हूँ। एक बड़े घर की स्वामिनी तुम से आकृष्ट है। मैं तुम्हें

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नाई के तीसरे भाई अंधे बूबक की कहानी

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नाई ने कहा, सरकार, मेरा तीसरा भाई बूबक था जो बिल्कुल अंधा था। वह बड़ा अभागा था। वह भिक्षा से जीवन निर्वाह करता था। उसका नियम था कि अकेला ही लाठी टेकता हुआ भीख माँगने जाता और किसी दानी का द्वार खटखटा क

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नाई के चौथे भाई काने अलकूज

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नाई ने कहा कि मेरा चौथा भाई काना था और उसका नाम अलकूज था। अब यह भी सुन लीजिए कि उसकी एक आँख किस प्रकार गई। मेरा भाई कसाई का काम करता था। उसे भेड़-बकरियों की अच्छी पहचान थी। वह मेढ़ों को लड़ाने के लिए

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नाई के पाँचवें भाई अलनसचर

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नाई ने कहा कि मेरे पाँचवें भाई का नाम अलनसचर था। वह बड़ा आलसी और निकम्मा था। वह रोज किसी न किसी मित्र के पास जा कर बेशर्मी से कुछ भीख माँग लेता और खा-पी कर पड़ा रहता। मेरा बाप कुछ समय बाद बूढ़ा हो कर

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नाई के छठे भाई कबक जिसके होंठ खरगोश की तरह के थे

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नाई ने कहा कि अब मेरे आखिरी भाई शाह कबक का वृत्तांत रह गया है। इसे भी सुन लीजिए, फिर मैं आप से विदा लूँ। इस भाई का नाम शाह कबक था और उसके होंठ खरगोश की तरह ऊपर को चढ़े हुए थे और वह चलता भी खरगोश की तर

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शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार

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खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक

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कमरुज्जमाँ और बदौरा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में बीस दिन की राह पर एक देश खलदान है। उस देश में कई टापू भी शामिल हैं। बहुत दिन पहले वहाँ का बादशाह शाहजमाँ था। उसके चार पत्नियाँ थीं और सात विशेष दासियाँ। वह बड़ा प्रतापी राजा था, उसके दे

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नूरुद्दीन और पारस देश की दासी

29 जनवरी 2022
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अगली सुबह से पहले शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि पहले जमाने में बसरा बगदाद के अधीन था। बगदाद में खलीफा हारूँ रशीद का राज था और उसने अपने चचेरे भाई जुबैनी को बसरा का हाकिम बनाया था। जुबैनी के

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ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशा

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गनीम और फितना

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दुनियाजाद ने मलिका शहरजाद से नई कहानी सुनाने को कहा और बादशाह शहरजाद ने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी तो शहरजाद ने नई कहानी शुरू कर दी। उसने कहा कि पुराने जमाने में दमिश्क नगर में एक व्यापारी रहता था जिस

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शहजादा जैनुस्सनम और जिन्नों के बादशाह

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में बसरा में एक बड़ा ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय बादशाह राज करता था। उसे सबकुछ प्राप्त था किंतु उसे बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई जिससे वह बहुत दुखी रहता था। नगर निवासी भी बादशाह के साथ म

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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी-

29 जनवरी 2022
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उपर्युक्त कहानी के मध्य में एक यात्रा में जैनुस्सनम के दरियाबार देश मे जाने का भी उल्लेख है। वहाँ की एक चित्ताकर्षक कथा उस ने सुनी थी। वह कथा भी इस जगह कही जाती है। हैरन नगर में एक बड़ा प्रतापी बादशा

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दरियाबार की शहजादी

29 जनवरी 2022
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उस सुंदरी ने कहा कि काहिरा के निकट दरियाबार नाम एक द्वीप है। उस का बादशाह सब प्रकार से सुखी था किंतु उसे संतान न होने का बड़ा दुख था। वर्षों की प्रार्थनाओं और सिद्धों के आशीर्वादों से उस के यहाँ एक पु

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सोते-जागते आदमी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में बगदाद में एक धनी व्यापारी था। उस का एक ही पुत्र था जिसका नाम अबुल हसन था। व्यापारी बड़ा कंजूस था। वह धन एकत्र ही करता था, खर्च बहुत कम करता था। इसलिए जब

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अलादीन और जादुई चिराग

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चीन की राजधानी में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं करता था सिर्फ खेल-कूद में समय ब

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खलीफा हारूँ रशीद और बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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दुनियाजाद के प्रस्ताव और शहरयार की अनुमति से नई कहानी प्रारंभ करते हुए शहरजाद ने कहा कि कभी-कभी आदमी का चित्त प्रसन्न होता है और उसकी कोई साफ वजह भी नहीं होती। ऐसी स्थिति भी होती है जब आदमी खुश तो होत

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अंधे बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सार

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सीदी नोमान

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भिखारी की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने बराबर घोड़ी दौड़ानेवाले पर ध्यान दिया और उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है। उसने अपना नाम सीदी नोमान बताया। खलीफा ने कहा, मैंने बहुत-से घुड़सवारों और साईसों को दे

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ख्वाजा हसन हव्वाल

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ख्वाजा हसन ने कहा कि मैं अपनी बात बताने के पहले अपने दो मित्रों के बारे में बताना चाहता हूँ। वे अभी जीवित हैं और यहीं बगदाद में रहते हैं। वे मेरे प्रत्येक कथन की पुष्टि करेंगे। उनमें से एक का नाम सादी

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अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी

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अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री

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बगदाद के व्यापारी अली ख्वाजा

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खलीफा हारूँ रशीद के राज्य काल में बगदाद में अलीख्वाजा नामक एक छोटा व्यापारी रहता था। वह अपने पुश्तैनी मकान में, जो छोटा-सा ही था, अकेला रहता था। उसने विवाह नहीं किया था और उसके माता पिता की भी मृत्यु

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यंत्र के घोड़े

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बादशाह सलामत, आपको यह मालूम ही है कि हजारों वर्ष से फारस में नौरोज यानी वर्ष का प्रथम दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उसमें सभी लोग विशेषतः अग्निपूजक, भाँति-भाँति के नृत्यों और खेल-तमाशों का आय

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शहजादा अहमद और परीबानू

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शहरजाद ने कहा, बादशाह सलामत, पुराने जमाने में हिंदोस्तान का एक बादशाह बड़ा प्रतापी और ऐश्वर्यवान था। उसके तीन बेटे थे। बड़े का नाम हुसैन, मँझले का अली और छोटे का अहमद था। बादशाह का एक भाई जब मरा तो उस

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ईर्ष्यालु बहनों की कहानी

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पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नामी शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। ज

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बैल और गधा

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एक बार एक सौदागर था जो बहुत अमीर था। उसके पास बहुत सारे नौकर चाकर और जानवर थे। उसकी एक पत्नी थी और परिवार था और वह अपने खाने पीने के लिये खेती करता था। उसके पास जंगली जानवरों और हर तरह की चिड़िया की बो

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भेड़िये और लोमड़े की कहानी

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एक बार एक लोमड़ा और एक भेड़िया एक ही घर में रहते थे। भेड़िया बहुत ही बेरहम था जबकि लोमड़ा बहुत नरम दिल था। इसी तरह से रहते हुए उन्हें कुछ दिन हो गये कि एक दिन वह लोमड़ा भेड़िये से बोला — “अगर तुम इसी तरीके

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लोमड़े और कौए की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक लोमड़ा एक पहाड़ की एक गुफा में रहता था। जब भी उसको एक बच्चा पैदा होता और वह बड़ा हो जाता तो वह उसको खा जाता क्योंकि उसको भूख बहुत लगती थी। अगर वह अपने बच्चों को न खाता तो उसके वे बच्चे बड़े हो जाते और

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साही और कबूतर

29 जनवरी 2022
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एक बार एक साही एक खजूर के पेड़ के नीचे रहने के लिये आया। उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपनी पत्नी के साथ रहता था। साही ने सोचा कि यह कबूतर का जोड़ा तो इस पेड़ के फल खाता है पर मुझे इस पेड़ के फल खाने का कोई मौ

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बतख और कछुए की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक बतख बहुत ऊपर उड़ा और बहते हुए पानी में खड़ी एक चट्टान पर जा कर बैठ गया। जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो पानी की एक लहर एक आदमी का ढाँचा उसके पास ला कर छोड़ गयी। बतख ने उसको ठीक से देखा तो उसको पता लग

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चुहिया और एक ततैये की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक चुहिया और एक मादा ततैया एक गरीब किसान के घर में एक साथ ही रहते थे। एक बार उस किसान का एक दोस्त बीमार पड़ गया तो डाक्टर ने उसको धुले तिल21 खाने की सलाह दी। सो उस किसान ने एक आदमी से अपने दोस्

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कौआ और बिल्ला

29 जनवरी 2022
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एक समय की बात है कि एक कौआ और एक बिल्ला दोनों आपस में बड़े गहरे दोस्त थे और साथ साथ रहते थे। एक दिन वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे कि उन्होंने एक चीते23 को अपनी तरफ आते हुए देखा। उनको उसके अपनी त

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चिड़ा और मोर

29 जनवरी 2022
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एक बार की बात है एक चिड़ा रोज सुबह सुबह चिड़ियों के राजा से मिलने जाता था और सारा दिन उसकी सेवा में खड़ा रहता था। वह सबसे पहले वहाँ पहुँचता था और सबसे बाद में वहाँ से वापस आता था। एक बार कुछ चिड़ियों ने

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मुर्गे और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक गाँव में एक शेख रहता था। उसकी अपने गाँव में बहुत अच्छी साख थी और वह एक बहुत ही समझदार आदमी था। उसके अपने पास बहुत सारे मुर्गे मुर्गियाँ थे। वह उनको बढ़ाने के लिये उनकी बहुत अच्छी देखभाल करता

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चिड़ियें, जानवर और बढ़ई

29 जनवरी 2022
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जानवरों की यह कहानी बहुत ही मजेदार है। हो सकता है कि तुम इसको बार बार पढ़ना पसन्द करो और हर किसी को खास करके अपने छोटे भाई बहिनों को बार बार सुनाना पसन्द करो। बहुत पुरानी बात है कि एक मोर अपनी पत्नी क

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