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शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार

29 जनवरी 2022

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खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक कि खलीफा के आवास के लोगों में भी वह विश्वस्त था और महल की उच्च सेविकाएँ उसी के यहाँ से वस्त्राभूषण आदि लिया करती थीं। खलीफा का कृपापात्र होने के कारण सभी प्रतिष्ठित नागरिक उसके ग्राहक थे और उसका व्यापार खूब चलता था। बका नामक एक अमीर का बेटा अबुल हसन विशेष रूप से उसका मित्र था और रोज दो-तीन घंटे उसकी दुकान पर बैठता था। बका फरस देश के अंतिम राजवंश का व्यक्ति था इसलिए अबुल हसन को भी शहजादा कहा जाता था।

अबुल हसन अत्यंत रूपवान युवक था। जो स्त्री-पुरुष भी उसे देखता वह मोहित हो जाता था। इसके अतिरिक्त अबुल हसन बड़ा कला प्रवीण था। गायन-वादन और कविता करने में भी वह अद्वितीय था। वह व्यापारी की दुकान में जब गाना-बजाना शुरू कर देता था तो उसे सुनने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी।

एक दिन शहजादा अबुल हसन व्यापारी की दुकान पर बैठा था। उसी समय चितकबरे रंग के खच्चर पर सवार एक युवती आई। उसके आगे-पीछे दस सेविकाएँ भी थीं। वह सुंदरी कमर में एक सफेद पटका बाँधे थी जिसमें चार अंगुल चौड़ी लेस टँकी हुई थी। वह हीरे-मोती जड़े इतने आभूषण पहने थी जिनके मूल्य का अनुमान भी कठिन काम है। उसकी दासियों की सुंदरता भी झिलमिले नकाबों के अंदर से झलक मारती थी, फिर स्वयं स्वामिनी की सुंदरता का क्या कहना।

वह युवती अपनी जरूरत का कुछ सामान लेने के लिए उक्त व्यापारी की दुकान पर आई। व्यापारी उसे देख कर झपट कर आगे बढ़ा और अत्यंत स्वागत-सत्कारपूर्वक उसे दुकान के अंदर ले आया और एक सज्जित कक्ष में बिठाया। शहजादा अबुल हसन भी एक कमख्वाब से मढ़ी हुई तिपाई ले आया और सुंदरी के सामने उसे रख कर उसके पाँव उस पर रखे और झुक कर कालीन की उस जगह का चुंबन किया जहाँ उसके पाँव रखे थे।

अब उस सुंदरी ने सुरक्षित स्थान समझ कर अपने चेहरे का नकाब उतार दिया। शहजादा अबुल हसन उसके अनुपम सौंदर्य को देख कर आश्चर्यचकित रह गया। वह सुंदरी भी शहजादे के मोहक रूप को देख कर मोहित हो गई। दोनों एक दूसरे के प्रेम-पाश में जकड़ गए। सुंदरी ने कहा कि आप बैठ जाएँ, मेरे सन्मुख आपका खड़े रहना ठीक नहीं। अबुल हसन बैठ तो गया किंतु चित्रवत उसे देखता ही रहा।

वह सुंदरी शहजादे की दशा से समझ गई कि यह मुझ पर मुग्ध है। उसने उठ कर व्यापारी को अलग ले जा कर अपनी इचिछत वस्तुओं के बारे में पूछताछ और मोलभाव किया और फिर उस शहजादे का नाम-पता पूछा। व्यापारी ने कहा, महोदया, यह नौजवान अबुल हसन है। यह बका का पुत्र है। इसका दादा ईरान का अंतिम बादशाह था। इसके परिवार की कई कन्याएँ खलीफा के वंश में ब्याही गई हैं। वह सुंदरी इस बात से बड़ी प्रसन्न हुई कि उच्चवंशीय है। उसने व्यापारी से कहा, मुझे यह नौजवान बड़ा सुसंस्कृत लगता है और इसके साथ बात कर के मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। आप की सहायता से मुझे इससे भेंट होने की आशा है। मैं एक विशेष दासी को आपके पास भेजूँगी। उस समय आप इसे अपने साथ ले कर मेरे यहाँ आएँ। मैं इसे अपने बाग और महल की सैर कराऊँगी और इससे उसका जी खुश होगा। आप मुझ पर कृपा कर के इसे अपने साथ जरूर लाएँ।

व्यापारी समझ गया कि सुंदरी भी शहजादे पर मुग्ध है। उसने शहजादे को लाने का वादा किया। इसके बाद वह अनिंद्य सुंदरी अपने रूप की छटा बिखेरती हुई अपने घर को चल दी। शहजादा बड़ी देर तक टकटकी लगाए उस मार्ग को देखता रहा जहाँ से हो कर वह गई थी। काफी देर इसी तरह बीती तो व्यापारी ने कहा, भाई, यह तुम्हें क्या हो गया है? एक ही जगह पागल की तरह देखे जा रहे हो। लोग तुम्हें इस दशा में देखेंगे तो कितना हँसेंगे। तुम अपने को सँभालो और दूसरी बातों में ध्यान लगाओ।

शहजादे ने कहा, मित्र, यदि तुम मेरे हृदय की दशा जानते तो शायद ऐसा न कहते। जब से मैंने उस मनमोहिनी को देखा है, मैं उसी का हो रहा हूँ। उसका ध्यान बिल्कुल नहीं भुला पा रहा हूँ। भगवान के लिए यह तो बताओ कि उसका नाम क्या है और वह कहाँ रहती है। व्यापारी ने कहा, मेरे प्यारे मित्र, इस सुंदरी का नाम शमसुन्निहार है। यह खलीफा की सबसे चहेती सेविका है। अबुल हसन ने कहा, यह सुंदरी यथा नाम तथा गुण है। शमसुन्निहार का अर्थ है दोपहर का सूर्य। इसका सौंदर्य वास्तव में दोपहर की सूर्य की भाँति प्रखर है जिस पर निगाह नहीं ठहरती। इसीलिए एक बार इसे देखने पर मैं और कुछ देख नही पा रहा हूँ।

व्यापारी ने समझाना चाहा कि उस सुंदरी के प्रेम में फँसना ठीक नहीं है। उसने कहा, यह खलीफा की सबसे प्यारी सेविका है और वे इसे इतना मानते है कि मुझे कह रखा है कि इसे जिस चीज की जरूरत हो इसे तुरंत दी जाए, यह मेरा निश्चित आदेश है। इस प्रकार व्यापारी ने और भी बातें कहीं कि खलीफा का प्रेम-प्रतिद्वंद्वी बनने में जान का खतरा है। लेकिन अबुल हसन पर उसके समझाने-बुझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह शमसुन्निहार के लिए तड़पता रहा।

यह सब चल रहा था कि एक दिन शमसुन्निहार की भेजी हुई विशेष दासी आई। उसने चुपके से व्यापारी से कहा कि स्वामिनी ने आपको और शहजादे को बुलाया है। वे दोनों तुरंत उसके साथ हो लिए। शमसुन्निहार खलीफा के विशाल राजप्रासाद के एक कोने में बने हुए भव्य आवास में रहती थी। दासी दोनों आदमियों को अपनी स्वामिनी के आवास में एक गुप्त द्वार से ले गई। अंदर ले जा कर उसने दोनों को एक स्वच्छ और सुंदर स्थान पर बिठाया। तुरंत ही सुसंस्कृत सेवकों ने सोने की तश्तरियों में भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थ ला कर रख दिए। जब वे लोग जी भर खा चुके तो एक दासी उनके लिए सुगंधित मदिरा मूल्यवान प्यालों में लाई। मद्यपान के बाद उनके हाथ धुलवाए गए और भाँति-भाँति के इत्र उनके सामने लाए गए जिन्हें उन्होंने अपने कपड़ों पर मला।

इसके बाद वही विश्वस्त दासी इन लोगों को एक अति सुंदर बारहदरी में ले गई। उसकी छत गुंबद की तरह थी और उसमें रत्न जड़े थे। सामने की ओर संगमरमर के दो विशाल खेमे थे जिनमें नीचे की ओर भाँति-भाँति के पशु-पक्षियों के सुंदर रंगों में मनोहारी चित्र बने थे। बारहदरी के फर्श पर भी तरह-तरह के फूल-बूटों के चित्र बने थे। एक ओर नाजुक-सी दो अल्मारियाँ रखी थीं। जिनमें चीनी, बिल्लौर, संगमूसा आदि के अत्यंत सुंदर पात्र रखे हुए थे। उन पात्रों पर सोने के पानी से बड़े सुंदर चित्र बने थे और सुलेख लिखे हुए थे। दूसरी ओर के खंभों में दरवाजे लगे थे। जिसके बाद बरामदा था। बरामदे के बाद बाग था। बाग की जमीन पर भी रंगीन पत्थर जड़े हुए थे। बारहदरी के दोनों ओर दो सुंदर और बड़े हौज थे जिनमें सैकड़ों फव्वारे छूट रहे थे। बाग में बीसियों तरह के पक्षी वृक्षों पर बैठे चहचहा रहे थे।

यह लोग उस अनुपम शोभा का आनंद ले ही रहे थे कि बहुत-सी दासियाँ जो सुंदर वस्त्राभूषण पहने थीं आईं और बारहदरी में बिछी हुई सुनहरे काम की चौकियों पर बैठ गईं और तरह-तरह के वाद्ययंत्र अपने सामने रख कर उन्हें ठीक करने लगीं ताकि आज्ञा मिलते ही गाना-बजाना शुरू कर दें। यह दोनों भी ऐसे स्थान पर बैठ गए जहाँ से सब कुछ देख सकें। उन्होंने देखा कि एक ओर ऊँची रत्नजटित चौकी रखी है। व्यापारी ने शहजादे से चुपके से कहा, अनुमानतः यह बड़ी चौकी स्वयं शमसुन्निहार के बैठने के लिए है। यह महल खलीफा के राजप्रासाद ही का एक भाग है किंतु इसे विशेष रूप से शमसुन्निहार के लिए बनवाया गया है। कारण यह है कि खलीफा के महल में जितनी दासियाँ और सेविकाएँ हैं उनमें वह सब से अधिक शमसुन्निहार ही को चाहता है। शमसुन्निहार को अनुमति है कि जहाँ चाहे खलीफा से पूछे बगैर चली जाए। खलीफा स्वयं भी जब इसके पास आना चाहता है तो पहले से संदेश भिजवा कर आता है। वह अभी आती ही होगी।

व्यापारी शहजादे से यही वार्ता कर रहा था कि एक दासी ने आ कर गानेवालियों से कहा कि गाना-बजाना शुरू करो। उन लोगों ने तुरंत अपने-अपने साजों को बजाना शुरू कर दिया और गानेवालियाँ गाने लगीं। शहजादा उस स्वर्गोपम संगीत को सुन कर मुग्ध- सा रह गया। इतने में दासियों ने शमसुन्निहार के आने की घोषणा की। शहजादा भी सँभल कर बैठ गया। सब से पहले वही विशेष और मुख्य दासी आई जिसने दस मजदूरिनों से उठवा कर बड़ी चौकी शहजारे के बैठने की जगह के पास रखवाई। फिर कई हब्शिन बाँदियाँ हथियार ले कर उस चौकी के पीछे पंक्तिबद्ध हो कर खड़ी हो गईं। बीस गायिकाएँ और वाद्यकर्मियाँ सामने खड़ी हो गईं जहाँ से वह आनेवाली थीं।

कुछ ही देर में मंद-मंद हंसगति से चलती हुई शमसुन्निहार उन्हीं प्रतीक्षारत सेविकाओं के मध्य अपनी चौकी की ओर आने लगी। उसकी दासियाँ भी सुंदर थीं किंतु उसके रूप की छटा सब से निराली थी। वह सिर से पाँव तक रत्नजटित आभूषणों से लदी थी और दो दासियों के कंधों पर हाथ रखे हुए धीरे-धीरे चल रही थी। वह आ कर अत्यंत शालीनतापूर्वक अपने आसन पर विराजमान हुई। बैठने के बाद उसने संकेत से उसका अभिवादन किया। फिर शमसुन्निहार ने गाने-बजानेवाली सेविकाओं को आज्ञा दी कि अपनी कला का प्रदर्शन करें। हब्शिनों ने गानेवालियों की चौकियाँ उस जगह के समीप लगा दीं जहाँ व्यापारी और शहजादे की चौकी बिछी थी। वे गानेवालियाँ व्यवस्थापूर्वक अपनी चौकियों पर बैठ गईं।

शमसुन्निहार ने एक गानेवाली से कहा कि कोई श्रृंगारिक राग गाओ। उसने अत्यंत मृदु स्वर में एक तड़पता हुआ गीत गाया। यह गीत शहजादे और शमसुन्निहार की दशा को व्यक्त कर रहा था। शहजादा भावातिरेक में बेहाल हो गया। उसने एक वादिका से बाँसुरी ली और बाँसुरी पर तड़पते हुए प्रेम की एक ध्वनि निकाली और बहुत देर तक उसे बजाता रहा। जब उसने बजाना खत्म किया तो शमसुन्निहार ने वही बाँसुरी उससे ली और एक हृदयग्राही ध्वनि निकाली जिसमें शहजादे की बजाई रागिनी से अधिक तड़प थी। शहजादे ने फिर एक वाद्य यंत्र लिया और एक अति मोहक रागिनी उस पर बजानी शुरू की। अब ऐसा वातावरण हो गया कि शहजादा और शमसुन्निहार इतने प्रेम विह्वल हो गए कि उनका संयम जाता रहा। शमसुन्निहार अपनी चौकी से उठ कर बारहदरी के अंदरूनी हिस्से में जाने लगी। शहजादा भी उसके पीछे चल दिया। दो क्षण बाद ही दोनों आलिंगनबद्ध हो गए और सुध-बुध खो कर जमीन पर गिर पड़े।

दासियों ने दौड़ कर दोनों को सँभाला और बेदमुश्क का अरक छिड़क कर दोनों को चैतन्य किया। शमसुन्निहार ने होश में आते ही पूछा कि व्यापारी कहाँ है। व्यापारी बेचारा अपनी जगह बैठा काँप रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस कांड की परिणति कहाँ होगी और खलीफा को यह हाल मालूम हो जाएगा तो क्या होगा। शहजादे ने आ कर कहा कि शमसुन्निहार तुम्हें बुलाती है तो वह उठ कर उसके पास आया। शमसुन्निहार ने उससे कहा कि मैं आप की बड़ी आभारी हूँ कि आप ने शहजादे से मेरा मिलन करवा दिया। व्यापारी ने कहा, मुझे यह आश्चर्य है कि आप लोग एक-दूसरे से मिलन होने पर भी इतने विह्वल क्यों हैं। शमसुन्निहार ने कहा कि सच्चे प्रेमियों की यही दशा होती है, उन्हें वियोग का दुख तो सालता ही है, मिलन में भी उनकी व्याकुलता कम नहीं होती।

यह कहने के बाद शमसुन्निहार ने दासियों को भोजन लाने की आज्ञा दी। शमसुन्निहार, शहजादे और व्यापारी ने रुचिपूर्वक भोजन किया। फिर शमसुन्निहार ने शराब का प्याला उठाया और एक गीत गा कर उसे पी गई। दूसरा प्याला उसने शहजादे को दिया। उसने भी एक गीत गा कर प्याला पी लिया।

यह आनंद मंगल हो ही रहा था कि एक दासी ने धीरे से कहा कि खलीफा का प्रधान सेवक मसरूर खलीफा का संदेश लाया है और आपकी प्रतीक्षा में खड़ा है। शहजादा और व्यापारी यह बात सुन कर बड़े भयभीत हुए और उनके मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। शमसुन्निहार ने उन्हें धीरज बँधाया और दासी से कहा कि तुम मसरूर को कुछ देर बातों में उलझाओ ताकि मैं शहजादे को छुपा सकूँ, मैं शहजादे को छुपा लूँगी तो मसरूर को बुलाऊँगी। वह दासी गई तो शमसुन्निहार ने आज्ञा दी कि बारहदरी के दरवाजे बंद कर दो और बाग की तरफ लगे बड़े परदे गिरा दो ताकि रोशनी न आए। फिर उसने शहजादे और व्यापारी को बारहदरी के ऐसे कोने में बिठा दिया जहाँ से वे किसी को दिखाई न दें। यह सब कर के उसने पूर्ववत गाने-बजाने वालियों को कला प्रदर्शन की आज्ञा दी और आदेश दिया कि मसरूर को अंदर लाया जाए।

मसरूर बीस दासों के साथ आया और शमसुन्निहार को झुक कर अभिवादन करने के बाद बोला कि खलीफा आपके विरह में व्याकुल हैं और आपसे भेंट के लिए बड़े इच्छुक हैं। शमसुन्निहार ने खुश हो कर कहा, यह तो मेरा बड़ा भाग्य है कि वे कृपा करना चाहते हैं। मैं तो उनकी दासी हूँ। जब चाहें आएँ। लेकिन मसरूर साहब, आप कुछ देर लगा कर ही उन्हें लाएँ। कहीं ऐसा न हो कि जल्दी में खलीफा के स्वागत के प्रबंध में कुछ त्रुटि रह जाए।

यह कह कर शमसुन्निहार ने मसरूर और उसके सेवकों को विदा किया और खुद आँखों में आँसू भर कर शहजादे के पास आई। व्यापारी उसे आँसू बहाते देख कर घबराया कि कहीं ऐसा न हो कि भेद खुल गया हो। शहजादा भी प्रेम-मिलन में यह अचानक व्याघात देख कर अत्यंत दुखी हो कर आहें भरने लगा। इतने ही में एक विश्वसनीय दासी ने शमसुन्निहार से कहा कि आप बैठी क्या कर रही हैं, नौकर-चाकर आने लगे हैं और खलीफा किसी भी समय आ सकते हैं। शमसुन्निहार ने सर्द आह खींच कर कहा कि भगवान भी कैसा निर्दयी है कि मिलन होते ही विरह का दुख हम पर डाल दिया। यह कह कर उसने दासी से कहा, इन दोनों को ले जा कर उस मकान में रखो जो बाग के दूसरे कोने पर है। इन्हें बिठा कर मकान में ताला लगा देना। फिर अवसर पाने पर इन्हें मकान के गुप्त द्वार से निकाल कर दजला नदी के किनारे ले जा कर नाव पर बिठा देना।

यह कह कर उसने शहजादे का आलिंगन कर के उसे विदा किया। दासी ने होशियारी के साथ शहजादे और व्यापारी को दजला नदी के तटवाले मकान में पहुँचा कर कहा कि तुम बेखटके यहाँ रहो, किसी को पता नहीं चलेगा। यह कह कर दासी तो मकान में बाहर से ताला लगा कर चली गई किंतु यह दोनों काफी देर तक इधर-उधर घूम कर देखते रहे कि शायद कहीं भागने का रास्ता मिल जाए, किंतु उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला। फिर उन्होंने झरोखे से देखा कि खलीफा के अंगरक्षक पैदल और सवार बाग में आ रहे हैं। यह देख कर इन दोनों के प्राण सूखने लगे। फिर देखा कि एक ओर से बहुत-से नौजवान सेवक हाथों में मोमबत्तियाँ लिए आ रहे हैं, उनके पीछे सौ हथियारबंद अंगरक्षक हैं और उनके मध्य खलीफा और उसका प्रधान भृत्य मसरूर हैं। जब खलीफा रात को किसी प्रेयसी के घर जाता था तो पूरी सुरक्षा का प्रबंध किया जाता था।

शमसुन्निहार अपने मकान से निकल कर बीस सुंदर सुसज्जित दासियों के साथ खलीफा के स्वागत के लिए बाग में आ खड़ी हुई। उसके साथ ही दासियाँ स्वागत गान गाने लगीं। खलीफा आया तो शमसुन्निहार आगे बढ़ी और उसने सिर खलीफा के पाँवों पर रख दिया। खलीफा ने उसे उठा कर सीने से लगाया और कहा, तुम पैरों पर न गिरो, मेरे बगल में बैठो ताकि मैं तुम्हारे सौंदर्य को देख कर तृप्त होऊँ। शमसुन्निहार खलीफा के बगल में बैठी और उसने एक गानेवाली को इशारा किया। गानेवाली ने एक विरह संबंधी गीत बड़े करुण स्वर में गाया। खलीफा ने समझा कि यह मेरी उपेक्षा से पैदा हुए अपने विरह दुख की अभिव्यक्ति करना चाहती है जब कि वास्तविकता यह थी कि शमसुन्निहार शहजादे के विरह में अपनी दशा की अभिव्यक्ति चाहती थी।

शमसुन्निहार यह विरह गीत सुन कर इतनी विह्वल हुई कि गश खा कर गिरने लगी। दासियों ने दौड़ कर उसे सँभाला। उधर शहजादा भी उस गीत को सुन कर इतना व्याकुल हुआ कि अचेत हो कर गिर पड़ा। उसे व्यापारी ने सँभाला। कुछ ही क्षणों में वही विश्वस्त दासी आ कर व्यापारी से कहने लगी, तुम दोनों का यहाँ रहना ठीक नहीं है, जल्दी से जल्दी यहाँ से चले जाओ। वहाँ सभा के रंग-ढंग अच्छे नहीं दिखाई देते। किसी क्षण भी कोई बात हो सकती है। व्यापारी बोला, तुम यह तो देखो कि शहजादा बेहोश हो गया है, ऐसी दशा में हम लोग बाहर किस तरह जा सकते हैं।

दासी झपट कर पानी और बेहोशी में सुँघानेवाली दवा ले आई और इस तरह शहजादा अपने होश में आया।

अब व्यापारी ने शहजादे से कहा कि हम लोगों का यहाँ रहना खतरनाक है, हमें तुरंत यहाँ से चल देना चाहिए। इसके बाद वह दासी दोनों को गुप्त द्वार से बाहर निकाल कर उस नहर पर लाई जो बाग से हो कर जाती थी और दजला नदी से मिलती थी। वहाँ पहुँच कर उसने धीरे से आवाज लगाई। एक आदमी नाव खेता हुआ उस स्थान पर आ गया। दासी ने उन दोनों को नाव पर बिठा दिया। माँझी शीघ्रता से नाव खेता हुआ दजला नदी में ले गया। शहजादे की हालत अब भी खराब थी। व्यापारी उसे बराबर समझाता जा रहा था कि तुम अपने को सँभालो, हमें दूर जाना है, अगर इस अरसे में हमें गश्त के सिपाही मिल गए तो हमारी जान के लाले पड़ जाएँगे क्योंकि वे हमें चोर समझेंगे।

खुदा-खुदा कर के यह लोग एक सुरक्षित स्थान पर नाव से उतरे। किंतु न शहजादे की मानसिक अवस्था ही ठीक थी न उसमें चलने की शक्ति ही अधिक थी। व्यापारी इसी चिंता में था कि क्या किया जाए। अचानक उसे याद आया कि उस जगह के समीप ही उसका एक मित्र रहता है। वह शहजादे को किसी तरह खींचखाँच कर अपने मित्र के घर ले गया। मित्र उसे देखते ही दौड़ा आया। उसने दोनों को अपनी बैठक में ला कर बिठाया और पूछा कि तुम ऐसी हालत में कहाँ से आए हो। व्यापारी ने कहा, अजीब झंझट में पड़ा हूँ। एक आदमी पर मेरा काफी रुपया उधार है। मुझे मालूम हुआ कि वह शहर छोड़ कर भागा जा रहा है। मुझे उसका पीछा कर के अपना रुपया वसूल करने की चिंता हुई। यह आदमी जो मेरे साथ है उस भगोड़े को जानता है। इसकी मदद से मैंने उसका पीछा किया। किंतु मेरा यह साथी रास्ते में अचानक बीमार हो गया। वह भगोड़ा भी मेरे हाथ से निकल गया और इस बीमार साथी को भी मुझे सँभालना पड़ रहा है। अब हम लोग रात को यहाँ रहेंगे और सुबह ही यहाँ से चलेंगे।

व्यापारी का मित्र शहजादे की चिकित्सा का यत्न करने लगा किंतु व्यापारी ने कहा कि तुम कुछ चिंता न करो, यह रात भर आराम से सोएगा तो सुबह घर जाने योग्य हो जाएगा। मित्र ने दोनों के बिस्तर एक हवादार कमरे में लगा दिए। शहजादा सो तो गया किंतु कुछ ही देर में उसने स्वप्न देखा कि शमसुन्निहार मूर्छित हो कर खलीफा के पाँवों में गिर पड़ी है। वह जाग कर फिर रोने-बिसूरने लगा। व्यापारी भी खुदा-खुदा कर के रात काट रहा था ताकि सुबह होते ही अपने घर पहुँचे। वह जानता था कि उसके घरवाले चिंता में पड़े होंगे क्योंकि वह कभी रात को घर से बाहर नहीं रहता था। सुबह होते ही वह मित्र से विदा हुआ और शहजादे को ले कर अपने घर पहुँचा। उसे देख कर घरवालों को धैर्य हुआ। उसने बात बना दी कि व्यापार के एक जरूरी काम से उसे अचानक बाहर जाना पड़ गया था। अपने हृदय में वह भगवान को धन्यवाद देता था कि कितनी खतरनाक जगह से प्राण बचा कर निकल आने में सफल हुआ था।

शहजादा दो-तीन दिन व्यापारी के घर रहा, फिर उसके रिश्तेदार आए और उसे उसके घर ले गए। विदा होते समय शहजादे ने व्यापारी से कहा, भाई तुम मेरी दशा को भुला न देना। जब से मैंने स्वप्न में शमसुन्निहार को अचेत देखा है मेरी अवस्था बड़ी शोचनीय हो गई है। उसका कुछ हाल मिले तो मुझ से जरूर कहलवा देना। व्यापारी ने कहा, तुम चिंता न करो। वह विशेष दासी जरूर शमसुन्निहार का समाचार मुझ तक पहुँचाएगी।

व्यापारी दो-तीन दिन बाद शहजादे को देखने उसके घर गया तो देखा कि वह बिस्तर पर पड़ा कराह रहा है और उसके रिश्तेदार और कई हकीम उसके बिस्तर के आसपास बैठे परिचर्चा कर रहे हैं। उन लोगों ने व्यापारी को बताया कि हकीम लोग बहुत प्रयत्न कर रहे हैं किंतु शहजादे को कोई लाभ नहीं हो रहा है। दो क्षण बाद शहजादे ने आँखें खोलीं और व्यापारी को देख कर मुस्कुराया बल्कि हँसने भी लगा। हँसी के दो कारण थे। एक तो यह कि व्यापारी आया है और शमसुन्निहार की खबर लाया होगा, दूसरा कारण यह है कि हकीम लोग बेकार ही सिर खपा रहे हैं क्योंकि इस रोग का उनके पास कोई इलाज नहीं है।

शहजादे ने हकीमों और रिश्तेदारों से कहा, मैं इनसे अकेले में बात करना चाहता हूँ। उनके जाने पर उसने व्यापारी से कहा, मित्र, तुम देख रहे हो कि इस अनिंद्य सुंदरी का वियोग मुझे किस तरह घुला-घुला कर मारे डालता है। सारे कुटुंबीजन और मित्रगण मेरी यह अवस्था देख कर बराबर दुखी रहते हैं। उन लोगों को दुखी देख कर मेरा दुख और बढ़ता है। मुझे अपना हाल उनसे कहने में लज्जा भी आती है इसलिए मैं जी ही जी में घुटता जा रहा हूँ। तुम्हारे आने से मुझे बड़ा धैर्य हुआ। अब तुम बताओ कि शमसुन्निहार का क्या समाचार लाए हो। उस दासी ने तुम से कब बात की ओर अपनी स्वामिनी का क्या हाल बताया।

व्यापारी ने बताया कि दासी अभी तक नहीं आई है। शहजादा यह सुन कर आँसू बहाने लगा। व्यापारी ने कहा कि तुम्हें चाहिए कि अपने को सँभालो, रोने से कुछ भला तो होना नहीं है। शहजादा बोला कि मैं क्या करूँ, मैं लाख अपने को सँभालता हूँ किंतु सँभाल नहीं पाता। व्यापारी ने कहा, तुम बेकार की चिंता न करो। दासी आज नहीं तो कल आएगी ही और शमसुन्निहार की कुशलता का समाचार देगी। इस प्रकार उसे बहुत कुछ धैर्य बँधा कर व्यापारी अपने घर आया। घर आ कर देखा कि शमसुन्निहार की दासी उसकी प्रतीक्षा कर रही है। उसने व्यापारी से कहा कि अपना हाल बताओ कि तुम पर और शहजादे पर महल से निकल कर क्या बीती क्योंकि विदा के समय शहजादे की हालत अच्छी नहीं थी। व्यापारी ने मार्ग के कष्ट और शहजादे की लंबी खिंचती बीमारी का उल्लेख किया।

दासी ने कहा, स्वामिनी का भी वही हाल है जो शहजादे का है। तुम्हें विदा कर के जब मैं उनके महल में गई तो देखा कि बेहोश है। खलीफा को भी आश्चर्य था कि वह बेहोश क्यों हो गई।

उसने हम लोगों से इस बेहोशी का कारण पूछा तो हम असली भेद को छुपा गए। हमने कहा, हमें कुछ नहीं मालूम। हम लोग केवल रोते-धोते रहे। कुछ देर में स्वामिनी की आँखें खुलीं।

खलीफा ने पूछा, शमसुन्निहार, यह बेहोशी तुम्हें क्यों आ गई। स्वामिनी ने कहा, आप ने अचानक मुझ पर इतनी कृपा की कि स्वयं आ कर कृतार्थ किया। इसी आनंदातिरेक को मैं न सँभाल सकी और अचेत हो गई। मैं बड़ी हतभागिनी हूँ कि आपने तो मुझ पर इतनी कृपा की और मैंने आपको चिंता में डाला।

खलीफा ने कहा, हम जानते हैं कि तुम्हें हम से बड़ा प्रेम है। हम इस बात से बड़े प्रसन्न भी हैं। अब तुम किसी और कमरे में न जाना, यहीं बिस्तर लगवा कर सो जाना। ऐसा न हो कि चलने-फिरने से तुम्हारी तबीयत और खराब हो जाए। यह कह कर खलीफा ने विदा ली। उसके जाने के बाद स्वामिनी ने मुझे संकेत से अपने पास बुलाया और तुम लोगों को हाल पूछा। मैंने कहा कि वे दोनों आनंदपूर्वक सकुशल यहाँ से चले गए। मैंने उन्हें शहजादे के बेहोश हो जाने की बात नहीं बताई। फिर भी उसने रो कर कहा, शहजादे, न जाने मेरे विछोह में तुम पर क्या बीती होगी। यह कह कर वे फिर बेहोश हो गईं। दासियों ने दौड़ कर उनके मुँह पर बेदमुश्क का अरक छिड़का तो वे होश में आईं। मैंने कहा, स्वामिनी, क्या आप इस तरह जान देंगी। और हम सब को मारेंगी। आप को अपने प्रिय शहजादे की सौगंध है, अपना मन दूसरी बातों से बहलाएँ। उन्होंने कहा, तुम ठीक कहती हो लेकिन मैं क्या करूँ, मन ही वश में नहीं है। फिर उसने दासी को हटा दिया सिर्फ मुझे अपने पास रहने को कहा। रात भर वह शहजादे का नाम ले-ले कर रोती रही। सुबह मैं उसे उठा कर उसके मुख्य विश्राम कक्ष में ले गई। वहाँ खलीफा के आदेश से भेजा हुआ हकीम पहले ही से मौजूद था। कुछ देर में खलीफा स्वयं वहाँ आ गए। दवा-दारू की गई लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ। उल्टे उसकी दशा और गंभीर होती गई। दो दिन बाद उसे रात को थोड़ी देर के लिए नींद आई। सुबह उठ कर उन्होंने मुझे आज्ञा दी कि मैं तुम्हारे पास आऊँ और शहजादे का समाचार ला कर उन्हें दूँ। व्यापारी ने कहा, उनसे कहो, शहजादा बिलकुल ठीकठाक है किंतु शमसुन्निहार की बीमारी की बात सुन कर बड़ा चिंतित है। उनसे यह भी कहना कि वे ध्यान रखें कि खलीफा के सामने उनके मुँह से कोई ऐसी बात न निकल जाए जिससे हम सब मुसीबत में फँस जाएँ।

व्यापारी ने दासी से यह कह कर उसे विदा किया और स्वयं शहजादे के समीप गया और उसे बताया कि शमसुन्निहार ने तुम्हारा हाल पूछने के लिए दासी भेजी थी। उसने दासी से सुनी हुई बातें विस्तारपूर्वक शहजादे को बताईं। शहजादे ने व्यापारी को रात भर अपने पास रखा। सुबह व्यापारी अपने घर आया। कुछ ही देर हुई थी कि शमसुन्निहार की दासी उसके पास आई और उसे सलाम कर के कहा कि स्वामिनी ने यह पत्र शहजादे के लिए भेजा है। व्यापारी उस दासी को ले कर शहजादे के पास गया और बोला कि शमसुन्निहार ने तुम्हारे लिए यह पत्र भेजा है और साथ ही अपनी दासी को तुम्हारी कुशलता जानने के लिए भेजा है। शहजादा यह सुन कर उठ बैठा। उसने दासी को बुला कर पत्र उससे लिया और पत्र को चूम कर उसे आँखों से लगाया। पत्र में शमसुन्निहार ने अपनी वियोग व्यथा का वर्णन किया था। शहजादे ने उसका उत्तर लिख कर दासी को दे दिया।

शहजादे से विदा हो कर दासी और व्यापारी अपने-अपने घर गए। व्यापारी चिंता में पड़ गया कि यह दासी रोज-रोज मेरे पास आती है और मुझे रोज-रोज उसे ले कर शहजादे के पास जाना पड़ता है। शहजादा और शमसुन्निहार तो एक-दूसरे के प्रेम में पागल हैं किंतु अगर खलीफा को पता चलेगा तो मैं मुफ्त में मारा जाऊँगा, मेरी सारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी और क्या जाने जान पर भी बन आए और मेरे परिवार पर भी मुसीबत पड़े। इससे अच्छा है कि मैं यह नगर ही छोड़ दूँ और कहीं और जा बसूँ। एक दिन व्यापारी इसी चिंता में अपनी दुकान पर बैठा था कि उसका एक मित्र जो जौहरी था उससे मिलने को आया। वह बराबर व्यापारी के पास शमसुन्निहार की दासी को आते और फिर दोनों को शहजादे के पास आते देख रहा था। व्यापारी को चिंतित देख कर वह समझा कि इस पर कोई बड़ी विपत्ति पड़ी है। अतएव उसने पूछा कि खलीफा के महल की दासी तुम्हारे पास क्यों आया करती है। व्यापारी को इस प्रश्न से भय हुआ। उसने कहा कि यूँ ही कुछ लेन-देन के काम से आती है। जौहरी ने कहा, लेन-देन नहीं, कोई और बात है। व्यापारी ने जब देखा कि जौहरी को उसके उत्तर से संतोष नहीं हुआ तो उसने तय किया कि उसे पूरा हाल बता ही देना ठीक है। उसने भेद गुप्त रखने का वचन ले कर उससे कहा, शमसुन्निहार और फारस का शहजादा एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और मेरी मध्यस्थता से एक-दूसरे का हाल पाते हैं, मैं सोचता हूँ कि कहीं यह बात खलीफा को ज्ञात हो गई तो भगवान जाने मेरा क्या हाल होगा। इसलिए अब मैं सोचता हूँ कि यहाँ का कारोबार समेट कर बसरा चला जाऊँ और वहीं बस जाऊँ।

जौहरी को यह सुन कर आश्चर्य हुआ। कुछ देर में उसने विदा ली। दो दिन बाद वह व्यापारी की दुकान पर आया तो उसे बंद पाया। वह समझ गया कि व्यापारी यहाँ का हिसाब समेट कर बसरा को चला गया है। जौहरी के हृदय में शहजादे के लिए बड़ी करुणा उपजी। बेचारे का एकमात्र सहारा वह व्यापारी था और वह भी चला गया इसीलिए उसने सोचा कि व्यापारी के स्थान पर वह स्वयं शहजादे का सहायक हो जाए। वह शहजादे के पास गया। शहजादे ने यह जान कर कि वह एक प्रतिष्ठित जौहरी है उसका सम्मान किया और बिस्तर से उठ कर बैठ गया और पूछा कि मेरे लायक क्या काम है। जौहरी ने कहा, यद्यपि मैं पहली बार आपसे मिला हूँ तथापि मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ। इस समय एक बात पूछना चाहता हूँ। शहजादे ने कहा कि जो पूछना चाहें खुशी से पूछिए।

जौहरी ने कहा, अमुक व्यापारी आपका बड़ा मित्र था। आप मुझे भी उसी की तरह विश्वसनीय समझिए। वह कह रहा था कि मैं बगदाद छोड़ कर बसरा जा बसूँगा। आज मैं उसकी दुकान पर गया तो बंद पाया। मैं समझता हूँ कि व्यापारी वास्तव में बसरा में जा बसा है। क्या आप बता सकेंगे कि उसके बगदाद छोड़ने और बसरा जाने के क्या कारण हैं।

शहजादा जौहरी की बात सुन कर पीला पड़ गया और बोला, क्या तुम्हारी यह बात ठीक है कि व्यापारी बगदाद छोड़ गया? जौहरी ने कहा कि मेरा तो यही विचार है। शहजादे ने अपने एक नौकर से कहा कि व्यापारी के घर जा कर पता लगाए कि वह कहाँ है। सेवक ने कुछ देर बार आ कर कहा कि व्यापारी के घरवाले कहते हैं कि वह दो दिन हुए बसरा चला गया है और वहीं रहेगा। नौकर ने चुपके से यह भी बताया कि किसी अमीर महिला की दासी आप से मिलने आई है। शहजादा समझ गया कि शमसुन्निहार की ही दासी होगी। उसने उसे बुलाया। जौहरी उसके आने के पहले उठ कर दूसरे कक्ष में जा बैठा। दासी ने आ कर शहजादे की दशा अधिक अच्छी देखी और उससे कुछ बातें कर के विदा हुई।

अब जौहरी फिर आ कर शहजादे के पास बैठा और कहने लगा कि आपका तो खलीफा के महल से बड़ा संपर्क जान पड़ता है। शहजादे ने चिढ़ कर कहा, तुम यह कैसे कहते हो? क्या तुम्हें मालूम है कि यह स्त्री कौन है। जौहरी ने कहा, मैं इसको और इसकी स्वामिनी को अच्छी तरह जानता हूँ। यह खलीफा की चहेती सेविका शमसुन्निहार की दासी है और अपनी मालकिन के साथ आया करती है जो कि मेरे दुकान से जवाहारात खरीदने आती-रहती है। मैंने इसे कई बार उस व्यापारी के पास भी आते-जाते देखा है।

शहजादा यह सुन कर डर गया कि यह आदमी हमारे सारे भेद जानता है। वह एक क्षण चुप रह कर बोला, मुझ से सच-सच कहो कि क्या तुम इस दासी के यहाँ आने का भेद जानते हो। जौहरी ने व्यापारी से हुई सारी बातें शहजादी को बताईं और कहा, मैं आपके पास इसी कारण से उपस्थित हुआ हूँ। व्यापारी के चले जाने के बाद मुझे आप पर बड़ी दया आई कि आपका मध्यस्थ कौन होगा। मैंने तय किया कि व्यापारी की जगह मैं ही आपका विश्वासपात्र सेवक बन कर कार्य करूँ। मुझसे अधिक विश्वसनीय व्यक्ति आपको और कोई नहीं मिलेगा।

शहजादे को उसकी बातें सुन कर धैर्य हुआ। उसने अपने मन का भेद जौहरी को बताया किंतु साथ ही कहा, भाई, मुझे तो तुम पर पूरा विश्वास है किंतु शमसुन्निहार की दासी ने तुम्हें यहाँ बैठे देख लिया है। वह तुमसे खुश नहीं मालूम होती। वह कह रही थी कि तुम्हीं ने व्यापारी को यह नगर छोड़ कर बसरा जा बसने की सलाह दी है। दासी ने यह बात अपनी स्वामिनी से भी कही होगी। ऐसी दशा में तुम मध्यस्थ किस तरह बन सकते हो।

जौहरी ने कहा, मैंने व्यापारी को शहर छोड़ने की सलाह नहीं दी। हाँ, यह जरूर है कि जब उसने मुझ से कहा कि मैं बसरा में बसना चाहता हूँ तो मैंने उसे रोका नहीं। मैंने सोचा कि इस व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा और अपनी जान बचाने की चिंता है तो उसे क्यों रोका जाए। शहजादे ने कहा, तुम्हारी बात मेरी समझ में आती है और मुझे तुम पर पूरा विश्वास है किंतु शमसुन्निहार की दासी ने अपनी स्वामिनी से भी यही बात कही होगी जो मुझसे कही है। अब यह जरूरी हो गया है कि जैसे तुमने मुझे अपनी सदाशयता का विश्वास दिलाया है वैसे ही अपने प्रति दासी में भी विश्वास पैदा करो ताकि शमसुन्निहार भी तुम्हें विश्वस्त समझे।

इस प्रकार दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और परामर्श करते रहे कि दोनों प्रेमीजनों के मिलन की क्या सूरत निकल सकती है। फिर वह जौहरी शहजादे से विदा ले कर अपने घर गया। शहजादे ने दासी को विदा करते समय कहा था कि अब की बार आना तो शमसुन्निहार से मेरे लिए पत्र लिखवा कर लाना। दासी ने महल में जा कर व्यापारी को शहर छोड़ जाने और शहजादे की पत्र पाने की इच्छा की बातें शमसुन्निहार को बताईं। शमसुन्निहार ने एक लंबा पत्र लिखा जिसमें अपनी विरह-दशा का कारुणिक वर्णन था और इस बात पर भी दुख प्रकट किया गया था कि हम लोगों का मध्यस्थ व्यापारी शहर छोड़ कर चला गया है।

दासी पत्र ले कर शहजादे के पास आने लगी तो रास्ते में उसके हाथ से पत्र गिर गया। दस-बीस कदम आगे जा कर उसने अपनी जेब में पत्र न देखा तो उलटे पाँव लौटी। मार्ग में उसने जौहरी को वह पत्र पढ़ते हुए पाया। इससे दोनों में कहा-सुनी हुई। दासी ने कहा, यह मेरा पत्र है, मुझे वापस दो। जौहरी ने उसकी बात पर ध्यान न दिया और पत्र पढ़ता रहा और फिर अपने घर को चल पड़ा। दासी भी पत्र वापस करने का तकाजा करती हुई उसके पीछे-पीछे चली। जौहरी के घर पहुँच कर उसने कहा, तुम मुझे यह पत्र दे दो। यह तुम्हारे किसी काम का नहीं है। तुम्हें तो यह भी नहीं मालूम है कि यह पत्र किसने किसके नाम लिखा है। जौहरी ने उसे एक जगह दिखा कर बैठने का इशारा किया।

दासी बैठ गई तो जौहरी ने कहा, यद्यपि इस पत्र पर न लिखनेवाले का नाम है न पानेवाले का नाम तथापि मुझे मालूम है कि यह पत्र शमसुन्निहार ने शहजादा अबुल हसन को लिखा है। दासी यह सुन कर घबरा गई। जौहरी ने कहा, मैं तुम्हें रास्ते ही में यह पत्र दे देता किंतु मुझे तुम से कुछ पूछना है, इसीलिए मैं तुम्हें यहाँ ले आया। तुम सच-सच बताओ कि क्या तुमने शहजादे से यह नहीं कहा कि इस जौहरी ने व्यापारी को बगदाद छोड़ने की राय दी है। दासी ने स्वीकार किया कि उसने यही कहा है। जौहरी बोला, तू मूर्ख है। मैं तो चाहता हूँ कि अब व्यापारी के बदले मैं ही शहजादे की सहायता करूँ। तू उलटा ही समझे है। निःसंदेह मैंने ही शहजादे को व्यापारी के शहर छोड़ने का समाचार दिया था। पहले शहजादा मुझसे सशंकित था किंतु मेरे विश्वास दिलाने पर उसने सारा भेद मुझसे कह दिया। अब तू मुझे व्यापारी की जगह इस बात में पूरा विश्वासपात्र समझ और अपनी स्वामिनी से भी कहना कि जौहरी तुम्हारी और शहजादे की प्रसन्नता के लिए अपनी प्रतिष्ठा ही नहीं, अपने प्राण भी दाँव पर लगा देगा।

दासी ने कहा, शहजादा अबुल हसन और शमसुन्निहार दोनों बड़े भाग्यशाली हैं कि व्यापारी चला गया तो तुम जैसा बुद्धिमान सहायक उन्हें मिला। मैं तुम्हारी सद्भावना की पूरी बात अपनी स्वामिनी से कहूँगी। जौहरी ने पत्र उसे दे दिया और कहा कि शहजादा उसके उत्तर में जो कुछ लिखे वह भी मुझे लौटते समय दिखाती जाना और साथ ही हमारी इस समय की बातचीत भी शहजादे को बता देना।

दासी पत्र ले कर शहजादे के पास गई। उसने तुरंत ही उस का उत्तर लिख दिया। दासी ने अपने वचन के अनुसार शहजादे का पत्र भी जौहरी को दिखाया। वह शमसुन्निहार के पास पहुँची और शहजादे का पत्र उसे दे कर जौहरी की भी बड़ी प्रशंसा करने लगी। दूसरे दिन सुबह वह फिर जौहरी के पास आई और बोली, मैंने अपनी स्वामिनी से वह सब कहा जो आप ने मुझ से कहा था। वह यह सुन कर अति प्रसन्न हुईं कि व्यापारी चला गया फिर भी आप उसका स्थान ले कर प्रेमियों के बीच मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत हैं। मैंने आपकी शहजादे से हुई बातें भी उन्हें बताईं और कहा कि आप उससे भी बढ़ कर हैं। वह और भी खुश हुई और कहने लगी कि मैं चाहती हूँ कि ऐसे भले मानस से भेंट करूँ जो बगैर कहे और बगैर पूर्व परिचय के खतरा उठा कर भी दूसरों की सहायता करने को राजी हो जाता है। मैं स्वयं उसकी बुद्धि और चतुरता देखना चाहती हूँ और तू उसे कल यहाँ ले आ।

जौहरी चिंतित हो कर बोला, शमसुन्निहार मुझे भी व्यापारी इब्न ताहिर जैसा समझे है। इब्न ताहिर को तो राजमहल में सब जानते थे और द्वारपाल उसे बे रोक-टोक आने देते थे। मुझे कौन आने देगा?

दासी ने कहा, जो कुछ आप कहते हैं वह बिल्कुल ठीक है। लेकिन शमसुन्निहार मूर्ख नहीं है। उसने आप को बुलाया है तो आगा-पीछा सोच ही लिया होगा। आप बेधड़क हो कर मेरे साथ चलिए, आपको कोई परेशानी न होगी। आपको कुशलतापूर्वक आपके घर पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी रही। इस प्रकार दासी ने उसे बहुत दिलासा दिया किंतु वह किसी प्रकार भी राजमहल में जाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

फिर वह दासी शमसुन्निहार के पास पहुँची और उससे कहा कि जौहरी यहाँ आने से डरता है और मेरे लाख समझाने पर भी आने को राजी नहीं होता। शमसुन्निहार ने थोड़ी देर सोच कर कहा, उसका डरना ठीक ही है। मैं स्वयं ही गुप्त रूप से यहाँ से निकल कर उससे उसके घर में मिलूँगी। तुम जा कर उसे बता दो कि मैं उसके घर आ कर उससे बात करना चाहती हूँ। दासी ने ऐसा ही किया। जौहरी के घर जा कर उसने कहा, आप कहीं बाहर न जाएँ। कुछ ही देर में मैं मालकिन को ले कर आपके यहाँ आती हूँ।

यह कह कर दासी वापस फिरी और कुछ देर में शमसुन्निहार को ले कर जौहरी के घर पहुँची। जौहरी ने बड़े आदरपूर्वक शमसुन्निहार का स्वागत कर के उसे उच्च स्थान पर बिठाया। जब शमसुन्निहार ने अपने चेहरे से नकाब उतारा तो जौहरी उसे देखता ही रह गया। उसने सोचा कि अगर शहजादा इस स्वर्गोपम सौंदर्य के पीछे पागल है तो क्या आश्चर्य है। फिर शमसुन्निहार उससे बातें करने लगी। अपने प्रेम का पूरा वर्णन करने के बाद उसने कहा, मुझे तुझसे मिल कर बहुत प्रसन्नता हुई है। भगवान की बड़ी कृपा है कि इब्न ताहिर के चले जाने के बाद उसने हम दो प्रेमियों को तुम्हारे जैसा सहायक दिया है। अब मैं विदा होती हूँ, भगवान तुम्हारी रक्षा करें।

शमसुन्निहार के जाने के बाद जौहरी शहजादे के पास गया। शहजादे ने उसे देखते ही कहा, मित्र, मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था। कल शमसुन्निहार की दासी ने मुझे उसका पत्र ला कर दिया किंतु उससे तो मेरी विरह व्यथा और बढ़ गई। क्या यह संभव नहीं है कि परम सुंदरी शम्सुनिहार कृपा कर के स्वयं ही कोई उपाय ऐसा करे जिससे हम दोनों का मिलन हो। इब्न ताहिर होता तो शायद कोई रास्ता निकलता। उसके जाने के बाद मेरी समझ में नहीं आता कि मैं किस तरह शमसुन्निहार से मिलूँ।

जौहरी ने कहा, इतना निराश होने की जरूरत नहीं है। मैंने आपके उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो उपाय सोचा है उससे बढ़ कर कोई उपाय नहीं हो सकता। यह कह कर जौहरी ने सविस्तार शहजादे को बताया कि किस प्रकार मैंने दासी को राजी किया और किस तरह शमसुन्निहार ने मेरे घर आ कर मुझसे बातचीत की। उसने कहा कि आप दोनों की भेंट अवश्य होगी किंतु मेरा या आपका राजमहल में जाना ठीक नहीं है, मैं एक सुंदर भवन को किराए पर लेने का प्रबंध करूँगा जहाँ आप दोनों मिल सकें।

शहजादा यह सुन कर बड़ा खुश हुआ। उसने जौहरी का बड़ा आभार प्रकट किया और कहा कि तुम जैसा कहोगे वैसा ही करूँगा। जौहरी उससे विदा हो कर अपने घर आया। दूसरे दिन दासी फिर आई। जौहरी ने कहा, बहुत अच्छा हुआ कि तुम आई, मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था। दासी ने कारण पूछा तो जौहरी ने कहा कि शहजादे का विरह में बुरा हाल है, तुम जैसे भी हो शमसुन्निहार को लाओ ताकि दोनों का मिलन हो सके।

दासी ने कहा, स्वामिनी का भी शहजादे के विरह में यह हाल है जैसे कोई मछली गर्म बालू पर तड़प रही हो। किंतु आपका घर बहुत छोटा है, उन दोनों के मिलन के योग्य नहीं है। जौहरी ने कहा कि मैंने एक बड़ा मकान ठीक किया है, तुम मेरे साथ चल कर उसे देख लो। दासी ने उसके साथ वह मकान देखा और पसंद किया और बोली कि मैं अभी आती हूँ, अगर स्वामिनी आने को राजी होती हैं तो मैं उन्हें ले कर तुरंत आ जाऊँगी। दासी विदा हो कर कुछ ही देर में फिर जौहरी के पास आ गई और जौहरी को अशर्फियों की एक थैली दे कर बोली, यह स्वामिनी ने इसलिए भिजवाई है कि आप उस बड़े मकान में आवश्यक साज-सज्जा करा लें और नाश्ते, पलंग, मसनद आदि वहाँ पर तैयार रखें। यह कह कर दासी चली गई और इधर जौहरी ने अपने व्यापारी मित्रों के यहाँ से कई सोने-चाँदी के बरतनों और गद्दे, तकिया, मसनद, पर्दे आदि मँगवा कर उक्त मकान को सजा दिया।

सारा प्रबंध करने के बाद वह शहजादे के पास गया और उससे अपने साथ चलने को कहा। शहजादा उत्तम और सजीले कपड़े पहन कर जौहरी के साथ चला। जौहरी उसे सुनसान गलियों से हो कर बड़े मकान में ले आया। शहजादा मकान और साज-सज्जा को देख कर प्रसन्न हुआ और जौहरी से इधर-उधर की बातें करता रहा। दिन ढला और शमसुन्निहार अपनी उसी विशिष्ट दासी तथा अन्य दासियों को ले कर वहाँ गई। शहजादा और शमसुन्निहार दोनों एक-दूसरे को देख कर ऐसे प्रसन्न हुए जिसका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता। बहुत देर तक तो वे बगैर बोले-चाले एक दूसरे को एकटक देखते ही रहे।

फिर दोनों ने अपनी-अपनी विरह व्यथा का इतने कारुणिक रूप से वर्णन किया कि जौहरी की आँखों में आँसू आ गए और शमसुन्निहार की तीनों दासियाँ रोने लगीं। जौहरी ने उन दोनों को तसल्ली दी और धैर्य से काम लेने के लिए समझाया-बुझाया। फिर दोनों को उस जगह लाया जहाँ जलपान की व्यवस्था थी। जलपान के उपरांत वे लोग वहाँ पर आ कर मसनदों पर बैठे जहाँ से उठ कर नाश्ता करने गए थे। वे एक-दूसरे से प्रीतिपूर्वक वार्तालाप करने लगे। शमसुन्निहार ने पूछा कि यहाँ कोई बाँसुरी तो नहीं होगी। जौहरी ने सारा प्रबंध पहले ही कर रखा था। उसने एक बाँसुरी ला कर दे दी। शमसुन्निहार ने बाँसुरी पर बड़ी देर तक प्रेम और विरह को व्यक्त करनेवाली एक धुन बजाई। इसके बाद शहजादे ने भी उसके जवाब में उसी बाँसुरी पर बड़ी कारुणिक ध्वनि में एक विरह-राग निकाला।

इतने ही में मकान के बाहर बड़ा शोरगुल सुनाई दिया। दो क्षण बाद जौहरी का एक नौकर दौड़ा-दौड़ा आया और बोला कि द्वार पर बहुत-से आदमी जमा हैं और वे द्वार तोड़ कर अंदर आना चाहते हैं। उसने कहा कि जब मैंने उनसे पूछा कि तुम कौन हो और क्या चाहते हो तो उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया और मैं जान बचा कर द्वार बंद कर के अंदर भाग गया। यह सुन कर जौहरी स्वयं द्वार पर गया कि देखे कि क्या बात है। द्वार खोला तो देखा कि सौ आदमी हाथों में नंगी तलवारें लिए खड़े हैं। उसकी हिम्मत न उनसे बात करने की हुई न अंदर वापस आने की। वह एक पड़ोसी की, जिसे वह पहले से जानता था, दीवार पर चढ़ कर उसके मकान में कूद पड़ा। उसने पड़ोसी को बताया कि मुझ पर क्या बीत रही है। पड़ोसी ने उसे घर के एक कोने में छुपा लिया।

आधी रात को पड़ोसी की तलवार ले कर जौहरी बाहर निकला क्योंकि उस समय सारा शोर थम गया था और निस्तब्धता छा गई थी। बड़े मकान में देखा तो उसे सुनसान पाया। न वहाँ शहजादा या शमसुन्निहार या उनकी दासियाँ थीं न कोई साज सामान या बरतन-भाँडे। मकान में घूमते-घूमते एक कोने में उसे एक आदमी का शब्द सुनाई दिया। उसने पूछा, कौन हो? छुपे हुए आदमी ने उसकी आवाज पहचानी और बाहर निकल आया। वह जौहरी का एक सेवक था।

जौहरी ने उससे पूछा कि वे हथियारबंद लोग क्या गश्त के सिपाही थे। उसने कहा वे लोग गश्त के सिपाही नहीं थे बल्कि डाकू थे और सब कुछ लूट कर ले गए, कई दिनों से यह लोग लूट-मार कर रहे हैं और कई मुहल्लों में जा कर कई घरों में डाका डाल चुके हैं।

जौहरी को भी विश्वास हो गया कि वे लोग डाकू ही थे क्योंकि वे सारी चीजें भी लूट कर ले गए थे। उसने शहजादा और शमसुन्निहार के साथ सारा साज-सामान भी गायब देखा तो सिर पीटने लगा कि जिन मित्रों से वह चीजें माँग कर लाया था उन्हें क्या जवाब दूँगा। सेवक ने उसे धैर्य देते हुए कहा, विश्वास रखिए कि शहजादा और शमसुन्निहार दोनों कुशलपूर्वक होंगे। जहाँ तक माँगे की चीजों की बात है उसके बारे में भी आपके मित्र कुछ न कहेंगे क्योंकि इस डाके का समाचार तो सब को मालूम ही हो जाएगा। जौहरी सोचने लगा कि इब्न ताहिर ही अच्छा रहा कि समय रहते निकल गया। मेरा माल तो लूटा ही है, देखो आगे क्या होता है, जान भी बचती है या नहीं।

सवेरा होने पर सारे शहर में डाके का समाचार फैल गया। जौहरी के मित्र भी उसके घर पर सहानुभूति प्रकट करने आए क्योंकि उन्हें मालूम था कि वह मकान उसने किराए पर लिया था। जिन मित्रों से चीजें माँग कर लाया था उन्होंने तो कह दिया कि सामान की चिंता न करो, लेकिन जौहरी को शहजादा और शमसुन्निहार की चिंता होने लगी कि न जाने उन पर क्या बीत रही हो। मित्रों के विदा होने के बाद जौहरी के सेवक उसके लिए भोजन लाए किंतु उसे शमसुन्निहार और शहजादे की चिंता इतनी सता रही थी कि उसने नाममात्र को भोजन किया।

वह इसी तरह चिंता में पड़ा था कि दोपहर को एक सेवक ने उससे कहा कि एक आदमी आप से मिलना चाहता है। उस आदमी ने अंदर जा कर जौहरी से कहा कि यहाँ नहीं, अपने किराएवाले बड़े मकान में चलो, वहीं तुमसे बात करूँगा। जौहरी को आश्चर्य हुआ कि इस अजनबी को यह कैसे मालूम है कि मैंने कोई मकान किराए पर लिया था। आदमी उसे घुमावदार गलियों से हो कर ले चला और बोला कि इन्हीं गलियों से हो कर डकैत कल तुम्हारे घर आए थे। जौहरी को यह तो आश्चर्य हो ही रहा था कि इसे सब बातें मालूम कैसे हैं, इस बात पर भी आश्चर्य और भय हो रहा था कि वह उसे उसके दूसरे मकान में भी नहीं ले जा रहा था बल्कि कहीं और ही ले जा रहा था।

चलते-चलते शाम हो गई। जौहरी बहुत थक भी गया था और उसका भय भी बहुत बढ़ गया था किंतु उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। शाम को वे लोग दजला नदी पर पहुँचे और नाव से नदी पार कर के नदी पारवाले क्षेत्र में भी गलियों में चलते-चलते एक मकान के सामने पहुँचे जहाँ खड़े हो कर उस आदमी ने ताली बजाई।

दरवाजा खुलने पर वह आदमी जौहरी को अंदर ले गया। अंदर दस व्यक्ति बैठे थे जिन्होंने जौहरी का स्वागत किया और आदरपूर्वक अपने पास बिठाया। कुछ देर में उनका सरदार आया जिसके बाद सबने भोजन किया। भोजन के बाद उन लोगों ने जौहरी से पूछा कि क्या तुमने कभी पहले भी हमें देखा है। उसने कहा कि न तो मैंने पहले तुम लोगों ही को देखा न नदी पार के इस हिस्से की गलियाँ ही देखीं। फिर उन लोगों ने कहा कि कल रात जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वह साफ-साफ बताओ। जौहरी ने आश्चर्य से कहा कि तुम लोगों को यह कैसे मालूम कि कल रात मेरे साथ कोई विशेष घटना घटी थी। उन लोगों ने कहा कि हमें यह उस पुरुष और स्त्री से मालूम हुआ जो कल रात तुम्हारे साथ थे लेकिन हम चाहते हैं कि तुम्हारे मुँह से पूरा विवरण सुनें। जौहरी सोचने लगा कि कहीं यही तो वे डाकू नहीं है जो रात को आए थे।

उसने कहा, भाइयो, जो कुछ होना था वह हो गया किंतु मुझे असली चिंता उसी आदमी और उसी सुंदरी की है। तुम लोगों को उनका कुछ हाल मालूम हो तो बताओ। उन लोगों ने कहा कि तुम उन दोनों की चिंता छोड़ दो, वे दोनों कुशलतापूर्वक हैं। उन्होंने जौहरी को दो कक्ष दिखाए और कहा, वे दोनों अलग-अलग इन्हीं कमरो में हैं। उन्हीं से हमें तुम्हारा पता चला है और उन्होंने बताया है कि तुम उनके सहायक और मित्र हो। हम लोगों का काम किसी पर दया करना नहीं है, फिर भी हमने अपने स्वभाव के विपरीत उन दोनों को बड़ी सुख-सुविधा के साथ रखा और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया। और हम तुम्हें भी कोई कष्ट नहीं होने देंगे।

अब जौहरी को विश्वास हो गया कि वे डाकू हैं। उसने उनकी दया के लिए आभार प्रकट किया और शहजादे तथा शमसुन्निहार की प्रेम-कथा आरंभ से पिछली रात तक विस्तारपूर्वक बताई। उन लोगों ने आश्चर्य से कहा, क्या यह सच है कि यह आदमी फारस के शहजादे बका का पुत्र अबुल हसन है और यह स्त्री खलीफा की प्रेयसी शमसुन्निहार है? जौहरी ने कहा कि मैंने जो कुछ कहा है बिल्कुल सच कहा है। जब डाकुओं को जौहरी के कहने का विश्वास हुआ तो उन्होंने एक-एक कर के अबुल हसन और शमसुन्निहार के पास जा कर अपने अपराध के लिए क्षमा-प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि हम लोग आपको जानते नहीं थे इसीलिए हम से यह अपराध हुआ है।

उन्होंने कहा कि हमने जो कुछ आपके घर से लूटा था वह सब का सब तो वापस नहीं कर सकते क्योंकि उसमें से बहुत कुछ हमारे अन्य साथी ले गए हैं किंतु सोने और चाँदी के बरतन जरूर यहाँ है, उन्हें हम वापस कर देंगे। उन डाकुओं ने बरतन दे कर उन तीनों से कहा कि हम तुम्हें सुरक्षापूर्वक नदी के उस पार पहुँचा देंगे। किंतु तुम लोगों को यह वादा करना पड़ेगा कि हमारा भेद नहीं खोलोगे। उन तीनों ने कसम खाई कि हम लोग तुम्हारे बारे में किसी को नहीं बताएँगे।

इसके बाद वे डाकू उन तीनों को एक नाव में बिठा कर नदी के पार तक छोड़ गए। किंतु ज्यों ही वे तीनों तट पर उतरे कि गश्त के सिपाही इधर आ निकले। डाकू तो उन्हें देखते ही अपनी नाव तेजी से खेते हुए भाग गए किंतु गश्तवालों ने इन तीनों को पकड़ लिया और पूछा कि तुम लोग इस निर्जन स्थान में क्या कर रहे थे।

जौहरी ने सच्ची बात न बताई बल्कि कहा कि डाकू दल मेरे घर डाका डाल कर मुझे पकड़ ले गए और इन दोनों को भी मेरे यहाँ से पकड़ ले गए। आज न जाने क्या सोच कर उन्होंने हम सभी को नदी पार पहुँचा दिया और लूटा हुआ कुछ माल भी वापस कर दिया। उसने कहा कि वे लोग जो नाव में नदी पार कर रहे हैं डाकू ही हैं। गश्त के मुखिया ने उसकी बात का विश्वास कर लिया। उसे छोड़ कर शहजादे और शमसुन्निहार से पूछने लगे कि तुम लोग कौन हो और इस सुंदरी को उसके घर से कौन लाया है। इस पर शहजादा तो कुछ न बोला किंतु शमसुन्निहार ने गश्ती दल के मुखिया को अलग ले जा कर कुछ कहा। उसने तुरंत घोड़े से उतर कर उसे सलाम किया और आदेश दिया कि दो नावें लाई जाएँ। उसके एक पर शमसुन्निहार को बिठा कर उसके घर पहुँचाने का आदेश दिया। दूसरी पर माल की गठरियों के साथ ही शहजादे और जौहरी को बिठा कर अपने दो सिपाही उनके साथ कर दिए ताकि वे उन्हें सुरक्षापूर्वक उनके घर पहुँचा दें।

किंतु वे सिपाही इन लोगों से खुश नहीं थे। उन्होंने नाव को शहर के घाट पर ले जाने के बजाय कारागार की ओर मोड़ दिया और जौहरी के लाख प्रतिवाद करने पर भी उन्हें कारागार में पहुँचा दिया। कारागार के प्रधान अधिकारी ने इन लोगों से पूछा कि तुम लोग कौन हो और तुम्हें क्यों पकड़ा गया है। जौहरी ने इस अधिकारी को भी पूरी बात बताई और कहा कि गश्ती दल के मुखिया ने हमारी बात का विश्वास कर के हमें हमारे घर पहुँचाने का आदेश दिया था किंतु इन दो सिपाहियों ने हमें बंदीगृह में पहुँचा दिया - शायद यह लोग हमसे कुछ घूस चाहते थे और वह न मिलने पर उन्होंने ऐसा किया। कारागृह के अधिकारी को भी जौहरी की बात का विश्वास हो गया।

उसने गश्त के दोनों सिपाहियों को खूब डाँटा-फटकारा और अपने दो सिपाहियों को आदेश दिया कि दोनों को माल-असबाब के साथ शहजादे के घर पर पहुँचा दिया जाए।

जब यह दोनों शहजादे के घर पहुँचे तो इतने थके थे कि एक कदम चलना भी मुश्किल था किंतु शहजादे के नौकरों ने दोनों को सहारा दे कर अंदर पहुँचाया और आराम से बिठाया। जौहरी कुछ ताजादम हुआ तो शहजादे ने अपने नौकरों को आज्ञा दी कि जौहरी को माल-असबाब के साथ आराम से उसके घर पर पहुँचा दिया जाए। जौहरी जब अपने घर आया तो देखा कि घरवाले उसकी चिंता में रो-पीट रहे हैं। जौहरी को सही-सलामत देख कर उन लोगों को ढाँढ़स बँधा और सब उससे पूछने लगे कि तुम कहाँ गए थे और क्या हुआ था। उसने यह कह कर कि मैं बहुत थका हूँ सभी को चुप कर दिया और चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गया।

दो दिन में जौहरी अपनी थकान और मानसिक आघात से उबर सका। तीसरे दिन वह अपने एक मित्र के घर जी बहलाने जा रहा था कि मार्ग में एक स्त्री ने उसे अपने पास आने का इशारा किया। जौहरी पास गया तो उसने पहचाना कि यह शमसुन्निहार की विश्वस्त दासी है। जौहरी इतना डरा हुआ था कि उसने उससे वहाँ पर कोई बात न की और उसे अपने पीछे आने का इशारा कर के एक ओर को चलने लगा। दासी भी पीछे-पीछे चली। वे लोग चलते-चलते एक निर्जन मस्जिद में गए और वहाँ दासी ने जौहरी से पूछा कि आप डाकुओं से कैसे बचे। जौहरी ने कहा, पहले तुम अपना हाल बताओ कि तुम और दो अन्य दासियाँ कैसी बचीं। दासी ने कहा कि जब डाकू आपके घर पर आए तो हम तीनों ने समझा कि खलीफा को पता चल गया है और उसने अपने सिपाही भेजे हैं। हम तीनों अपनी जान के डर से मकान की छत पर चढ़ गईं और छतों-छतों होते हुए एक भले मानस के घर में आ गईं। उसने दया कर के हमें रात भर अपने यहाँ सुरक्षित रखा। सवेरे हम लोग अपने आवास पर पहुँचे। अन्य दासियाँ स्वामिनी को हमारे साथ न देख कर चिंतित हुई तो हमने उन्हें दिलासा दिया कि वे अपनी एक सहेली के घर रह गई हैं।

दासी ने कहा, हम लोग भी स्वामिनी के बारे में चिंतित थे। हमने उस शाम को एक नाव पर एक आदमी को भेजा कि अगर किसी सुंदरी को किसी आदमी के साथ भटकते देखें तो यहाँ ले आएँ।

हम लोग आधी रात तक हर आहट पर कान लगाए रहे। आधी रात को अपने आवास के पिछवाड़े के घाट पर नाव का शब्द सुना। जा कर देखा कि हमारे भेजे हुए आदमी तथा एक अन्य व्यक्ति के साथ स्वामिनी नाव पर आई हैं। वे इतनी अशक्त थीं कि एक कदम चल भी नहीं सकती थीं। हम लोग उन्हें सँभाल कर लाए। उन्होंने चुपके से उन दो आदमियों को एक हजार अशर्फी दे कर विदा किया। अब वे अच्छी हैं। उन्होंने हम लोगों को डाकुओं द्वारा पकड़े जाने और छूटने का वृत्तांत भी बताया। दासी के यह कहने के बाद जौहरी ने भी वह सब कुछ बताया जो उस पर और शहजादे पर बीता था।

दासी ने दो थैलियाँ अशर्फियों की दीं और कहा, हमारी स्वामिनी ने यह आपके लिए भेजी हैं क्योंकि उन्हें इस बात का बड़ा ख्याल है कि आपको उनकी वजह से बड़ा कष्ट और नुकसान हुआ है इसलिए आपकी क्षतिपूर्ति की जा रही है। जौहरी ने धन्यवादपूर्वक वह धन ले लिया। उसने उसमें से कुछ इसलिए खर्च किया कि मित्रों से माँगी हुई वस्तुएँ उन्हें खरीद कर लौटा दे। फिर भी काफी बचा जिससे उसने एक विशाल और सुंदर मकान उसी दिन बनवाना आरंभ कर दिया।

फिर वह शहजादे के घर उसका हालचाल पूछने को गया। शहजादे के नौकरों ने बताया वे जब से आए हैं आँखें बंद किए अपने बिस्तर पर पड़े हैं। उन्होंने कुछ भी खाया-पिया नहीं है। जौहरी इससे चिंतित हुआ। उसने शहजादे के पास जा कर उसे बड़ा धैर्य दिया। शहजादे ने जौहरी की आवाज सुन कर आँखें खोलीं और उसकी बातें सुनता रहा। फिर उसने जौहरी का हाथ दबा कर कहा कि मित्र, तुमने हमारे लिए बड़ा कष्ट सहा, मैं कैसे तुम्हारा आभार प्रकट करूँ। जौहरी ने कहा, मैं आपका सेवक हूँ, आपके लिए सब कुछ कर सकता हूँ किंतु भगवान के लिए खाना-पीना शुरू कीजिए और अपने स्वास्थ्य को ठीक रखिए।

शहजादे ने जौहरी के कहने से कुछ खाया-पिया। फिर एकांत में उसने शमसुन्निहार का समाचार पूछा। जौहरी ने कहा, वह कुशलपूर्वक हैं और कल ही उसने अपनी दासी को भेजा था कि मुझसे आप की कुशलक्षेम पूछें। जौहरी इसके बाद अपने घर आना चाहता था किंतु शहजादे ने उसे रोक लिया और आधी रात तक जाने न दिया। आधी रात को जौहरी अपने घर गया और दूसरे दिन फिर शहजादे के पास पहुँचा। शहजादे ने चाहा कि जौहरी की क्षतिपूर्ति के निमित्त कुछ धन दे दे किंतु जौहरी ने न लिया और कहा कि मुझे शमसुन्निहार ने काफी धन इस हेतु दे दिया है। दोपहर को जौहरी शहजादे से विदा हो कर अपने घर पहुँचा।

उसे घर पहुँचे बहुत देर न हुई थी कि शमसुन्निहार की वही विश्वस्त दासी रोती-पीटती उसके घर पहुँची। उसने बताया कि अब तुम्हारी और शहजादे की जान खतरे में है। अगर तुम लोगों को अपने प्राण प्यारे हैं तो तुरंत शहर छोड़ कर कहीं को निकल जाओ। जौहरी ने हैरान हो कर कहा, आखिर हुआ क्या है? तू क्यों इतना रो-पीट रही है और क्यों मुझे इतना भय दिखा रही है? साफ-साफ पूरी बात बता। उस दासी ने कहा, जब हम लोग उस मकान से भाग कर अपने आवास पर पहुँचे और बाद में शमसुन्निहार भी घर पहुँची तो उसने मेरे साथ की दो दासियों में से एक को किसी बात पर रुष्ट कर उसे दंड देने की आज्ञा दी। उस पर बहुत मार पड़ी और वह उसी रात को भय और क्रोध के कारण शमसुन्निहार के महल से भाग गई और महल के रक्षकों के प्रधान के पास शरण लेने चली गई।

उस दासी ने रक्षकों के प्रमुख से उस रात का सारा हाल बता दिया। रक्षकों के प्रमुख ने उसे न जाने क्या सलाह दी। फिर वह खलीफा के महल में चली गई और संभवतः उसने खलीफा को भी सारी बातें बता दीं। खलीफा ने बीस सिपाही भेज कर शमसुन्निहार को पकड़वा कर बुलाया। इसके आगे मुझे नहीं मालूम कि उसने उसे मरवा डाला या कुछ और किया। मैं यह देख कर सारा हाल तुमसे कहने आई हूँ।

यह सुन कर जौहरी के होश उड़ गए। उसने फिर शहजादे के मकान की ओर दौड़ लगाई। शहजादे को उसकी बदहवासी को देख कर आश्चर्य हुआ और उसने तुरंत जौहरी से बात करने के लिए एकांत करवाया। जब जौहरी ने उसे पूरा हाल बताया और कहा कि खलीफा ने शमसुन्निहार को गिरफ्तार करवा दिया है तो शहजादे को गश आ गया। कुछ देर में होश आने पर उसने पूछा कि शमसुन्निहार के लिए क्या किया जा सकता है। जौहरी ने कहा कि आप शमसुन्निहार के लिए कुछ नहीं कर सकते, लेकिन यहाँ रहे तो स्वयं भी मरेंगे और मुझे भी मरवा डालेंगे। आप कृपा कर के फौरन उठिए और मेरे साथ इवनाजपुर की ओर प्रस्थान करिए। किसी समय भी खलीफा के सिपाही आ कर हम दोनों को पकड़ सकते हैं और बाद में हम दोनों बड़े निरादरपूर्वक मारे जाएँगे।

शहजादे ने फौरन कुछ तीव्रगामी घोड़ों के लाने का आदेश दिया और कई हजार अशर्फियाँ अपने और जौहरी के पास रखीं और कुछ सेवकों के साथ शहर से निकल पड़े। कई रोज वे उसी तरह रात-दिन चलते रहे। एक दिन दोपहर के समय वे थकान के कारण आराम करने के लिए वृक्षों के नीचे लेटे। इतने में डाकुओं के एक दल ने उन पर आक्रमण कर दिया। शहजादे के नौकरों ने उनका सामना किया किंतु सब मारे गए। डाकुओं ने शहजादे और जौहरी के सारे हथियार, घोड़े और धन ले लिया बल्कि उनके शरीर के कपड़े भी उतार लिए और उन दोनों को वैसा ही असहाय छोड़ कर चले गए।

शहजादे ने कहा, संसार में मुझसे अधिक अभागा कौन होगा कि एक विपत्ति समाप्त नहीं होती कि दूसरी आ पड़ती है। यदि इस्लाम में आत्महत्या को पाप न समझा जाता तो मैं अपनी जान अपने हाथों दे देता। अब मैंने तय किया है कि यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा बल्कि शमसुन्निहार की याद में यहीं जान दे दूँगा। जौहरी ने उसे बहुत समझाया-बुझाया कि इस प्रकार निराश नहीं होना चाहिए और भगवान की इच्छा को स्वीकार करना चाहिए। बहुत समझाने पर शहजादा उठा और दोनों एक पगडंडी पर चलने लगे। कई मील चल कर इन्हें एक मस्जिद मिली। वे दोनों भूखे-प्यासे रात भर वहीं पड़े रहे।

सवेरे एक भला मानस वहाँ नमाज पढ़ने आया। नमाज के बाद उसने दो आदमियों को एक कोने में दुबक कर बैठे देखा। उसने कहा कि तुम लोग परदेसी जान पड़ते हो। जौहरी ने कहा, हमारी दशा आप देख ही रहे हैं। हम लोग बगदाद से आ रहे थे कि रास्ते में डाकुओं ने हमें लूट लिया, कुछ भी हमारे पास न छोड़ा। उस आदमी ने कहा कि आप लोग मेरे घर चलें और आराम करें। जौहरी बोला, कैसे चलें? वे लोग हमारे कपड़े भी ले गए और हम नंगे बैठे हैं। उस आदमी ने बाहर जा कर अपने घर से दो चादरें लीं और मस्जिद में आ कर इन लोगों से चलने को कहा।

अब जौहरी को कुछ और ही शक हुआ कि यह आदमी इतना कृपालु क्यों है। उसने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि खलीफा ने हम लोगों की गिरफ्तारी के लिए इनामी इश्तिहार दिया हो और यह इनाम के लालच में हमें पकड़वाना चाहता हो। उसने कहा, आपकी कृपा के लिए धन्यवाद किंतु बीमारी और भूख से मेरे साथी की हालत खराब हो गई है और वह चलने-फिरने के योग्य नहीं है। उस भले आदमी ने एक नौकरानी से उन दोनों के लिए कुछ खाना भी भिजवा दिया। जौहरी ने पेट भर खाना खा लिया।

किंतु शहजादे की हालत वास्तव में खराब थी। उससे एक कौर भी नहीं खाया गया। उसने समझ लिया कि मेरा अंत समय आ गया है और वह जौहरी से बोला, भाई, अब मैं बच नहीं सकता तुम देख ही रहे हो कि मैंने शमसुन्निहार के प्रेम में क्या-क्या विपत्तियाँ उठाईं और इस अंत समय में भी उसी की याद कर रहा हूँ। मुझे मरने का दुख नहीं है। अब तुमसे अंतिम प्रार्थना है कि मैं मर जाऊँ तो मेरे शव को कुछ दिनों के लिए इसी भले आदमी की निगरानी में छोड़ना और बगदाद जा कर मेरी माता को मेरी मृत्यु की सूचना देना और कहना कि यहाँ से मेरी लाश उठवा कर ले जाएँ और विधिपूर्वक दफन करवाएँ।

यह कह कर शहजादे ने अपने प्राण छोड़ दिए। जौहरी उसके लिए बहुत देर तक विलाप करता रहा। उस दिन उस भले आदमी के पास लाश रखवा कर एक यात्री दल के साथ बगदाद की ओर चला। बगदाद पहुँच कर उसने शहजादे की मृत्यु की सूचना उसकी माँ को दी। बेचारी वृद्धा जवान बेटे के लिए सिर पीट-पीट कर बहुत रोई। फिर कई सेवकों के साथ वहाँ गई जहाँ शहजादे का शव रखा हुआ था।

इधर जौहरी अपने घर में बैठा शोक मना रहा था कि उसके पूरे प्रयत्नों के बाद भी इस प्रेम-प्रसंग का ऐसा दुखद अंत हुआ। एक दिन वह इसी शोक में अपने घर के सामने घूम रहा था कि उसे शमसुन्निहार की वही विश्वस्त दासी मिली। वह उसे अपने घर में ले गया और उसे बताया कि उसकी सूचना के बाद जब शहजादे के साथ मैं भागा तो क्या हुआ और किस प्रकार उस शहजादे ने शमसुन्निहार की याद करते हुए प्राण छोड़ दिए। और अब शहजादे की माँ अपने बेटे की लाश लेने गई है।

यह सुन कर दासी भी सिर पीट-पीट कर रोने लगी। बाद में दासी ने कहा, अब शमसुन्निहार भी इस दुनिया में नहीं है। खलीफा ने उसे पकड़वा मँगाया तो उसने खलीफा के सामने स्वीकार कर लिया कि वह अबुल हसन के प्रेम में पागल है। अबुल हसन का नाम लेने के साथ ही वह इस तरह तड़पने और छटपटाने लगी कि उसके सच्चे प्रेम से खलीफा भी प्रभावित हुआ और उसके हृदय में क्रोध के बजाय सहानुभूति जागृत हो गई। उसने शमसुन्निहार को गले लगाया और बहुत कुछ भेंट और पारितोषक दे कर उसे विदा किया। उसने अपने महल में आ कर मुझसे कहा कि तूने मेरे साथ बड़ा उपकार किया है किंतु मैं भी अब दो घड़ी की मेहमान हूँ। मैंने उसे धैर्य दिया और कहा ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। शाम को खलीफा फिर उसके पास आया और गाना-बजाना शुरू हुआ किंतु प्रेम-संगीत ने उसकी दशा खराब कर दी और वह मर गई।

खलीफा ने पहले तो उसे बेहोश समझा और उसे होश में लाने के बहुत प्रयत्न करवाता रहा किंतु जब निश्चय हुआ कि वह मर गई तो उसने शोक में आज्ञा दी कि समस्त वाद्य-यंत्र तोड़ दिए जाएँ। अब उस सभा में संगीत के बदले रुदन के स्वर उठने लगे। खलीफा खुद भी वहाँ अधिक न बैठ सका और अपने महल को चला गया। मैं रात भर स्वामिनी के शव के पास बैठी रही। सुबह मैंने लाश को नहलाया और महल के अंदर बड़े मकबरे में, जहाँ दफन होने की अनुमति शमसुन्निहार ने पहले ही खलीफा से ले ली थी, दफन किया। अब मैं चाहती हूँ कि जब शहजादे की लाश आए तो उसे भी स्वामिनी की कब्र के बगल में गाड़ा जाए ताकि दोनों प्रेमी मर कर तो एक जगह रहें।

जौहरी ने कहा कि खलीफा की अनुमति के बगैर यह कैसे संभव है। दासी ने कहा, इसकी चिंता न करें। खलीफा ने मुझसे कहा कि तू हमेशा उसकी वफादार रही, अब मरने के बाद भी उसकी सेवा में रह और उसकी कब्र की देखभाल कर। खलीफा ने मुझे वहाँ का सारा अधिकार दे दिया है। वैसे भी उसे शहजादे और शमसुन्निहार के प्रेम का हाल मालूम है और वह इस प्रसंग से नाराज भी नहीं है।

जब शहजादे की लाश बगदाद पहुँची तो जौहरी ने उस दासी को इसकी सूचना भिजवाई। वह आ कर शहजादे की लाश को शहजादे की माता की अनुमति ले कर महलवाले मकबरे में ले गई। शहजादे की शवयात्रा में हजारों आदमी शामिल थे। अंततः शहजादे को भी अपने प्रेयसी के बगल में दफन कर दिया गया। तब से दूर-दूर के देशों से लोग आ कर उनकी कब्रों पर मनौती मानते हैं।

शहरजाद ने यह कथा समाप्त की तो उसकी बहन दुनियाजाद ने कहा कि यह कहानी बहुत ही सुंदर थी, क्या तुम्हें और भी कोई कहानी आती है। शहरजाद बोली, यदि मुझे आज प्राणदंड न मिला तो मैं कल शहजादा कमरुज्जमाँ की कहानी सुनाऊँगी। बादशाह शहरयार ने नई कहानी सुनने के लालच में उस दिन भी शहरजाद का वध नहीं करवाया और अगली सुबह के पूर्व शहरजाद ने नई कहानी आरंभ कर दी। 

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रचनाएँ
अलिफ लैला
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अलिफ लैला की कहानी अरब देश की एक प्रचलित लोक कथा है जो पूरी दुनिया में सदियों से सुनी व पढ़ी जाती रही है। ... इस कथा के अनुसार, बादशाह शहरयार अपनी मलिका की बेवपफाई से दुःखी होकर उसका और उसकी सभी दासियों का कत्ल कर देता है और प्रतिज्ञा करता है कि रोजाना एक स्त्री के साथ विवाह करूंगा और अगली सुबह उसे कत्ल कर दूंगा।
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भूमिका

29 जनवरी 2022
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भूमिका (1)-अलिफ़ लैला सहस्र-रजनी चरित्र, जो अब भी भारत में अपने अरबी नाम 'अल्फ लैला' के प्रचलित बिगड़े हुए रूप 'अलिफ लैला' के नाम से अधिक जाना जाता है, वास्तव में लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोक

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शहरयार और शाहजमाँ

29 जनवरी 2022
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फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का

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किस्सा गधे, बैल और उनके मालिक

29 जनवरी 2022
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एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल

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किस्सा व्यापारी और दैत्य का-

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा : प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए द

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किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का

29 जनवरी 2022
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वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश क

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किस्सा तीसरे बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था

29 जनवरी 2022
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तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक बार मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुल

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मछुवारे की कहानी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी मे

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गरीक बादशाह और हकीम दूबाँ की कथा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में एक रूमा नामक नगर था। उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था। उस बादशाह को कुष्ठ रोग हो गया। इससे वह बड़े कष्ट में रहता था। राज्य के वैद्य-हकीमों ने भाँति-भाँति से उसका रोग दूर करने के उपाय किए क

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भद्र पुरुष और उसके तोते की कथा

29 जनवरी 2022
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पूर्वकाल में किसी गाँव में एक बड़ा भला मानस रहता था। उसकी पत्नी अतीव सुंदरी थी और भला मानस उससे बहुत प्रेम करता था। अगर कभी घड़ी भर के लिए भी वह उसकी आँखों से ओझल होती थी तो वह बेचैन हो जाता था। एक बा

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अमात्य की कहानी

29 जनवरी 2022
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प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, राजकुमार की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य

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काले द्वीपों के बादशाह की कहानी

29 जनवरी 2022
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उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले द्वीपों का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों

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किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का

29 जनवरी 2022
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शहरजाद की कहानी रात रहे समाप्त हो गई तो दुनियाजाद ने कहा - बहन, यह कहानी तो बहुत अच्छी थी, कोई और भी कहानी तुम्हें आती है? शहरजाद ने कहा कि आती तो है किंतु बादशाह की अनुमति हो तो कहूँ। बादशाह ने अनुमत

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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पहले फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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पहले फकीर ने अदब से घुटनों के बल खड़े होकर कहा 'सुंदरी, अब ध्यान लगाकर सुनो कि मेरी आँख किस प्रकार गई और मैं क्यों फकीर बना। मैं एक बड़े बादशाह का बेटा था। बादशाह का भाई यानी मेरा चचा भी एक समीपवर्ती

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दूसरे फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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अभी पहले फकीर की अद्भुत आप बीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से लोग उबरे नहीं थे कि जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा कि तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने कहा कि आपकी आज्ञानुसार मैं आप को बताऊँग

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भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष

29 जनवरी 2022
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किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता ह

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किस्सा तीसरे फकीर का

29 जनवरी 2022
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हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी आँख मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा

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किस्सा जुबैदा का

29 जनवरी 2022
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जुबैदा ने खलीफा के सामने सर झुका कर निवेदन किया है राजाधिराज, मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी। मैं और वे दोनों काली कुतियाँ तीनों सगी बहिनें हैं और यह दो स्त्

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किस्सा अमीना का

29 जनवरी 2022
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अमीना ने कहा, 'जुबैदा की कहानी आप उसके मुँह से सुन चुके, अब मैं अपनी कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत करती हूँ। मेरी माँ मुझे लेकर अपने घर में आई कि रँड़ापे का अकेलापन उसे न खले। फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर

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सिंदबाज जहाजी की कहानी

29 जनवरी 2022
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जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी

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सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर उसे भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्र

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सिंदबाद जहाजी की दूसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेच

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सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के कष्ट और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्या

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सिंदबाद जहाजी की चौथी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ। मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे व

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सिंदबाद जहाजी की पाँचवी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार

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सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कहा कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्

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सिंदबाद जहाजी की सातवीं यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक

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एक स्त्री और तीन नौकरों का वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को कहा। शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर प्रजा का

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जवान और मृत स्त्री

29 जनवरी 2022
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उस जवान ने कहा कि 'मृत स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे चचा हैं। ग्यारह वर्ष पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता

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नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन

29 जनवरी 2022
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मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि

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काशगर के दरजी और बादशाह के कुबड़े सेवक

29 जनवरी 2022
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दूसरी रात को मलिका शहरजाद ने पिछले पहर अपनी बहन दुनियाजाद के कहने से यह कहानी सुनाना आरंभ किया। पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशगर में एक दरजी था जो अपनी दुकान में बैठ कर कपड़े सीता था।

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ईसाई द्वारा सुनाई गई

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ईसाई ने कहा, मैं मिस्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ। मेरा बाप दलाल था। उस के पास काफी पैसा हो गया। उस ने मरने के बाद मैं ने भी वही व्यापार आरंभ किया। एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार

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अनाज के व्यापारी

29 जनवरी 2022
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अनाज का व्यापारी बोला कि कल मैं एक धनी व्यक्ति की पुत्री के विवाह में गया था। नगर के बहुत-से प्रतिष्ठित व्यक्ति उसमें शामिल थे। शादी की रस्में पूरी होने पर दावत हुई और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए।

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उस आदमी की कहानी जिसके चारों अँगूठे कटे थे

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उस ने कहा कि दोस्तो, मेरा पिता बगदाद का रहनेवाला था और खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में था। मैं भी उसी समय पैदा हुआ। मेरा पिता यद्यपि धनवान तथा बड़े व्यापारियों में गिना जाता था तथापि वह बहुत ही विलासी औ

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यहूदी हकीम द्वारा वर्णित

29 जनवरी 2022
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यहूदी हकीम ने बादशाह के सामने झुक कर जमीन चूमी और कहा कि पहले मैं दमिश्क नगर में हकीमी किया करता था। अपनी चिकित्सा विधि के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हो गई थी। एक दिन वहाँ के हाकिम ने मुझ से कहा कि

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काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा

29 जनवरी 2022
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दरजी ने कहा कि इस नगर के व्यापारी ने एक बार अपने मित्रों को भोज दिया और उनके लिए भाँति-भाँति के व्यंजन बनवाए। मुझे भी बुलाया गया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि बहुत-से निमंत्रित लोग मौजूद हैं किंतु मक

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लँगड़े आदमी की कहानी

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मेरा पिता बगदाद के सम्मानित व्यक्तियों में से था और हम लोग आनंदपूर्वक वहाँ रह रहे थे। मैं अपने पिता का अकेला बेटा था। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय तक मैं न केवल विद्याध्ययन पूरा कर चुका था ब

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दरजी की जबानी नाई की कहानी

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के काल में बगदाद के आसपास दस कुख्यात डाकू थे जो राहगीरों को लूटते ओर मार डालते थे। खलीफा ने प्रजा के कष्ट का विचार कर के कोतवाल से कहा कि उन डाकुओं को पकड़ कर लाओ वरना मैं तुम्हें प्र

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नाई के कुबड़े भाई

29 जनवरी 2022
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सरकार, मेरा सबसे बड़ा भाई जिसका नाम बकबक था, कुबड़ा था। उसने दरजीगीरी सीखी और जब यह काम सीख लिया तो उसने अपना कारबार चलाने के लिए एक दुकान किराए पर ली। उस की दुकान के सामने ही एक आटा चक्कीवाले की दुका

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नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी

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दूसरे रोज खलीफा के सामने पहुँच कर मैं ने कहा कि मेरा दूसरा भाई बकबारह पोपला है। एक दिन उससे एक बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हारे लाभ की एक बात कहती हूँ। एक बड़े घर की स्वामिनी तुम से आकृष्ट है। मैं तुम्हें

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नाई के तीसरे भाई अंधे बूबक की कहानी

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा, सरकार, मेरा तीसरा भाई बूबक था जो बिल्कुल अंधा था। वह बड़ा अभागा था। वह भिक्षा से जीवन निर्वाह करता था। उसका नियम था कि अकेला ही लाठी टेकता हुआ भीख माँगने जाता और किसी दानी का द्वार खटखटा क

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नाई के चौथे भाई काने अलकूज

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि मेरा चौथा भाई काना था और उसका नाम अलकूज था। अब यह भी सुन लीजिए कि उसकी एक आँख किस प्रकार गई। मेरा भाई कसाई का काम करता था। उसे भेड़-बकरियों की अच्छी पहचान थी। वह मेढ़ों को लड़ाने के लिए

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नाई के पाँचवें भाई अलनसचर

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नाई ने कहा कि मेरे पाँचवें भाई का नाम अलनसचर था। वह बड़ा आलसी और निकम्मा था। वह रोज किसी न किसी मित्र के पास जा कर बेशर्मी से कुछ भीख माँग लेता और खा-पी कर पड़ा रहता। मेरा बाप कुछ समय बाद बूढ़ा हो कर

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नाई के छठे भाई कबक जिसके होंठ खरगोश की तरह के थे

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नाई ने कहा कि अब मेरे आखिरी भाई शाह कबक का वृत्तांत रह गया है। इसे भी सुन लीजिए, फिर मैं आप से विदा लूँ। इस भाई का नाम शाह कबक था और उसके होंठ खरगोश की तरह ऊपर को चढ़े हुए थे और वह चलता भी खरगोश की तर

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शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार

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खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक

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कमरुज्जमाँ और बदौरा

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फारस देश में बीस दिन की राह पर एक देश खलदान है। उस देश में कई टापू भी शामिल हैं। बहुत दिन पहले वहाँ का बादशाह शाहजमाँ था। उसके चार पत्नियाँ थीं और सात विशेष दासियाँ। वह बड़ा प्रतापी राजा था, उसके दे

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नूरुद्दीन और पारस देश की दासी

29 जनवरी 2022
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अगली सुबह से पहले शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि पहले जमाने में बसरा बगदाद के अधीन था। बगदाद में खलीफा हारूँ रशीद का राज था और उसने अपने चचेरे भाई जुबैनी को बसरा का हाकिम बनाया था। जुबैनी के

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ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी

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शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशा

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गनीम और फितना

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दुनियाजाद ने मलिका शहरजाद से नई कहानी सुनाने को कहा और बादशाह शहरजाद ने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी तो शहरजाद ने नई कहानी शुरू कर दी। उसने कहा कि पुराने जमाने में दमिश्क नगर में एक व्यापारी रहता था जिस

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शहजादा जैनुस्सनम और जिन्नों के बादशाह

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में बसरा में एक बड़ा ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय बादशाह राज करता था। उसे सबकुछ प्राप्त था किंतु उसे बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई जिससे वह बहुत दुखी रहता था। नगर निवासी भी बादशाह के साथ म

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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी-

29 जनवरी 2022
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उपर्युक्त कहानी के मध्य में एक यात्रा में जैनुस्सनम के दरियाबार देश मे जाने का भी उल्लेख है। वहाँ की एक चित्ताकर्षक कथा उस ने सुनी थी। वह कथा भी इस जगह कही जाती है। हैरन नगर में एक बड़ा प्रतापी बादशा

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दरियाबार की शहजादी

29 जनवरी 2022
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उस सुंदरी ने कहा कि काहिरा के निकट दरियाबार नाम एक द्वीप है। उस का बादशाह सब प्रकार से सुखी था किंतु उसे संतान न होने का बड़ा दुख था। वर्षों की प्रार्थनाओं और सिद्धों के आशीर्वादों से उस के यहाँ एक पु

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सोते-जागते आदमी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में बगदाद में एक धनी व्यापारी था। उस का एक ही पुत्र था जिसका नाम अबुल हसन था। व्यापारी बड़ा कंजूस था। वह धन एकत्र ही करता था, खर्च बहुत कम करता था। इसलिए जब

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अलादीन और जादुई चिराग

29 जनवरी 2022
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चीन की राजधानी में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं करता था सिर्फ खेल-कूद में समय ब

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खलीफा हारूँ रशीद और बाबा अब्दुल्ला

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दुनियाजाद के प्रस्ताव और शहरयार की अनुमति से नई कहानी प्रारंभ करते हुए शहरजाद ने कहा कि कभी-कभी आदमी का चित्त प्रसन्न होता है और उसकी कोई साफ वजह भी नहीं होती। ऐसी स्थिति भी होती है जब आदमी खुश तो होत

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अंधे बाबा अब्दुल्ला

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बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सार

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सीदी नोमान

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भिखारी की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने बराबर घोड़ी दौड़ानेवाले पर ध्यान दिया और उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है। उसने अपना नाम सीदी नोमान बताया। खलीफा ने कहा, मैंने बहुत-से घुड़सवारों और साईसों को दे

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ख्वाजा हसन हव्वाल

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ख्वाजा हसन ने कहा कि मैं अपनी बात बताने के पहले अपने दो मित्रों के बारे में बताना चाहता हूँ। वे अभी जीवित हैं और यहीं बगदाद में रहते हैं। वे मेरे प्रत्येक कथन की पुष्टि करेंगे। उनमें से एक का नाम सादी

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अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी

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अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री

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बगदाद के व्यापारी अली ख्वाजा

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खलीफा हारूँ रशीद के राज्य काल में बगदाद में अलीख्वाजा नामक एक छोटा व्यापारी रहता था। वह अपने पुश्तैनी मकान में, जो छोटा-सा ही था, अकेला रहता था। उसने विवाह नहीं किया था और उसके माता पिता की भी मृत्यु

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यंत्र के घोड़े

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बादशाह सलामत, आपको यह मालूम ही है कि हजारों वर्ष से फारस में नौरोज यानी वर्ष का प्रथम दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उसमें सभी लोग विशेषतः अग्निपूजक, भाँति-भाँति के नृत्यों और खेल-तमाशों का आय

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शहजादा अहमद और परीबानू

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शहरजाद ने कहा, बादशाह सलामत, पुराने जमाने में हिंदोस्तान का एक बादशाह बड़ा प्रतापी और ऐश्वर्यवान था। उसके तीन बेटे थे। बड़े का नाम हुसैन, मँझले का अली और छोटे का अहमद था। बादशाह का एक भाई जब मरा तो उस

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ईर्ष्यालु बहनों की कहानी

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नामी शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। ज

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बैल और गधा

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एक बार एक सौदागर था जो बहुत अमीर था। उसके पास बहुत सारे नौकर चाकर और जानवर थे। उसकी एक पत्नी थी और परिवार था और वह अपने खाने पीने के लिये खेती करता था। उसके पास जंगली जानवरों और हर तरह की चिड़िया की बो

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भेड़िये और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक लोमड़ा और एक भेड़िया एक ही घर में रहते थे। भेड़िया बहुत ही बेरहम था जबकि लोमड़ा बहुत नरम दिल था। इसी तरह से रहते हुए उन्हें कुछ दिन हो गये कि एक दिन वह लोमड़ा भेड़िये से बोला — “अगर तुम इसी तरीके

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लोमड़े और कौए की कहानी

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एक लोमड़ा एक पहाड़ की एक गुफा में रहता था। जब भी उसको एक बच्चा पैदा होता और वह बड़ा हो जाता तो वह उसको खा जाता क्योंकि उसको भूख बहुत लगती थी। अगर वह अपने बच्चों को न खाता तो उसके वे बच्चे बड़े हो जाते और

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साही और कबूतर

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एक बार एक साही एक खजूर के पेड़ के नीचे रहने के लिये आया। उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपनी पत्नी के साथ रहता था। साही ने सोचा कि यह कबूतर का जोड़ा तो इस पेड़ के फल खाता है पर मुझे इस पेड़ के फल खाने का कोई मौ

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बतख और कछुए की कहानी

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एक बार एक बतख बहुत ऊपर उड़ा और बहते हुए पानी में खड़ी एक चट्टान पर जा कर बैठ गया। जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो पानी की एक लहर एक आदमी का ढाँचा उसके पास ला कर छोड़ गयी। बतख ने उसको ठीक से देखा तो उसको पता लग

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चुहिया और एक ततैये की कहानी

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एक बार एक चुहिया और एक मादा ततैया एक गरीब किसान के घर में एक साथ ही रहते थे। एक बार उस किसान का एक दोस्त बीमार पड़ गया तो डाक्टर ने उसको धुले तिल21 खाने की सलाह दी। सो उस किसान ने एक आदमी से अपने दोस्

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कौआ और बिल्ला

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एक समय की बात है कि एक कौआ और एक बिल्ला दोनों आपस में बड़े गहरे दोस्त थे और साथ साथ रहते थे। एक दिन वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे कि उन्होंने एक चीते23 को अपनी तरफ आते हुए देखा। उनको उसके अपनी त

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चिड़ा और मोर

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एक बार की बात है एक चिड़ा रोज सुबह सुबह चिड़ियों के राजा से मिलने जाता था और सारा दिन उसकी सेवा में खड़ा रहता था। वह सबसे पहले वहाँ पहुँचता था और सबसे बाद में वहाँ से वापस आता था। एक बार कुछ चिड़ियों ने

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मुर्गे और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक गाँव में एक शेख रहता था। उसकी अपने गाँव में बहुत अच्छी साख थी और वह एक बहुत ही समझदार आदमी था। उसके अपने पास बहुत सारे मुर्गे मुर्गियाँ थे। वह उनको बढ़ाने के लिये उनकी बहुत अच्छी देखभाल करता

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चिड़ियें, जानवर और बढ़ई

29 जनवरी 2022
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जानवरों की यह कहानी बहुत ही मजेदार है। हो सकता है कि तुम इसको बार बार पढ़ना पसन्द करो और हर किसी को खास करके अपने छोटे भाई बहिनों को बार बार सुनाना पसन्द करो। बहुत पुरानी बात है कि एक मोर अपनी पत्नी क

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