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शहरयार और शाहजमाँ

29 जनवरी 2022

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फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे। जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए। उसने अपने मंत्री को उसे बुलाने की आज्ञा दी और मंत्री यह आज्ञा पाकर बड़ी धूमधाम से विदा हुआ। जब वह समरकंद शहर के समीप पहुँचा तो शाहजमाँ यह समाचार सुनकर उसकी अगवानी को सेना लेकर अपनी राजधानी से रवाना हुआ और शहर के बाहर पहुँचकर मंत्री से मिला। वह उसे देखकर प्रसन्न हुआ। शाहजमाँ अपने भाई शहरयार का कुशलक्षेम पूछने लगा। मंत्री ने शाहजमाँ को दंडवत कर उसके भाई का हाल कहा।

वह मंत्री बादशाह शहरयार का परम आज्ञा पालक था और उससे प्रेम करता था। शाहजमाँ ने उससे कहा कि भाई! मेरे अग्रज ने तुम्हें मुझे लेने को भेजा इस बात से मुझको अत्यंत हर्ष हुआ। उनकी आज्ञा मेरे शिरोधार्य है। अगर भगवान ने चाहा तो दस दिन में यात्रा की तैयारी कर के और शासन में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर तुम्हारे साथ चलूँगा। तुम्हारे और तुम्हारी सेना के लिए खाने-पीने का प्रबंध सब यहीं हो जाएगा। अतएव तुम इसी स्थान पर ठहरो। अतएव उसी स्थान पर खाने-पीने आदि की व्यवस्था कर दी गई और वे वहाँ रहे।

इस अवसर पर बादशाह ने यात्रा की तैयारियाँ की और अपनी जगह अपने विश्वास पात्र मंत्री को नियुक्त किया। एक दिन सायं अपनी बेगम से जो उसे अति प्रिय थी विदा ली और अपने सेवकों और मुसाहिबों को लेकर समरकंद से चला और अपने खेमे में पहुँचकर मंत्री के साथ बातचीत करने लगा। आधी रात होने पर उसकी इच्छा हुई कि एक बार बेगम से फिर मिल आऊँ। वह सबसे छुपकर अकेला ही महल में पहुँचा। बेगम को उसके आने का संदेह तक न था; वह अपने एक तुच्छ और कुरूप सेवक के साथ सो रही थी।

शाहजमाँ सोचकर आया था कि बेगम उसे देखकर अति प्रसन्न होगी। उसे दूसरे मर्द के साथ सोते देखकर एक क्षण के लिए उसे काठ मार गया। कुछ सँभलने पर सोचने लगा कि कहीं मुझे दृष्टि-भ्रम तो नहीं हो गया। लेकिन भलीभाँति देखने पर भी जब वही बात पाई तो सोचने लगा यह कैसा अनर्थ है कि मैं अभी समरकंद नगर की रक्षा भित्ति से बाहर भी नहीं निकला और ऐसा कर्म होने लगा। वह क्रोधाग्नि में जलने लगा और उसने तलवार निकालकर ऐसे हाथ मारे कि दोनो के सिर कट कर पलँग के नीचे आ गए। इसके बाद दोनों शवों को पिछवाड़े की खिड़की से नीचे गड्ढे में फेंककर वह अपने खेमे में वापस आ गया। उसने किसी से रात की बात न बताई।

दूसरे दिन प्रातः ही सेना चल पड़ी। उसके साथ के और सब लोग तो हँसी-खुशी रास्ता काट रहे थे किंतु शाहजमाँ अपनी बेगम के पाप कर्म को याद कर के दुखी रहता था और दिनों दिन उसका मुँह पीला पड़ता जाता था। उसकी सारी यात्रा इसी कष्ट में बीती।

जब वह हिंदुस्तान की राजधानी के समीप पहुँचा और शहरयार ने यह सुना तो वह अपने सारे दरबारियों को लेकर शाहजमाँ की अभ्यर्थना के लिए आया। जब दोनों एक-दूसरे के पास पहुँचे तो अपने-अपने घोड़े से उतर कर गले मिले और कुछ देर तक एक-दूसरे की कुशलक्षेम पूछ कर बड़े समारोहपूर्वक रवाना हुए। शहरयार ने शाहजमाँ को उस महल में ठहराया जो उसके लिए पहले से सजाया गया था और जहाँ से उद्यान दिखाई देता था। वह महल बड़ा और राजाओं के स्वागतयोग्य था। फिर शहरयार ने अपने भाई से स्नान करने को कहा। शाहजमाँ ने स्नान कर के नए कपड़े पहने और दोनों भाई महल के मंच पर बैठकर देर तक वार्तालाप करते रहे। सारे दरबारी दोनों बादशाहों के सामने अपने-अपने उपयुक्त स्थान पर खड़े रहे। भोजनोपरांत भी दोनों बादशाह देर तक बातें करते रहे।

जब रात बहुत बीत गई तो शहरयार अपने भाई को आतिथ्य गृह में छोड़कर अपने महल को चला गया। शाहजमाँ फिर शोकाकुल होकर अपने पलँग पर आँसू बहाता हुआ लोटता रहा। भाई के सामने वह अपना दुख छुपाए रहा लेकिन अकेला होते ही उस पर वही दुख सवार हो गया और उसकी पीड़ा ऐसी बढ़ गई जैसे उसकी जान लेकर ही छोड़ेगी। वह एक क्षण के लिए भी अपनी बेगम का दुष्कर्म भुला नहीं पाता था। वह अक्सर हाय हाय कर उठता और हमेशा ठंडी साँसें भरा करता। उसे रातों को नींद नहीं आती थी। इसी दुख और चिंता में उसका शरीर धीरे-धीरे घुलने लगा।

शहरयार ने उसकी यह दशा देखी तो विचार किया कि मैं शाहजमाँ से इतना प्रेम करता हूँ और उसकी सुख-सुविधा का इतना खयाल रखता हूँ फिर भी सदैव ही इसे शोक सागर में निमग्न देखता हूँ। मालूम नहीं इसे अपने राज्य की चिंता खाए जाती है या अपनी बेगम का विछोह सताता है। मैंने इसे यहाँ बुलाकर बेकार ही इसे शोक संताप में डाल दिया। अब उचित होगा कि इसे समझा-बुझा कर और उत्तमोत्तम भेंट वस्तुएँ देकर समरकंद वापस भेज दूँ ताकि इसका दुख दूर हो सके। यह सोचकर उसने हिंदुस्तान देश की बहुमूल्य वस्तुएँ थालों में लगाकर शाहजमाँ के पास भेजीं और उसका जी बहलाने के लिए तरह-तरह के खेल-तमाशे करवाए लेकिन शाहजमाँ की उदासी कम नहीं हुई बल्कि बढ़ती ही गई। फिर शहरयार ने अपने दरबारियों से कहा कि सुना है यहाँ से दो दिनों की राह के बाद एक घना जंगल है और वहाँ अच्छा शिकार मिलता है इसलिए मैं वहाँ शिकार खेलने जाना चाहता हूँ; तुम लोग भी तैयार होकर मेरे साथ चलो और शाहजमाँ से भी चलने को कहो क्योंकि शिकार में उसका जी लगेगा और उसका चित्त प्रसन्न होगा। शाहजमाँ ने निवेदन किया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इस कारण मुझे शिकार पर जाने से माफ करें। शहरयार ने कहा - अच्छी बात है, अगर तुम्हारा यहीं रहने को जी चाहता है तो रहो लेकिन मैं तैयारी कर चुका हूँ, मेरे अपने भृत्यों के साथ शिकार के लिए जाता हूँ।

शहरयार के जाने के बाद शाहजमाँ ने अपने निवास स्थान के द्वार अंदर से बंद कर लिए और एक खिड़की पर जा बैठा। वहाँ से शाही महल का उद्यान दिखाई देता था। शाहजमाँ सुवासित पुष्पों और पक्षियों के कलरव से अपना जी बहलाने लगा। लेकिन मकान और बाग की शोभा से जी बहलाने पर भी उसे अपनी पत्नी के दुराचार की कचोट बनी रहती।

जब संध्या हुई तो शाहजमाँ ने देखा कि राजमहल का एक चोर दरवाजा खुला और उसमें से शहरयार की बेगम बीस अन्य स्त्रियों के साथ निकली। वे सब उत्तम वस्त्रों और अलंकारों से शोभित थीं और इस विश्वास के साथ कि सब लोग शिकार पर चले गए हैं, बाग में आ गईं। शाहजमाँ खिड़की में छुप कर बैठ गया और देखने लगा कि वे क्या करती हैं।

दासियों ने उन लबादों को उतार डाला जो पहन कर वे महल से निकली थीं। अब उनकी सूरत स्पष्ट दिखाई देने लगी। शाहजमाँ को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जिन बीसों को उसने स्त्री समझा था उनमें से दस हब्शी मर्द थे। उन दसों ने अपनी-अपनी पसंद की दासी का हाथ पकड़ लिया। सिर्फ बेगम बगैर मर्द की रह गई। फिर बेगम ने आवाज दी, 'मसऊद, मसऊद'। इस पर एक हृष्ट-पुष्ट हब्शी युवक जो उसकी आज्ञा की प्रतीक्षा में था एक वृक्ष से उतर कर बेगम की ओर दौड़ा और उसका हाथ पकड़ लिया। उन ग्यारह हब्शियों ने दस दासियों और बेगम के साथ क्या किया उसका वर्णन मैं लज्जावश नहीं कर सकूँगा। इसी भाँति वे आधी रात तक बाग में विहार करते रहे। फिर बाग के हौज में नहा कर बेगम और उसके साथ आए बीस मर्द औरतों ने अपने कपड़े पहने और जिस चोर दरवाजे से आए थे उसी से महल में चले गए और मसऊद भी बाग की दीवार फाँद कर बाहर चला गया।

यह कांड देखकर शाहजमाँ को घोर आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि मैं तो दुखी हूँ ही, मेरा बड़ा भाई मुझ से भी अधिक दुखी है। यद्यपि वह अत्यंत शक्तिशाली और वैभवशाली है तथापि इस दुष्कर्म को रोकने में असमर्थ है, फिर मैं इतना शोक क्यों करूँ। जब मुझे मालूम हो गया कि यह नीच कर्म संसार में अक्सर ही होता है तो मैं बेकार ही स्वयं को शोक सागर में डुबोए दे रहा हूँ। यह सोचकर उसने सारी चिंता छोड़ दी और साधारण रूप से रहने लगा। पहले उसकी भूख मिट गई थी, अब वह जाग गई और वह नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मँगाकर खाने लगा और संगीत-नृत्य आदि का आनंद लेने लगा।

जब शहरयार शिकार से लौटा तो शाहजमाँ ने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत किया। शहरयार ने उसे शिकार किए हुए बहुत से जानवर दिखाए और कहा कि बड़े खेद की बात है कि तुम शिकार पर नहीं गए, वहाँ बड़े आनंद की जगह है। शाहजमाँ बादशाह की हर बात का हँसी-खुशी उत्तर देता था। शहरयार ने सोचा था कि वापसी पर भी शाहजमाँ को दुख और शोक में डूबा पाएगा लेकिन इसके विपरीत उसे प्रसन्न और संतुष्ट देखकर बोला 'ऐ भाई, भगवान को बड़ा धन्यवाद है कि मैंने थोड़ी ही अवधि में तुम्हें प्रसन्न और व्याधिमुक्त देखा। अब मैं तुम्हें सौगंध देकर एक बात पूछता हूँ, तुम वह बात जरूर बताना। शाहजमाँ ने कहा, 'जो बात भी आप पूछेंगे मैं अवश्य बताऊँगा।'

शहरयार ने कहा, 'जब तुम अपनी राजधानी से यहाँ आए थे तो मैंने तुम्हें शोक सागर में डूबा देखा था। मैंने तुम्हारा चित्त प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय किए, भाँति-भाँति के खेल-तमाशे करवाए किंतु तुम्हारी दशा जैसी की तैसी रही। मैंने बहुत सोचा कि इस दुख का कारण क्या हो सकता है किंतु इसके सिवा कोई कारण समझ में नहीं आया कि तुम्हें अपनी बेगम के विछोह का दुख है और राज्य प्रबंध की चिंता है। किंतु अब क्या बात हुई जिससे तुम्हारा दुख और चिंता दूर हो गई?

शाहजमाँ यह सुनकर मौन रहा किंतु जब शहरयार ने बार-बार यही प्रश्न पूछा तो वह बोला, 'आप मेरे मालिक हैं मुझ से बड़े हैं; मैं इस प्रश्न का उत्तर न दूँगा क्योंकि इसमें बड़ी निर्लज्जता की बात है।' शहरयार ने कहा कि जब तक तुम मुझे यह न बताओगे तब तक मुझे चैन न आएगा। शाहजमाँ ने विवश होकर अपनी बेगम के कुकर्म का सविस्तार वर्णन किया और कहा कि मैं इसी कारण दुखी रहता था।

शहरयार ने कहा, 'भैय्या, यह तो तुमने बड़े आश्चर्य की, असंभव-सी बात बताई। यह तो तुमने बड़ा अच्छा किया कि ऐसी व्यभिचारिणी को उसके प्रेमी सहित मार डाला। इस मामले में कोई तुम्हें अन्यायी नहीं कह सकता। मैं तुम्हारी जगह होता तो मुझे एक स्त्री को मारने से संतोष न होता, हजार स्त्रियों को मार डालता। बताओ कि मेरे बाहर जाने पर यह शोक किस प्रकार दूर हुआ?'

शाहजमाँ ने कहा, 'मुझे यह बात कहते डर लगता है कि ऐसा न हो कि यह सुनकर आपको मुझसे भी अधिक दुख हो।' शहरयार ने कहा कि भाई, तुमने यह कह कर मेरी उत्कंठा और बढ़ा दी है; मुझे अब इसे सुने बगैर चैन न आएगा इसलिए यह बात जरूर बताओ। विवश होकर शाहजमाँ ने मसऊद, दसों दासियों और बेगम का सारा हाल बताया और बोला, यह घटना मैंने अपनी आँखों से देखी है और समझ लिया है कि सारी स्त्रियों के स्वभाव में दुष्टता और पाप होता है। और आदमी को चाहिए कि उनका भरोसा न करे। मुझे यह सारा कांड देखकर अपना दुख भूल गया है और इसीलिए मैं नीरोग और प्रसन्नचित्त दिखाई देता हूँ।'

यह हाल सुनकर भी शहरयार को अपने भाई के कथन पर विश्वास न हुआ। वह क्रुद्ध स्वर में बोला, 'क्या हमारे देश की सारी बेगमें व्यभिचारिणी हैं? मुझे तुम्हारे कहने का विश्वास नहीं होगा जब तक मैं खुद अपनी आँखों से यह न देख लूँ। संभव है तुम्हें भ्रम हुआ हो।' शाहजमाँ ने कहा, 'भाई साहब, आप खुद देखना चाहते हैं तो ऐसा कीजिए कि दुबारा शिकार के लिए आज्ञा दीजिए। हम आप दोनों फौज के साथ शहर से कूच कर के बाहर चलें। दिन भर अपने खेमों में रहें और रात को चुपचाप इसी मकान में आ बैठें। फिर निश्चय ही आप वह सारा व्यापार अपनी आँखों देख लेंगे जो मैंने आपको बताया है।'

शहरयार ने यह बात स्वीकार कर के दरबारियों को आज्ञा दी कि कल मैं फिर शिकार को जाऊँगा। अतः दूसरे दिन प्रातःकाल ही दोनों भाई शिकार को चले और शहर के बाहर जाकर अपने खेमों में ठहरे। जब रात हुई तो शहरयार ने मंत्री को बुलाकर आज्ञा दी कि मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूँ, तुम फौज के किसी आदमी को यहाँ से जाने न देना। तत्पश्चात दोनों भाई घोड़ों पर सवार होकर गुप्त रूप से शहर में आए और सवेरा होने के पहले ही शाहजमाँ के महल की उसी खिड़की में आ बैठे जिससे शाहजमाँ ने सारा कांड देखा था। सूर्योदय के पूर्व ही महल का चोर दरवाजा खुला और कुछ देर में बेगम अपने उन्हीं स्त्री वेशधारी हब्शियों के साथ वहाँ से निकल कर बाग में आई और मसऊद को पुकारा।

यह सारा हाल - जो न कहने के योग्य है न सुनने के - देखकर शहरयार अपने मन में कहने लगा कि हे! भगवान, यह कैसा अनर्थ है कि मुझ जैसे महान नृपति की पत्नी ऐसी व्यभिचारणी हो। फिर वह शाहजमाँ से बोला कि यह अच्छा रहेगा कि हम इस क्षणभंगुर संसार को जिसमें एक क्षण आनंद का होता है दूसरा दुख का, छोड़ दें और अपने देशों और सेनाओं का परित्याग कर के अन्य देशों में शेष जीवन काटें और इस घृणित व्यापार के बारे में किसी से कुछ न कहें।

शाहजमाँ को यह बात पसंद नहीं आई किंतु अपने भाई की अत्यंत दुखी दशा देखकर उसने इनकार करना ठीक न समझा और बोला, 'भाई साहब, मैं आपका अनुचर हूँ और आपकी आज्ञा को पूर्ण रूप से मानूँगा। लेकिन मेरी एक शर्त है। जब आप किसी व्यक्ति को अपने से अधिक इस दुर्भाग्य से पीड़ित देखें तो अपने देश को लौट आएँ।'

शहरयार ने कहा, 'मुझे तुम्हारी यह शर्त स्वीकार है लेकिन मेरा विचार है कि संसार में किसी मनुष्य को हमारे जैसा दुख नहीं होगा।' शाहजमाँ ने कहा, 'थोड़ी-सी ही यात्रा करने पर आपको इस बात का पता अच्छी तरह से चल जाएगा।'

अतएव वे दोनों छुप कर एक सुनसान रास्ते से नगर के बाहर एक ओर को चले। दिन भर चलने के बाद रात को एक पेड़ के नीचे लेट कर सो रहे। दूसरे दिन प्रातःकाल वे वहाँ से भी आगे चले और चलते-चलते एक मनोरम वाटिका में पहुँचे जो एक नदी के तट पर बनी हुई थी। इस वाटिका में दूर-दूर तक घने और बड़े-बड़े वृक्ष लगे थे। वहाँ एक वृक्ष के नीचे बैठकर वे सुस्ताने लगे और बातचीत करने लगे।

थोड़ी ही देर हुई थी कि एक भयानक शब्द सुनकर दोनों अत्यंत भयभीत हुए और काँपने लगे। कुछ देर में देखा कि नदी के जल में दरार हुई और उसमें से एक काला खंभा निकलने लगा। वह इतना ऊँचा हो गया कि उसका ऊपरी भाग आकाश के बादलों में लुप्त हो गया। यह कांड देखकर दोनों भाई और भी भयभीत हुए और एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ कर उसकी डालियों और पत्तों में छुपकर बैठ गए। उन्होंने देखा कि काला खंभा नदी के तट की ओर बढ़ने लगा और तट पर आकर एक महा भयानक दैत्य के रूप में परिवर्तित हो गया। अब वे दोनों और भी घबराए और एक और ऊँची डाल पर जा बैठे। दैत्य नदी तट पर आया तो उन्होंने देखा कि उसके सिर पर एक सीसे का बड़ा और मजबूत संदूक है जिसमें पीतल के चार ताले लगे हैं।

दैत्य ने नदी तट पर आकर सिर से संदूक उतारा और उसी वृक्ष के नीचे रख दिया जहाँ दोनों भाई छुपे थे। फिर उसने कमर से लटकती हुई चार चाभियों से संदूक के चारों ताले एक-एक कर के खोले। संदूक खोला तो उसमें से एक अति सुंदर स्त्री निकली जो उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत थी। दैत्य ने स्त्री को प्रेम दृष्टि से देखा और कहा, 'प्रिये, तू सुंदरता में अनुपम है। बहुत दिन हो गए जब मैं तुझे तेरे विवाह की रात को उड़ा लाया था। इस सारे काल में तू बड़ी निष्कलंक और मेरे प्रति वफादार रही है। मुझे इस समय बड़ी नींद आ रही है इसलिए तेरे निकट सोना चाहता हूँ।' यह कहकर वह महा भयानक आकृति वाला दैत्य उस स्त्री की जंघा पर सिर रख कर सो रहा। उसका शरीर इतना विशाल था कि उसके पाँव नदी के जल को छू रहे थे। सोते समय उसकी साँस का स्वर ऐसा हो रहा था जैसे बादल गरज रहे हों। सारा वातावरण उस ध्वनि से कंपायमान हो रहा था।

एक बार संयोग से जब स्त्री ने ऊपर की ओर देखा तो उसे पत्तियों में छुपे हुए दोनों भाई दिखाई दिए। उसने दोनों को नीचे उतरने का संकेत किया। उसके उद्देश्य को समझकर दोनों का भय और बढ़ा। दोनों ने इशारे ही से उससे विनती की कि हमें पेड़ ही पर छुपा रहने दो। स्त्री ने धीरे से दैत्य का सिर अपनी गोद से उतारकर पृथ्वी पर रख दिया और उठकर उनको धैर्य देते हुए बोली कि कोई भय की बात नहीं है, तुम नीचे उतर आओ और मेरे समीप बैठो। उसने यह भी धमकी दी कि अगर न आओगे तो मैं दैत्य को जगा दूँगी और वह तुम दोनों को समाप्त कर देगा। यह सुनकर वे बहुत डरे और चुपचाप नीचे उतर आए। वह स्त्री मुस्कारती हुई दोनों का हाथ पकड़ कर एक वृक्ष के नीचे ले गई और उनसे अपने साथ संभोग करने को कहा। पहले तो उन दोनों ने इनकार किया किंतु फिर उसकी धमकी से डर कर वह जैसा चाहती थी उसके साथ कर दिया। इसके बाद स्त्री ने उनसे उनकी एक-एक अँगूठी माँग ली। फिर उसने एक छोटी-सी संदूकची निकाली और उनसे पूछा कि जानते हो इसमें क्या है और किसलिए है? उन्होंने कहा, हमें नहीं मालूम, तुम बताओ इसमें क्या है। उस सुंदरी ने कहा, इसमें उन लोगों की निशानियाँ हैं जो तुम्हारी तरह मुझसे संबंध कर चुके हैं। ये अट्ठानबे अँगूठियाँ थीं और तुम्हारी दो मिलने से सौ हो गईं। इस दैत्य की इतनी कड़ी निगरानी के बाद भी मैंने सौ बार ऐसी मनमानी की है। यह दुराचारी दैत्य मुझ पर इतना आसक्त है कि क्षण भर के लिए भी मुझे अपने से अलग नही करता और बड़ी देखभाल के साथ मुझे इस सीसे के संदूक में छुपाकर समुद्र की तलहटी में रखता है। लेकिन उसकी सारी चालाकी और रक्षा प्रबंध पर भी मैं जो चाहती हूँ वह करती हूँ और इस बेचारे का सारा प्रबंध बेकार हो जाता है। अब मेरे हाल से तुम समझ लो कि स्त्री जब कामासक्त होती है तो कोई भी उसे दुष्कर्म से रोक नहीं सकता।

इसके पश्चात वह उनकी अँगूठियाँ लेकर अपनी जगह आई। उसने दैत्य का सिर फिर अपनी गोद में रख लिया और इन दोनों को संकेत किया कि चले जाओ। दोनों वहाँ से चल दिए और जब बहुत दूर निकल गए तो शाहजमाँ ने अपने बड़े भाई शहरयार से कहा, 'देखिए, इतनी सुरक्षा और कड़े प्रबंध पर भी यह स्त्री अपने मन की अभिलाषा पूरी कर रही है। यह भी देखिए कि दैत्य को उस पर कितना विश्वास है और वह उसकी निष्कलंकता की कैसी प्रशंसा कर रहा था। अब आप ही न्यायपूर्वक बताएँ कि इस बेचारे पर हम लोगों से अधिक दुर्भाग्य है या नहीं। हम जो बात ढूँढ़ने निकले थे वह हमें मिल गई। अब हमें चाहिए कि अपने-अपने देशों को चलें और किसी स्त्री से विवाह न करें क्योंकि शायद ही कोई स्त्री निष्पाप हो।

चुनांचे शहरयार ने अपने छोटे भाई के कहने के अनुसार ही काम किया और वहाँ से दोनों शहरयार की राजधानी को चले। तीन रातों बाद वे अपनी सेनाओं में पहुँचे। शहरयार ने आगे शिकार पर न जाना चाहा और राजधानी को वापस आ गया। महल में जाकर उसने मंत्री को आज्ञा दी कि वह बेगम को ले जाकर मृत्युदंड दे। मंत्री ने बादशाह की आज्ञानुसार ऐसा ही किया। फिर शहरयार ने दसों व्याभिचारिणी दासियों को अपने हाथ से मार डाला। इसके बाद शहरयार ने सोचा कि कोई ऐसा उपाय करूँ कि विवाह के बाद मेरी बेगम कुकर्म का अवसर ही ना पा सके। अतएव उसने निश्चय किया कि रात को विवाह करूँ और सबेरे ही बेगम को मरवा दूँ। तत्पश्चात उसने अपने भाई शाहजमाँ को विदा किया। वह शहरयार की दी हुई अमूल्य भेंटों को लेकर अपनी सेना के साथ समरकंद चला गया। शाहजमाँ के जाने के बाद अपने प्रधान मंत्री को आज्ञा दी कि वह विवाह हेतु किसी सामंत की बेटी को लाए। प्रधान मंत्री ने एक अमीर की बेटी ला खड़ी की। शहरयार ने उससे विवाह किया और रात भर उसके साथ बिता कर सुबह मंत्री को आज्ञा दी कि इसे ले जाकर मार डालो और रात के लिए फिर किसी सरदार की सुंदरी बेटी मेरे विवाहार्थ ले आना। मंत्री ने उस बेगम को मार डाला और शाम को एक और अमीर की बेटी ले आया और दूसरे दिन उसे भी ले जाकर मार डाला। इसी प्रकार शहरयार ने सैकड़ों अमीरों सरदारों की बेटियों से विवाह किया और दूसरी सुबह उन्हें मरवा डाला। अब सामान्य नागरिकों की बारी आई। साथ ही इस जघन्य अन्याय की बात सब जगह फैल गई। सारे नगर में शोक, संताप और रोदन की आवाजें उठने लगीं। कहीं पिता अपनी पुत्री को मृत्यु पर आठ-आठ आँसू रोता था, कहीं लड़की की माता पछाड़ें खाती थी। जो कन्याएँ अभी तक बच रही थीं उनके माता-पिता और सगे-संबंधी अत्यंत दुखी रहते थे। कई लोग अपनी बेटियों को लेकर देश छोड़ गए और अन्य देशों में जा बसे।

वहाँ के मंत्री की दो कुँआरी बेटियाँ थीं। बड़ी का नाम शहरजाद और छोटी का नाम दुनियाजाद था। शहरजाद अपनी बहन और सहेलियों से अधिक तीक्ष्ण बुद्धि थी। वह जो बात भी सुनती या किसी पुस्तक में देखती उसे कभी नहीं भूलती थी। वार्तालाप के गुण में भी प्रवीण थी। उसे बहुत प्राचीन मनीषियों की आख्यायिकाएँ और कविताएँ जुबानी याद थीं और स्वयं गद्य-पद्य रचना में निपुण थी। इन सारे गुणों के अतिरिक्त उसमें अद्वितीय सौंदर्य भी था। एक दिन उसने पिता से कहा कि मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ लेकिन आप को मेरी बात माननी होगी। मंत्री ने कहा, यदि तेरी बात मानने योग्य होगी तो मैं अवश्य मानूँगा। शहरजाद ने कहा कि मेरा निश्चय है कि मैं बादशाह को इस अन्याय से रोकूँ जो वह कर रहा है और जो कन्याएँ अभी बची हैं उनके माता-पिता को चिंतामुक्त कर दूँ।

मंत्री ने कहा, 'बेटी, तुम यह हत्याकांड किस प्रकार रोक सकती हो। तुम्हारे पास कौन-सा उपाय ऐसा हो सकता है जिससे यह अन्याय बंद हो?' शहरजाद बोली, 'यह आपके हाथ में है। मैं आप को अपनी सौगंध देकर कहती हूँ कि मेरा विवाह बादशाह के साथ कर दीजिए।' मंत्री यह सुनकर काँपने लगा और बोला, 'बेटी, तू पागल हो गई है क्या जो ऐसी वाहियात बातें कर रही है। क्या तुझे बादशाह के प्रण का पता नहीं है? तू सोच- समझ कर बात किया कर। तू किस तरह बादशाह को इस अन्याय से रोक सकेगी? बेकार ही अपनी जान गँवाएगी।

शहरजाद ने कहा, 'मैं बादशाह के प्रण को भली भाँति जानती हूँ, परंतु अपने इस विचार को किसी प्रकार न छोड़ूँगी। यदि मैं अन्य कन्याओं की भाँति मारी गई तो इस असार संसार से मुक्ति पा जाऊँगी और अगर मैंने बादशाह को इस अत्याचार से विमुख कर दिया तो अपने नगर निवासियों का बड़ा हित कर सकूँगी।'

मंत्री ने कहा, 'मैं किसी प्रकार तेरी यह इच्छा स्वीकार नहीं कर सकता। मैं तुझे जानते-बूझते ऐसी विकट परिस्थिति में कैसे डाल सकता हूँ? अजीब-सी बात है कि तू मुझ से कहती है कि मेरी मौत का सामान कर दो। कौन-सा पिता ऐसा होगा जो अपनी प्यारी संतान के लिए ऐसा करने का सोच भी सकेगा। तुझे चाहे अपने प्राण प्यारे न हों लेकिन मुझ से यह नहीं हो सकता कि तेरे खून से हाथ रँगूँ।' शहरजाद फिर भी अपनी जिद पर अड़ी रही और विवाह की प्रार्थी रही।

मंत्री ने कहा, तू बेकार ही मुझे गुस्सा दिला रही है। आखिर क्यों तू मरना चाहती है? क्यों अपने प्राणों से इतनी रुष्ट है? सुन ले, जो भी व्यक्ति किसी काम को बगैर सोच-विचार के करता है उसे बाद में पछताना पड़ता है। मुझे भय है कि तेरी दशा उस गधे की तरह न हो जाए जो सुख से रहता था किंतु मूर्खता के कारण दुख में पड़ा। शहरजाद ने कहा, यह कहानी मुझे बताइए। मंत्री ने कहानी सुनाई। 

ममता

ममता

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

29 जनवरी 2022

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रचनाएँ
अलिफ लैला
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अलिफ लैला की कहानी अरब देश की एक प्रचलित लोक कथा है जो पूरी दुनिया में सदियों से सुनी व पढ़ी जाती रही है। ... इस कथा के अनुसार, बादशाह शहरयार अपनी मलिका की बेवपफाई से दुःखी होकर उसका और उसकी सभी दासियों का कत्ल कर देता है और प्रतिज्ञा करता है कि रोजाना एक स्त्री के साथ विवाह करूंगा और अगली सुबह उसे कत्ल कर दूंगा।
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भूमिका

29 जनवरी 2022
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भूमिका (1)-अलिफ़ लैला सहस्र-रजनी चरित्र, जो अब भी भारत में अपने अरबी नाम 'अल्फ लैला' के प्रचलित बिगड़े हुए रूप 'अलिफ लैला' के नाम से अधिक जाना जाता है, वास्तव में लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोक

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29 जनवरी 2022
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एक बड़ा व्यापारी था जिसके गाँव में बहुत-से घर और कारखाने थे जिनमें तरह-तरह के पशु रहते थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों को देखने के लिए गाँव गया। उसने अपनी पशुशाला भी देखी जहाँ एक गधा और एक बैल

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किस्सा व्यापारी और दैत्य का-

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा : प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का कारोबार किया करता था। यद्यपि प्रत्येक स्थान पर उसकी कोठियाँ, गुमाश्ते और नौकर-चाकर रहते थे तथापि वह स्वयं भी व्यापार के लिए द

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किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का

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वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश क

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किस्सा तीसरे बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था

29 जनवरी 2022
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तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक बार मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुल

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मछुवारे की कहानी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि हे स्वामी, एक वृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति का मुसलमान मछुवारा मेहनत करके अपने स्त्री-बच्चों का पेट पालता था। वह नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे ही उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी मे

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गरीक बादशाह और हकीम दूबाँ की कथा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में एक रूमा नामक नगर था। उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था। उस बादशाह को कुष्ठ रोग हो गया। इससे वह बड़े कष्ट में रहता था। राज्य के वैद्य-हकीमों ने भाँति-भाँति से उसका रोग दूर करने के उपाय किए क

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भद्र पुरुष और उसके तोते की कथा

29 जनवरी 2022
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पूर्वकाल में किसी गाँव में एक बड़ा भला मानस रहता था। उसकी पत्नी अतीव सुंदरी थी और भला मानस उससे बहुत प्रेम करता था। अगर कभी घड़ी भर के लिए भी वह उसकी आँखों से ओझल होती थी तो वह बेचैन हो जाता था। एक बा

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अमात्य की कहानी

29 जनवरी 2022
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प्राचीन समय में एक राजा था उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था। राजा उसे बहुत चाहता था, राजकुमार की किसी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था। एक दिन राजकुमार ने शिकार पर जाना चाहा। राजा ने अपने एक अमात्य

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काले द्वीपों के बादशाह की कहानी

29 जनवरी 2022
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उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले द्वीपों का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों

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किस्सा तीन राजकुमारों और पाँच सुंदरियों का

29 जनवरी 2022
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शहरजाद की कहानी रात रहे समाप्त हो गई तो दुनियाजाद ने कहा - बहन, यह कहानी तो बहुत अच्छी थी, कोई और भी कहानी तुम्हें आती है? शहरजाद ने कहा कि आती तो है किंतु बादशाह की अनुमति हो तो कहूँ। बादशाह ने अनुमत

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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मजदूर का संक्षिप्त वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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मजदूर बोला, 'हे सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञानुसार ही अपना हाल कहूँगा और यह बताऊँगा कि मैं यहाँ क्यों आया। आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था। तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया।

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पहले फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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पहले फकीर ने अदब से घुटनों के बल खड़े होकर कहा 'सुंदरी, अब ध्यान लगाकर सुनो कि मेरी आँख किस प्रकार गई और मैं क्यों फकीर बना। मैं एक बड़े बादशाह का बेटा था। बादशाह का भाई यानी मेरा चचा भी एक समीपवर्ती

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दूसरे फकीर की कहानी

29 जनवरी 2022
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अभी पहले फकीर की अद्भुत आप बीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से लोग उबरे नहीं थे कि जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा कि तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने कहा कि आपकी आज्ञानुसार मैं आप को बताऊँग

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भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष

29 जनवरी 2022
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किसी नगर में दो आदमियों का घर एक दूसरे से लगा हुआ था। उनमें से एक पड़ोसी दूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था। भले मानस ने सोचा कि मकान छोड़कर कहीं जा बसूँ क्योंकि मैं इस आदमी के प्रति उपकार करता ह

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किस्सा तीसरे फकीर का

29 जनवरी 2022
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हे दयालु सुंदरी, मेरी कहानी बहुत ही आश्चर्यकारी है। इन दोनों शहजादों की दाहिनी आँखें परिस्थितिवश गईं किंतु मेरी आँख मेरी ही मूर्खता और मेरे ही अपराध के कारण फूटी। मैं इसका विस्तृत वर्णन करता हूँ। मेरा

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किस्सा जुबैदा का

29 जनवरी 2022
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जुबैदा ने खलीफा के सामने सर झुका कर निवेदन किया है राजाधिराज, मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी। मैं और वे दोनों काली कुतियाँ तीनों सगी बहिनें हैं और यह दो स्त्

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किस्सा अमीना का

29 जनवरी 2022
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अमीना ने कहा, 'जुबैदा की कहानी आप उसके मुँह से सुन चुके, अब मैं अपनी कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत करती हूँ। मेरी माँ मुझे लेकर अपने घर में आई कि रँड़ापे का अकेलापन उसे न खले। फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर

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सिंदबाज जहाजी की कहानी

29 जनवरी 2022
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जब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियाँ बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा कि तुम्हें कोई और कहानी भी आती हैं। शहरजाद ने कहा कि बहुत कहानियाँ आती हैं। यह कह कर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी

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सिंदबाद जहाजी की पहली यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मैंने अच्छी-खासी पैतृक संपत्ति पाई थी किंतु मैंने नौजवानी की मूर्खताओं के वश में पड़कर उसे भोग-विलास में उड़ा डाला। मेरे पिता जब जीवित थे तो कहते थे कि निर्धनता की अपेक्षा मृत्यु श्र

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सिंदबाद जहाजी की दूसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूँगा और अपने नगर में सुख से रहूँगा। किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी, यहाँ तक कि मैं बेच

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सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली दो यात्राओं के कष्ट और संकट भूल गया और तीसरी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। मैंने बगदाद से व्यापार की वस्तुएँ लीं और कुछ व्या

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सिंदबाद जहाजी की चौथी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ। मैंने चौथी यात्रा की तैयारी की और अपने देश की वे व

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सिंदबाद जहाजी की पाँचवी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार भी यही हुआ। इस बार मैंने अपनी इच्छानुसार

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सिंदबाद जहाजी की छठी यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने हिंदबाद और अन्य लोगों से कहा कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्

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सिंदबाद जहाजी की सातवीं यात्रा

29 जनवरी 2022
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सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने लगा। एक

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एक स्त्री और तीन नौकरों का वृत्तांत

29 जनवरी 2022
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शहरयार को सिंदबाद की यात्राओं की कहानी सुन कर बड़ा आनंद हुआ। उसने शहरजाद से और कहानी सुनाने को कहा। शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद का नियम था कि वह समय-समय पर वेश बदल कर बगदाद की सड़कों पर प्रजा का

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जवान और मृत स्त्री

29 जनवरी 2022
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उस जवान ने कहा कि 'मृत स्त्री मेरी पत्नी और इन वृद्ध सज्जन की बेटी थी और यह मेरे चचा हैं। ग्यारह वर्ष पूर्व उससे मेरा विवाह हुआ था। हमारे तीन बेटे हैं जो जीवित हैं। मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता

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नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन

29 जनवरी 2022
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मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि

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काशगर के दरजी और बादशाह के कुबड़े सेवक

29 जनवरी 2022
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दूसरी रात को मलिका शहरजाद ने पिछले पहर अपनी बहन दुनियाजाद के कहने से यह कहानी सुनाना आरंभ किया। पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशगर में एक दरजी था जो अपनी दुकान में बैठ कर कपड़े सीता था।

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ईसाई द्वारा सुनाई गई

29 जनवरी 2022
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ईसाई ने कहा, मैं मिस्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ। मेरा बाप दलाल था। उस के पास काफी पैसा हो गया। उस ने मरने के बाद मैं ने भी वही व्यापार आरंभ किया। एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार

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अनाज के व्यापारी

29 जनवरी 2022
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अनाज का व्यापारी बोला कि कल मैं एक धनी व्यक्ति की पुत्री के विवाह में गया था। नगर के बहुत-से प्रतिष्ठित व्यक्ति उसमें शामिल थे। शादी की रस्में पूरी होने पर दावत हुई और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए।

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उस आदमी की कहानी जिसके चारों अँगूठे कटे थे

29 जनवरी 2022
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उस ने कहा कि दोस्तो, मेरा पिता बगदाद का रहनेवाला था और खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में था। मैं भी उसी समय पैदा हुआ। मेरा पिता यद्यपि धनवान तथा बड़े व्यापारियों में गिना जाता था तथापि वह बहुत ही विलासी औ

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यहूदी हकीम द्वारा वर्णित

29 जनवरी 2022
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यहूदी हकीम ने बादशाह के सामने झुक कर जमीन चूमी और कहा कि पहले मैं दमिश्क नगर में हकीमी किया करता था। अपनी चिकित्सा विधि के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हो गई थी। एक दिन वहाँ के हाकिम ने मुझ से कहा कि

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काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा

29 जनवरी 2022
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दरजी ने कहा कि इस नगर के व्यापारी ने एक बार अपने मित्रों को भोज दिया और उनके लिए भाँति-भाँति के व्यंजन बनवाए। मुझे भी बुलाया गया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि बहुत-से निमंत्रित लोग मौजूद हैं किंतु मक

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लँगड़े आदमी की कहानी

29 जनवरी 2022
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मेरा पिता बगदाद के सम्मानित व्यक्तियों में से था और हम लोग आनंदपूर्वक वहाँ रह रहे थे। मैं अपने पिता का अकेला बेटा था। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय तक मैं न केवल विद्याध्ययन पूरा कर चुका था ब

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दरजी की जबानी नाई की कहानी

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के काल में बगदाद के आसपास दस कुख्यात डाकू थे जो राहगीरों को लूटते ओर मार डालते थे। खलीफा ने प्रजा के कष्ट का विचार कर के कोतवाल से कहा कि उन डाकुओं को पकड़ कर लाओ वरना मैं तुम्हें प्र

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नाई के कुबड़े भाई

29 जनवरी 2022
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सरकार, मेरा सबसे बड़ा भाई जिसका नाम बकबक था, कुबड़ा था। उसने दरजीगीरी सीखी और जब यह काम सीख लिया तो उसने अपना कारबार चलाने के लिए एक दुकान किराए पर ली। उस की दुकान के सामने ही एक आटा चक्कीवाले की दुका

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नाई के दूसरे भाई बकबारह की कहानी

29 जनवरी 2022
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दूसरे रोज खलीफा के सामने पहुँच कर मैं ने कहा कि मेरा दूसरा भाई बकबारह पोपला है। एक दिन उससे एक बुढ़िया ने कहा, मैं तुम्हारे लाभ की एक बात कहती हूँ। एक बड़े घर की स्वामिनी तुम से आकृष्ट है। मैं तुम्हें

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नाई के तीसरे भाई अंधे बूबक की कहानी

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा, सरकार, मेरा तीसरा भाई बूबक था जो बिल्कुल अंधा था। वह बड़ा अभागा था। वह भिक्षा से जीवन निर्वाह करता था। उसका नियम था कि अकेला ही लाठी टेकता हुआ भीख माँगने जाता और किसी दानी का द्वार खटखटा क

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नाई के चौथे भाई काने अलकूज

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि मेरा चौथा भाई काना था और उसका नाम अलकूज था। अब यह भी सुन लीजिए कि उसकी एक आँख किस प्रकार गई। मेरा भाई कसाई का काम करता था। उसे भेड़-बकरियों की अच्छी पहचान थी। वह मेढ़ों को लड़ाने के लिए

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नाई के पाँचवें भाई अलनसचर

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि मेरे पाँचवें भाई का नाम अलनसचर था। वह बड़ा आलसी और निकम्मा था। वह रोज किसी न किसी मित्र के पास जा कर बेशर्मी से कुछ भीख माँग लेता और खा-पी कर पड़ा रहता। मेरा बाप कुछ समय बाद बूढ़ा हो कर

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नाई के छठे भाई कबक जिसके होंठ खरगोश की तरह के थे

29 जनवरी 2022
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नाई ने कहा कि अब मेरे आखिरी भाई शाह कबक का वृत्तांत रह गया है। इसे भी सुन लीजिए, फिर मैं आप से विदा लूँ। इस भाई का नाम शाह कबक था और उसके होंठ खरगोश की तरह ऊपर को चढ़े हुए थे और वह चलता भी खरगोश की तर

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शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक

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कमरुज्जमाँ और बदौरा

29 जनवरी 2022
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फारस देश में बीस दिन की राह पर एक देश खलदान है। उस देश में कई टापू भी शामिल हैं। बहुत दिन पहले वहाँ का बादशाह शाहजमाँ था। उसके चार पत्नियाँ थीं और सात विशेष दासियाँ। वह बड़ा प्रतापी राजा था, उसके दे

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नूरुद्दीन और पारस देश की दासी

29 जनवरी 2022
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अगली सुबह से पहले शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि पहले जमाने में बसरा बगदाद के अधीन था। बगदाद में खलीफा हारूँ रशीद का राज था और उसने अपने चचेरे भाई जुबैनी को बसरा का हाकिम बनाया था। जुबैनी के

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ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशा

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गनीम और फितना

29 जनवरी 2022
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दुनियाजाद ने मलिका शहरजाद से नई कहानी सुनाने को कहा और बादशाह शहरजाद ने भी अपनी मौन स्वीकृति दे दी तो शहरजाद ने नई कहानी शुरू कर दी। उसने कहा कि पुराने जमाने में दमिश्क नगर में एक व्यापारी रहता था जिस

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शहजादा जैनुस्सनम और जिन्नों के बादशाह

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में बसरा में एक बड़ा ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय बादशाह राज करता था। उसे सबकुछ प्राप्त था किंतु उसे बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई जिससे वह बहुत दुखी रहता था। नगर निवासी भी बादशाह के साथ म

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शहजादा खुदादाद और दरियाबार की शहजादी-

29 जनवरी 2022
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उपर्युक्त कहानी के मध्य में एक यात्रा में जैनुस्सनम के दरियाबार देश मे जाने का भी उल्लेख है। वहाँ की एक चित्ताकर्षक कथा उस ने सुनी थी। वह कथा भी इस जगह कही जाती है। हैरन नगर में एक बड़ा प्रतापी बादशा

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दरियाबार की शहजादी

29 जनवरी 2022
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उस सुंदरी ने कहा कि काहिरा के निकट दरियाबार नाम एक द्वीप है। उस का बादशाह सब प्रकार से सुखी था किंतु उसे संतान न होने का बड़ा दुख था। वर्षों की प्रार्थनाओं और सिद्धों के आशीर्वादों से उस के यहाँ एक पु

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सोते-जागते आदमी

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा कि खलीफा हारूँ रशीद के जमाने में बगदाद में एक धनी व्यापारी था। उस का एक ही पुत्र था जिसका नाम अबुल हसन था। व्यापारी बड़ा कंजूस था। वह धन एकत्र ही करता था, खर्च बहुत कम करता था। इसलिए जब

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अलादीन और जादुई चिराग

29 जनवरी 2022
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चीन की राजधानी में मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं करता था सिर्फ खेल-कूद में समय ब

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खलीफा हारूँ रशीद और बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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दुनियाजाद के प्रस्ताव और शहरयार की अनुमति से नई कहानी प्रारंभ करते हुए शहरजाद ने कहा कि कभी-कभी आदमी का चित्त प्रसन्न होता है और उसकी कोई साफ वजह भी नहीं होती। ऐसी स्थिति भी होती है जब आदमी खुश तो होत

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अंधे बाबा अब्दुल्ला

29 जनवरी 2022
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बाबा अब्दुल्ला ने कहा कि मैं इसी बगदाद नगर में पैदा हुआ था। मेरे माँ बाप मर गए तो उनका धन उत्तराधिकार में मैंने पाया। वह धन इतना था कि उससे मैं जीवन भर आराम से रह सकता था किंतु मैंने भोग-विलास में सार

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सीदी नोमान

29 जनवरी 2022
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भिखारी की कहानी सुनने के बाद खलीफा ने बराबर घोड़ी दौड़ानेवाले पर ध्यान दिया और उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है। उसने अपना नाम सीदी नोमान बताया। खलीफा ने कहा, मैंने बहुत-से घुड़सवारों और साईसों को दे

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ख्वाजा हसन हव्वाल

29 जनवरी 2022
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ख्वाजा हसन ने कहा कि मैं अपनी बात बताने के पहले अपने दो मित्रों के बारे में बताना चाहता हूँ। वे अभी जीवित हैं और यहीं बगदाद में रहते हैं। वे मेरे प्रत्येक कथन की पुष्टि करेंगे। उनमें से एक का नाम सादी

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अलीबाबा और चालीस लुटेरों की कहानी

29 जनवरी 2022
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अगली रात को मलिका शहरजाद ने नई कहानी शुरू करते हुए कहा कि फारस देश में कासिम और अलीबाबा नाम के दो भाई रहते थे। उन्हें पैतृक संपत्ति थोड़ी ही मिली थी। किंतु कासिम का विवाह एक धनी-मानी व्यक्ति की पुत्री

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बगदाद के व्यापारी अली ख्वाजा

29 जनवरी 2022
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खलीफा हारूँ रशीद के राज्य काल में बगदाद में अलीख्वाजा नामक एक छोटा व्यापारी रहता था। वह अपने पुश्तैनी मकान में, जो छोटा-सा ही था, अकेला रहता था। उसने विवाह नहीं किया था और उसके माता पिता की भी मृत्यु

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यंत्र के घोड़े

29 जनवरी 2022
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बादशाह सलामत, आपको यह मालूम ही है कि हजारों वर्ष से फारस में नौरोज यानी वर्ष का प्रथम दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उसमें सभी लोग विशेषतः अग्निपूजक, भाँति-भाँति के नृत्यों और खेल-तमाशों का आय

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शहजादा अहमद और परीबानू

29 जनवरी 2022
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शहरजाद ने कहा, बादशाह सलामत, पुराने जमाने में हिंदोस्तान का एक बादशाह बड़ा प्रतापी और ऐश्वर्यवान था। उसके तीन बेटे थे। बड़े का नाम हुसैन, मँझले का अली और छोटे का अहमद था। बादशाह का एक भाई जब मरा तो उस

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ईर्ष्यालु बहनों की कहानी

29 जनवरी 2022
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पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नामी शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। ज

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बैल और गधा

29 जनवरी 2022
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एक बार एक सौदागर था जो बहुत अमीर था। उसके पास बहुत सारे नौकर चाकर और जानवर थे। उसकी एक पत्नी थी और परिवार था और वह अपने खाने पीने के लिये खेती करता था। उसके पास जंगली जानवरों और हर तरह की चिड़िया की बो

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भेड़िये और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक लोमड़ा और एक भेड़िया एक ही घर में रहते थे। भेड़िया बहुत ही बेरहम था जबकि लोमड़ा बहुत नरम दिल था। इसी तरह से रहते हुए उन्हें कुछ दिन हो गये कि एक दिन वह लोमड़ा भेड़िये से बोला — “अगर तुम इसी तरीके

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लोमड़े और कौए की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक लोमड़ा एक पहाड़ की एक गुफा में रहता था। जब भी उसको एक बच्चा पैदा होता और वह बड़ा हो जाता तो वह उसको खा जाता क्योंकि उसको भूख बहुत लगती थी। अगर वह अपने बच्चों को न खाता तो उसके वे बच्चे बड़े हो जाते और

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साही और कबूतर

29 जनवरी 2022
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एक बार एक साही एक खजूर के पेड़ के नीचे रहने के लिये आया। उसी पेड़ के ऊपर एक कबूतर अपनी पत्नी के साथ रहता था। साही ने सोचा कि यह कबूतर का जोड़ा तो इस पेड़ के फल खाता है पर मुझे इस पेड़ के फल खाने का कोई मौ

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बतख और कछुए की कहानी

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एक बार एक बतख बहुत ऊपर उड़ा और बहते हुए पानी में खड़ी एक चट्टान पर जा कर बैठ गया। जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो पानी की एक लहर एक आदमी का ढाँचा उसके पास ला कर छोड़ गयी। बतख ने उसको ठीक से देखा तो उसको पता लग

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चुहिया और एक ततैये की कहानी

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एक बार एक चुहिया और एक मादा ततैया एक गरीब किसान के घर में एक साथ ही रहते थे। एक बार उस किसान का एक दोस्त बीमार पड़ गया तो डाक्टर ने उसको धुले तिल21 खाने की सलाह दी। सो उस किसान ने एक आदमी से अपने दोस्

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कौआ और बिल्ला

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एक समय की बात है कि एक कौआ और एक बिल्ला दोनों आपस में बड़े गहरे दोस्त थे और साथ साथ रहते थे। एक दिन वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे कि उन्होंने एक चीते23 को अपनी तरफ आते हुए देखा। उनको उसके अपनी त

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चिड़ा और मोर

29 जनवरी 2022
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एक बार की बात है एक चिड़ा रोज सुबह सुबह चिड़ियों के राजा से मिलने जाता था और सारा दिन उसकी सेवा में खड़ा रहता था। वह सबसे पहले वहाँ पहुँचता था और सबसे बाद में वहाँ से वापस आता था। एक बार कुछ चिड़ियों ने

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मुर्गे और लोमड़े की कहानी

29 जनवरी 2022
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एक बार एक गाँव में एक शेख रहता था। उसकी अपने गाँव में बहुत अच्छी साख थी और वह एक बहुत ही समझदार आदमी था। उसके अपने पास बहुत सारे मुर्गे मुर्गियाँ थे। वह उनको बढ़ाने के लिये उनकी बहुत अच्छी देखभाल करता

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चिड़ियें, जानवर और बढ़ई

29 जनवरी 2022
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जानवरों की यह कहानी बहुत ही मजेदार है। हो सकता है कि तुम इसको बार बार पढ़ना पसन्द करो और हर किसी को खास करके अपने छोटे भाई बहिनों को बार बार सुनाना पसन्द करो। बहुत पुरानी बात है कि एक मोर अपनी पत्नी क

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