विचार
*केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसका व्यक्तित्व निर्माण प्रकृति से ज्यादा उसकी स्वयं की प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।*
*मनुष्य अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, वह जैसा सोचता है वैसा बन जाता है।*
*मनुष्य और अन्य प्राणियों के बीच का जो प्रमुख भेद है, वह ये कि,*
*मनुष्य के सिवा कोई और प्राणी श्रेष्ठ विचारों द्वारा एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण नहीं कर पाता है।*
*वो अच्छा सोचकर, अच्छे विचारों के आश्रय से अपने जीवन को अच्छा नहीं बना सकता है।*
*प्रकृति ने जैसा उसका निर्माण कर दिया, कर दिया-*
*अब उसमें सुधरने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती है।।*
*मगर एक मनुष्य में जीवन के अंतिम क्षणों तक जीवन परिवर्तन के द्वार सदा खुले रहते हैं,*
*वह अपने जीवन को अपने हिसाब से उत्कृष्ट या निकृष्ट बना सकने में समर्थ होता है।*
*पशु के जीवन में पशु से पशुपतिनाथ बनने की संभावना नहीं होती मगर एक मनुष्य के जीवन में नर से नारायण बनने की प्रबल संभावना होती है।*
*मनुष्य जैसा खाता है, जैसा देखता है, जैसा सुनता है, जैसा बोलता है और जैसा सोचता है, फिर उसी के अनुरूप वो अपने व्यक्तित्व का निर्माण भी कर लेता है।*
*अगर आपको प्रकृति ने मनुष्य बनाया है*
*तो फिर क्यों न श्रेष्ठ को सोचकर, श्रेष्ठ को चुनकर, श्रेष्ठ पथ का अनुगमन करके श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया जाए।।