यतीम हूँ तो क्या डर जाऊँगा,तपने से मैं और निखर जाऊँगा।जिनता चोट पड़े हर एक चोट सहूँगा,कोई फिर स्पर्श करें तो मैं पत्थर कहलाऊंगा। आंधिया है तो क्या घबरा जाऊँगा,लड़ता रहूंगा फिर संघर्ष करना सिख जाऊँग
मच्छरों का डिवेट &nb
*हिंदी दोहा-बिषय-मंच**1*मेर मिलाय मंच मिले,ओठ मधुर मुस्कान। माला, मन का माल भीशाल मिले सम्मान।।***2*कविता पढे न मंच पेकुछ कवियों का काम।चुटकुले ,नौटंकी करे, लेते ऊंचे दाम।। ****रा
नवजीवन का बीज लिएचलता रहता मन पल पल ह्रदय से उच्छवास स्तर तक क्षणभंगुर यह जीवन... आखिर कब तक।।
आजकल प्रतिलिपि जी को न जाने क्या हो गया है ? बड़ी बहकी बहकी सी नजर आ रही हैं इन दिनों । कोई जमाना था जब बड़ी रोमांटिक हुआ करती थीं किसी नव यौवना की तरह , जिसे उछलकूद पसंद है, प्रेम के रंग अपनी आंखों में
सुबह आँख खुलते ही,मोबाइल के दीदार करते हैं।करते नोटिफिकेशन चेक,स्टेटस पर अपडेट रहते हैं।सारे काम अब तो,मोबाइल पकड़े पकड़े करते हैं।रात को सोते समय भी,पास में रखें रहते हैं।हर मूवमेंट का अब,फोटो क्लिक
एक दोस्त ने अपने खास दोस्त को फोन किया और कहा ,*" मेरे भाई मेरे दिन बदल गए ,तेरी भाभी अब मेरी सभी बाते मानने लगी है , में जो कहता हूं वही करती है ,,*"!!उसका दोस्त कहता है ,*" यार इसका मतलब आज फर्स्ट अ
कौन याद करता है शहीदों को,सिर्फ खानापूर्ति कर रह जाते हैं सभी।।देशभक्त हो अपने घर में नहीं, पड़ोस के घर में जन्मे चाहते हैं सभी।।
गिद्धों में भयंकर बेचैनी थी । सारे गिद्ध इकट्ठे हो गए थे । सब मिलकर "मारो मारो" का शोर मचा रहे थे । इतने बेचैन हो गये थे सारे गिद्ध कि सामने वाले का नुक़सान करने के चक्कर में अपना ही नुकसान किए जा रहे
चिदम्बरम पर जूता क्या चला पूरी राजनीति में तहलका सा मच गया। यह प्रथा भले ही इराक वालों ने चलाई हो या बुश के नाम के साथ जुड़ी हो, पर भारतीय संस्कृति से जूतों का रिश्ता बड़ा पुराना है। चाहें शादी में सालि
जन्म लेते ही जीवन की, शुरुआत हो जातीचाहे अनचाहे कुछ घड़ियां, जीवन में आतीपसन्द हो या नापसन्द, वो याद बहुत आतीयाद कोई भी आए, किंतु रुलाकर ही जातीबीती बातें भूलकर, केवल वर्तमान में जीनाजीवन रूपी सोमरस को
मार दिए या मर गए वो, कुछ ऐसे ही थे रिश्तेचलते थे जो संग हमारे, वो थे नीयत के सस्तेहालचाल पूछने का भी, शिष्टाचार हुआ खत्मनहीं निभाते अब, खैरियत पूछने की भी रस्मना जाने कौनसे जुनून में, जिन्दगी जिए जाते
उसने कहा था मैं कभी भी, तेरे पास आ जाऊंगीतुम्हारा जीवन एक क्षण में, समाप्त कर जाऊंगीसंसार कहता मौत मुझे, काम यही है केवल मेरामेरे आगे नहीं चलेगा, तेरे तन पर कभी वश तेरादबे पांव और बिना बताए, आती हूँ स
विश्वास और भरोसे दुनिया से, गुम होते जा रहेवहम के बादल आजकल, चारों और मंडरा रहेहर कोई जीता यहां, एक दूसरे पर वहम करकेहर इंसान रहता दुनिया में, एक दूसरे से डर केकेवल शक़ के कारण, कैसा बन गया ये संसारएक
पांव पसारे पंडा बैठे मांग रहा जीवन उद्धार, पंडित मांगे दान की खटिया, नरक न होगा हे जजमान,रोड किनारे बैठ भिखारी मांग रहा सुख भोगे भाई,अब तो संकट हरलो मोहन जीवन का न हो अपमान।
*कविता-तुकबंदी*कुछ तो खामियां रही होगी ,लोग यूं ही बदनाम करते नहीं।ये तो दौलत का गुरूर है वर्ना लोग सलाम करते नहीं।।क्यों कामनाओं की तुम भी अब तो लगाम कसते नहीं।चौदह वरस वनवास काटा है,
अनुक्रमणिका:-1- कविता (दोहा)2- कविता- तुकबंदी#########################1-#विश्व_कविता_दिवस' 21मार्च पर विशेष-#राना_दोहावली*1*कविता कवि की साधना, &
इधर भारतीय समाज में दलबदलुओं को कुछ ज़्यादा ही गिरी हुई निगाह से देखा जाने लगा है। राजनीतिक विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों की माने तो "आए दिन थोक भाव में दल बदलने से दलबदल की गरिमा में गिरा
गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग,रंगीले आंचर उडैं, जैसें नवल पतंग ।आज न मुरलीधर बचें राधा मन मुसकायं,दौड़ी सुध बुध भूलकर, मुरली दी बजायचेहरे सारे पुत गये, चढे सयाने रंग,समझ कछू आवै नहीं, को
मन के गीत मेरे शब्दों में,कलम लिखे कुछ शब्द मेरे।कुछ शब्द है निर्धन दुखी जन के, कुछ अमीरों को घेरे।कुछ समय का मोल बताये, कुछ जीवन की राह लिख देते।कुछ लिखते बदलते चेहरों को, कुछ भले जनों को समर्पित होत